‘इस पथ का उद्देश्य नही है, श्रांत भवन में टिके रहना, किंतु पहुँचना उस सीमा तक, जिसके आगे राह नही ।” सृष्टि के समस्त चराचरों में मानव सर्वोत्कृष्ट है क्योंकि केवल उसी में बौद्धिक क्षमता, चेतना, महत्वाकांश होती है ।
केवल मनुष्य ही अपने भविष्य के लिए अपने सपने संजो सकता है अपने जीवन के लक्ष्य का निर्धारण कर सकता है तथा उसे पाने के लिए सतत् प्रयत्न करने में सक्षम होता है । मैंने भी अपने जीवन के बारे में एक लक्ष्य निर्धारित किया है और वह है: एक डाक्टर बनने का ।
विश्व में कई प्रकार के व्यवसाय हैं उद्योग-धंधे हैं, नौकरियाँ और कार्य-व्यापार हैं । उनमें से कई बड़े ही मानवीय दृष्टि से बड़ी ही संवेदनशील हुआ करती है । उसका सीधा संबंध मनुष्य के प्राणों और सारे जीवन के साथ हुआ करते है ।
डाक्टर का धंधा कुछ इसी प्रकार का पवित्र, मानवीय संवेदनाओं से युक्त प्राण-दान और जीवन रक्षा की दृष्टि से ईश्वर के बाद दूसरा बल्कि कुछ लोगों की दृष्टि में ईश्वर के समान ही हुआ करता है । मेरे विचार में ईश्वर तो केवल जन्म देकर विश्व में भेज दिया करता है । उसके बाद मनुष्य-जीवन की रक्षा का सारा उत्तरदायित्व वह डाक्टरों के हाथ में सौंप दिया करता है ।
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इस कारण बहुधा मन-मस्तिष्क में यह प्रश्न उठा करता है कि यदि मैं डाक्टर होता तो ? यह सच है कि डाक्टर का व्यवसाय बड़ा ही पवित्र हुआ करता है, कमाई करने के लिए नहीं । मैने ऐसे कई डाक्टरों की कहानियाँ सुन रखी हैं जिन्होंने मानव-सेवा करने में खुद सारा जीवन खुद भूखे-प्यासे रहकर बिता दिया, पर किसी बेचारे मरीज को इसलिए नही मरने दिया कि उसके पास फीस देने या दवाई खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं ।
यदि मैं डॉक्टर होता तो ऐसा ही करने की कोशिश करता । किसी भी मनुष्य को बिना उपचार बिना दवाई के मरने नहीं देता । मैने यह भी सुन रखा है कि कुछ ऐसे डाक्टर भी हुए हैं, जिन्होने अपने बाप-दादा से प्राप्त की गई सारी संपति लोगों की सेवा-सहायता में खर्च दी ।
यदि मैं बाप-दादा से प्राप्त की गई संपतिवाला डॉक्टर होता तो एक-एक पैसा जन-साधारण की सेवा-सहायता में खर्च करता, इसमें शक नहीं । मैंने सुना है कि भारत के दूर-दराज के गांवों में डाक्टरी-सेवा का अभाव है, जब कि वहाँ तरह-तरह की बीमारियाँ फैलकर लोगों को भयभीत किए रहती हैं, क्योंकि पड़े लिखे वास्तविक डाक्टर वहाँ जाना नहीं चाहते, इस कारण वहाँ नीमहकीमों की बन आती है या फिर झाड़-फूंक करने वाले ओझा लोग बीमारों का भी इलाज करते हैं ।
इस तरह नीमहकीम और ओझा बेचारे अनपढ़-अशिक्षित गरीब देहातियों को उल्लू बनाकर दोनो हाथों से लूटा तो करते ही हैं, उनके प्राण लेने से बाज नहीं आते और उनका कोई कुछ बिगाड़ भी नहीं पाता । यदि मैं डॉक्टर होता तो आवश्यकता पड़ने पर ऐसे ही दूर-दराज के गांवों में जाकर लोगों के प्राणों की तरह-तरह की बीमारियों से तो रक्षा करता ही लोगों को ओझाओं, नमी-हकीमों और तरह-तरह के अंधविश्वासों से मुक्ति दिलाने का प्रयास भी करता । मेरे विचार में अंधविश्वास भी एक प्रकार का भयानक रोग ही है ।
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इनसे लोगों को छुटकारा दिलाना भी एक बड़ा महत्वपूर्ण पुण्य कार्य ही है । यह ठीक है कि डॉक्टर भी मनुष्य होता है । अन्य सभी लोगों के समान उसके मन में भी धन-संपति जोड़ने जीवन की सभी प्रकार की सुविधाएं पाने और जुटाने, भौतिक सुख भोगने की इच्छा हो सकती है ।
इच्छा होनी ही चाहिए और ऐसा होना उसका भी अन्य लोगों की तरह बराबर का अधिकार है । लेकिन इसका यह अर्थ तो नहीं कि वह अपने पवित्र कर्त्तव्य को भुलाए । यह बस पाने के लिए बेचारे रोगियों के रोगों पर परीक्षण करने रहकर दोनों हाथों से उन्हें लूटना और धन बटोरना आरंभ कर दें ।
यदि मैं डॉक्टर होता तो इस दृष्टि से न तो कभी सोचता और व्यवहार करता । सभी प्रकार की सुख सुविधाएँ पाने का प्रयास अवश्य करता पर पहले अपने रोगियों को ठीक करने का उचित निदान कर उन पर तरह-तरह के परीक्षण करके नहीं कि जैसा आजकल बड़े बड़े डिग्रीधारी डॉक्टर किया करते हैं ।
अफसोस उस समय और भी बढ़ जाता है, जब यह देखता हूँ कि रोग की वास्तविक स्थिति की अच्छी-भली पहचान हो जाने पर भी जब लोग कई प्रशिक्षणों के लिए जोर देकर रोगियों को इसलिए तथाकथित विशेषज्ञों के पास भेजते हैं कि ऐसा करने पर उन परिचितों-मित्रों की आय तो बड़े ही भेजने वाले डॉक्टरों को भी अच्छा कमीशन मिल सके ।
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मैं यदि डॉक्टर होता तो इस प्रकार की बातों को कभी भूलकर भी बढ़ावा न देता । मैंने निश्चय कर लिया कि आगे पढ़-लिख कर डॉक्टर ही बनूँगा । डॉक्टर बनकर उपर्युक्त सभी प्रकार के इच्छित कार्य तो करूंगा ही, साथ ही जिस प्रकार से कुछ स्वार्थी लोगों ने इस मानवीय तथा पवित्र व्यवसाय को कलंकित कर रखा है । उस कलंक को भी धोने का हर संभव प्रयास करूँगा ।
एक चिकित्सक रोगियों को जीवनदान देता है । जीवनदान सर्वोपरि है । इस प्रकार का कृत्य आत्मसंतुष्टि प्रदान करता है । मानव-जीवन के उद्देश्य को पूरा करता है: सर्वेसुखिन: संतु सर्वे संतुनिरामया केवल धन कमाना ही मानव जीवन का लक्ष्य नहीं, परोपकार करना भी इसका उद्देश्य है जिसे एक चिकित्सक बनकर पूरा किया जा सकता है । इसीलिए मैंने डाक्टर बनने का जीवन लक्ष्य निर्धारित किया है ।