Read this article to learn about various types of cancer and their treatments in Hindi language.
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आंख के ट्यूमर:
रेटिनो ब्लोस्टोमा बचपन (दो वर्ष की उम्र) में पाया जाने वाला रेयर ट्यूमर है, जो आटोसोमल डोमीनेन्ट होता है । यह 25 प्रतिशत रोगियों में दोनों तरफ पाया जाता है । यह आप्टिक नर्व द्वारा मस्तिष्क में भी फैल सकता है तथा डिस्टेन्स मेटास्टेसिस भी प्राय: हो जाती है । इसका मुख्य लक्षण “कैटस आई एपियरेन्स” है ।
उपचार:
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यह देखने की क्षमता तथा ट्यूमर के फैलाव पर निर्भर है । यदि विजन (दृष्टि) नहीं है तथा एक तरफ की आंख में ही है तो इन्यूक्लियेशन करते हैं, उसके पश्चात रेडियोथेरेपी दे देते हैं । (5000-5500 रैड 5-6/हफ्तों में) ।
एक तरफ पाये जाने वाले आरम्मिक रोगियों में विजन बचने की काफी संभावना होती है, अत: इन्यूक्लियेशन के बजाय फोटोकोगुलेशन क्रायोथैरेपी या रेडियोथेरेपी का प्रयोग दृष्टि को बचाने के लिए किया जाता है । यदि बीमारी दोनो आंखों में है तो कम बीमारी वाली आंख का इलाज कन्जरवेटिव विधि से करने पर जोर दिया जाता है ।
टेलीथेरेपी:
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एण्टीरियर फील्ड डाइवरजेन्ट लेन्स नाक के साथ चित्र 14.32 के अनुसार या ”डी” सेफ विधि द्वारा ।
ब्रेकीथेरेपी:
इसके लिये कोबाल्ट डिस्क का प्रयोग किया जाता है । जिससे ट्यूमर को बहुत उच्च डोज 20,000 रैड तक मिल जाता है । यह विधि बहुत छोटी तथा अकेली ग्रोथ के लिए ही उपयुक्त है ।
गुर्दे के ट्यूमर:
यह वयस्कों व बच्चों दोनों में हो सकते हैं । इनमें प्रमुख नेफोब्लोस्टोम (विल्मस) बच्चों में, व हाइपरनेफ्रोमा (रीनल सेल कार्सिनोमा) वयस्कों का कैंसर है ।
रीनल सेल कार्सिनोमा:
यह रीनल पैरेनकाइमा से होता है तथा हिमेच्युरिया (मूत्र के साथ रक्त स्राव), दर्द और उदर में सूजन के लक्षणों के साथ प्रकट होता है । निदान हेतु रक्त की जांच, सीरम केमिस्ट्री, गुर्दे व लिवर फन्कशन टेस्ट, पेशाब की जांच, इन्ट्रावीनस यूरोग्राफी, सीने का एक्स-रे, सी॰टी॰ स्कैन व रीनल एन्जियोग्राम की आवश्यकता होती है ।
उपचार:
शल्य क्रिया प्रमुख विधि है । रेडियोथेरेपी का प्रयोग सर्जरी के पहले, बाद में या पैलियेशन के लिए किया जाता है । रेडियोथैरेपी 41/2-5 हफ्तों में 4500-5000 रैड चित्र 14.33 के अनुसार देते हैं ।
रेडियोथेरेपी नेफ्रेक्टमी वाली तरफ तथा दूसरे गुर्दे को भी देते है पर सामान्य गुर्दे यह डोज 1400 रैड से अधिक नहीं होनी चाहिए जिसके पश्चात इसे रेडियेशन फील्ड से हटाकर नेफ्रेक्टमी वाले रीनल बेड को 5000 रैड देते है ।
विल्मस ट्यूमर:
यह बचपन में होने वाले गुर्दे का कैंसर है । इसका उपचार प्राय: सर्जरी, रेडियोथेरेपी व कीमोथेरेपी के काम्बिनेशन द्वारा किया जाता है ।
लक्षण:
यह कुछ महीने से दस वर्ष तक की उम्र सर्वाधिक पांच वर्ष से कम के बच्चों में होता है । जो फ्लैंक की सूजन के रूप में होती है । निदान हेतु भिन्न जानें जैसे इन्ट्रावीनस यूरोग्राफी, अच्छा साउण्ड स्कैन, आइसोटोप स्कैन, सी टी स्कैन आदि करते है । यह प्राय: लोकल इनवेजन या लिम्फैटिक स्प्रैड द्वारा पैराएवोरटिक लिम्फ़ ग्रन्थियों मे फैलता है । रक्त द्वारा यह फेफड़े, जिगर और हड्डियों में फैल जाता है ।
उपचार:
सर्वप्रथम सर्जरी जो नेफ्रेक्टमी के रूप में होती है, की जाती है । उसके पश्चात का उपचार हिस्टोपैथोलोजिकल प्रकार पर निर्भर करता है । यदि ट्यूमर छोटा हो तो ट्यूमर बेड का एण्टीयर व पोस्टीरियर समानान्तर विपरीत कोवाल्ट फील्ड द्वारा 2000 रैड दो हफ्तों मे देते हैं जबकि सामान्य गुर्दे को ढक देते हैं । सर्जरी के 48 घण्टे के अन्दर रेडियेशन देना शुरू कर देना चाहिये (चित्र 14.34) ।
जब ट्यूमर फेफड़ों तक फैल जाये तो फेफड़ों को भी उसी रेडियेशन फील्ड द्वारा 1400 रैड तक रेडियेशन दे देते हैं । जिगर को 2000 रैड दो हफ्तों में दे सकते हैं । यदि रोग दोनों गुर्दो में फैल चुका हो तो अधिक फैल चुके वाली तरफ नेफ्रेक्टमी करके रेडियोथेरेपी दोनों गुर्दी को देते हैं, तथा साथ में कीमोथेरेपी भी देते हैं ।
मूत्राशय का कैंसर:
मूत्राशय में प्रमुख रूप ट्रान्जीशनल सेल कैंसर होता है तथा बहुत कम रोगियों में यह स्क्वामस सेल कार्सिनोमा भी हो सकता है । रेडियोथेरेपी का प्रयोग प्री आपरेटिव रेडियोथेरेपी, रेडिकल रेडियेशनथेरेपी या पैलिएटिव रेडियोथेरेपी के रूप में किया जा सकता है । प्रीओपरेटिव थेरेपी में सिस्टेक्टमी के पहले पूरी पेल्विस को एण्टीरियर व पोस्टीरियर फील्ड द्वारा 2000 रैड/5-6 में कानों में मेगावोल्टेज रेडियेशन देते हैं ।
रेडिकल रेडियेशन:
चित्र 14.35 के अनुसार सिमुलेशन फिल्म लेने के पश्चात रेडियेशन थेरेपी 360 डिग्री रोटेशन थेरेपी के रूप में या फोरफील्ड वाक्स विधि से दी जा सकती है ।
डोज:
पूरी पेल्विस को 4000 रैड/20 फ्रैक्शनों में उसके पश्चात 2000-2500 रैड मूत्राशय वाले रीजन को 2-21/2 हफ्तों में मल्टीपल फील्ड विधि का प्रयोग करके/कुल डोज छ-साढ़े छ: हफ्तों में 6000 से 6500 रैड ।
पैलिएटिव:
एण्टीरियर व पोस्टीरियर फील्ड 2000 रैड पांच फ्रैक्शनों में ।
त्वचा का कैंसर:
यह बेसल सेल, स्कवामस सेल, मिलेनोमा, माइकोसिस फंगवायडीस या सेकेन्ड्री कार्सिनोमा के रूप में हो सकता है । उपचार में सर्जरी व रेडियोथेरेपी का प्रयोग कैंसर के प्रकार व स्थान के आधार पर निर्धारित करते है ।
सर्जरी:
प्राय: निम्न स्थितियों में करते हैं:
1. मैलिगनेन्ट मिलेनोमा
2. हाथ, पैर के तलुवे, जहां रक्त संचार कम होता है । स्क्रोटम का कैंसर ।
3. हड्डी में फैलाव होने पर ।
4. रेडियेशन फेलोयर या दोबारा होने पर (रेकरेन्स) ।
रेडियोथेरेपी:
व्रेकी या टेलीथेरेपी के रूप में टेलीथेरेपी में एक्स-रे या कोबाल्ट बीम का प्रयोग तथा ब्रेकीथेरेपी में रेडियम या इसका सबस्टीट्यूट इम्प्लान्ट या सर्फेस मोल्ड के रूप में गोल्डग्रेन इम्प्लान्ट या मोल्ड प्रयोग किये जा सकते है (चित्र 14.37) ।
छोटे कैंसर के लिये प्राय: 4000 रैड तीन हफ्तों में व बड़े आकार के कैंसर को 4500-5000 रैड देना पड़ सकता है ।
लिम्फोमा:
हाजीकिन्सलिम्फोमा:
यह बाइमोडल वितरण 15-30 वर्ष की उम्र व 50 वर्ष की उम्र में होने वाला रोग है जो साथ के क्षेत्रों मे समान रूप से (कान्टीगुअस) फैलता है । यह मुख्य रूप से बड़े हुये गर्दन की लिम्फ ग्रन्थियों के रूप में प्रकट होता है । इसका निदान रीडर्स्टन बर्ग कोशिकाओ की उपस्थिति पर की जाती है । इसके अतिरिक्त निदान व स्टेजिंग के लिए अल्ट्रासाउण्ड, सी॰ टी॰ स्कैन आदि की आवश्यकता होती है ।
इसे एन आर्वर स्टेजिंग द्वारा चार स्टेजों में बांटा जाता है । जो पुन: क व ख में कुछ लक्षणों (बुखार, रात्रि में आने वाला पसीना, छह माह में 10 प्रतिशत से अधिक वजन घटना) के आधार पर तथा ”एस” व ”ई” में स्प्लीन व डिस्टेन्टस्प्रेड में बांटते हैं ।
उपचार:
आधुनिक उपचार व निदान विधियों के द्वारा इसका उपचार अब संभव हो गया है । रेडियोथेरेपी उपचार की सर्वोत्तम विधि है ।
रेडियोथेरेपी:
हाजकिन लिम्फोमा में मेगावोल्टेज उपकरण (यदि संभव हो तो लीनियर एक्सीलेरेटर का प्रयोग किया जाता है । भिन्न भागों जैसे फेफड़े, आंख का लैंस, स्वर यन्त्र आदि को रेडियेशन से बचाने के लिए लेड ब्लाकों को प्रयोग किया जाता है ।
प्राय: समानान्तर विपरीत फील्डों को प्रयोग कर प्रतिदिन 180-200 रेड देते हुए कुल 3600-4000 रैड रेडियेशन देते हैं । क्लिनिकली निगेटिव लिम्फ ग्रन्थियों को 3600 रैड व पाजीटिव ग्रन्थियों को 4000 रैंड तथा बहुत बड़ी लिम्फ ग्रन्थियों को 4500 रैड देते हैं ।
फील्ड:
1. मैंटल (चित्र 14.38)
2. मिनी मैंटल
3. एक्सटेन्डेड मैंटल
4. इन्वर्टेड ”वाई” (चित्र 14.39 क, ख, ग,)
5. पैराएवोरटिक ओर स्पीलीनिक पेडिकिल
6. सब टोटल नोडल इरीडियेशन – मैन्टल + पैराएवोरटिक स्पीलीनिक पेडिकिल
7. टोटल नोटल इरीडियेशन = मैन्टल + इन्वर्टेड “वाई”
स्टेज I,II,III,IV में सिर्फ रेडियोथेरेपी का प्रयोग तथा स्टेज III B व IV में कीमोथेरेपी दी जाती है । रेडियोथेरेपी केवल लक्षण वाले भागों में ही देते हैं । जैसे फ्रैक्चर, दर्द वाली हड्डियां आदि । कीमोथेरेपी में प्राय: एम॰ ओ॰ पी॰ पी॰ (M॰O॰P॰P॰) व ए॰ बी॰ वी॰ डी॰ (A॰B॰V॰D॰) रेजिम का प्रयोग किया जाता है ।
ग्रासनली का कैंसर:
ग्रासनली का कैंसर खाने में तकलीफ (जो धीरे-धीरे बढ़ रही- हो), वजन कम होना आदि लक्षणों के रूप में प्रकट होता है । यह सीधे आस पास स्थित रचनाओं ब लिम्फैटिक द्वारा फैलता है । निदान बेरियम स्वालों, इसोफेगोस्कोपी, बायोप्सी, सीने का एक्स-रे आदि द्वारा की जाती है तथा स्टेजिंग के लिए सी॰टी॰ स्कैन की.मी. आवश्यकता हो सकती है ।
उपचार:
बहुत कम रोगियों में ही जब कैंसर सीमित होता है सर्जरी का प्रयोग किया जाता है । रेडियोथेरेपी ऊपरी भाग के स्क्वामस सेल प्रकार के कैंसर जो रेडियोसेन्सिटिव होता है तथा वहां सर्जरी भी मुश्किल होती है, में किया जाता है । रेडियोथेरेपी प्री आपरेटिव या पोस्टआपरेटिव स्थिति में दी जाती है ।
प्रोस्टेट ग्रन्थि का कैंसर:
यह पचास वर्ष से अधिक की उम्र में होने वाला कैंसर है । यह प्राय: पेशाब करने में परेशानी, मूत्र में रक्त आना, पेशाब रुकना, बार-बार पेशाब आना आदि लक्षणों के रूप में या मेटास्टेटिक लक्षणों जैसे हड्डियों में दर्द के रूप में प्रकट होती है ।
हिस्टोपैथोलोजी के अनुसार ये अधिकतर एडिनोकार्सिनोमा होते हैं । इस कैंसर को चार स्टेजों में बांटा जाता है । निदान व स्टेजिंग हेतु अल्ट्रासाउण्ड, सी॰टी॰ स्कैन, सिस्टोस्कोपी, डिजटल रेक्टल इक्जामिनेशन, इन्ट्रावीनस यूरोग्राफी, सीने का एक्स-रे, बोन स्कैन व लिम्फैन्जियोग्राम की आवश्यक्ता होती है ।
उपचार:
यदि रोग आरम्भिक स्थिति में हो तो सर्जरी या रेडियोथेरेपी किसी भी विधि का प्रयोग किया जा सकता है । पैलियेटिव थेरेपी के लिए हारमोनों का प्रयोग किया जाता है । सर्जरी रेडिकल प्रोस्टेटक्टमी के रूप में होती है ।
रेडियेशन मेगावोल्टेज एक्सटर्नल बीम के रूप में एक एण्टीरियर व दो पोस्टीरियर फील्डों (थ्री फील्ड विधि) द्वारा 6500-7000 रेड प्रोस्टेट रीजन को देते हैं । इन्टरस्टीसियल रेडियेशन आयोडीन 125 प्रोस्टेटिक इम्पलान्ट के रूप में लोकेलाइज्ड कैंसर की स्थिति में प्रयोग करते हैं । एडवान्सड कैंसर में इस्ट्रोजन या आर्कीडेक्टमी का प्रयोग हारमोनल मेनीपुलेशन के रूप में किया जाता है । पर उनके साइड इफेक्ट गाइनकोमेस्टिया से बचने के लिए 1200 रैड स्तनों को दे देते हैं ।