Read this article in Hindi to learn about the ten main case studies done on natural resources.
केस अध्ययन # 1:
संयुक्त वन प्रबंध (Joint Forest Management-JFM):
वन प्रबंध में स्थानीय समुदायों को शामिल करने की आवश्यकता महत्त्व का विषय बन गया है । स्थानीय जनता किसी क्षेत्र को हरित बनाने में तभी भाग लेगी जब उसे संरक्षण से कुछ आर्थिक लाभ मिलता नजर आए । स्थानीय समुदायों और वन विभाग के बीच एक अनौपचारिक व्यवस्था 1972 में, पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले में आरंभ हुई ।
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संयुक्त वन प्रबंध अब बढ़कर एक औपचारिक समझौता बन चुका है जिसमें वन संसाधनों पर स्थानीय समुदाय के अधिकारों और उससे उसे प्राप्त लाभों की पहचान की गई है । संयुक्त वन प्रबंध की योजना के अंतर्गत स्थानीय समुदाय से सदस्य लेकर वन सुरक्षा समितियाँ बनाई जाती हैं । वे हरी पट्टी की बहाली में भाग लेती हैं और उस क्षेत्र को अति-उपयोग से बचाकर रखती हैं ।
केस अध्ययन # 2:
सरदार सरोवर परियोजना (Sardar Sarovar Project):
विश्व बैंक ने 1993 में भारत की सरदार सरोवर परियोजना से अपने को अलग कर लिया क्योंकि स्थानीय जनता इस परियोजना के खिलाफ थी । स्थानीय जनता को इस क्षेत्र के डूब जाने से अपनी जीविका और अपने घरों के छिन जाने का खतरा था ।
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गुजरात में नर्मदा नदी पर बने इस बाँध ने हजारों आदिवासियों को विस्थापित किया है जिनके जीवन और जीविका का संबंध नदी, वनों और उनके खेतों से था । जहाँ एक ओर आदिवासियों और नदी के स्रोत पर बसे मछुआरों के घर छिन चुके हैं, वहीं दूसरी ओर आगे के क्षेत्रों में बसे किसानों को खेती के लिए पानी मिलेगा ।
सवाल यह है : दूसरों को लाभ पहुँचाने के लिए स्थानीय आदिवासियों को भला क्यों बेघर, विस्थापित करके कहीं और बसाया जाए ? अधिक धनी किसानों के विकास की लागत का बोझ कम भाग्यशाली लोगों के सरों पर क्यों डाला जाए ? यह सामाजिक और आर्थिक समता का तथा पर्यावरण की अत्यधिक हानि का सवाल है जिसमें नर्मदा वादी के डूबने वाले वनों की जैविक विविधता की हानि का सवाल भी शामिल है ।
केस अध्ययन # 3:
सरिस्का बाघ अभयारण्य, राजस्थान (Sariska Tiger Reserve, Rajasthan) :
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संरक्षित वन क्षेत्रों को द्योतित (denotify) करके वन विभाग ने सरिस्का बाघ अभयारण्य क्षेत्र में खनन के लिए जमीनें किराये पर दी हैं । स्थानीय जनता ने खनन करने वालों के समर्थन (लॉबी) के खिलाफ संघर्ष का रास्ता अपनाया और 1991 में सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (Public Interest Litigation-PIL) दायर की । टी बी एस (TBS) के सचिव राजेंद्र सिंह बतलाते हैं कि इस वन के आसपास कम से कम 70 खदानें काम कर रही हैं ।
केस अध्ययन # 4:
इजराइल की ड्रिप सिंचाई खेती (Israel‘s Drip Irrigated Farming) :
छोटा-सा और शुष्क मौसम वाला देश इजराइल ड्रिप सिंचाई प्रणाली का प्रयोग करता है क्योकि वहाँ पानी की कमी है । इस तकनीक से इजराइली किसानों ने सिंचाई की क्षमता में 25 प्रतिशत की वृद्धि की है । खेती के लिए जल का उपयोग बढ़ाए बिना इजराइल का खाद्य उत्पादन दोगुना हो चुका है । आज इजराइल दुनिया में फलों और सब्जियों के प्रमुख निर्यातकों में एक है ।
भारत में नगरों और कस्बों के कुछ परंपरागत समुदाय अपने आँगन में घरों के बेकार पानी का ही उपयोग करके अपनी सब्जियाँ खुद उगाया करते थे । कोलकाता अपना बेकार जल आसपास के समुद्रतालों में छोड़ता है जहाँ मछलियाँ पाली जाती हैं । सब्जियाँ उगाने के लिए भी इस जल का उपयोग किया जाता है ।
केस अध्ययन # 5:
वन प्रबंध (Forest Management) :
दुनिया की लगभग 50 प्रतिशत जनता ऊर्जा के स्रोत के रूप में जलावन लकड़ी पर निर्भर है । हमारे देश में जनसंख्या बढ़ने के साथ-साथ लकड़ी की अधिकाधिक मात्रा को जलाया जा रहा है जिससे हमारे वन-आवरण का बड़ा भाग नष्ट हो चुका है । ग्रामीण स्त्रियों को, यहाँ तक कि नगरों के कमजोर आर्थिक वर्गों की महिलाओं को भी, आज भी जलावन जुटाने में अपने जीवन का एक बड़ा भाग गँवाना पड़ रहा है ।
इसे बचाने के लिए अनेक प्रकार के ईंधन-स्नेही (fuel efficient) चूल्हे बनाए गए हैं जो लकड़ी को बहुत धीमे जलाते हैं, गर्मी को बरबाद नहीं करते और राख या धुआँ भी कम पैदा करते हैं । स्थानीय जनता को शामिल करके जलावन के लिए पेड़ उगाने के भी अनेक प्रयास किए गए हैं । सामाजिक वानिकी (Social Forestry), खेत वानिकी (Farm Forestry) और संयुक्त वन प्रबंध (JFM) इसकी मिसालों में शामिल हैं ।
केस अध्ययन # 6:
पश्चिमी घाट में जल विद्युत (Hydel Power in the Western Ghats ):
जल विद्युत के लिए पहला बाँध 1882 में एपिलटन, विस्कांसिन में बनाया गया । भारत में ऐसा पहला बाँध उन्नीसवीं सदी के अंतिम और बीसवीं सदी के आरंभिक वर्षों में टाटा घराने ने पश्चिमी घाट, महाराष्ट्र में बनाया । उन्नीसवीं सदी में भारत में उद्योगों का विकास करने वाले महान दूरदर्शी जमशेद जी टाटा बंबई में सूती कपड़ा कारखाना चलाने के लिए ऊर्जा के एक स्वच्छ स्रोत की इच्छा रखते थे क्योंकि उन्होंने देखा कि कोयले से चलने वाले कारखानों से लोगों को साँस की बीमारियाँ हो रही हैं ।
इसलिए उन्होंने ब्रिटिश सरकार से विद्युत उत्पादन के लिए पश्चिमी घाट में बाँध बनाने की इजाजत माँगी । ऐसे चार जल विद्युत बाँध हैं: आंध्र, शिरोवता, वलवन और मुलशी । टाटा विद्युत परियोजनाओं की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि वे पर्वतों में भारी वर्षा वाले क्षेत्रों का उपयोग जल-भंडारण के लिए करती हैं ।
पश्चिमी घाट से पूरब की ओर बहने वाली नदियों को दक्कन के पठार के निचले भाग में बाँधा जाता है और इस जल को सुरंगों के रास्ते पहाड़ियों की चोटी तक ले जाकर तटीय पट्टी में कई सौ मीटर ऊपर से गिराया जाता है । विद्युत संयंत्रों की बड़ी-बड़ी टरबाइनें मुंबई और उसकी विराट औद्योगिक पट्टी के लिए बिजली पैदा करती हैं ।
बड़े बाँधों से इतनी सारी सामाजिक समस्याएँ पैदा होने के कारण जल विद्युत उत्पादक की छोटी इकाइयाँ बनाने की कोशिश की जा रही हैं । अनेक छोटे बाँध हों तो पर्यावरण पर कम प्रभाव पड़ता है । चीन में इनकी संख्या सबसे अधिक (60,000) है और ये 13,250 मेगावाट बिजली पैदा करते हैं, अर्थात चीन के कुल उत्पाद का 30 प्रतिशत ।
स्वीडन, अमरीका, इटली और फ्रांस ने भी विद्युत उत्पादन के लिए छोटे बाँध बनाए हैं । जल विद्युत की छोटी इकाइयाँ भारत के लिए महत्त्वपूर्ण संसाधन बन सकती हैं जहाँ तेज ढालों से गुजरती नदियाँ हैं तथा उनके उपयोग के लिए आवश्यक आर्थिक क्षमता और तकनीकी संसाधन भी हैं ।
केस अध्ययन # 7:
नर्मदा परियोजना (Narmada Project):
नर्मदा परियोजना आंदोलन बड़े बाँध आंदोलन का एक उदाहरण है । विशालकाय नर्मदा नदी परियोजना ने सैकड़ों अत्यंत निर्धन वनवासियों की जीविका को प्रभावित किया है । नीचे मैदानों की ओर रहने वाले बड़े भूस्वामियों को सरदार सरोवर से सबसे अधिक आर्थिक लाभ होगा जबकि गरीब आदिवासी अपने घरों और परंपरागत जीवनशैली से भी वंचित हो चुके हैं । यह बाँध नदमुख (estuary) के किसानों की जीविका को भी प्रभावित करेगा । गरीबों के जीवन पर इस परियोजना के घातक प्रभावों को और उनका जिस तरीके से शोषण किया जा रहा है उसे साफ-साफ समझने की आवश्यकता है ।
केस अध्ययन # 8:
सौर विकिरण (Solar Energy):
i. 1981 में ‘सोलर चैलेंजर’ नामक वायुयान 5 घंटे 20 मिनट में पेरिस से उड़कर इंग्लैंड पहुँचा । उसके पंखों और पूँछ में 16,000 सौर सेल लगे थे और वे इतनी ऊर्जा पैदा कर रहे थे कि एक छोटी-सी मोटर और प्रोपेलर को चला सकें । आस्ट्रेलिया में 1987 के बाद हर तीन साल पर सौरचालित वाहनों के लिए एक वर्ल्ड सोलर चैलेंजर का आयोजन किया जाता है जिसमें वाहन 3000 किमी की दूरी तय करते हैं ।
ii. दुनिया का पहला सौरचालित अस्पताल माली (अफ्रीका) में है । सहारा रेगिस्तान के कगार पर स्थित माली में काफी धूप रहती है । सौर सेलों के पैनल महत्त्वपूर्ण उपकरणों को चलाने और रेफ्रिजरेटरों में दवाओं आदि को ठंडा रखने के लिए ऊर्जा की आपूर्ति करते हैं ।
iii. अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को सौर ऊर्जा चाहिए थी और अंतरिक्ष-दौड़ ने सौर सेलों के विकास को बढ़ावा दिया । किसी अंतरिक्ष स्टेशन या लंबी यात्रा पर निकले अंतरिक्ष यान को लंबे समय तक सूरज ही ऊर्जा प्रदान कर सकता है ।
iv. जापानी कृषक जहरीली कीटनाशक दवाइयों की जगह सौरचालित कीटनाशक दवाइयों का इस्तेमाल कर रहे हैं ।
v. हाल के वर्षों में बिल्डिंग इंटिग्रेटेड फोटोवोल्टेइक्स (भवनों से जुड़े सौर सेलों) की लोकप्रियता में काफ़ी वृद्धि हुई है । इस उपकरण में भवनों (जैसे छतों और दीवारों) को बनाते समय सौर सेलों को लगाया जाता है । इससे बिजली भी पैदा होती है और आम निर्माण सामग्रियों के विस्थापन से लागत भी कम होती है । जर्मनी में ऐसी 3000 से अंधिक प्रणालियाँ हैं और जापान का ऐसे 70,000 भवन बनाने का कार्यक्रम है ।
केस अध्ययन # 9:
ऊर्जा संरक्षण (Energy Conservation):
भारतीय उद्योग आवश्यकता से अधिक ऊर्जा का उपयोग करते हैं ।
इस्पात और ऊर्जा:
एक टन इस्पात पैदा करने के लिए भारत 95 लाख किलोकैलरी ऊर्जा की खपत करता है । इटली में यह 43 लाख और जापान में केवल 41 लाख किलोकैलरी है ।
उरसीमेंट उद्योग:
भारत में एक टन सीमेंट बनाने के लिए 20 लाख किलोकैलरी से अधिक ऊर्जा चाहिए । जर्मनी में आँकड़ा 8.2 लाख और अमरीका में 9.2 लाख किलोकैलरी है ।
वाहन:
कारों मे हलके पदार्थों का उपयोग होना चाहिए । हम इस्पात की बजाय एल्यूमिनियम, फाइबरग्लास या प्लास्टिकों का उपयोग कर सकते हैं । ये हलके पदार्थ भार में 15 प्रतिशत की कमी लाते हैं और छह से आठ प्रतिशत ईंधन की बचत करते हैं ।
रेफ्रिजरेटर:
डेनमार्क में 200 लीटर के एक प्रचलित रेफ्रिजरेटर में (जिसमें फ्रीजर नहीं होता) बेहतर प्रौद्योगिकी के कारण ऊर्जा का वार्षिक उपयोग 350 से घटकर 90 किलोवाट प्रति घंटा रह गया है ।
प्रकाश:
18 वाट का एक आधुनिक, सुनिर्मित प्रदीप्त लैंप (fluorescent lamp) 75 वाट के एक मानक तापदीप्त लैंप (incandescent lamp) की जगह ले सकता है ।
केस अध्ययन # 10:
सेलेनियम: पंजाब (Selenium: Punjab):
1981-82 में होशियारपुर और नवाँशहर जिलों के किसानों ने, अपनी गेहूँ की फसलों के सफेद पड़ जाने पर, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना के वैज्ञानिकों से संपर्क किया । मृदा के विश्लेषण से संकेत मिला कि उस क्षेत्र में सेलेनियम का स्तर विषैलेपन की सीमा से अधिक था । सेलेनियम प्रकृति में सूक्ष्म मात्रा में मिलनेवाला एक तत्त्व है । यह पशुओं और मनुष्यों के स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है, पर इसकी आवश्यकता और अति में बहुत मामूली अंतर होता है ।
एक किग्रा मिट्टी में 0.5 माइक्रोग्राम (µg) या इससे अधिक सेलेनियम स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है । पंजाब के कुछ क्षेत्रों में सेलेनियम का स्तर 0.31 माइक्रोग्राम से लेकर 4.55 माइक्रोग्राम प्रति किग्रा तक है । धान की खेती के लिए खेत में पानी खड़ा रहना आवश्यक है । अत्यंत घुलनशील होने के कारण सेलेनियम घुलकर ऊपर सतह तक आ जाता है । फिर पानी जब वाष्प बनकर उड़ता है तो सेलेनियम पीछे रह जाता है ।