सामान्यत: अध्ययन ज्ञान-प्राप्ति के लिए किया जाता है । बाल्य-काल में मनुष्य की शिक्षा का आरम्भ अध्ययन से ही होता है । अध्ययन के द्वारा ही विद्यार्थी ज्ञान-विज्ञान की दुनिया से परिचित होता है । किसी भी विद्यार्थी के लिए उसके शिक्षक अथवा मार्ग दर्शक का सहयोग महत्त्वपूर्ण होता है, परन्तु अध्ययन के बिना सफलता प्राप्त नहीं होती ।
स्वेच्छा से किया गया अध्ययन ही सफलता के द्वार खोलता है । वस्तुत: स्वेच्छा से किए गए अध्ययन में मनुष्य को आनन्द का अनुभव होता है । प्राय: माता-पिता विद्यार्थियों को अध्ययन के लिए विवश करने का प्रयत्न करते हैं । माता-पिता को वास्तव में अपनी सन्तानों के भविष्य की चिन्ता होती है ।
उनके विचार में निरन्तर अध्ययन से ही उनकी सन्तानें उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत सफल जीवन व्यतीत करने योग्य बन सकती है । परन्तु प्रत्येक विद्यार्थी को प्रयत्न द्वारा अध्ययन के लिए विवश नहीं किया जा सकता ।
उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थी वास्तव में स्वयं अध्ययन में रुचि लेते हैं और अध्ययन को कोई विवशता नहीं, बल्कि आनन्द प्राप्ति का साधन मानते हैं । अध्ययन के द्वारा आनन्द की प्रप्ति मनुष्य आदिकाल से करता आ रहा है ।
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ऋषि, मुनि, तपस्वी आदि अध्ययन में आनन्द की ही खोज किया करते थे और आनन्द की अनुभूति करते हुए ही कठोर साधना में निमग्न रहते थे । एक वैज्ञानिक अथवा चिकित्सक को भी अध्ययन में आनन्द का अनुभव होता है, तभी वह निरन्तर कठिन परिश्रम करते हुए समाज के लिए उपयोगी नयी-नयी खोज करने में सफलता प्राप्त करता है ।
ज्ञान अर्जित करने के अतिरिक्त अध्ययन मनोरंजन के लिए भी किया जाता है । जिस प्रकार ज्ञानवर्धन करने वाली श्रेष्ठ पुस्तकों का अध्ययन करने से मनुष्य विद्वान बनता है, उसी प्रकार स्वस्थ मनोरंजन करने वाली श्रेष्ठ पुस्तकों के अध्ययन से मनुष्य का मन-मस्तिष्क स्वस्थ रहता है ।
वास्तव में अध्ययन के द्वारा आनन्द का अनुभव श्रेष्ठ पुस्तकों से ही प्राप्त किया जा सकता है । सस्ती और घटिया पुस्तकें मनुष्य को पथभ्रष्ट करती हैं । बौद्धिक स्तर पर उसे विकलांग बनाती हैं । ऐसी पुस्तकों से मनुष्य क्षणिक आनन्द का अनुभव प्राप्त कर सकता है, परन्तु वास्तव में सस्ती पुस्तकों के अध्ययन से मनुष्य मानसिक स्तर पर रोगी बन जाता है ।
अध्ययन ज्ञान अर्जित करने के लिए किया जाए अथवा मनोरंजन के लिए, श्रेष्ठ पुस्तकों का चयन आवश्यक है । इसके अतिरिक्त अध्ययन के लिए रुचि के अनुसार ही पुस्तक अथवा विषय का चयन करना चाहिए । रुचि के विपरीत पुस्तकों के अध्ययन का प्रयत्न करने से कोई लाभ नहीं होता ।
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अध्ययन के लिए एकाग्रता आवश्यक है और एकाग्रता रुचि की पुस्तकों में ही उत्पन्न हो सकती है । अपनी रुचि की पुस्तकों अथवा विषयों का अध्ययन करते हुए मनुष्य वास्तव में आनन्द का अनुभव प्राप्त करता है । अध्ययन को कदापि भार नहीं मानना चाहिए ।
स्वस्थ मन-मस्तिष्क से रुचि के अनुसार अध्ययन करने से सदैव आनन्द की प्राप्ति होती है और मनुष्य कठिन परिश्रम करते हुए भी विचलित नहीं होता । स्पष्टत: आनन्द के अनुभव के साथ मनुष्य अधिक परिश्रम करने में सफल रहता है ।