Read this article in Hindi to learn about people and the environment in which they sustain.
पर्यावरण के क्षेत्र में बहुत-से अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विचारक हुए हैं । उनमें जिन लोगों ने स्मरणीय योगदान दिए हैं उनमें चार्ल्स डार्विन, राल्फ इमर्सन, हेनरी थोरो, जान म्यूर, आल्दो लियोपोल्द, राचेल कार्सन और ई ओ विल्सन के नाम प्रायः लिए जाते हैं । इनमें से हर विचारक ने पर्यावरण को बिल्कुल भिन्न दृष्टिकोण से देखा है । चार्ल्स डार्विन ने ओरिजिन आफ स्पेसीज लिखी जिसमें आवासों और प्रजातियों के पारस्परिक संबंधों पर प्रकाश डाला गया है ।
इसने दूसरी प्रजातियों के साथ मनुष्य के संबंधों पर सोचने का एक नया तरीका सिखाया जो उद्विकास (evolution) पर आधारित था । अपने कार्यों के दौरान अल्फ्रेड वैलेस भी ऐसे ही नतीजों पर पहुँचे । बहुत पहले, 1840 के दशक में ही राल्फ इमर्सन ने हमारे पर्यावरण पर व्यापार से उत्पन्न खतरों की बात की थी । हेनेरी थोरो ने साल भर तक निर्जनता में रहने के बाद 1860 के दशक में लिखा था कि निर्जनता का संरक्षण किया जाना चाहिए ।
उन्हें लगता था कि अधिकांश लोग प्रकृति की चिंता नहीं करते और थोड़े-से पैसों के लिए उसे बेच सकते हैं । जान म्यूर को कैलिफोर्निया के जंगलों में विशाल और प्राचीन शंकुआ (शंकु) वृक्षों को बचाने के लिए याद किया जाएगा । 1890 के दशक में उन्होंने सियरा क्लब की स्थापना की जो आज संयुक्त राज्य अमरीका की एक बहुत बड़ी गैर-सरकारी संरक्षण संस्था है । आल्दो लियोपोल्द 1920 के दशक में संयुक्त राज्य अमरीका में वन-अधिकारी थे ।
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उन्होंने निर्जनता संरक्षण और वन्यजीवन के प्रबंध पर आरंभिक नीतियों का निर्माण किया । 1960 के दशक में राचेल कार्सन ने अनेक लेख प्रकाशित किए जिससे दुनियाभर में प्रकृति और मानवजाति पर कीड़ामार दवाओं के प्रभावों को लेकर चर्चा शुरू हो गई । उन्होंने साइलेंट स्प्रिंग नाम की एक मशहूर किताब लिखी जिसकी वजह से अंततः सरकार की नीतियों में परिवर्तन आया और जनता में जागरूकता आई ।
ई ओ विल्सन एक कीट विज्ञानी थे जिन्होंने कहा कि जैविक विविधता पृथ्वी पर मनुष्य की जीवन रक्षा की कुंजी है । उन्होंने 1993 में डाइवर्सिटी आफ लाइफ लिखी जिसे पर्यावरण के प्रश्नों पर प्रकाशित सर्वोत्तम पुस्तक का पुरस्कार दिया गया । उनकी रचनाओं ने दुनिया को प्राकृतिक पारितंत्रों में मानव द्वारा पैदा की गई विसंगतियों के परिणामस्वरूप मानवजाति के सामने मौजूद उन जोखिमों के बारे में सजग किया जो विश्वव्यापी स्तर पर तेजी से प्रजातियों के विनाश का कारण बन रहे हैं ।
हमारे देश में ऐसे अनेक व्यक्ति हुए हैं जिन्होंने पर्यावरण का इतिहास रचा है । पिछली सदी के कुछ मशहूर नामों में पर्यावरणशास्त्री, वैज्ञानिक, प्रशासक, कानून के विशेषज्ञ, शिक्षाशास्त्री और पत्रकार शामिल हैं । सलीम अली का नाम भारत में पक्षी विज्ञान और बांबे नेचुरल हिस्टरी सोसायटी से एकाकार है ।
उन्होंने मशहूर बुक ऑफ इंडियन बडर्स समेत अनेक प्रमुख पुस्तकें लिखीं । उनकी आत्मकथा तो हर प्रकृति प्रेमी को पढ़नी चाहिए । वे हमारे देश के एक अग्रणी संरक्षण प्रेमी वैज्ञानिक थे और उन्होंने 50 वर्षों से अधिक समय तक हमारे देश की पर्यावरण संबंधी नीतियों को प्रभावित किया ।
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प्रधानमंत्री रूप में इंदिरा गाँधी ने भारतीय वन्यजीवन के संरक्षण में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । संरक्षित क्षेत्रों की संख्या उन्हीं के प्रधानमंत्रित्व काल में 65 से बढ़कर 298 तक पहुँची । जब वे प्रधानमंत्री थीं, तभी वन्यजीवन संरक्षण अधिनियम बना और भारतीय वन्यजीवन बोर्ड अत्यधिक सक्रिय रहा जिसकी सभी बैठकों की अध्यक्षता उन्होंने स्वयं की ।
उनके कार्यकाल में CITES और अन्य अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण संधियों और समझौतों में सक्रिय होकर भारत ने खूब नाम कमाया । बी.एन.एच.एस ने सरकार से संरक्षण की कार्रवाइयाँ आरंभ कराने के लिए अनेक अवसरों पर उनकी शुभेच्छा का उपयोग किया है ।
एस पी गोदरेज भारत में वन्यजीवन संरक्षण और प्रकृति संबंधी सजगता के कार्यक्रमों के सबसे बड़े समर्थकों में एक थे । 1975 और 1999 के बीच उन्होंने अपने संरक्षण कार्यों के लिए 10 पुरस्कार पाए । उन्हें 1999 में पद्मभूषण प्रदान किया गया । सत्ताधारियों से अपनी मित्रता और संरक्षण के प्रति गहरी प्रतिबद्धता के कारण वे भारत के वन्यजीवन के अत्यंत महत्त्वपूर्ण हिमायती सिद्ध हुए ।
एम एस स्वामिनाथन भारत के अग्रणी कृषि वैज्ञानिकों में एक हैं तथा कृषिवन्य और वन्य, दोनों प्रकार की जैविक विविधता के विभिन्न पक्षों से भी उनका संबंध रहा है । उन्होंने चेन्नई में एम एस स्वामिनाथन अनुसंधान प्रतिष्ठान स्थापित किया है जो जैविक विविधता के संरक्षण से संबंधित कार्य करता है ।
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माधव गाडगिल भारत के लोकप्रिय पर्यावरणशास्त्री हैं । उनकी रुचि सामुदायिक जैव-विविधता के रजिस्टरों (Community of Biodiversity Registers) को विकसित करने और पवित्र वाटिकाओं के संरक्षण जैसे व्यापक पारिस्थितिक प्रश्नों से लेकर स्तनपायी जीवों, पक्षियों और कीड़ों-मकोड़ों के व्यवहार के अध्ययन तक फैली हुई है । उन्होंने अनेक लेख लिखे हैं और पत्रिकाओं में उनके अनेक आलेख प्रकाशित हैं । वे छह पुस्तकों के लेखक हैं और लाइफस्केप्स आफ पेनिंसुलर इंडिया शृंखला के संपादक हैं ।
एम सी मेहता निस्संदेह भारत में पर्यावरण संबंधी सबसे मशहूर वकील हैं । 1984 से ही उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के हित में अनेक जनहित याचिकाएँ दायर की हैं । उनकी सबसे मशहूर और लंबी खिंचने वाली जिन लड़ाइयों को सर्वोच्च न्यायालय का समर्थन मिला उनमें ताजमहल का संरक्षण, गंगा नदी की सफाई, समुद्रतटों पर सघन झींगापालन पर प्रतिबंध, विद्यालयों और महाविद्यालयों में पर्यावरण शिक्षा के आरंभ के लिए सरकार को प्रेरित करना और अनेक प्रकार के दूसरे पर्यावरण संबंधी मुद्दे शामिल हैं ।
अनिल अग्रवाल एक पत्रकार थे जिन्होंने 1982 में स्टेट आफ इंडियाज इनवायरनमेंट पर पहली रिपोर्ट लिखी । उन्होंने सीईएस (CES) की स्थापना की जो विभिन्न पर्यावरण संबंधी मसलों पर कार्यरत एक गैर-सरकारी संगठन है ।
ग्रामीण भारत की प्रवक्ता के रूप में विख्यात मेधा पाटेकर ने पददलित आदिवासी जनता के ध्येय को आगे बढ़ाया है जिसका पर्यावरण नर्मदा नदी पर बने या बन रहे बाँधों से नष्ट हो रहा है ।
सुंदरलाल बहुगुणा का ‘चिपको आंदोलन’ अपने क्षेत्र के वन संसाधनों की रक्षा के लिए स्थानीय जनता के प्रयासों का एक अत्यंत सफल अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त उदाहरण है । एक नाजुक, भूकंप-संभावित क्षेत्र में टेहरी बाँध का निर्माण रुकवाने के लिए उन्होंने अथक प्रयास किए । गढ़वाल की पहाड़ियाँ इस ध्येय के प्रति उनके समर्पण-भाव को हमेशा याद रखेंगी । इसी ध्येय के लिए उन्होंने 20,000 किलोमीटर से अधिक की पदयात्रा की है ।