Read this article in Hindi language to learn about the four major physical changes during adolescence. The changes are: 1. Internal Development 2. Dynamic Development 3. Health Condition 4. External Changes.
यौवनारंभ अवस्था के समापन पर किशोरों का शारीरिक विकास पूर्ण नहीं हो पाता है । अनेकों अनुसंधानों से यह तथ्य सामने आया है कि जिन लड़कियों की लम्बाई किशोरावस्था के प्रारम्भ होने तक अधिकतम सीमा तक पहुँच जाती है उनमें बाद में वृद्धि नहीं होती परन्तु जिन लड़कियों में विकास की गति धीमी होती है वे किशोरावस्था के अन्त तक ही अपनी लम्बाई की अधिकतम सीमा तक पहुँच पाती हैं ।
अनुसंधानों से यह भी ज्ञात हुआ है कि किशोरावस्था के प्रारम्भ तक लडकों की लम्बाई लड़कियों से अधिक होती है । भार में वृद्धि का सिद्धान्त भी यही रहता है । पूर्व किशोरावस्था में जननेन्द्रियाँ व गौण यौन विशेषताएँ लगभग परिपक्व हो जाती हैं ।
अत: इसका परिणाम यह होता है कि लड़के व लड़कियाँ वयस्क पुरूष व स्त्री की भांति दिखाई देने लगते हैं । इस अवस्था में लड़कियों व लड़कों में शिशु उत्पन्न करने की क्षमता आ जाती है क्योंकि लड़कियों को मासिक धर्म प्रारम्भ हो जाता है तथा लडकों में वीर्य बनना शुरू हो जाता है ।
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किशोरावस्था में शारीरिक परिवर्तन निम्न प्रकार से होता है:
(1) आन्तरिक विकास (Internal Development):
किशोरों में लम्बाई व भार के अनुपात में ही आन्तरिक अंगों का विकास होता है । पूर्व किशोरावस्था में किशोरों में पाचन तंत्र का विकास तीव्र गति से होता है । परन्तु उत्तर किशोरावस्था के अन्त तक इस तंत्र के विकास की गति धीमी हो जाती है ।
आँतों की लम्बाई और गोलाई बढ़ जाती है । आमाशय की दीवारों की लम्बाई के साथ-साथ उसकी मोटाई भी अधिक बढ़ती है । अनुसंधानों से ज्ञात होता है कि अधिकांश लड़कियाँ दुबली-पतली रहने के कारण खाना कम खाती हैं । जिसके परिणामस्वरूप उनका आमाशय बड़ा होने के उपरांत भी उन्हें भूख कम लगती है ।
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यौवनावस्था तक लड़कियों के फेफडों की वृद्धि बहुत कम होती है, करीब 17 वर्ष की आयु तक लड़कियों के फेफड़ों का पूर्ण विकास हो जाता है परन्तु यह देखा गया है कि लडकों में फेफड़ों का विकास देर से होता है । वैज्ञानिकों ने इस विकास में अन्तर का मुख्य कारण बताया है कि लड़कियों के सीने की अस्थियों का विकास लड़कों की अपेक्षा जल्दी होता है ।
(2) गत्यात्मक विकास (Dynamic Development):
इस विकास में मुख्यतया माँसपेशियों का विकास होता है तथा माँस पेशियों में शक्ति का विकास माँसपेशियाँ के आकार पर निर्भर करता है । लड़कों की माँसपेशियों में सर्वाधिक शक्ति का विकास चौदह वर्ष की अवस्था में होता है परन्तु लड़कियों में इस शक्ति का विकास 14 वर्ष की आयु तक सर्वाधिक हो जाता है । लड़कों में 12-16 वर्ष के बीच उनकी शक्ति दोगुनी हो जाती है ।
यौवनावस्था से ही लड़कों की माँसपेशियाँ लड़कियों की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली होती हैं तथा हमेशा अधिक ही रहती हैं । इसका मुख्य कारण यह है कि लड़कियों की माँसपेशियाँ अधिक कोमल होती हैं ।
(3) स्वास्थ्य अवस्थाएँ (Health Condition):
किशोरावस्था के अंत तक किशोरों का स्वास्थ्य उत्तम हो जाता है तथा उनमें शारीरिक बीमारियाँ व मृत्यु दर कम हो जाती है । किशोरों में अधिकांशतया मृत्यु दुर्घटनाओं के कारण होती है । अनेक अध्ययनों से यह ज्ञात होता है कि जो बच्चे बचपन में स्वस्थ रहते हैं वे किशोरावस्था में भी स्वस्थ रहते हैं ।
(4) बाह्य परिवर्तन (External Changes):
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i. किशोरों की लम्बाई व भार मुख्यतया वंशानुक्रम व पर्यावरण की अवस्थाओं पर निर्भर करता है । वंशानुक्रम के अनुसार यदि माता-पिता दोनों की लम्बाई अधिक है तो किशोर भी लम्बा होगा यदि माता-पिता की लम्बाई में अन्तर है तो किशोर की लम्बाई प्रबल जीन्स पर निर्भर करती है । यदि पिता का जीन प्रबल है तो किशोर की लम्बाई पिता के अनुसार होगी तथा यदि माता का जीन प्रबल है तो किशोर की लम्बाई माता की लम्बाई पर निर्भर करेगी ।
ii. आहारीय आदतें (Food Habits):
पौष्टिक आहार का प्रभाव स्वास्थ्य के साथ-साथ किशोरों की लम्बाई-चौड़ाई पर भी पड़ता है । यदि किशोरों को वृद्धि काल में पौष्टिक व संतुलित आहार प्राप्त होता है तो वंशानुक्रम के साथ-साथ भोजन का प्रभाव भी लम्बाई पर पड़ता है तथा ऐसे किशोरों की लम्बाई अधिक होती है ।
iii. वातावरण (पर्यावरण) से शुद्ध भोजन, जल और वायु प्राप्त होने से किशोरों में बीमारियाँ होने की सम्भावना कम होती है तथा उनका शारीरिक विकास अच्छा होता है । खेल-कूद की सुविधाएँ प्राप्त होने से भी किशोरों में विकास अच्छी गति से होता है ।
iv. नलिका विहीन ग्रंथियों का शारीरिक परिवर्तन पर प्रभाव:
किशोरों में वृद्धि के लिये मुख्य रूप से पिट्यूटरी ग्रंथि सर्वाधिक महत्वपूर्ण है । लडकों में किशोरावस्था में सर्वप्रथम लम्बाई में वृद्धि होती है उसके पश्चात् उनके भार में वृद्धि होती है । ऐसा देखा गया है कि लगभग पन्द्रह वर्ष की अवस्था तक लड़कियों की तुलना में लड़कों का वजन कम होता है उसके पश्चात् लड़कों का भार अधिक होने लगता है ।
हरलॉक के अनुसार, ”जैसे-जैसे वक्षस्थल चौड़ा होता है और धड़ चौड़ाई में बढ़ता है तो किशोर के शरीर के धड़ का पतलापन समाप्त होने लगता है । उत्तर किशोरावस्था में लड़कियों के स्तन व नितम्ब पूर्ण विकास की ओर अग्रसर होते हैं इससे उसका शरीर परिपक्व स्त्री की भांति सुखद रूप ले लेता है ।”
अनेकों अनुसंधानों से ज्ञात होता है कि किशोरों के अस्थि कंकाल व अस्थियों का विकास 18 वर्ष की आयु तक पूर्ण हो जाता है । इस आयु के पश्चात् केवल माँसपेशियों का विकास होता है । किशोरावस्था में पैरों का विकास धड़ के अनुपात में अधिक हो जाता है जबकि बाल्यावस्था में इसका विपरीत होता है ।
हाथ-पैर व धड़ सभी सामान्य अनुपात में किशोरावस्था तक पहुंच जाते हैं । किशोरों के चेहरे पर अनेक परिवर्तन होते हैं परिणामस्वरूप चेहरे पर बदलाव दिखाई देने लगता है क्योंकि उनके दाढ़ी और मूछें निकलने लगती हैं ।
धीरे-धीरे कुछ समय पश्चात् उनके चेहरे पर चमक व निखार आने लगता है जो कि यौन हॉरमोन के स्रावित होने के कारण होता है । इस अवस्था में लडकों की आवाज बदल जाती है तथा आवाज कोमल से भारी व कठोर हो जाती है । लड़कियों में भी इसी प्रकार के परिवर्तन दिखाई देते हैं उनकी आवाज स्त्रियों की भांति हो जाती है ।
जल्दी या देर से परिपक्वता (Early or Late Maturation):
उपरोक्त दिये गये शारीरिक परिवर्तन के अनुसार कुछ किशोरों में परिपक्वता जल्दी आ जाती है और कुछ में देर से । यहाँ अर्थ है कि कुछ किशोरों में शारीरिक परिवर्तन अन्य किशोरों की तुलना में जल्दी होते हैं । इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप किशोरों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव अति विशिष्ट दिखाई देता है ।
जल्दी परिपक्व किशोर व किशोरी में आत्म-विश्वास अधिक होता है परन्तु यहाँ पर भी लड़के, लड़कियों की अपेक्षा अधिक आत्म-विश्वासी होते हैं तथा वे सामाजिक नियमों के अनुसार व्यवहार करने वाले होते हैं, वे आत्म संतुष्ट होते हैं । इसके साथ बड़े-बुजुर्ग लोग इनसे अधिक आशा करते हैं ।
इनका शरीर बलिष्ठ व विकसित होता है जिस कारण ये नेता चुन लिये जाते है । जिन किशोरों में शारीरिक परिपक्वता देर से आती है वे हमेशा हीन-भावना से ग्रसित होते हैं तथा हर समय यही सोचते रहते हैं कि कब वे अपने हमउम्र दोस्तों के समान बलवान और बलिष्ठ होंगे ।
इसके साथ-साथ ये किशोर अधिक बेचैन रहते हैं तथा दूसरों का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करते हैं, ये अधिक बातूनी, कम लोकप्रिय व कम नेतृत्व गुण वाले होते हैं । इनमें आत्म-नियन्त्रण व उत्तरदायित्व की भी कमी होती है । ये हमेशा दूसरों से समर्थन व मदद की आशा करते हैं । साधारणतया ये भावनाएँ अस्थायी होती हैं; जैसे-जैसे किशोर की आयु बढ़ती है वे इन भावनाओं से मुक्ति पा लेते हैं ।