Read this article in Hindi to learn about the urban problems related to energy.
नगर ऊर्जा की बहुत बड़ी मात्रा का उपयोग करते हैं । अतीत में नगरीय आवासों के लिए आज की अपेक्षा कम ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती थी । भारत के परंपरागत मकानों में तापमान के कृत्रिम नियंत्रण की बहुत कम आवश्यकता होती थी, क्योंकि उनमें प्रयुक्त लकड़ी और ईंट जैसी सामग्रियाँ अति-आधुनिक भवनों के कंक्रीट, शीशे और इस्पात की अपेक्षा कहीं बेहतर ढंग से तापमान को संतुलित रखती थीं ।
1950 के दशक तक नगरों के अधिकतर रसोईघर लकड़ी या चारकोल का प्रयोग करते थे । यह तब संभव और व्यावहारिक था क्योंकि मकानों में चिमनियाँ होती थीं और रसोईघर बाकी मकान से अलग होते थे । इनकी जगह जब फ्लैटों ने ले ली तो धुआँ एक समस्या बन गया । इसलिए मिट्टी का तेल पसंदीदा नगरीय ईंधन बन गया । फिर 1970 के दशक तक नगरीय भारत के अधिकांश भागों में विद्युत ऊर्जा और उसके बाद धीरे-धीरे प्राकृतिक गैस ने इसकी जगह ले ली ।
गर्म जलवायु वाले नगरों को ठंडक के लिए ऊर्जा चाहिए । पंखे चलकर गर्मी दूर करने की पुरानी परंपरा का स्थान अब वातनुकूलन ने ले लिया है जो ऊर्जा की भारी खपत करता है । हमारे देश की नई इमारतों में काँच का इस्तेमाल बढ़ रहा है । ठंडे देशों में इसके कारण हरितगृह प्रभाव पैदा होता है और सूरज की गर्मी अंदर ही रहती है ।
लेकिन हमारी गर्म जलवायु में इससे इमारत के अंदर का तापमान कई गुना बढ़ जाता है । इसलिए वातानुकूलन की विशाल केंद्रीय इकाइयाँ चलाने के लिए और भी अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है । नगरों की ऊँची इमारतें लिफ्ट चलाने तथा भारी संख्या में बल्व आदि जलाने के लिए भी ऊर्जा पर निर्भर होती हैं ।
नगरों में यातायात मुख्यतः जीवाश्म ईंधन की ऊर्जा पर निर्भर है । अधिकतर नगरवासी अनेक कारणों से सार्वजनिक यातायात के उपयोग के बदले अपनी खुद की यातायात की व्यवस्था करते हैं । विभिन्न नगरों मे, बल्कि देश के विभिन्न भागों में भी, सार्वजनिक यातायात या तो नकारा है या भीड़ भरा है और इसलिए मध्यवर्ग भी निजी वाहनों का प्रयोग करने लगा है ।
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इसका मतलब सड़क पर वाहनों का लगातार बढ़ना है जिससे यातायात जाम होता है, सभी मुसाफिरों का वक्त बरबाद होता है और वाहनों के धुएँ से कणपदार्थों और कार्वन मोनोआक्साइड का अत्यधिक निकास होता है । इससे साँस के गंभीर रोगों से ग्रस्त व्यक्तियों की संख्या बढ़ती है । इसलिए हमारे नगरों में सार्वजनिक यातायात की व्यवस्था को दक्ष बनाने और निजी वाहनों के उपयोग को हतोत्साहित करने की आवश्यकता है ।
पर्यावरण के प्रति सजग व्यक्तियों के रूप में हममें से प्रत्येक को ऊर्जा की खपत कम करनी चाहिए । लापरवाही के कारण व्यर्थ जलने वाली हर बत्ती ऊर्जा का उपयोग बढ़ाती है । हजारों लापरवाह व्यक्तियों द्वारा बरबाद ऊर्जा की मात्रा की कल्पना तो कीजिए । हम अगर बिजली बचाना सीख लें तो एक अधिक निर्वहनीय जीवनशैली शुरू हो सकती है ।