Read this article in Hindi language to learn about the top five elements of arts. The elements are: 1. Lines 2. Shape and Form 3. Colour 4. Texture 5. Weight.
परिधान रचना मे कला के निम्न तत्वों को ध्यान मे रखा जाता हे:
कला के तत्व: (Elements of Arts):
इन सबका प्रयोग एक साथ या अलग-अलग भी किया जा सकता है । इन तत्वों का मुख्य कार्य परिधान को व्यक्ति के व्यक्तित्व के अनुरूप तथा व्यक्तित्व को अधिक सुन्दर व आकर्षक बनाने में सहयोग देना है । परिधान का प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक बनावट व व्यक्तित्व के अनुसार निर्माण करना चाहिये, कुछ लोगों की शारीरिक बनावट अच्छी होती है, अत: उनके ऊपर हर प्रकार की पोशाक सुन्दर लगती है ।
यदि शारीरिक बनावट में दोष है तो परिधान निर्माण के समय कला के तत्वों व सिद्धान्तों का पालन करके शारीरिक बनावट के दोषों को दूर किया जा सकता है । पोशाक शारीरिक बनावट को सुन्दर बनाती है तथा व्यक्ति के व्यक्तित्व को निखारती है ।
कला व डिजाइन के तत्वों व सिद्धान्तों का अध्ययन करने से डिजाइन के चयन व सुन्दरता बढ़ाने के लिये उचित प्रयोग स्वयं ही आ जाता है । डिजाइन करने वाला व्यक्ति अपने अन्दर आत्म विश्वास पैदा कर पाता है तथा अपने व अपने ग्राहकों के वस्त्रों का सही मूल्यांकन कर सकता है ।
Element # 1. रेखाएँ (Lines):
ADVERTISEMENTS:
प्रत्येक डिजाइन या नमूने में कुछ-कुछ रेखाओं का प्रयोग आवश्यक रहता है । वस्त्रों की सुन्दरता बढ़ाने के लिये यह एक सशक्त माध्यम है । अत: परिधान रचना में रेखाओं का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है । परिधान पहनने वाले व्यक्ति के शरीर की बाह्य रेखा (Outline of the figure) सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखती है ।
परिधान की सिलाई करते समय जब कपड़ों के विभिन्न टुकड़ों को जोड़ते हैं तो उस स्थान पर अपने आप ही रेखाएँ बन जाती हैं; उदाहरण स्वरूप: कधों की रेखा; छाती की रेखा; बाजू की रेखा; गले की रेखा, कॉलर-कफ से बनी रेखाएँ , पूरे परिधान की लम्बाई की रेखा आदि । रेखाओं के महत्वपूर्ण गुण हैं, आकर्षण पैदा करना, प्रभाव व दिशा की गति देना ।
उचित गति प्रदान करके शरीर की लम्बाई व चौड़ाई कम या ज्यादा की जा सकती है । इन रेखाओं द्वारा शारीरिक बनावटों के दोषों को छिपाकर व्यक्तित्व को सुन्दर व आकर्षक बनाया जा सकता है । रेखाओं से दृष्टि भ्रम भी उत्पन्न किया जा सकता है । इनसे शान, गति, लहरें व विश्वास आदि का संकेत भी प्राप्त किया जा सकता है ।
रेखाओं के प्रकार (Types of Lines):
(1) सीधी रेखाएँ (Vertical Lines):
ADVERTISEMENTS:
ये रेखायें जमीन के साथ-साथ लम्बाई में बनती हैं । इनसे लम्बाई का भ्रम होता है क्योंकि रेखाओं के साथ-साथ दृष्टि नीचे से ऊपर की ओर जाती है । किसी वस्तु की लम्बाई बढ़ाने के लिये इन रेखाओं का प्रयोग किया जाता है ।
यदि कोई महिला मोटी व छोटी कद की हो तो उसे अपने परिधान में सीधी रेखाओं का प्रयोग करना चाहिये, जिससे उसकी लम्बाई अधिक दिखाई दे तथा वह महिला कम मोटी दिखे । अत: सीधी या लम्बवत् रेखाओं में पट्टियाँ दूर-दूर तक बिखरी रेखाओं के अनुपात में अधिक लम्बाई का भ्रम पैदा करती हैं तथा इकहरेपन का अच्छा प्रभाव डालती हैं ।
(2) आड़ी या क्षैतिज रेखाएँ (Horizontal Lines):
ये रेखाएँ जमीन के समानांतर चलती हैं । इन पर दृष्टि एक ओर से दूसरी ओर घूमती है । इन रेखाओं से सौम्यता, विश्राम, चौड़ाई और सहजता का अहसास होता है । सीधी या लम्बवत् रेखाएँ पतली-पतली आड़ी रेखाएँ सीढ़ी पर चढ़ाई का प्रभाव डालती हैं, जबकि चौड़ी-झड़ी रेखायें किसी पतले व्यक्ति की चौड़ाई को स्थिरता प्रदान करती हैं । यदि कोई महिला लम्बी व दुबली-पतली है तो उसे आड़ी रेखाओं की साड़ी पहननी चाहिये ताकि उसकी लम्बाई कम व मोटाई ज्यादा दिखे ।
(3) टेढ़ी रेखाएँ (Diagonal Lines):
इस प्रकार की रेखाएँ उनसे बनाना वाले कोण पर निर्भर करती हैं । यदि वे लम्बाई की ओर कोण बनाती हैं तो लम्बाई का अहसास होता है परन्तु यदि थोड़ी-आड़ी कोण बनाती हैं तो चौड़ाई का अहसास होता है । ये रेखाएँ अस्थिर विचार, अनिच्छा और अस्थिर जीवन शैली प्रदर्शित करती हैं । यदि दो टेढ़ी रेखाओं को मिलाया जाये तो वे V का आकार प्रदान करती हैं । ऐसी रेखाएँ किसी भी डिजाइन में अच्छी नहीं मानी जाती हैं ।
(4) तिरछी रेखाएँ (Oblique Lines):
इन रेखाओं का उपयोग परिधान की सुन्दरता बढ़ाने के लिये किया जाता है । ये रेखायें गम्भीर प्रकृति का अहसास कराती हैं ।
(5) विरोधी या क्रास रेखाएँ (Cross Lines):
इनका प्रयोग परिधान मैं विभिन्नता लाने के लिये किया जाता है । इन रेखाओं से लम्बाई भी कम की जा सकती है; जैसे: बेल्ट, जैकेट की किनारी व क्रॉस ।
(6) वक्र रेखाएँ (Curved Lines):
ये रेखाएँ मुख्यतया घुमावदार होती हैं इन पर दृष्टि धीरे-धीरे घूमती है । ये रेखाएँ उत्तेजक रेखाएँ भी कहलाती हैं । इन रेखाओं से भराव, ढीलापन, क्रियाशीलता, सरलता, स्त्री-सुलभता तथा विकास का अहसास होता है । ऊपर की तरफ जाती हुई वक्र रेखायें खुशी-हर्ष तथा नीचे की ओर आती रेखाएँ दुख का अहसास दिलाती हैं । परन्तु फिर भी ये रेखाएँ देखने में सुन्दर प्रतीत होती हैं ।
(7) खंडित रेखाएँ (Broken Lines):
इस प्रकार के नमूनों में सीधी और आड़ी दोनों प्रकार की रेखाओं का प्रयोग किया जाता है । इनका ठीक व उचित प्रकार से प्रयोग करने से लम्बाई व चौडाई दोनों को दिखाया जा सकता है ।
(8) ज्योतिर्मय रेखाएँ (Radiating Lines):
ये रेखाएँ उगते सूरज की किरणों की लकीरों व उगते पौधों की सुन्दर लाइनों की तरह होती हैं । इन लाइनों का महत्व इसलिये होता है कि ये रेखाएँ सुन्दर, आकर्षक तो होती हैं तथा हर्ष व उल्लास भी प्रकट करती हैं जैसे: पफ वाली बाहें, बाजू पर कफ या फ्रॉक में कमर के ऊपर चुन्नट आदि ।
उपरोक्त रेखाओं से यह स्पष्ट होता है कि वस्त्रों की डिजाइन करने वाली रेखाओं के इन लक्षणों व उनकी गतियों को ध्यान में रखकर सुन्दर से सुन्दर परिधान का रूपांकन करते हैं । इसके उदाहरण हैं: कपड़ों में बटनों को एक पंक्ति में सीधे टाँककर एक रेखा का रूप दिया जा सकता है ।
इस प्रकार की रेखाओं में भिन्नता लाने के लिये फंसी स्टिच पतली-पतली चुन्नटें, तीन स्लेस या गोटा पट्टी, फ्रॉक के गले में लगाना आदि । इसके साथ-साथ जिन आकृतियों में संतुलन न हो उन्हें लाइनों द्वारा संतुलित भी किया जा सकता है ।
गले की रेखा (Neck Line) में विभिन्न आकृति तथा लाइन का प्रयोग:
गले की रेखा का प्रमुख कार्य है चेहरे व गर्दन की विशेषताओं को उभारना व चेहरे, गर्दन व कंधे की बनावट में पाये जाने वाले दोषों या कमियों को छुपाना हैं; जैसे: छोटी गर्दन वाले को V आकार की गले की रेखा से उनकी गर्दन व चेहरा लम्बाई में दिखता है, जिनके कंधे की चौड़ाई कम हो उन्हें चौकोर आकार की गले की रेखा बनवानी चाहिए इससे कंधे की चौड़ाई व चेहरे की चौड़ाई बढ़ती हुई महसूस होती है ।
छोटे मुँह वाले व्यक्तियों को वर्गाकार गले की लाइन अच्छी प्रतीत होती है । कंधे की चौड़ाई को सुधारने के लिये कम गहरा व चौरस गला उत्तम होता है । गोल गले वाला परिधान अंडाकार चेहरे वालों पर सुन्दर लगता है, इससे गोलाई उभरती है ।
यदि कंधे पतले या झुके हुए हों तो चौड़े व बड़े कॉलर से दोष छिप जाते हैं । शरीर की बनावट को प्रभावित करने के लिये वस्त्र की कटाई व सिलाई का स्थान भी महत्वपूर्ण होता है; जैसे: लम्बी कटाई व सिलाई से वस्त्र के लम्बे होने का ज्ञान होता है, इसी प्रकार आड़ी कटाई व सिलाई चौड़ाई को बढ़ाती है ।
यदि नमूने को और अधिक लम्बा करना है तो लम्बी कलियाँ डालनी चाहिये, जिससे व्यक्ति अधिक लम्बा दिखेगा । इस प्रकार यदि पतले व्यक्ति को मोटा दिखाना है तो चौड़ा पैनल बनाया जाये । परिधान में लगाये गये बटन, लेस, गोटा, झालर, जेब, बेल्ट, बो आदि के द्वारा भी बाहरी रेखाओं को प्रभावित किया जा सकता है ।
अत: ये सभी अलंकृत वस्तुएँ परिधान पहनने वाले व्यक्ति के शरीर की लम्बाई व चौड़ाई को बढ़ाने व कम करने में सहायक होते हैं; जैसे: यदि परिधान में बटन एक सीधी पंक्ति में लगाया जाये तो उससे लम्बाई का अहसास होता है । चौड़ाई का अहसास दिलाने के लिये बटन को दो पंक्तियों में थोडी-थोड़ी दूर पर लगाना चाहिये ।
इसी प्रकार परिधान में बेल्ट का प्रयोग लम्बाई कम करने व चौड़ाई बढ़ाने का कार्य करता है । यदि किसी का हाथ पतला है तो इस दोष का छुपाने के लिये फ्रिल, चुन्नट या झालर आदि आस्तीन पर लगाना चाहिये ताकि बाजू भरी पूरी हो ।
Element # 2. आकार-प्रकार (Shape and Form):
परिधान का ढाँचा रेखाओं द्वारा बनाया जाता है, इस प्रकार रेखाओं को जोड़कर आकृति का रूप आता है ।
फैशन वैज्ञानिकों ने आकार-प्रकार को निम्न तीन भागों में विभक्त किया है:
(i) सीधा या नली का आकार उन परिधानों में प्रयोग किया जाता है जो शरीर से एकदम चिपककर पहने जाते हैं ।
(ii) घंटीनुमा आकार से भरे-पूरे शरीर का अनुमान होता है ।
(iii) छाया रूप-किसी भी परिधान की जानकारी लेने के लिये उसे दूर से देखकर उसके बारे में ज्ञात नहीं हो सकता । दूर से केवल उसका बाहरी रूप दिखता है । अत: परिधान को जब दूर से देखा जाता है तो उसकी आकृति का केवल छाया रूप ही दिखाई देता है ।
आकार सुन्दर बने इसके लिये निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिये:
i. आकार को समान वर्गों में बाँटना चाहिए जिससे अनुपात सुन्दर दिखेगा ।
ii. इसके साथ-साथ एक भाग का दूसरे भाग से अनुपात तथा बाकी सभी हिस्सों का पूर्ण अनुपात का सम्बन्ध महत्वपूर्ण है ।
Element # 3. रंग: (Colour):
रंग का परिधान रूपांकन में अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है । नमूनों में विभिन्न रंगों का प्रयोग किया जाता है । अत: नमूनों में रंग योजना का स्थान महत्वपूर्ण है । अत: रंगों का प्रयोग विवेकपूर्ण होना चाहिए । रंग व्यक्ति के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव डालता है । रंग व्यक्ति को खुशी, दुःख, उदासीनता, आदर, गांभोर्यता तथा आनंद का अनुभव प्रदान करता है । विशेष अवसर पर विशेष रंग के परिधान से व्यक्ति हर्ष व उल्लास का अनुभव करता है ।
रंगों के गुण (Quality of Colours):
वैज्ञानिकों के अनुसार, रंग में तीन प्रकार के गुण होते हैं:
1. ह्यू या छवि (Hue)
2. मूल्य (Value)
3. तीव्रता (Intensity)
(1). ह्यू या छवि:
रंग के नाम को छवि या ह्यू कहा जाता है; जैसे-लाल, नीला, पीला, हरा आदि ।
(2) मूल्य (Value):
मूल्य का अर्थ है: रंग में पाया जाने वाला हल्कापन (Lightness) या गाढ़ापन (Darkness) । रंग को हल्का करने के लिये शुद्ध रंग में सफेद रंग मिलाया जाता है जिसे Tiut, कहते हैं । परन्तु इसके विपरीत रंग को गहरा करने के लिये काला रंग मिलाया जाता है जिसे shade कहते हैं । रंग वैज्ञानिकों के अनुसार सफेद रंग का मूल्य सबसे कम होता है तथा काले रंग का मूल्य सबसे ज्यादा होता है ।
(3) तीव्रता (Intensity):
विभिन्न रंगों में पायी जाने वाली चमक (Brightness) या मेदता (Dullness) से रंगों की तीव्रता का ज्ञान होता है । शोख रंग जैसे: लाल रंग की तीव्रता अधिक होती है । तीव्रता कम करने के लिये उस रंग में उसका पूरक मिलाना चाहिये; जैसे: लाल रंग में गुलाबी रंग । अत: इस प्रकार रंगों के उपरोक्त गुण उसके सही उपयोग व चयन में सहायता करते हैं ।
रंगों का वर्गीकरण (Classification of Colour):
रंगों का वर्गीकरण उनके प्रभाव व रचना के अनुसार किया जाता ।
(1) रंगों के प्रभाव के आधार के अनुसार वर्गीकरण:
(i) गरम रंग (Warm Colour):
यदि हम रंग चक्र के बाईं ओर देखें तो लाल, नारंगी तथा पीले रंग की प्रधानता होती है, इन्हें गर्म रंग कहा जाता है । इसका प्रयोग ठंड के मौसम में किया जाता है क्योंकि ये रंग शोख होते हैं तथा गर्मी का अहसास दिलाते हैं । ये रंग प्रेरणा व प्रसन्नता देने के साथ-साथ व्यक्ति को उत्तेजित भी करते हैं । अत: यदि हम किसी परिधान में गर्म रंग का प्रयोग करते हैं तो वह बड़ी व अधिक पास दिखाई देती है ।
(ii) ठंडे रंग (Cool Colour):
रंग चक्र के दाहिनी ओर पाये जाने वाले रंग-हरा, नीला व बैंगनी ठंडे रंग होते हैं । ये रंग हमें ठंडक का अनुभव कराते हैं तथा इनसे हमें शांति भी मिलती है । इन रंगों के अधिक प्रयोग से उदासीनता भी दिखाई देती है । गर्मी के दिनों में इन रंगों का प्रयोग अधिक किया जाता है । परिधान में ठण्डे रंग का प्रयोग करने से वह छोटा तथा अधिक पास दिखाई देता है ।
(2) रंगों की रचना के आधार पर वर्गीकरण:
रचना के आधार पर रंगों का वर्गीकरण तीन प्रकार से होता है:
(i) प्राथमिक रंग (Primary Colour):
प्राग रंग चक्र के तीनों कोनों में उपस्थित पीला (Yellow), लाल (Red) तथा नीला (Blue) आदि प्राथमिक रंग हैं ।
(ii) द्वितीयक रंग (Secondary Colour):
यदि हम दो प्राथमिक रंगों को समान मात्रा में मिला दें तो इससे द्वितीय रंग बनता है । प्राग रंग चक्र में नारंगी, हरा व बैंगनी द्वितीयक रंग हैं ।
लाल + पीला = नारंगी (Orange),
पीला + नीला = हरा (Green),
नीला + लाल = बैंगनी (Purple) ।
(iii) मध्यम रंग (Intermediate Colour):
जब एक प्राथमिक रंग तथा उसके पास के द्वितीयक रंग को बराबर मात्रा में आपस में मिलाया जाता है तो उससे एक मध्यम रंग बनता है ।
मध्यम रंग छ: प्रकार के होते हैं:
i. पीला + हरा = पीला हरा (Yellow green)
ii. नीला + हरा = नीला हरा (Blue green)
iii. नीला + बैंगनी = नीला बैंगनी (Blue purple)
iv. लाल + बैंगनी = लाल बैंगनी (Red purple)
v. लाल + नारंगी = लाल नारंगी (Red orange)
vi. पीला + नारंगी = पीला नारंगी (Yellow orange)
इस प्रकार प्राग रंग चक्र में कुल बारह (12) रंग हैं: तीन प्राथमिक रंग, तीन द्वितीयक रंग तथा छ: मध्यम रंग ।
प्रामाणिक रंग योजना (Standard Colour Scheme):
यह योजना छ: प्रकार की होती है:
(1) एक वर्णीय या रंगीय रंग योजना (Monochromatic Colour Scheme):
इस योजना में केवल एक रंग का उपयोग करके इसी रंग के विभिन्न मूल्यों व तीव्रता का प्रयोग किया जाता है । यह योजना अत्यन्त आसान है परन्तु इससे नीरसता उत्पन्न होती है; जैसे: लाल रंग की कमीज के साथ गुलाबी सलवार व चुन्नी का उपयोग ।
(2) सादृश्य रंग योजना (Analogous Colour Scheme):
इस योजना में प्राग रंग चार्ट में आस-पास के रंगों का उपयोग करके आकर्षक प्रभाव पैदा किया जाता है, जैसे-पीला, पीला-नारंगी व नारंगी रंगों की योजना । इस योजना में 35 रंगों का उपयोग किया जाता है । इस योजना का उपयोग करते समय स्थान व पसंद को ध्यान में रखकर रंगों का चुनाव करना चाहिये ।
(3) विपरीत या संपूरक रंग योजना (Complementary Colour Scheme):
इस रंग योजना में उन रंगों का प्रयोग किया जाता है जो कि प्राग रंग चक्र में एक-दूसरे के विरोधी हैं या विपरीत स्थिति में हैं; जैसे-पीला व बैंगनी, लाल व हरा, नीला व नारंगी ।
(4) दोहरी संपूरक रंग योजना (Double Complementary Colour Scheme):
जब रंग चक्र में से किन्हीं दो मुख्य रंगों के साथ उनकी विपरीत स्थिति वाले दो रंगों का प्रयोग किया जाता है; जैसे: लाल-हरा, हरा-नीला, हरा-पीला ।
इस योजना का उपयोग करने में निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिये:
i. चारों रंग की तीव्रता समान न हों ।
ii. चारों रंग के मूल्य भी समान न हों ।
iii. इस योजना में किसी एक रंग की प्रधानता होनी चाहिये ।
(5) खंडित संपूरक रंग योजना (Split Complementary Colour Scheme):
इस योजना में किसी भी एक रंग के साथ उसके सामने वाले रंगों को छोड्कर आस-पास के अन्य दो रंगों का प्रयोग किया जाता है; जैसे: लाल और नारंगी तथा पीला नारंगी ।
(6) त्रिवर्णीय या तीन रंगो की रंग योजना (Tri Colour Scheme):
इस योजना में रंग चक्र रार एक-दूसरे से समान दूरी पर उपस्थित तीन रंगों को लिया जाता है जो कि रंग चक्र पर समबाहु त्रिभुज बनाते हैं; जैसे: पीला-लाल, नीला-हरा, नारंगी-बैंगनी ।
रंगों का भावात्मक प्रभाव (Emotional Effect Colour):
i. लाल: उत्तेजक, रोमांचक, रोमांस, जिन्दा दिल ।
ii. पीला: खुश, उल्लास व आत्मीयता ।
iii. नारंगी: प्रसन्नता, हर्ष, उल्लास ।
iv. हरा: मैत्रीपूर्ण, शांति प्रदान करने वाला, हर्ष ।
v. नीला: शांत, गम्भीर, चुपचाप, ठहरा हुआ ।
vi. जामुनी: वैभवशाली, प्रभावशाली, प्रतिष्ठित ।
vii. सफेद: स्वच्छ, साफ, विकाररहित ।
viii. काला: पुराना, वैभवशाली व प्रतिष्ठित ।
परिधानों को रंग के अनुसारचयन करते समय ध्यान देने वाली बातें: (Point to be Consider while Selection of Clothing According to Colour):
परिधानों का रंग चयन करते समय कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिये जो निम्न प्रकार हैं:
(1) मौसम व समय (Season and Time):
मौसम का परिधान के रंगों के चयन में अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है । गर्मी अधिक होने पर ठंडे, हल्के रंग शीतलता प्रदान करते हैं, परन्तु ठंडे मौसम में गर्म व गहरे रंग अधिक अच्छे लगते हैं ।
ठंडे रंग सफेद, गुलाबी, हल्का हरा, हल्का नीला व बैंगनी ये आँखों को ठंडक देते हैं, जबकि गर्म रंग-लाल, पीला, नारंगी, चटक नीला या बैंगनी ये सभी रंग ठंड दूर करते हैं अर्थात् हमारे शरीर को गर्मी प्रदान करते हैं । इसी प्रकार दिन व रात के समय अलग–अलग रंग के कपड़े व्यक्ति के व्यक्तित्व को सुन्दर व आकर्षक बनाते हैं ।
दिन के समय अधिक धूप में ठंडे व हल्के रंग के परिधान; जैसे: हल्का नीला, हरा, गुलाबी, सफेद व हल्का बैंगनी रंग ठंडक प्रदान करने का कार्य करते है, इसी प्रकार शाम या रात के समय अधिक चटक, गहरे लाल, नारंगी, सुनहरे परिधान सुन्दरता प्रदान करते हैं तथा व्यक्ति के व्यक्तित्व में निखार लाते हैं ।
(2) आयु व लिंग (Age and Sex):
परिधानों के रंग का चुनाव करते समय आयु व लिंग का ध्यान रखना चाहिये । बच्चों व किशोरों में शक्ति व ऊर्जा अधिक होती है । अत: इनके ऊपर चटकीले, गहरे रंग अधिक अच्छे लगते हैं । यह उत्तम होगा कि इन अवस्थाओं में तेज, चमकीले और खुशनुमा रंगों को मिलाकर प्रयोग किया जाये । यदि बच्चों व किशोरों को हल्के व फीके रंग पहनाये जाएँ तो वे उदासीन लगेंगे ।
प्रौढ़ावस्था व अधिक आयु वाली महिलाओं को शांत व हल्के रंगों का चयन करना चाहिये, जिनसे उनका आदर, मान, प्रतिष्ठा बड़े । किशोर लड़के व लड़कियों को भी अलग-अलग रंगों का चयन करना चाहिये । कुछ रंग ऐसे होते हैं जो कि लड़कियों या महिलाओं पर ही शोभा देते हैं यदि लड़के या पुरुष उन रंगों का चयन करेंगे तो वे हँसी का पात्र बनेंगे ।
(3) अवसर (Occasion):
विशेष अवसर के लिये परिधान के रंग का चयन उस अवसर के अनुसार करना चाहिये । शादी त्योहार, पार्टी आदि में शोख, गहरे व चटकीले रंग के परिधान का चयन करना चाहिये, इससे व्यक्ति का व्यक्तित्व उल्लासमय वातावरण के अनुसार ही बन जाता है ।
कई अवसरों पर केवल सफेद रंग के परिधान ही पहने जाते हैं । कुछ व्यवसाय ऐसे होते हैं. जैसे: डाक्टर, नर्स, वकील, पोस्टमैन आदि का परिधान उनके व्यवसाय के अनुसार होता है ।
(4) शारीरिक बनावट व आकार (Size and Shape of Body):
प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक बनावट व आकार अलग-अलग होता है । रंग शरीर के आकार को प्रभावित करता है, उससे व्यक्तित्व भी प्रभावित होता है । यदि किसी व्यक्ति के शरीर का आकार बड़ा है तो उसे हल्के रंग के कपड़े पहनने चाहिये परन्तु छोटे आकार के व्यक्ति को गर्म रंग पहनने से उसके व्यक्तित्व में निखार आ जायेगा ।
अत: मोटे व बेडौल शारीरिक बनावट वाले व्यक्ति को गर्म रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिये क्योंकि ये रंग उनके शरीर के आकार को और अधिक बेडौल कर देंगे । यदि यही रंग दुबला-पतला व्यक्ति पहने तो उसका शारीरिक आकार भरा-भरा लगने लगेगा ।
(5) त्वचा, आंखों और बालों का रंग (Colour Skin, Hair and Eyes):
प्रत्येक व्यक्ति को परिधान के रंग का चुनाव करते समय अपनी त्वचा के रंग को देखना अत्यंत आवशयक है । हमेशा से काले या साँवली त्वचा पर चटक रंग व गोरी त्वचा पर ठंडे रंग अधिक फबते हैं । आँखों व बालों के रंग भी परिधान के रंग चयन को प्रभावित करते हैं । अधिकांशत: यह देखा गया है कि भूरे रंग के बालों व आँखों वालों पर पीले रंग के शेड्स व भूरे रंग के शेड्स अच्छे लगते हैं ।
Element # 4. संरचना-बनावट (Texture):
संरचना से तात्पर्य है कि कपड़ा देखने व हाथ लगाकर छूने में कैसा प्रतीत होता है । कपड़े की संरचना उसमें उपयोग किये गये तन्तु धागों और बुनाई व उसकी रासायनिक क्रियाओं पर निर्भर करता है । कपड़े की रचना खुरदरा या मुलायम, सख्त या नर्म, मोटी या पतली, समतल, फीकी या चमकदार हो सकती है ।
इसके साथ-साथ वस्त्रों की फिनिशिंग के बाद उसमें और अधिक चमकीलापन आ जाता है । परिधान निर्माण करते समय किस प्रकार की संरचना के कपड़े का प्रयोग करना चाहिये ।
ये बातें निम्न बिन्दुओं से प्रभावित होती हैं:
शारीरिक बनावट, मौसम व अवसर । शारीरिक बनावटों के दोषों को छुपाने के लिये उचित संरचना वाले कपड़ों का प्रयोग करना चाहिये । विभिन्न प्रकार की संरचना के कपड़ों का प्रभाव भिन्न-भिन्न होता है । चमकीले व भड़कीले कपड़े दबे हुए कपड़ों के अन्दर से अधिक प्रकाश परावर्तित होता है, जो शरीर के आकार को बढ़ाने का कार्य करता है ।
इसके विपरीत फीकी सतह वाले कपड़े प्रकाश को शोषित करते हैं जिससे शरीर का आकार कम दिखाई देता है । कठोर व मोटी सतह वाले कपड़े भी आकार को बढ़ाते हैं । इसके साथ-साथ उपरोक्त कपड़े शरीर की रेखाओं को छिपाते हैं । इसके स्थान पर पतला व नर्म कपड़ा शरीर की रेखाओं को उभारता है । अत: अच्छी संरचना वाले कपड़ों पर हल्के रंग तथा सुन्दर डिजाइन ज्यादा अच्छे लगेंगे ।
स्कूल की ड्रेस व वर्दी, सफर या व्यापार के कपड़े मध्यम रचना के होते हैं । अत: वे अच्छे लगें या नहीं चल जाते हैं । अधिकतर परिधान में मुलायम, पतले तथा मध्यम कपड़ों का प्रयोग किया जाता है । अधिक ठंड के मौसम में मोटे व खुरदुरे कपड़ों का परिधान अच्छा रहता है । दिन के समय मोटे और चमकदार कपड़ों का चुनाव कम ही किया जाना चाहिये । शादी-पार्टी के अवसर पर पतले, मुलायम, चमकदार कपड़ों का प्रयोग करना अच्छा रहता है ।
निम्न शब्दों से कपड़ों की संरचना स्पष्ट होती है:
मोटा महीन, रोयेंदार, झरझरा, रबड़ जैसा, कुरकुरा, झालरदार, लेस वाला, चुभने वाला, साटन जैसा, क्रेप, पारदर्शी, चमड़े रजाई जैसा, चिकना, कोमल, चमकीला, धातुरूपी, तीलीदार, उदासीन/भोथरा, नालीदार, चुन्नटदार, खुरदुरा, मखमली, ऊनी ।
Element # 5. वजन: (Weight)
संरचना से कपड़ों के वजन का भी सम्बन्ध होता है । उदाहरण के लिये शिफॉन, आरगंदी मलमल आदि हल्के, लिनन मध्यम तथा साटन व मखमल कपड़े भारी होते हैं । अत: इस प्रकार शरीर की रचना, आकार आकृति के अनुसार ही परि धान की डिजाइन का चुनाव करना चाहिये । परिधान और पहनने वाले के व्यक्तित्व दोनों में सुन्दर सामंजस्यपूर्ण अनुरूपता का रिश्ता बनाने और अपूर्व स्थापित करने का यथाशक्ति प्रयत्न करना चाहिए ।
स्टैला सौन्दर्या ने अपने शब्दों में कहा है:
”Design is defined as any arrangement of line form, colour, space, value and texture. It involves the proper choice of forms and colours and arranging then aesthetically and fatefully. A good design shows as orderly arrangement of the material used and an in addition enhances the beauty and charm of the finished product”