आज राजनीति समाज के प्रत्येक क्षेत्र में देखने को मिल रही है । नगरों, महानगरों में ही नहीं, गाँव-कस्बों के गली-मुहल्लों में भी राजनीति के खेल खेले जा रहे हैं । वास्तव में राजनीति की समझ बहुत कम लोगों को है । परंतु आज राजनीति का उपयोग एक हथियार के रूप में किया जा रहा है इसलिए जिसे भी अवसर मिलता है निहित स्वार्थो के लिए राजनीति का सहारा लेने लगता है ।
आज विद्यार्थी भी राजनीति से अछूते नहीं रहे हैं और यह उनके लिए घातक सिद्ध हो रहा है । विद्यार्थी का एकमात्र कर्तव्य ज्ञान अर्जित करके देश एवं समाज का योग्य नागरिक बनना है । शिक्षा ग्रहण करने के लिए विद्यार्थियों को एकाग्रचित्त होकर निरन्तर अभ्यास करना पड़ता है ।
निश्चिंत मन-मस्तिष्क से ही विद्यार्थी योग्यता प्राप्त कर सकते हैं और भविष्य में देश के विकास में अपना सहयोग दे सकते हैं । परन्तु यदि विद्यार्थियों का झुकाव राजनीति की तरफ होगा, तो स्पष्टतया इसका प्रतिकूल प्रभाव उनकी शिक्षा पर पड़ेगा ।
राजनीति की उथल-पुथल मनुष्य को निश्चित नहीं रहने देती । ऐसी स्थिति में राजनीति से सम्बंधित विद्यार्थियों का शिक्षा ग्रहण कर पाना सम्भव नहीं है । अत: विद्यार्थियों का राजनीति से बचे रहना ही उनके हित में है ।आज समाज के किसी भी क्षेत्र में राजनीति गुंडागर्दी के रूप में परिवर्तित हो गयी है ।
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स्वस्थ राजनीति कहीं देखने को नहीं मिल रही । राजनीति के नाम पर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए जाते हैं एक-दूसरे का’ चरित्र हनन किया जाता है । इतना ही नहीं, असामाजिक तत्त्वों का सहारा लेकर राजनीतिज्ञ दंगा-फसाद, हत्या जैसे जघन्य अपराध करवाते हैं । ऐसी परिस्थितियों में एक विद्यार्थी का राजनीति के प्रति झुकाव उसके लिए घातक ही सिद्ध होगा ।
लेकिन आज छात्र संघ चुनावों के दृश्य देखकर विद्यार्थियों का राजनीति से लगाव साफ दिखाई दे रहा है । छात्र संघ चुनावों में विद्यार्थियों का उत्साह, चुनाव प्रचार के लिए उनका आडम्बर देखकर ऐसा प्रतीत होता है, मानों किसी सांसद अथवा विधायक का चुनाव प्रचार किया जा रहा हो ।
आज छात्र संघ चुनावों में दिग्गज राजनीतिज्ञों की उपस्थिति, उनके समर्थन ने विद्यार्थियों के चुनाव को भी पूर्णतया राजनीति के रंग में सराबोर कर दिया है । दुखद स्थिति यह है कि राजनीति की गुंडागर्दी विद्यार्थी-जीवन में भी प्रवेश कर गयी है और शिक्षा ग्रहण करने के स्थान पर विद्यार्थी निरंकुश होकर अमानवीय व्यवहार कर रहे हैं ।
वास्तव में विद्यार्थियों को राजनीति से दूर रखने की आवश्यकता है । विद्यार्थियों में उत्साह अवश्य होता है, परन्तु आयु कम होने के कारण उनमें अनुभव की कमी होती है । वर्तमान युग में खेले जा रहे राजनीति के गंदे खेल से वे अनभिज्ञ होते हैं ।
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राजनीति के महारथी विद्यार्थियों के जोश का भरपूर इस्तेमाल करते हैं लेकिन निहित स्वार्थो के लिए । उन्हें विद्यार्थियों के वर्तमान अथवा भविष्य की कोई चिन्ता नहीं होती । अपने भविष्य के प्रति विद्यार्थियों को स्वयं सचेत रहने की आवश्यकता है ।
उन्हें स्वयं विचार करना होगा कि विद्यालयों, महाविद्यालयों में वे शिक्षा ग्रहण करने के उद्देश्य से जाते हैं अथवा राजनीति के दंगल में सम्मिलित होकर अपने भविष्य को दाव पर लगाने । विद्यालयों को ‘शिक्षा का मंदिर’ कहा जाता है, जहाँ शिक्षा की उपासना के द्वारा छात्र अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाने का प्रयत्न करते हैं ।
यह तभी सम्भव है जब विद्यार्थी एकाग्रचित्त होकर विद्या-अध्ययन में निमग्न रहें । एक विषय के रूप में विद्यार्थी राजनीति का अध्ययन अवश्य कर सकते हैं और यह उनके लिए लाभप्रद हो सकता है । परन्तु व्यावहारिक स्तर पर विद्यार्थियों को राजनीति से दूर रहना चाहिए ।
राजनीति के लिए न तो विद्यार्थियों की आयु होती है, न हूई के खेल में सम्मिलित होना उनके लिए उचित है । विद्यार्थियों को केवल विद्या-अध्ययन ही शोभा देता है । विद्या-अध्ययन के द्वारा ही विद्यार्थी स्वयं अपना भविष्य सुरक्षित कर सकते हैं और देश के विकास में अपना सहयोग भी दे सकते हैं । शिक्षा पूर्ण करने के उपरान्त वे स्वतंत्र हैं, चाहे जिस क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का उपयोग करें ।