Read this article in Hindi language to learn about the top eight characteristics of adolescence.
किशोरावस्था के बारे में अनेकों अध्ययनों के पश्चात् यह निष्कर्ष निकाला गया है कि किशोरों के व्यवहार व विशेषताओं में अलग परिवर्तन देखे जाते हैं जो कि उन्हें वयस्कों व बच्चों से अलग करते हैं ।
ये परिवर्तन निम्न हैं:
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i. सर्वप्रथम विशेषता यह है कि किशोर व किशोरियाँ हर समय अपने ही रूप रंग व शारीरिक गठन के विचारों में तल्लीन रहते हैं । प्रत्येक किशोर समझता है कि उनमें हो रहे ये परिवर्तन अनोखे हैं तथा सबकी आँखें उन पर ही लगी हुई हैं । कुछ मनोवैज्ञानिकों का कथन है कि यह एक ऐसी सोच होती है जो दिखाती है कि मानो किशोर ‘हर वक्त मंच पर खड़े हों ।’ सभी किशोर अपने रूप के प्रति अधिक चिंतित रहते है साथ ही कभी मुंहासों और दाढ़ी आने या न आने से चिंतित रहते हैं ।
ii. इस समय अधिकतर किशोर अपने हम उम्रों की संस्कृति अपनाना चाहते हैं । इस समूह की बोलचाल की भाषा, चलने का ढंग व व्यवहार कुछ अलग होते हैं जो बड़े लोगों को अजीब-सा लगता है ।
iii. इस अवधि में यह भी देखा जाता है कि किशोरों को अपने से उम्र में बड़े दूसरे लिंग के प्रति प्रेम की तीव्र भावना होती है । परन्तु अपनी ही उम्र के विपरीत लिंगी को किशोर अपरिपक्व समझते हैं ।
iv. किशोरावस्था की एक अन्य महत्वपूर्ण विशेषता है: ‘आदर्शवादिता’ । अधिकांश किशोरों के विचार होते हैं कि समाज में लोगों को बहुत अच्छा होना चाहिए और उन्हें किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिये । किशोर एक प्रकार के आदर्शवादी संसार में विश्वास करते हैं उनके लिए हर चीज अच्छी, न्यायप्रद व स्वच्छ होनी चाहिए ।
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v. अधिकांशत: यह पाया गया है कि कभी-कभी किशोरों में विद्रोहात्मक विचार उत्पन्न होते हैं । उनका सोचना है कि उनके माता-पिता व अन्य वयस्क लोग उन्हें ठीक प्रकार से नहीं समझते तथा वे भी बड़ों के विचारों से सहमत नहीं होते हैं ।
किशोरों को वह सब कुछ करने में प्रसन्नता होती है जिसे उनके माता-पिता नापसंद करते हैं । उसके उदाहरण हैं: अलग प्रकार के वस्त्र पहनना, शरीर में टैटू बनवाना, डिस्को जाना तथा देर रात तक टी. वी. देखना आदि । इस समय ज्यादातर किशोर अपनी पीढ़ी व माता-पिता के बीच एक ‘पीढ़ी अंतराल’ को महसूस करते हैं ।
vi. सभी किशोर किसी न किसी समय अपनी ‘मनःस्थिति में तीव्र उतार-चढ़ाव’ का सामना करते हैं, इससे तात्पर्य है कि यदि किशोरों के मन की कोई बात पूरी नहीं होती तो वे हताश या निराश हो जाते हैं; उदाहरणस्वरूप यदि उनका कोई खास मित्र उन्हें प्रतिदिन फोन न करे या किसी कारण वश काफी समय तक उनसे न मिल सके तो वे हताश हो जाते हैं । इसी को मनःस्थिति में तीव्र उतार-चढ़ाव कहते हैं । प्रत्येक किशोर इस स्थिति का सामना कभी न कभी अवश्य ही करता है ।
vii. इस आयु में किशोर भावात्मक रूप से पूर्णतया परिपक्व नहीं होते । वे दूसरों की बातों से आसानी से प्रभावित हो जाते हैं । अत: यदि कोई बाहर का व्यक्ति उनका विश्वास जीतने का प्रयत्न करता है तो वे उस पर आसानी से विश्वास कर लेते हैं और गलत काम कर बैठते हैं ।
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इस प्रकार का व्यवहार वे इसलिए करते हैं क्योंकि किशोर बाहर के व्यक्ति की मंशा समझ नहीं पाते और उन पर अंध विश्वास कर लेते हैं । अत: स्पष्ट होता है, कि किशोरावस्था में किशोर भावात्मक रूप से पूर्णतया परिपक्व नहीं होते ।
viii. किशोरावस्था में होने वाले विकास का महत्वपूर्ण कार्य है; स्वकल्पना का निर्माण । किशोर के मन में यह प्रश्न उठता है कि ‘मैं कौन हूँ’ जो कि उन्हें अधिकतम परेशान करता रहता है । यह भी होता है कि यदि किशोर स्वयं या अपने आसपास वाले हम उम्र मित्रों से अपने गुणों, शारीरिक गठन तथा व्यवहार के बारे में प्रशंसा पाता है तो उसमें स्वयं के लिए सकारात्मक धारणाएँ उत्पन्न होती हैं । इससे उनमें संज्ञानात्मक योग्यताओं का विकास होता है तो वे अपने लिए स्वयं ही नियम बनाते हैं इससे उनकी पहचान भी बनती है ।