दूरदर्शन विज्ञान की एक सशक्त देन है । माध्यम के क्षेत्र में दूरदर्शन का प्रभाव निस्सन्देह अत्यधिक प्रभावी सिद्ध हो रहा है । भारत में भी यह माध्यम अधिक प्रभावी और सक्रिय है । माध्यम तो माध्यम मात्र है । उसकी उपयोगिता इस माध्यम से प्रस्तुत होने वाले कार्यक्रमों पर निर्भर है ।
लोकतंत्र में मा ध्यम (मीडिया) का बहुत बड़ा महत्व है । समाचार-पत्र आकाशवाणी पत्रिकाएँ आदि की अपेक्षा इस माध्यम में दृश्य पक्ष प्रबल है । इससे यह महत्वपूर्ण और सशक्त भूमिका निभाने वाला सिद्ध हो सकता है । मनोरंजन, ज्ञान, शिक्षा आदि के क्षेत्र में इस माधयम से बहुत लाभ उठाया जा सकता है ।
वस्तुतया इसका प्रवेश माध्यम-क्रान्ति का श्री गणेश करता है । दूरदर्शन में श्रव्य और दृश्य दोनों ही स्थितियों का समावेश है । लोकतन्त्र को सुदृढ़ करने और जन- अभिव्यक्ति को सीधे जन-जन तक पहुँचने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका सिद्ध हो सकती है ।
विकसित होने वाले देश में यह शिक्षा-प्रसार का बहुत बड़ा माध्यम हो सकता है । यह सब दूरदर्शन के प्रयोग पर निर्भर है । यह माना कि जीवन में मनोरंजन का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है । मानसिक थकान के लिए मनोरंजन वरदान है । मनोरंजन से जनस्वास्थ्य और सुप्रवृत्तियों का विकास होता है ।
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दूरदर्शन का एक प्रभावी और दूर-दराज तक पहुँचने वाला यह एक सशक्त पक्ष सिद्ध हो सकता है । लेकिन मनोरंजन चितवृत्तियों को पुष्ट करने वाला और स्वस्थ होना आवश्यक है । मनोरंजन के लिए का प्रयोग न हो और सस्ती लोकप्रियता के लिए मनोरंजन का स्तर घटिया न होने पाए ।
विकसित होने वाले देश के लिए यह जाँच-परख करना बहुत जरूरी है कि मनोरंजन का स्तर क्या है ? उससे देश जाति आदि का स्वाभिमान तो नहीं गिरता है । वह सबके लिए है । उसे क्या हर आयु वर्ग का व्यक्ति एक साथ बैठकर देख सकता है क्या वह देश की उन्नत सांस्कृतिक परम्पराओं के अनुकूल हैं ?
इसी से आम आदमी को उच्च-सांस्कृतिक परम्पराओं से सम्बद्ध किया जा सकता है । मन का रंजन सदैव कलात्मक और बहुआयामी होना चाहिए । लोक साहित्य, लोक कला और देश के बड़े भूभाग को परस्पर जोड़ने वाला होना चाहिए ।
अर्थात् इससे भावात्मक एकता, करूणा, सहानुभूति, सोहार्दता, मुदिता, कर्तव्यपरायणता, दया, भक्ति, प्रेम, श्रद्धा आदि का पर्यावरण बन सके, ऐसी अपेक्षा की जा सकती है । सिनेमा की तरह यह घर-घर में सिनेमा होकर पहुँच गया है । इसने माध्यम की गोपनीयता भंग की है ।
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और विविधा संस्कृतियों को एक रूप में लाने की चेष्टा की है । फलत: इसका दायित्व बढ़ा है और नैतिक उत्तरदायित्व इस पर आ पड़ा है । प्रवृतियों को संयमित करना, भावना पर बुद्धि का अंकुश होना और श्रद्धा का व्यवहार होना यह दूरदर्शन की प्रयोगधर्मिता की निष्ठा से सम्बद्ध सवाल है ।
उत्सवों, पर्वों, मेलों, त्यौहारों आदि की नानाविध संस्कृति का प्रस्तुतीकरण स्वत: लोक रंजक-बहुयामी और कलात्मक अभिरूचि के सम्बर्द्धन में विशेष सहायक सिद्ध हो सकता है । आज दूरदर्शन विज्ञापन और आयातित संस्कृति व सभ्यता का माध्यम बन गया है ।
ऐसी वस्तुओं के विज्ञापन सामने आते हैं, जिनसे बचने के लिए सरकार जनता को सावधान करती है । सिगरेट पीने की आदत सरकार जनता में से घटाना चाहती है और दूरदर्शन पर उसके आकर्षक विज्ञापन प्रसारित होने देती है ।
यही बात दूरदर्शन से प्रस्तुत होने वाले कार्यक्रमों के संबंध में भी बहुत कुछ कही जा सकती है; क्योंकि दूरदर्शन पर एक वर्ग विशेष ने अधिकार कर लिया है और वही वर्ग कार्यक्रम तैयार कर रहा है । वह वर्ग अभिजात्य वर्ग से जुड़ा हुआ है अत: सस्ते तथा विदेशी वातावरण को दूरदर्शन के माध्यम से प्रस्तुत कर रहा है ।
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वास्तव में दूरदर्शन का प्रयोग आम जनता की उन्नति और समृद्धि के लिए होना चाहिए । लोकतन्त्र में नागरिक की भूमिका को लेकर कार्यक्रम तैयार करना चाहिए । जैसे वर्ष 1995 में जब खग्रास (पूर्ण) सूर्य ग्रहण पड़ने को था तो उसको दूरदर्शन के माध्यम से पेश करना चाहिए था ।
जब यह सूचना बराबर प्रसासित की जा रही थी कि सूर्य-ग्रहण के समय सूर्य की ओर नहीं देखा जाए; तो यह भी जरूरी था कि ग्रहण को दूरदर्शन के माध्यम से दिखाया जा सके । लेकिन ऐसा नहीं हो सका । जनहित, लोकशिक्षा, विज्ञान का जनोपयोगी ज्ञान, छात्राओं के लिए कार्यक्रम आदि के लिए इसमे पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए । हम शिक्षा के सार्वजनिकीकरण की बात कर रहे हैं ।
जब हम हर एक को शिक्षित करना चाहते हैं तथा स्त्रियों की शिक्षा और उनके अधिकारों पर बात करते हैं तब यह जरूरी हो जाता है कि दूरदर्शन पर नियमित उनके लिए कार्यक्रम आएँ । उन्हें नियमित रूप से बढ़ाया भी जाए ।
दुरदर्शन सस्ते मनोरंजन की भूमिका नहीं निभाए । वह सांस्कृतिक और आर्थिक क्रान्ति को सुन्दर ढंग से प्रस्तुत करे । हमारे यहाँ दूरदर्शन पर सरकार का अधिकार है फलत: वे कमजोरियाँ इसमें घर कर गई है जो सरकार के अन्य क्षेत्रों में मौजूद है ।
इसके बावजूद भी यह मानना होगा कि दूरदर्शन के प्रारम्भ होने से जनता को भिन्न-भिन्न क्षेत्रों की जानकारी भी मिली है । उन्हें अपने से बाहर के जगत का परिचय भी मिला है । विज्ञान का सामान्यीकरण भी हुआ है और जनता नयी चेतना से सम्बद्ध हुई है ।
निस्संदेह दूरदर्शन लोकतन्त्र की सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है । और जनमानस को लोकतन्त्र की सहभागिता से जोड़ने में भी मदद कर सकता है । किसी सीमा तक वह आज कर भी रहा है फिर भी, आवश्यकता है कि सरकार के नियन्त्रण में उसे स्वतन्त्र किया जाए और उसे स्वायत्तशास्त्री संस्थान बनाया जाए ।
इसी प्रकार उसके लिए कार्यक्रम तैयार करने के क्षेत्र को बहुत व्यापक बनाया जाए । तब आशा की जा सकती है कि वह लोकतन्त्र में अपनी सफल भूमिका का निर्वाह कर सकेगा और सच्चे अर्थों में वह आम आदमी से लेकर उच्च वर्ग को परस्पर जोड़कर एक समन्वयात्मक दृष्टि का विकास करने में सफल हो सकेगा ।