Read this article in Hindi to learn about energy flow in the ecosystem.
हर पारितंत्र में अनेक परस्पर संबद्ध व्यवस्थाएँ होती हैं जो मानव जीवन को प्रभावित करती हैं । ये हैं जल-चक्र, कार्बन-चक्र, आक्सीजन-चक्र, नाइट्रोजन-चक्र और ऊर्जा-चक्र । जहाँ हर पारितंत्र इन चक्रों से नियंत्रित होता है, वहीं पारितंत्रों की जैविक-अजैविक विशेषताएँ एक दूसरे से भिन्न होती हैं ।
पारितंत्र के सभी प्रकार्य उसके पौधों और प्राणियों की प्रजातियों की वृद्धि और पुनर्जन्म से किसी न किसी प्रकार संबंधित होते हैं । इन परस्पर संबद्ध प्रक्रियाओं को अनेक चक्रों के रूप में दिखाया जा सकता है; ये सभी प्रक्रियाएँ सूर्य की ऊर्जा पर निर्भर होती हैं । प्रकाश-संश्लेषण में पौधे कार्बन डाइआक्साइड लेते और वायु में आक्सीजन छोड़ते हैं । प्राणी साँस लेने के लिए इस आक्सीजन पर निर्भर होते हैं ।
जल-चक्र वर्षा पर निर्भर है जो पौधों और प्राणियों के जीवन के लिए अनिवार्य है । ऊर्जा का चक्र पोषक तत्त्वों को वापस मिट्टी में भेजता है जिस पर पौधों का जीवन फलता-फूलता है । इन जीवन-चक्रों के समुचित कार्यकलाप से हमारे अपने जीवन का गहरा संबंध होता है । अगर मानव के कार्यकलाप से इन जीवन-चक्रों में उलटफेर होता रहा तो पृथ्वी पर मानवजाति नहीं रहेगी ।
जल-चक्र (The Water Cycle):
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वर्षा होती है तो पानी पृथ्वी पर बहता है, नदियों में बहता है या सीधे समुद्र में गिरता है । भूमि पर वर्षा का जो जल गिरता है उसका एक भाग रिसकर नीचे चला जाता है । यह बाकी साल भूमि के नीचे जमा रहता है । पौधे भूमि से यह जल और साथ में मिट्टी से पोषकतत्त्व खींचते हैं । फिर यह जल वाष्प के रूप में पत्तों से बाहर आता है और वायुमंडल में वापस चला जाता है । जलवाष्प वायु से हल्का होने के कारण ऊपर उठकर बादल बन जाता है ।
हवा इन बादलों को उड़ाकर दूर-दूर ले जाती है और जब ये बादल और ऊपर उठते हैं तो वाष्प संघनित होकर बूँदें बन जाते हैं जो वर्षा के रूप में पृथ्वी पर गिरते हैं । हालाँकि यह अंतहीन चक्र है जिस पर जीवन निर्भर है, पर मानव के कार्यकलाप प्रदूषण उत्पन्न करके वायुमंडल में घोर परिवर्तन ला रहे हैं जिससे वर्षा के प्रतिमान बदल रहे हैं ।
इसके कारण अफ्रीका के कुछ देशों में वर्षों तक चलने वाले सूखे पड़ रहे हैं जबकि संयुक्त राज्य अमरीका जैसे देशों में विनाशकारी बाढ़ें आ रही हैं । इन प्रभावों से पैदा अल नीनो (El Nino) तूफानों ने पिछले कुछ वर्षों में अनेक स्थानों पर तबाही मचाई है ।
कार्बन-चक्र (The Carbon Cycle):
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कार्बनिक यौगिकों में मौजूद कार्बन, पारितंत्र के अजैविक और जैविक, दोनों घटकों में पाया जाता है । कार्बन पौधों और प्राणियों, दोनों के ऊतंकों का निर्माण तत्त्व है । वायुमंडल में कार्बन डाइआक्साइड (CO2) के रूप में होता है ।
सूरज की रोशनी में पौधे अपने पत्तों के द्वारा वायुमंडल से कार्बन डाइआक्साइड ग्रहण करते हैं । पौधे इस कार्बन डाइआक्साइड को अपनी जड़ों द्वारा मिट्टी से सोखे हुए जल से मिलाते हैं और धूप की मौजूदगी में कार्बोहाइड्रेड बनाते हैं जिनमें कार्बन होता है । इस प्रक्रिया को प्रकाश-संश्लेषण (photosynthesis) कहते हैं । पौधे अपनी वृद्धि और विकास के लिए इस पेचीदा प्रक्रिया का विकास करते हैं ।
इस प्रक्रिया में पौधे वायुमंडल में आक्सीजन छोड़ते हैं जिस पर प्राणी सांस लेने के लिए निर्भर होते हैं । इस तरह पौधे पृथ्वी के वायुमंडल में आक्सीजन और कार्बन डाइआक्साइड के प्रतिशत को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं । पूरी मानवजाति इस प्रक्रिया से प्राप्त आक्सीजन पर निर्भर है । यह वातावरण में CO2 की मात्रा पर भी अंकुश रखती है ।
शाकभक्षी अपने भोजन के लिए पौधों पर निर्भर हैं जिनसे वे ऊर्जा पाते और बढ़ते हैं । पौधे और प्राणी दोनों साँस लेकर कार्बन डाइआक्साइड मुक्त करते हैं । वे जो मल त्याग करते हैं उससे भी मिट्टी को कार्बन वापस मिलता है । पौधे और पशु जब मरते हैं तो उनका कार्बन मिट्टी में वापस आ जाता है । इन्हीं प्रक्रियाओं से कार्बन-चक्र पूरा होता है ।
आक्सीजन-चक्र (The Oxygen Cycle):
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पौधे और पशु श्वसन के दौरान वायु से आक्सीजन गहण करते है । पौधे प्रकाश-संश्लेषण के दौरान वायुमंडल को आक्सीजन लौटा देते हैं । इसके कारण आक्सीजन-चक्र कार्बन-चक्र से जुड़ जाता है । वनविनाश के कारण हमारे वायुमंडल में आक्सीजन का स्तर धीरे-धीरे कम हो सकता है । इस तरह वनस्पति जीवन हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है जिसे हम प्रायः नहीं समझते । वनरोपण कार्यक्रमों में हमारा भाग लेना इसीलिए महत्त्वपूर्ण है ।
नाइट्रोजन-चक्र (The Nitrogen Cycle):
मांसभक्षी शाकभक्षियों को खाते हैं जो पौधों को खाकर जीवित रहते हैं । जानवर जब जल-मल त्याग करते हैं तो कीड़े-मकोड़े, मुख्यतः गुबरैले (beetles) और चींटे (ants), इस सामग्री को विघटित करते हैं । मिट्टी के ये छोटे प्राणी व्यर्थ पदार्थों को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ते हैं जिन पर नन्हें जीवाणु (bacteria) और कवक (fungi) अपना काम करते हैं ।
इस तरह ये पदार्थ और विघटित होते हैं और पोषकतत्त्व मुक्त होते हैं जिनको पौधे अपनी वृद्धि के लिए ग्रहण करते हैं । इसी तरह मुर्दा प्राणियों के शरीरों का विघटन भी पोषक तत्त्वों को मुक्त करता है जिनको लेकर पौधे बढ़ते हैं । इस प्रकार वह नाइट्रोजन-चक्र पूरा होता है जिस पर जीवन का दारोमदार है ।
मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिर करने वाले जीवाणु और कवक नाइट्रोजन पौधों को देते हैं जो इसे नाइट्रेट के रूप में ग्रहण करत हैं । ये नाइट्रेट पौधों की चयापचय प्रक्रिया के अंग हैं जिससे नई वानस्पतिक प्रोटीनें बनती हैं । इनका प्रयोग पौधे खानेवाले प्राणी करते हैं । फिर यह नाइट्रोजन शाकभक्षियों को खाने वाले मांसभक्षियों को मिलता है । इस तरह मृदाजीवों, कवकों, यहाँ तक कि मिट्टी में रहने वाले जीवाणुओं से भी हमारे जीवन का गहरा संबंध है ।
जब हम खाद्य-जालों (food webs) के बारे में सोचते हैं तो आम तौर पर बड़े स्तनपायी प्राणियों और दूसरे बड़े जीवनरूपों के बारे में सोचते हैं । पर हमें यह समझना होगा कि पारितंत्र के कार्यकलाप के लिए इन अनदेखे छोटे जीवों, पौधों और सूक्ष्म जीवनरूपों का भी भारी महत्त्व होता है ।
ऊर्जा-चक्र (The Energy Cycle):
ऊर्जा का चक्र पारितंत्र में ऊर्जा के प्रवाह पर आधारित होता है । पौधे सूर्य की ऊर्जा को वृद्धिमान नई वस्तुओं में बदल देते हैं जिनमें पौधों के पत्ते, फूल, शाखें, तने और जड़ें शामिल हैं । चूँकि पौधे अपने ऊतकों में सूर्य की ऊर्जा का रूप बदलकर ही फल-बढ़ सकते हैं, इसलिए उन्हें पारितंत्र में उत्पादक कहा जाता है । शाकभक्षी पौधों का उपयोग भोजन के रूप में करते हैं जो उनको ऊर्जा देता है ।
इस ऊर्जा का एक बड़ा भाग इन प्राणियों की चयापचय क्रियाओं में चला जाता है, जैसे साँस लेने, खाना पचाने, ऊतकों की वृद्धि करने, रक्तप्रवाह और शरीर का तापमान बनाए रखने जैसी क्रियाओं में । ऊर्जा का उपयोग भोजन और आवास की व्यवस्था करने, प्रजनन और बच्चों के पालन-पोषण में भी होता है । फिर इन शाकभक्षियों पर मांसभक्षियों का जीवन निर्भर होता है जिनको वे भोजन रूप में ग्रहण करते हैं ।
इस तरह पौधों और पशुओं की विभिन्न प्रजातियाँ खाद्य-शृंखलाओं (food chains) के द्वारा एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं । हर खाद्य-शृंखला की तीन या चार कड़ियाँ होती हैं । लेकिन अनेक अलग-अलग सूत्रों के द्वारा हर पौधा या पशु अनेक दूसरे पौधों और पशुओं से संबंधित हो सकता है; इन परस्पर संबंधित शृंखलाओं को एक जटिल खाद्य-जाल कहा जा सकता है । इसीलिए इसे ‘जीवन जाल’ (web of life) कहते हैं जो दिखाता है कि प्रकृति में हजारों अंतःसंबंध होते हैं ।
पारितंत्र में ऊर्जा को एक खाद्य पिरामिड (food pyramid) या उर्जा पिरामिड (energy pyramid) के रूप में दिखाया जा सकता है । खाद्य पिरामिड में उत्पादक कहलाने वाले पौधों का एक बड़ा आधार होता है । इस पिरामिड का मध्य भाग कम चौड़ा होता है और इसमें उन शाकभक्षी प्राणियों की संख्या और जैवभार आते हैं जिनको पहले स्तर के उपभोक्ता (first-order consumers) कहते हैं ।
शीर्ष पर दूसरे स्तर के उपभोक्ता (second-order consumers) कहलाने वाले मांसभक्षियों का छोटा जैवभार आता है । मनुष्य इस पिरामिड के शीर्ष वाले प्राणियों में एक है । इस तरह मानवजाति को अवलंब (support) देने के लिए शाकभक्षी प्राणियों का एक बड़ा आधार होना चाहिए और उससे भी अधिक संख्या में पेड़-पौधे होने चाहिए ।
पौधे और प्राणियों के मर जाने पर कीड़ों-मकोड़ों, जीवाणुओं और कवकों जैसे अपघटकों द्वारा मृत शरीर विघटित होकर मिट्टी में मिल जाते हैं । इस तरह पौधे अपनी जड़ों के द्वारा पोषक तत्वों को ग्रहण कर सकते हैं । भोजन पचाने के बाद प्राणियों द्वारा निष्कासित व्यर्थ पदार्थ मिट्टी में मिल जाते हैं । इसके कारण ऊर्जा-चक्र का संबंध नाइट्रोजन-चक्र से जुड़ जाता है ।
प्रकृति में चक्रों का समन्वय (Integration of Cycles in Nature):
उपर्युक्त चक्र विश्वव्यापी जीवन प्रक्रियाओं के अंग हैं । प्रत्येक पारितंत्र में जैव- भूरासायनिक चक्रों (biogeochemical cycles) की कुछ खास विशेषताएँ होती हैं । इन चक्रों का जुड़ाव पास में स्थित पारितंत्र के चक्रों से भी होता है हालाँकि हर पारितंत्र में स्थित पौधों और प्राणियों के समुदायों की अपनी खास विशेषताएँ होती हैं । इसका संबंध भी उस क्षेत्र की भौगोलिक विशेषताओं, जलवायु और मिट्टी की रासायनिक संरचना से होता है ।
ये चक्र मिलकर पृथ्वी पर जीवन जारी रखते हैं । अगर मानवजाति इस हद तक इन चक्रों में विघ्न डालती है कि प्रकृति उसकी भरपाई न कर सके, तो ये अंततः भंग हो जाएँगे और पृथ्वी को ह्रासमुखी बनाएँगे जिस पर मानव अपना जीवन जारी नहीं रख सकेगा ।