Read this article in Hindi to learn about the concept of consumerism and the various ways for utilizing waste products.
वस्तुओं और खासकर एक बार ही उपयोग की जाने वाली वस्तुओं की भारी मात्रा पर निर्भर आधुनिक समाज अत्यधिक फिजूलखर्च है । उपभोग के मौजूदा ढर्रे अनवीकरणीय संसाधनों को कम रहे हैं, पारितंत्रों को विषाक्त और नष्ट कर रहे हैं और उन प्राकृतिक प्रक्रियाओं को बदल रहे हैं जिन पर जीवन निर्भर है ।
औद्योगिक देशों की जनसंख्या संसार की जनसंख्या की 20 प्रतिशत है पर वह संसार के 80 प्रतिशत संसाधनों का उपभोग करती है और 80 प्रतिशत अपशिष्ट (waste) पैदा करती है । इसका कारण आर्थिक विकास का वह ढर्रा है जो यह सुनिश्चित करता है कि लोगों को जितने की आवश्यकता है उससे भी अधिक का उपभोग वे करते रहें ।
आर्थिक संवृद्धि और विकास के इस अनिर्वहनीय ढर्रे की तरफ भारत भी तेजी से बढ़ रहा है । देखा गया है कि उपभोग के मौजूदा ढर्रे तेजी के साथ प्राकृतिक संसाधनों को कम ही नहीं कर रहें हैं, बल्कि विभिन्न समाजों में उपभोग की असमानताओं को भी बढ़ा रहे हैं ।
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किसी वस्तु का उपयोग हम करते हैं तो पैसा उसकी लागत मापने का अकेला ढंग नहीं है । दैनिक कार्यकलापों में व्यक्ति जिन वस्तुओं और सेवाओं का उपयोग करता है उनके उत्पादन में प्रकृति से प्राप्त सभी कच्चे मालों और ऊर्जा के उपयोग का हिसाब हम लगाएँ तो पर्यावरण की भारी हानि दिखाई देगी । अब इस लागत को पूरे जीवन पर फैलाकर सोचे तो यह मात्रा चकरा देने वाली है । घर-परिवार, नगर, देश में होनेवाले अति-उपयोग पर हम विचार करें तो इसके प्रभाव अविश्वसनीय सीमा तक अधिक हैं ।
मिसाल के लिए ”विकसित” जगत में हर साल दो खरब डिब्बों, बोतलों, प्लास्टिक के कार्टनो और कागज के कपों को फेंक दिया जाता है । ”फेंकने वाली” वस्तुएँ इस बरबादी को बहुत बढ़ाती हैं । गुणवत्ता या विश्वसनीयता में प्रतियोगिता करने के बजाय अनेक उद्योग केवल एक बार उपयोग के लिए उपभोक्ता वस्तुएँ बनाते हैं ।
खराब होने या पुराने होने के खिलाफ वारंटी देने वाली उम्दा वस्तुओं को खरीदना, जिन कच्चे मालों से वस्तुएँ बनती हैं उनके बारे में जानना और प्रकृति में उनके स्रोत को जानना, तथा साथ ही उन्हें बनाने वाले मजदूरों की दशा को जानना, उपभोक्तावाद का प्रतिरोध करने और बरबादी में कमी लाने के कुछ उपाय हैं ।
हो सकता है कुछ नए उपकरण या कारें अधिक उत्पादक और ऊर्जा-सक्षम हों । पर पुरानी वस्तुओं को कबाड़े में डालने से अकसर उनमें लगी सामग्री और ऊर्जा लगभग पूरी तरह बरबाद होती है । यह बात नई वस्तु से बचने वाली ऊर्जा के लाभ को नष्ट कर सकती है । यह एक पेचीदा समस्या है ।
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उपभोक्तावाद का संबंध लगातार नई वस्तुओं की खरीद से है जिसमें उनकी वास्तविक आवश्यकता, टिकाऊपन, माल के स्रोत पर या उनके निर्माण और निबटारे से पर्यावरण पर पड़नेवाले प्रभावों पर कम ही ध्यान दिया जाता है । उत्पादों के विज्ञापन पर भारी रकम खर्च की जाती हैं जिसका मकसद लोगों में प्रवृत्तियों के अनुकरण की इच्छा तथा प्राप्ति पर आधारित संतोष की निजी भावना, दोनों पैदा करना होता है ।
जीवन की आवश्यकताओं की पर्याप्त आपूर्ति की आम इच्छा की जगह आय के अधिक से अधिक भाग से वस्तुओं की खरीद की अंतहीन इच्छा पैदा करके उपभोक्तावाद संस्कृति संसाधनों के निर्वहनीय उपयोग में बाधा डालता है । जो कुछ खरीदा जाता है उसकी सच्ची उपयोगिता का ध्यान कम ही रखा जाता है ।
उपभोक्तावाद से लाभ कमानेवालों द्वारा प्रोत्साहित इस रणनीति का एक वांछित परिणाम यह होता है कि टिकाऊपन के अभाव या फैशन में बदलाव के कारण पुरानी चीजें त्याग दी जाती हैं । खासकर विकसित देशों में कचरास्थान ऐसी सस्ती, त्यागी गई चीजों से तेजी से भर रहे हैं जो थोड़े समय बाद काम करना बंद कर देती हैं और उनकी मरम्मत नहीं की जा सकती । कई बार विज्ञापन उद्योग उपभोक्ता वस्तुओं के सचमुच घिसने से बहुत पहले उनको मनोवैज्ञानिक स्तर पर पुराना बना देता है ।
दुनियाभर के उपभोक्ता समाजों में अपशिष्ट की भारी मात्रा आज पर्यावरण की एक गंभीर समस्या बन चुकी है । मनुष्य के अनेक कार्य उत्पादन और उपभोग के चक्रों से जुड़े हैं जो ठोस, द्रव और गैस रूपों में अत्यधिक अपशिष्ट पैदा कर रहे हैं । नगरों और गाँवों में अपशिष्ट के प्रबंध की समस्याएँ अलग-अलग हैं । ग्रामीण समुदायों में, जो छोटे होते हैं, कभी सीमित मात्रा में अपशिष्ट होते थे जिनका पुनर्चालन किया जाता था, क्योंकि ये समुदाय उनका कारगर उपयोग करते थे ।
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औद्योगिक सभ्यता के आगमन के बाद वस्तुओं के उत्पादन की अत्यधिक जटिल प्रौद्योगिक प्रक्रियों ने अपशिष्ट के अपर्याप्त निबटारे के कारण इन समस्याओं को तेजी से बढ़ाया है । जनसंख्या की तीव्र वृद्धि के साथ अपशिष्ट की बढ़ती मात्रा ने हाल के वर्षों में अपशिष्ट प्रबंध का बोझ अनेक गुना बढ़ाया है । अगर अपशिष्टों का भारी उत्पादन जारी रहा तो मानवजाति कचरे के ढेर और गंदे पानी के नालों में डूब जाएगी । घातक औद्योगिक उत्सर्जन से हमारा स्वास्थ्य प्रभावित होगा और हम धुएँ और हानिकारक गैसों के बादलों में घुट जाएँगे ।
पृथ्वी के सीमित संसाधनों से उपभोग की बढ़ती माँगों, पर्यावरण प्रदूषण के बढ़ते स्तर और अपशिष्ट के निबटारे की समस्याओं की जगह अब हमें सावधानी से संसाधनों का उपयोग और पुनर्चालन के द्वारा फिर से उपयोग की वस्तुएँ प्राप्त करनी होगी । इसलिए वस्तुओं का पुनरुपयोग और अपशिष्ट का उपयोग उत्पादन-उपभोग के चक्र का अंग होना चाहिए । औद्योगिक क्षेत्र में जारी ढर्रों के कारण अपशिष्ट का निबटारा लापरवाही और महँगे ढंग से होता है ।
मसलन अनुमान है कि एक विकासशील देश की तुलना में एक विकसित देश में घरेलू कचरे का प्रतिव्यक्ति उत्पादन अनेक गुना अधिक होता है । दुर्भाग्य से अनेक विकासशील देश भी आज विकास के नाम पर अपव्यय की ऐसी ही प्रवृत्तियों को अपना रहे हैं पर विकसित देशों की तरह अपशिष्ट के निबटारे की आर्थिक क्षमता उनमें नहीं है ।
नगरीय-औद्योगिक समुदाय प्लास्टिक, कागज, चमड़ा, टिन के डब्बों, बोतलों, खनिजों के बरबाद भाग, और अस्पतालों के कचरों के रूप में भारी मात्रा में ठोस, द्रव और गैस अपशिष्ट पैदा कर रहे हैं । मुर्दा जानवर, खेतिहर अपशिष्ट, खादों और कीटनाशकों का अति-उपयोग तथा मनुष्य और पशुओं के मलमूत्र मुख्यतः ग्रामीण कार्यकलाप हैं ।
इन्हें या तो हवा में या जल-स्रोतों में छोड़ दिया जाता है या जमीन में दफन कर दिया जाता है । इन अपशिष्टों का कोई आर्थिक मूल्य नहीं समझा जाता । अपशिष्टों के प्रति इस रवैये के कारण प्राकृतिक संसाधनों के अति-शोषण के अलावा पर्यावरण पर भी घातक प्रभाव पड़ रहे हैं ।
कमी, पुनरुपयोग, पुनर्चालन (Reduce, Reuse, Recycle):
कमी, पुनरुपयोग, पुनर्चालन (reduce, reuse, recycle) अपशिष्ट प्रबंध की नई धारणा है । पर वास्तव में इसका अर्थ क्या है ? थोड़ा-सा अपशिष्ट तो किसी भी समाज में अपरिहार्य है । पर हम कम से कम संसाधनों का उपयोग करके स्रोत पर ही अपशिष्ट उत्पादन को कम कर सकते हैं । जो आपके लिए आवश्यक नहीं, उसका उपयोग मत करें ।
कम बरबादी या नहीं के बराबर बरबादी हर समाज का लक्ष्य होना चाहिए । मसलन दो-तीन तहों में उपभोक्ता वस्तुओं की फैंसी पैकिंग अनावश्यक है । इसके अलावा आप प्लास्टिक के थैलों के बजाय कपड़े या जूट का अपना, पुनरुपयोग योग्य थैला इस्तेमाल कर सकते हैं ।
बचे हुए अवशेष को एक उपयोगी संसाधन बनाया जा सकता है । विकसित देशों के अपशिष्ट का उपयोग ऊर्जा पैदा करने के लिए होता है । औद्योगिक अपशिष्ट से (जैसे भारी धातुएँ) और रसायनों से (जैसे पारा और नाइट्रिक अम्ल) दुबारा वस्तुएँ पाने के लिए हाल में नए प्रौद्योगिकी विकसित हुए हैं ।
इस तरह अपशिष्ट पदार्थ आगे अपशिष्ट न रहकर उपयोगी संसाधन बन जाते हैं । मसलन रसोई के नम कचरे से कंपोस्ट बनाया जा सकता है जिसका उपयोग जैविक खाद के रूप में हो सकता है या गंदे पानी से बायोगैस संयंत्र में ईंधन बन सकता है ।
एक उद्योग का अपशिष्ट किसी दूसरे उद्योग के लिए मूल्यवान संसाधन हो सकता है । कुछ उदाहरण यूँ हैं: कपड़ा उद्योग के टुकड़े कागज व अन्य उद्योग खरीदकर इस्तेमाल करते हैं, शकर उद्योग की खोई खरीदकर कागज और ढलाई उद्योगों में उसका इस्तेमाल होता है और बीजों से तेल के निकलने के बाद बची हुई खली मवेशियों को खिलाई जाती है ।
जिन अपशिष्टों या त्यागी गई चीजों का उपयोग उनके मूल रूप में नहीं किया जा सकता उन्हें उद्योगों में वापस भेजा जा सकता है कि वे उन्हें विघटित करके और संसाधन की तरह इस्तेमाल करके उसी तरह एक नई वस्तु या कोई एकदम नई वस्तु बना लें । मसलन प्लास्टिक की वस्तुओं के पुनर्चालन से नई वस्तुएँ बनाई जाती है, धातु और काँच के टुकड़ों से भी नई वस्तुएँ बनाई जाती हैं ।
अंत में जिन अपशिष्ट सामग्रियों का न पुनरुपयोग संभव है न पुनर्चालन, उन्हें सही ढंग से निबटा देना चाहिए ताकि पर्यावरण पर उनका कम से कम प्रभाव पड़े ।
जैसे:
i. अविषैले ठोस अपशिष्टों को सावधानी से अलग करके गड्ढों में दबा देना चाहिए । इन गड्ढों को सावधानी से बंद कर देना चाहिए ताकि आसपास की जमीन और भूमि के अंदर कोई रिसाव या प्रदूषण न हो ।
ii. विषाक्त अपशिष्टों को शोधित करना चाहिए या सही ढंग से उनका निबटारा करना चाहिए ।
iii. नालियों और उद्योगों के गंदे पानी का शोधन करना चाहिए और जहाँ भी संभव हो, उससे कच्चा माल अलग कर लेना चाहिए । उसके बाद ही उसे नदियों और नालों में छोड़ना चाहिए । कमी, पुनरुपयोग और पुनर्चालन के सिद्धांत का व्यवहार इसी क्रम में किया जाना चाहिए ।
iv. सबसे अच्छा विकल्प कमी का है । यदि स्रोत पर ही कमी करें तो अपशिष्टों के उत्पादन की संभावना घट जाती है और हमारे पहले से दबावग्रस्त प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव भी घटता है ।
v. दूसरा बेहतरीन विकल्प पुनरुपयोग है । इस तरह किसी वस्तु का पुनरुपयोग उसके मौजूदा रूप में ही, उससे एक नई वस्तु बनाने के लिए ऊर्जा का उपयोग किए बिना, किया जाता है ।
vi. आखिरी विकल्प पुनर्चालन है । यह अपशिष्ट को संसाधन में अवश्य बदलता है पर उस संसाधन को एक नई, उपयोगी वस्तु का रूप देने के लिए ऊर्जा का प्रयोग करता है ।
इस तरह स्रोत पर उपयोग कम करके, जहाँ तक संभव हो पुनरुपयोग और पुनर्चालन करके और बाकी बचे अपशिष्ट का अंततः सही निबटारा करके हम अपशिष्टों के उत्पादन में कमी ला सकते हैं और यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि बचे-खुचे अपशिष्ट पर्यावरण को हानि न पहुँचाएँ । व्यक्ति या उद्योग से लेकर पूरा देश तक इन बातों को व्यवहार में ला सकता है ।
मैं क्या कर सकता हूँ?
आप निम्नलिखित ढंग से कार्य कर सकते हैं:
i. जल, भोजन, कागज आदि कोई भी संसाधन जितना आवश्यक हो उतने का ही उपयोग करें ।
ii. कुछ फेंकने से पहले सोचें कि क्या यह सचमुच बेकार है ? अगर आपके लिए उसका कोई उपयोग नहीं है तो क्या कोई और उसका उपयोग कर सकता है ? बाग की सिंचाई के लिए स्नानघर के पानी का उपयोग करें, और पुराने कपड़े फेंकने के बजाय उसे जरूरतमंदों को दे दें ।
iii. अगर आपको विश्वास हो कि किसी वस्तु का मौजूदा रूप में उपयोग संभव नहीं है तो उसके पुनर्चालन के बारे में विचार कीजिए । कागज, प्लास्टिक, काँच, धातु आदि सब का पुनर्चालन संभव है ।
iv. सूखे और नम अपशिष्टों को अलग-अलग करें । नम कचरे में अधिकतर रसोई का कचरा शामिल होता है जिसके अधिकांश भाग से कंपोस्ट बनाया जा सकता है जबकि अधिकांश सूखे कचरे का पुनर्चालन संभव है ।
v. आपके घर में पैदा अपशिष्ट की मात्रा संकेत देगी कि आप कितना कारगर ढंग से कार्य कर रहे हैं । सूखे अपशिष्ट के ढेर का मतलब है कि आपको ‘कमी और पुनरुपयोग’ के सिद्धांत पर पुनर्विचार करके उस पर बेहतर ढंग से अमल करना होगा ।
vi. जहाँ तक संभव हो, स्टाइरोफोम और कुछ विशेष प्रकार की प्लास्टिकों जैसी जैव-अक्षरणीय वस्तुओं के उपयोग से बचें । हालाँकि अधिकांश प्लास्टिकों का पुनर्चालन संभव है, पर पुनर्चालन में ऊर्जा तो लगती ही है जो एक कीमती संसाधन है और जिसे बरबाद नहीं किया जाना चाहिए । बेकार फेंक दिए जाने पर स्टाइरोफोम और प्लास्टिकों के विघटन में सैकड़ों साल लग जाते हैं ।
vii. सार्वजनिक स्थानों पर कचरा न फेंकें, न फैलाएँ । कूड़ा-कचरा प्रदूषक है और इससे रोग व स्वास्थ्य की समस्याएँ पैदा होती हैं । कचरे का सही निबटारा अपशिष्ट प्रबंध का एक महत्त्वपूर्ण अंग है ।
viii. जागरूक उपभोक्ता बनें और ऐसी वस्तुएँ न खरीदें जिनकी पैकिंग भारी-भरकम हो । ऐसी वस्तुएँ चुनने का प्रयास कीजिए जो पुनर्चालित सामग्री से बनी हों या जिनका जैविक स्रोत हो ।