Read this article in Hindi to learn about:- 1. Meaning of Environmental Studies 2. Definition of Environmental Studies 3. Importance.
अर्थ (Meaning of Environmental Studies):
पर्यावरण अध्ययन संबंधी यह पाठ्यक्रम किसी सामान्य पाठ्यक्रम जैसा नहीं है । यह पंर्यावरण संबंधी तथ्यों और सूचनाओं का संकलन मात्र नहीं है; इसका संबंध इससे भी है कि हमारा जीवन कैसा होना चाहिए । यह चारों ओर के पर्यावरण के बारे में जानकारी प्रदान करता है । आशा है कि यह आपको अपने पर्यावरण के प्रति सचेत रखने में सहायक होगा ।
जब हम पर्यावरण के प्रति सचेत रहेंगे, तो हम जिस पर्यावरण में रहते हैं उसकी रक्षा के लिए अपने स्तर पर कुछ न कुछ प्रयास अवश्य करेंगे । इस पाठ्यक्रम का उद्देश्य यही है और पाठ्यक्रम का ढाँचा इस प्रकार तैयार किया गया है कि उसके अनुसार हम सब अपना जीवन ढाल सकें और अपने पर्यावरण के साथ तालमेल बनाकर रह सकें ।
यह पाठ्यक्रम पर्यावरण संबंधी उन प्रमुख विषयों की विवेचना करती है जिनकी महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के रूप में पहचान की गई है, और जहाँ अपने पर्यावरण की बेहतर समझ के लिए कुछ बुनियादी जानकारी आवश्यक है । इसमें उन मुद्दों पर संतुलित दृष्टि अपनाने पर ज़ोर है जो हमारे रोज़मर्रा के जीवन को प्रभावित करते हैं ।
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इनमें से कुछ मुद्दों का संबंध ‘विकास’ की मौजूदा रणनीतियों और ‘पर्यावरण संरक्षण’ की आवश्यकता के आपसी टकराव से है । पर्यावरण अध्ययन के तीन कारण हैं । एक तो ऐसी सूचनाओं की आवश्यकता है जो पर्यावरण संबंधी आधुनिक धारणाओं को स्पष्ट करें, जैसे जैव-विविधता के संरक्षण की आवश्यकता, अधिक निर्वहनीय जीवनशैलियों की आवश्यकता, और संसाधनों के अधिक समतामूलक उपयोग की आवश्यकता ।
दूसरे, हम अपने पर्यावरण को जिस दृष्टिकोण से देखते हैं उसमें भी परिवर्तन लाने की आवश्यकता है जो अवलोकन (observation) और आत्मशिक्षा (self-learning) पर आधारित हो और अधिक व्यावहारिक हो । तीसरे, अपने पर्यावरण के प्रति ऐसी चेतना जागृत करने की आवश्यकता है जो पर्यावरणमुखी कार्रवाइयों को जन्म दे; इसमें ऐसे आसान कार्यकलाप भी शामिल हैं जो हम पर्यावरण की रक्षा के लिए अपने दैनिक जीवन में कर सकते हैं ।
परिभाषा (Definition of Environmental Studies):
पर्यावरण शिक्षा का संबंध हर उस प्रश्न से है जो एक जीवित काया को प्रभावित करता है । यह मूलत: एक बहुशास्त्रीय (multidisciplinary) दृष्टिकोण है जो हमारे प्राकृतिक जगत और मानव पर उसके प्रभाव को समग्रता में समझना सिखाता है । यह एक व्यावहारिक विज्ञान है क्योंकि इसका उद्देश्य अधिकाधिक महत्त्वपूर्ण होते जा रहे इस प्रश्न का उत्तर देना है कि पृथ्वी के सीमित संसाधनों के बल पर मानव सभ्यता को कैसे जारी रखा जाए ।
जीव विज्ञान, भूगर्भ विज्ञान, रसायनशास्त्र, भौतिकी, अभियांत्रिकी, समाजशास्त्र, स्वास्थ्य, मानवशास्त्र, अर्थशास्त्र, सांख्यिकी, कंप्यूटर और दर्शनशास्त्र पर्यावरण अध्ययन के विभिन्न घटक हैं ।
महत्त्व (Importance of Environmental Studies):
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पर्यावरण अध्ययन कोई एक विषय नहीं है; यह अनेक विषयों का मेल है जिनमें विज्ञान और सामाजिक अध्ययन दोनों शामिल हैं । अपने पर्यावरण के विभिन्न पहलुओं को समझने के लिए हमें जीव विज्ञान, रसायन, भौतिकी, भूगोल, संसाधन प्रबंध, अर्थशास्त्र और जनसंख्या के प्रश्नों को समझना होगा । इस तरह पर्यावरण अध्ययन का विषयक्षेत्र अत्यंत व्यापक है और यह लगभग हर प्रमुख शास्त्र (discipline) के कुछ पहलुओं को समेटता है ।
हम ऐसी दुनिया में रहते हैं जिसमें प्राकृतिक संसाधन सीमित हैं । जल, वायु, खनिज, तेल, जंगल, घास के मैदान, सागर, कृषि और मवेशियों से मिलने वाली वस्तुएँ ये सभी हमारी जीवन रक्षक व्यवस्थाओं के अंग हैं । जैसे-जैसे हमारी जनसंख्या बढ़ेगी और हममें से हर एक व्यक्ति द्वारा संसाधनों का उपयोग भी बढ़ेगा, तो पृथ्वी के संसाधनों का भंडार लाजमी तौर पर कम होगा । यह आशा नहीं की जा सकती कि पृथ्वी संसाधनों के उपयोग के इस बढ़ते स्तर का भार उठा पाएगी ।
इसके अलावा संसाधनों का दुरुपयोग भी होता है । प्रकृति के स्वच्छ जल को हम बड़ी मात्रा में बरबाद या प्रदूषित करते हैं; हम प्लास्टिक जैसी वस्तुएँ अधिकाधिक बना रहे हैं जिनको एक बार उपयोग करके फेंक दिया जाता है । हम विशाल मात्रा में खाना बरबाद करते हैं जिसे कचरे के ढेर में फेंक देते हैं । विनिर्माण (manufacturing) की प्रक्रियाएँ ठोस अपशिष्ट (solid waste) पदार्थ पैदा कर रही हैं, और ऐसे रसायन भी जो द्रव अपशिष्ट (liquid waste) की तरह बहकर जल को प्रदूषित करते हैं, और हवा को प्रदूषित करने वाली गैसें भी ।
अपशिष्ट की इस बढ़ती मात्रा का प्रबंध प्राकृतिक प्रक्रियाएँ नहीं कर सकतीं । इस तरह अपशिष्ट हमारे पर्यावरण में जमा होने लगते हैं, जिससे अनेक प्रकार के रोग होते हैं और पर्यावरण पर दूसरे प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं । इससे हमारा जीवन प्रभावित होता है । वायु प्रदूषण साँस के रोगों और जल प्रदूषण पेट के रोगों को जन्म देते हैं । अनेक प्रदूषक कैंसर का कारण भी बनते हैं ।
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इस स्थिति में सुधार तभी होगा जब हममें से हर व्यक्ति रोजमर्रा के जीवन में ऐसे कार्य करे जो हमारे पर्यावरण के संसाधनों के संरक्षण में सहायक हों । अकेली सरकार से हम पर्यावरण की सुरक्षा की आशा नहीं कर सकते, न ही दूसरे व्यक्तियों से पर्यावरण की हानि रोकने की आशा कर सकते हैं । इसे हमें खुद ही करना होगा । यह ऐसी जिम्मेदारी है जिसको हममें से हर व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी मानकर स्वीकार करना होगा ।