विष्णु प्रभाकर । Biography of Vishnu Prabhakar in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. जीवन परिचय एवं रचनाकर्म ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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विष्णु प्रभाकर हिन्दी साहित्य जगत का ऐसा नाम है, जिन्होंने साहित्य की लगभग सभी विधाओं पर लिखा है । 100 से भी अधिक रचनाओं के इस रचनाकार ने नाटक, एकांकी, स्केच, रिपोर्ताज, यात्रा विवरण, संस्मरण, जीवनी, लघुकथा, कहानी, उपन्यास आदि विषयों पर अपनी लेखनी चलायी है । वे आधुनिक भाव-बोध के रचनाकार हैं । उनका अधिकांश लेखन स्वांतःसुखाय है, किन्तु वह बहुजन हिताय की विशेषता से युक्त है ।
2. जीवन परिचय एवं रचनाकर्म:
बहुमुखी प्रतिभा के धनी, विष्णु प्रभाकरजी 21 जून, 1912 को ग्राम मीरापुर, जिला: मुजफ्फरपुर में पैदा हुए थे । 16 वर्ष की अवस्था में उन्होंने बिहार से हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की । इसके बाद उन्होंने बी॰ए॰ की परीक्षा भी यहीं से उत्तीर्ण की । लेखन कार्य भी साथ-साथ चलता रहा ।
विष्णु प्रभाकरजी भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के प्रत्यक्षदर्शी रचनाकार रहे हैं । उन्होंने तत्कालीन समय के राजनीतिक, सामाजिक परिदृश्य को देखा है । वहीं स्वतन्त्रता के बाद तेजी से बदल रहे उस परिदृश्य को देखा है, जहां देशभक्ति के नाम पर मूल्यों का अवमूल्यन है, बढ़ता हुआ राजनीतिक भ्रष्टाचार है, टूटती हुई आस्थाएं हैं, स्वार्थ है ।
अपनी रचनाओं में उन्होंने भावुकता एवं काल्पनिकता के साथ-साथ वास्तविकता का भी दर्शन कराया है । उनकी प्रमुख रचनाएं: ”आवारा मसीहा”, ”अर्द्धनारीश्वर”, ”धरती अब भी धूम रही है”, ”एक और कुंती”, “नागफांस”, ”डॉक्टर”, ”समाधि” इत्यादि हैं ।
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विष्णु प्रभाकर जनता के लेखक हैं । उन्होंने मानव जीवन तथा समाज की समस्याओं का चित्रण अपनी कहानी, नाटक व एकांकी में किया है । वे सुख और दु:ख को जीवन का अनिवार्य अंग मानते हुए उनका मुकाबला करने तथा लक्ष्य तक पहुंचाने हेतु आशान्वित करते हैं । जिन्दगी जीना भी एक कला है, ऐसा उनका मानना है ।
“अर्द्धनारीश्वर” पर उन्हें ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार प्राप्त हो चुका है । इस उपन्यास में उन्होंने पति और पत्नी की आकर्षण एवं दासतापूर्ण स्थिति का मनोवैज्ञानिक चित्रण किया है । विवाह-व्यवस्था में आये हुए खोखलेपन को भी उन्होंने काफी बेबाकीपन से उजागर किया है ।
उनका प्रसिद्ध नाटक ”डॉक्टर है” । इसमे उन्होंने भावना और नैतिक कर्तव्य के बीच का संघर्ष दिखाया है । डॉक्टर अनीला के मन में ऑपरेशन के समय भी यही अन्तर्द्वन्द्व चलता रहता है, जो कि अव्यावहारिक लगता है । अन्तर्द्वन्द्व एवं मानसिक संघर्ष अन्ततोगत्वा तनाव में किस प्रकार परिवर्तित हो जाता है यही इस उपन्यास का चरमोत्कर्ष है ।
3. उपसंहार:
डॉ॰ विष्णु प्रभाकर नाटकों तथा उपन्यास के क्षेत्र में अपने विशिष्ट योगदान के लिए जाने जाते हैं । मानवीय मूल्यों में आस्था के वे रचनाकर हैं । उन्होंने पारिवारिक तथा सामाजिक समस्याओं पर विशेष रूप से लिखा है । वे मानवीय मनोभावों के मनोवैज्ञानिक व्याख्याकार हैं ।