Read this article in Hindi language to learn about the cognitive changes during adolescence.
संज्ञानात्मक परिवर्तन (Cognitive Changes) या मानसिक विकास (Mental Development):
जन्म के पश्चात् बालक जिस वातावरण के सम्पर्क में आता है उसके बारे में उसे किसी भी प्रकार का ज्ञान नहीं होता है । उसकी चेतना अव्यवस्थित रहती है अत: जो कुछ भी वह देखता है उसे समझ नहीं पाता है ।
परन्तु धीरे-धीरे वह परिपक्वता की ओर बढ़ता है साथ ही प्रशिक्षण के माध्यम से वातावरण की वस्तुओं को पहचानने व समझने लगता है । इसी को संज्ञानात्मक परिवर्तन कहते हैं । अत: आयु की वृद्धि के साथ-साथ बालक में प्रत्यक्षीकरण की शक्ति बढ़ जाती है । इस आयु में बालक में चिन्तन, तर्क व प्रतिभा की शक्ति बढ़ जाती है । इस बड़ी हुई शक्ति को भी संज्ञानात्मक विकास कहा जा सकता है ।
संज्ञानात्मक परिवर्तन Cognitive Changes की परिभाषा- लेयर्स के अनुसार-”संज्ञानात्मक मनोविज्ञान ऐसी प्रक्रियाओं के अध्ययन का उपागम है जिसके सहारे लोग संसार को समझ पाते हैं ।” जेम्स ड्रेवर का कथन है: ”संज्ञान एक सामान्य पद है जिसके द्वारा ज्ञान या संज्ञानात्मक अनुभव से समस्त रूपों, प्रत्यक्ष, कल्पना चिन्तन, निर्णय एवं तर्क का बोध होता है ।”
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उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि जन्म के पश्चात् बालक में धीरे-धीरे परिपक्वता, प्रशिक्षण के माध्यम से वातावरण में उपस्थित वस्तुओं का ज्ञान होने लगता है । यह क्रिया संज्ञान या ज्ञानात्मक कहलाती है । किशोरों के लिये अपनी क्षमताओं को प्राप्त करने के लिये ज्ञानात्मक कौशलों (बौद्धिक कौशलों) का विकास अत्यन्त महत्वपूर्ण उपायों में से एक है ।
इसे ज्ञानात्मक परिवर्तन या विकास कहते हैं । ज्ञानात्मक या संज्ञान परिवर्तन से तात्पर्य मस्तिष्क के विकास से है । किशोरों में यह प्रक्रिया या परिवर्तन अधिक जटिल मानसिक कार्यों की क्षमता में वृद्धि करने की सम्भावना बनाता है ।
इसका सम्बन्ध व्यक्ति के विचार करने की प्रक्रिया के विकास से होता है । इन विचार प्रक्रियाओं द्वारा बच्चा अपने आस-पास के वातावरण को समझता है, उन्हें पहचानने लगता है, साथ ही आपसी संवादों की प्रक्रिया भी शुरू होती है ।
इन बातों को निम्न प्रकार से वर्णित कर सकते हैं:
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i. अमृत विचार धारा (Abstract Thoughts):
इस समय किशोर असम्भव की भी कल्पना कर सकते हैं । किशोर की मूल प्रकृति में परिवर्तन नहीं हो सकता है यदि उसकी मूल प्रकृति कलात्मक सृजन की है तो वह इस क्षमता को अधिक विकसित करेगा । इस समय वह कविता, लेख, कहानी भी लिख सकता है तथा लोगों द्वारा बोले गये व्यंग्यों को भी समझ लेता है ।
ii. व्यक्तिगत आख्यान (Personal Legend):
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इस समय किशोर महसूस करता है कि वह विशिष्ट है और उसके साथ किसी भी प्रकार का कुछ भी बुरा नहीं हो सकता है । किशोरों में अधिक ऊर्जा होती है अर्थात् प्रकृति में वे सहज होते । उन्हें किसी भी बात का भय नहीं होता तथा वे जोखिम से भरा काम करने में भी हिचकिचाते नहीं और वे जोखिम पूर्ण कार्यों को करने का प्रयास करते हैं ।
इस प्रकार का कार्य वे लोगों के लिये करते हैं; जैसे:
(a) मित्रों,
(b) परिवार की सहायता,
(c) राष्ट्र के नागरिकों की सेवा आदि ।
इन कार्यों से उनमें सकारात्मक तथा स्वअवलोकन की भावना का विकास होता है और साथ ही साथ वे नये-नये कार्यों को करने के प्रयासों व क्षमताओं का प्रयोग करने में जरा भी संकोच नहीं करते । किशोरों में कुछ ऐसी रोमांच कारक व चुनौती पूर्ण प्रयोग करने की क्षमता भी होती है; जैसे: मदिरापान, सिगरेट पीना, नशीली दवाओं का सेवन करना, यौन सम्बन्धित क्रिया-कलाप आदि ।
कुछ अन्य गतिविधियों गम्भीर परिणाम भी हो सकते हैं उदाहरणस्वरूप: तीव्रगति से स्कूटर, बाइक या कार चलाना, दो पहिया वाहन समय या पीछे बैठकर हेलमेट का प्रयोग न करना । ये सभी गम्भीर नकारात्मक परिणामों में आते हैं ।
iii. सुव्यवस्थित विचारधारा (Arranged Thoughts):
किशोरों में ज्ञानात्मक परिवर्तनों के द्वारा सुव्यवस्थित विचारधारा उत्पन्न हो जाती है तथा उनमें निर्णय लेने की क्षमता बढ जाती है । किहीं परिस्थितियों में यदि उन्हें निर्णय लेने के लिये कहा जाय तो वे किसी एक विकल्प को चुनने के स्थान पर अन्य कई विकल्पों की सूची बना सकते हैं तथा हर विकल्प के परिणामों की जाँच-पड़ताल कर सकते हैं ।
यदि उन्हें माता-पिता की 25वीं शादी के लिये पार्टी का आयोजन करने के लिये कहा जाय तो वे निम्न बातों को ध्यान में रखकर आयोजन करेंगे:
a. पार्टी में आमंत्रित सदस्यों की संख्या व उनकी आयु व खानपान को ध्यान में रखकर केटरिंग की व्यवस्था,
b. उनका उद्देश्य होगा कि पार्टी में उत्तम भोजन परोसने की व्यवस्था,
c. पार्टी के स्थान की सजा, मेहमानों को बैठेने व उनके मनोरंजन की व्यवस्था,
d. व्यंजनों को सुरुचि से परोसने की व्यवस्था,
e. मेहमानों के लिये वापसी उपहार (रिटर्न गिफ्ट) की व्यवस्था है ।
iv. आदर्शवादिता (Idealism):
किशोरों में सही और गलत को समझने की भावना प्रबल व सुदृढ़ होती है । वे स्वयं व अपने आस-पास के बारे में जागरूकता विकसित करने में गर्व महसूस करते हैं उदाहरणस्वरूप: कई किशोर देश में होने वाली आपदा या अन्य कठिन परिस्थितियों में हर सम्भव सहायता का प्रयास करते हैं । यह उनकी आदर्शवादिता व सकारात्मक सोच तथा क्रियाशीलता के विकास का परिणाम है ।
v. काल्पनिक दर्शक (Imaginary Audience):
किशोरों को यह महसूस होता है कि हर समय हर कोई उन्हें ही देख रहा है । किशोरियों में यह भावना प्रबल होती है उदाहरणस्वरूप: यदि वे किशोरियाँ अपने केशों को खोलकर बाजार जाती हैं तो उन्हें लगता है कि हर कोई उनके केशों को देख रहा है ।
संज्ञानात्मक परिवर्तन के निर्धारक तत्व (Determinants of Cognitive Change):
संज्ञानात्मक परिवर्तन को प्रभावित करने वाले तत्व निम्नलिखित है:
(i) आनुवंशिक एवं संरचनात्मक कारक (Hereditary and Structural Factors):
इसमें पोषण, बीमारियाँ एवं शारीरिक चोट आदि आते हैं ।
(ii) सामाजिक वचन (Social Word):
इसका भी संज्ञानात्मक योग्यता पर प्रभाव पड़ता है । यह सामाजिक समायोजन प्रदान करने में सहायक होता है ।
(iii) सामाजिक वर्ग (Social Group):
ये भी संज्ञानात्मक परिवर्तन पर प्रभाव डालते हैं । ऐसा अध्ययन के पश्चात् देखा गया है कि मध्यम वर्गीय बच्चों में संज्ञानात्मक योग्यता कम होती है ।
(iv) यौन भिन्नता (Sex Differences):
संज्ञानात्मक परिवर्तन पर लैंगिक भिन्नता का प्रभाव भी पड़ता है । अध्ययनों से ज्ञात होता है कि लड़के की तुलना में लड़कियाँ भाषा विकास एवं शब्द प्रभाव में प्राय: अधिक अंक प्राप्त करती हैं ।
(v) संरक्षकीय प्रभाव (Protective Influence):
जिन बालकों को माता द्वारा अधिक संरक्षण प्राप्त होता है, वे उच्च लक्ष्य निर्धारण के लिये अधिक प्रेरित होते हैं ।
(vi) उम्र एवं शिक्षा (Age and Education):
आयु बढ़ने के साथ-साथ बालकों में संज्ञानात्मक योग्यता भी बढ़ती जाती है । शिक्षा स्तर भी संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करता है ।
(vii) स्वास्थ्य (Health):
ऐसा देखा गया है कि जिन बच्चों का स्वास्थ्य शुरू से उत्तम होता है तथा वे रोगों से कम प्रभावित होते हैं । उनका मानसिक विकास रोग से ग्रसित बच्चों की अपेक्षा तीव्र होता है ।
(viii) परिवार का आकार (Family Size):
कई अध्ययनों से यह निष्कर्ष पाया गया है कि निम्न आर्थिक पर्यावरण के परिवारों में बच्चों की संख्या अधिक होती है जिसके परिणामस्वरूप उनकी संज्ञानात्मक क्षमता में कमी पायी जाती है ।
किशोरावस्था में संज्ञानात्मक परिवर्तन (Cognitive Changes in Adolescence):
i. यह अवस्था 12 से 18 वर्ष के आयु काल की मानी जाती है ।
ii. यह अवस्था विभिन्न दृष्टिकोणों से अति नाजुक व जटिल होती है ।
iii. इस समय किशोर व किशोरियों में ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता में पर्याप्त वृद्धि हो जाती है ।
iv. वे अमूर्त चिन्तन भी कर सकते हैं ।
v. इस अवस्था में दिवास्वप्नों की भरमार रहती है ।
vi. लड़कियों में यह काल्पनिकता की क्षमता लडकों की तुलना में अधिक होती है ।
vii. आज के युग में काल्पनिकता की प्रवृत्ति के कारण फिल्मी जगत के प्रति किशोर व किशोरियों में रुचि व लगाव अत्यधिक पायी जाती है ।
viii. इस अवस्था में किशोर व किशोरियों की तर्क शक्ति भी पर्याप्त प्रबल हो जाती है ।
ix. इस काल में लड़के-लड़कियाँ अपने-अपने शरीर को अधिक से अधिक सुन्दर व आकर्षक बनाने में रुचि लेने लगते है ।
x. इस समय किशोर व किशोरियाँ अपने भविष्य की योजनाएँ भी बनाने लगते हैं ।
xi. अधिकांश लड़के डॉक्टर, इंजीनियर, वकील अथवा फौजी अफसर बनने की योजनाएँ बनाया करते हैं इसके विपरीत लड़कियाँ डॉक्टर, इंजीनियर, अध्यापिका, नर्स, लेखिका व समाज सेविका के स्वप्न देखा करती हैं ।
xii. किशोरावस्था में संज्ञानात्मक परिवर्तन की प्रक्रिया तीव्र व बहुपक्षीय होती है ।
अत:स्पष्ट है कि पूरे जीवन में इस काल में होने वाले परिवर्तन का विशेष महत्व है ।