आज नारी में आधुनिक बनने की होड़ लगी हुई है । नारी की जीवन-शैली में क्रातिकारी परिवर्तन हुआ है । पहले नारी का जीवन घर की चारदीवारी में चूल्हा-चौका और सन्तानोत्पत्ति तक सीमित था । विशेषतया भारतीय नारी का पहले एकमात्र कर्तव्य घर संभालना हुआ करता था ।
नारी को ‘घर की इज्जत’ मानकर उसे परदे में रखा जाता था और माँ, पुत्री तथा पत्नी के रूप में ही नारी को सम्मान प्राप्त था । आज नारी घर से बाहर कदम बढ़ा चुकी है और वह मनचाही वेशभूषा धारण करने के लिए स्वतंत्र है ।
परन्तु ज्यादातर लोग और स्वयं नारी मनचाही वेशभूषा में स्वच्छंद विचरण करने को ही नारी का आधुनिक होना मान रहे हैं । वास्तव में नारी का मनचाही वेशभूषा और स्वतंत्रता को अपनाना आधुनिकता नहीं है । नारी को शक्ति का प्रतीत माना जाता है । प्रत्येक युग में नारी ने अपने अदम्य साहस का परिचय दिया है ।
इसके अतिरिक्त धैर्य एवं त्याग में नारी को पृथ्वी की संज्ञा दी जाती रही है । झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और पन्ना धाय जैसी नारियों ने इतिहास में नारी की शक्ति और त्याग को सिद्ध किया है । वास्तव में दमन का विरोध और प्रगतिशील नवीन विचारों को अपनाना ही नारी का आधुनिक होना है और ऐसा नारी प्रत्येक युग में करती रही है ।
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परन्तु पुरुष-प्रधान समाज द्वारा नारी की आवाज को दबाया जाता रहा है । नारी में अनेक प्रतिभाएँ विद्यमान हैं । लेकिन हमारे पुरुष प्रधान समाज में नारी को कैदी की भाँति सीमित अधिकारों के साथ जीवन व्यतीत करने पर विवश किया जाता रहा है ।
नारी को उसके मानवीय अधिकारों से वंचित किया जाता रहा है । उसे दमन का विरोध करने का, शिक्षा का, प्रगति का, राष्ट्र के विकास में सहयोग देने का अधिकार नहीं दिया गया । बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में पश्चिमी राष्ट्रों की नारी स्वतंत्र होकर अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने लगी थी ।
उसने शिक्षा का अधिकार प्राप्त कर लिया था । प्रगति की दिशा में शिक्षा नारी की एक बड़ी उपलब्धि रही है । शिक्षा के द्वारा ही वास्तव में नारी की प्रगति के लिए विभिन्न द्वार खुल सके हैं । बीसवीं शताब्दी में भारतीय नारी की शिक्षा पर भी समाज-सुधारकों द्वारा बल दिया जाने लगा था ।
एक ओर नारी शिक्षा के लिए घर से बाहर कदम बढ़ा रही थी, दूसरी ओर वह भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भी अपना सहयोग दे रही थी । धीरे-धीरे पुराने विचारों को त्यागकर भारतीय नारी नवीन, प्रगतिशील विचारों को अपनाकर समाज एवं राष्ट्र की प्रगति में अपना सहयोग देने लगी इस प्रकार भारतीय नारी आधुनिकता की दौड़ में सम्मिलित हो गयी ।
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आज भारतीय नारी घर की चारदीवारी में कैद नहीं है । वह अपने अधिकारों के प्रति सजग है । शिक्षित होकर वह विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर रही है । नारी को केवल भोग्या मानने वाले पुरुष-समाज के सामने वह प्रमाणित करके दिखा रही है कि नारी में अनेक प्रतिभाएँ हैं और वह किसी भी दृष्टिकोण से पुरुष से पीछे नहीं है ।
शिक्षा, साहित्य, चिकित्सा, विज्ञान, अनेक क्षेत्रों में नारी अपनी प्रतिभा सिद्ध कर रही है । केवल पुरुषों का क्षेत्र माने जाने वाले पुलिस विभाग में वह मुस्तैदी से कार्य कर रही है । आज नारी किसी भी क्षेत्र में पुरुष से पीछे नहीं है । पुरुषों के साथ वह हिमालय की दुर्गम चोटियों पर पहुँच रही है और अंतरिक्ष की यात्रा भी कर रही है ।
परन्तु दुखद स्थिति यह है कि आधुनिकता की अन्धी दौड़ में नारी ने अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग भी किया है । अंग-प्रदर्शन को आधुनिकता मानकर नारी ने भारतीय समाज को दूषित किया है ।
विचारों की स्वतंत्रता के नाम पर नारी ने समाज में व्यभिचार को भी बढ़ावा दिया है । आज नारी-स्वतंत्रता के नाम भारतीय समाज में अस्थिरता का वातावरण पनप रहा है और परिवार टूट रहे हैं ।
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संयुक्त परिवारों की परम्परा समाप्त होती जा रही है । परिवार में वृद्धों का सम्मान कम हो रहा है । समाज में आए इस परिवर्तन के लिए नारी-स्वतंत्रता को दोष दिया जा रहा है । निस्संदेह नारी को घर की चारदीवारी में कैद करना न्यायोचित नहीं है ।
नारी में विद्यमान प्रतिभाओं का उपयोग समाज एवं राष्ट्र के लिए आवश्यक है । परन्तु आधुनिकता के नाम पर नारी को समाज का वातावरण दूषित करने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए । वास्तव में नारी समाज को तोड़ने के लिए नहीं, बल्कि उसे जोड़े रखने के लिए बनी है ।