Read this article in Hindi to learn about the chemical reactions and their types.
दैनिक जीवन में हमारे आसपास सर्वत्र अनेक परिवर्तन होते रहते है । उनमें से कुछ मंद गति से तथा कुछ तीव्र गति से होते हैं । खुले स्थान पर रखी हुई लोहे की वस्तुओं पर कुछ दिनों में जंग लग जाता है । गर्मी के समय सुबह के समय का दूध दोपहर तक वैसा ही रख दें तो वह खराब हो जाता है ।
चावल के गीले आटे में खटास उत्पन्न हो जाती है । दूध से दही बनता है । ऐसा क्यों होता है ? कारण यह है कि उनमें रासायनिक अभिक्रिया होती है ।
रासायनिक अभिक्रिया समीकरण के रूप में लिखी जाती है:
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किसी रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेनेवाले पदार्थों को ‘अभिकारक’ कहते है । रासायनिक समीकरण में इन्हें बाई ओर लिखते है ।
रासायनिक अभिक्रिया में निर्मित होनेवाले पदार्थों को ‘उत्पाद’ कहते है । उत्पादों को समीकरण की दाहिनी ओर लिखते हैं । अभिकारकों तथा उत्पादों के मध्य तीर (→) दर्शाया जाता है । यदि अभिकारक तथा उत्पाद दो या अधिक हों, तो उनके मध्य धनात्मक चिह्न (+) लगाया जाता है ।
रासायनिक अभिक्रियाओं के कुछ प्रकार:
(i) संयोग अभिक्रिया;
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(ii) अपघटन अभिक्रिया;
(iii) विस्थापन अभिक्रिया
(i) संयोग अभिक्रिया:
करो और देखो:
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किसी बीकर में कैल्शियम आक्साइड (कली चूना) के कुछ टुकड़े लेकर उसमें लगभग ५० मिली पानी डालो । अब इस बीकर को बाहर से स्पर्श करो । यह तुम्हें कुछ गर्म लगेगी ।
इस अभिक्रिया में कैल्शियम आक्साइड तथा पानी के रासायनिक संयोग द्वारा केवल एक यौगिक कैल्शियम हाइड्राक्साइड निर्मित होता है । कैल्शियम आक्साइड तथा पानी में रासायनिक अभिक्रिया होने के कारण ये ‘अभिकारक’ हैं ।
रासायनिक अभिक्रिया के बाद निर्मित यौगिक कैलिशयम आक्साइड ‘उत्पाद’ है । जिस रासायनिक अभिक्रिया में दो या दो से अधिक अभिकारकों द्वारा केवल एक उत्पाद निर्मित होता है, उस अभिक्रिया को ‘संयोग अभिक्रिया’ कहते हैं ।
(ii) अपघटन अभिक्रिया:
जिस रासायनिक अभिक्रिया में किसी एक पदार्थ के अपघटन द्वारा दो या दो से अधिक उत्पाद निर्मित होते है, उस अभिक्रिया को ‘अपघटन अभिक्रिया’ कहते हैं ।
अम्लीकृत पानी में विद्युतधारा प्रवाहित करने पर पानी का विद्युत अपघटन हो जाता है और उत्पाद के रूप में हाइड्रोजन तथा आक्सीजन प्राप्त होते हैं । यह अपघटन अभिक्रिया है ।
2H2O → 2H2 + O2
(iii) विस्थापन अभिक्रिया:
जिस अभिक्रिया में कोई एक घटक दूसरे घटक को विस्थापित करके उसे अलग कर देता है, उस अभिक्रिया को ‘विस्थापन अभिक्रिया’ कहते है ।
करो और देखो:
एक परखनली में जस्ते के कुछ टुकड़े लो । उसमें तनु नमकाम्ल (हाइड्रोक्लोरिक अम्ल) की कुछ बूंदें डालो । हाइड्रोजन बाहर निकलती है । इस अभिक्रिया में जस्ता, हाइड्रोजन को विस्थापित करता है ।
आक्सीकरण तथा अपचयन:
जिस रासायनिक अभिक्रिया में किसी तत्व या यौगिक के साथ आक्सीजन का संयोग होता है अथवा किसी यौगिक में से हाइड्रोजन मुक्त होती है, उस अभिक्रिया को ‘आक्सीकरण’ कहते हैं ।
जिस रासायनिक अभिक्रिया में किसी तत्व या यौगिक के साथ हाइड्रोजन का संयोग होता है अथवा किसी यौगिक में से आक्सीजन मुक्त होती है, उस अभिक्रिया को अपचयन कहते है ।
रासयिनिक अभिक्रिया का वेग:
लोहे पर जंग लगना मंद गतिवाली रासायनिक अभिक्रिया है । धोने के सोडे में नींबू का रस मिलाते ही कार्बन डाइआक्साइड तुरंत फुसफुसाहट के साथ बाहर निकलती है, यह शीघ्र होनेवाली अभिक्रिया है । रासायनिक अभिक्रिया का वेग (दर) बढ़ानेवाले मुख्य कारक कणों का आकार, तापमान, सांद्रता तथा उत्प्रेरक हैं । उत्प्रेरक द्वारा कुछ अभिक्रियाएँ तीव्र वेग से होती हैं ।
उत्प्रेरक:
जो पदार्थ रासायनिक अभिक्रिया में वास्तविक रूप में भाग तो नहीं लेते परंतु उसकी उपस्थिति मात्र से अभिक्रिया का वेग (दर) बढ़ता या नियंत्रित होता है, उन्हें ‘उत्प्रेरक’ कहते हैं । उदा., प्रयोगशाला में पोटैशियम क्लोरेट द्वारा आक्सीजन गैस तैयार करते समय मैंगनीज डाइआक्साइड उत्प्रेरक का कार्य करता है ।
वानस्पतिक तेलों का अपचयन करने पर उनसे वानस्पतिक घी प्राप्त होता है । इस अभिक्रिया में रेनी निकेल का चूर्ण उत्प्रेरक का कार्य करता है । कुछ रासायनिक अभिक्रियाएँ होते समय उससे ऊर्जा मुक्त होती है तथा कुछ अभिक्रियाएँ होते समय ऊर्जा अवशोषित होती है ।
करो और देखो:
४ सेमी लंबा मैगनीशियम का एक फीता लो । इसे जलाओ । यह चमकदार प्रकाश के साथ तेजी से जलने लगता है । अंत में इसकी सफेद राख नीचे गिरती है । इसे एकत्र करो । जलते समय मैगनीशियम, हवा की आक्सीजन के साथ संयोग करके मैगनीशियम आक्साइड का श्वेत चूर्ण निर्मित करता है ।
मैगनीशियम के हवा में जलने पर ऊर्जा बाहर निकलती है । जिस रासायनिक अभिक्रिया में ऊष्मीय ऊर्जा मुक्त होती है, उस अभिक्रिया को ‘ऊष्माउन्मोची’ अभिक्रिया कहते हैं । कुछ रासायनिक अभिक्रियाएँ होते समय ऊष्मा अवशोषित होती है । उन्हें ‘ऊष्माशोषी’ अभिक्रिया कहते हैं ।
करो और देखो:
एक परखनली में थोड़ा पानी लो । उसके बाहरी भाग को हाथ से छूकर उसके तापमान का अनुमान लगाओ । अब उसमें थोड़ा-सा साधारण नमक डालकर मिश्रण को
हिलाओ । परखनली में साधारण नमक का विलयन तैयार होगा । पुन: इसके तापमान का अनुमान लगाओ । तुम्हें ज्ञात होगा कि मिश्रण का तापमान कुछ कम हो गया
है । अत: यह एक ऊष्माउन्मोची अभिक्रिया है ।
ऊष्मा देने पर पदार्थ की अवस्था बदलती है । उसका तापमान बदलता है । उसके रंग में परिवर्तन होता है । साथ-साथ उसमें से गैस निर्मित होती है । इसे समझने के लिए नीचे दी गई कृति करो ।
करो और देखो:
तीन उद्दहन चम्मच लो । उनमें क्रमश: गंधक (सल्फर) कोयले का चूर्ण तथा कापर सल्फेट के केलास लो और तीनों को गरम करो । कार्बन तथा गंधक को ऊष्मा देने पर वे जलने लगते हैं अर्थात उनका तापमान बढ़ जाता है ।
साथ-साथ उनसे क्रमश: कार्बन डाइआक्साइड तथा सल्फर डाइआक्साइड गैसों का निर्माण होता है । उनके रंग में भी परिवर्तन होता है । कापर सल्फेट का मूल नीला रंग भी इसे गरम करने पर बदल जाता है । यह सफ़ेद हो जाता है ।