सरदार पूर्णसिंह । Biography of Sardar Puran Singh in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. जीवन परिचय एवं रचनाकर्म ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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सरदार पूर्णसिंह को अध्यापक पूर्णसिंह के नाम से भी जाना जाता है । वे द्विवेदी युग के श्रेष्ठ निबन्धकारों में से एक हैं । मात्र 6 निबन्ध लिखकर निबन्ध-साहित्य में अपना नाम अमर कर लिया । आपके निबन्ध नैतिक और सामाजिक विषयों से सम्बद्ध हैं । आवेगपूर्ण, व्यक्तिव्यंजक लाक्षणिक शैली उनकी विशेषता है । विशेष प्रतिपादन की दृष्टि से उन्होंने भावुकता प्रधान शैली का विशेष प्रयोग किया है ।
2. जीवन परिचय एवं रचनाकर्म:
सरदार पूर्णसिंह का जन्म सन् 1881 को पाकिस्तान के सलहड़ नामक ग्राम में हुआ था । उन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा रावलपिण्डी से प्राप्त की । फिर वहां से छात्रवृत्ति पाकर वे रसायन शास्त्र विषय में उच्च अध्ययन हेतु जापान चले गये । वहां से लौटकर उन्होंने कुछ समय के लिए गृहस्थ जीवन से संन्यास ले लिया था ।
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उनका कुछ समय ग्वालियर तथा पंजाब में बीता । पूर्णसिंहजी का सम्बन्ध क्रान्तिकारियों से भी रहा । उनकी मृत्यु 31 मार्च, 1931 में हुई । उनके निबन्धों में “सच्ची वीरता”, “कन्यादान और पवित्रता”, ”आचरण की सभ्यता”, ”मजदूरी और प्रेम”, ”नैनो की गंगा”, ”अमेरिका का मस्तजोगी वाल्टव्हिटमैन” प्रमुख हैं ।
उनके निबन्धों की विषय-वस्तु समाज, धर्म, विज्ञान, मनोविज्ञान तथा साहित्य रही है । ”सच्ची वीरता” इस निबन्ध में उन्होंने सच्चे वीरों के लक्षण एवं विशेषताओं का भावात्मक एवं काव्यात्मक वर्णन किया है । ”मजदूरी और प्रेम” में उन्होंने दोनों के सम्बन्धों का विचारात्मक एवं उद्धरण शैली में वर्णन किया है ।
”आचरण की सभ्यता” में देश, काल एवं जाति के लिए आचरण की सभ्यता का महत्त्व प्रतिपादित किया है । अपने जीवन मूल्यों को आचरण में उतारकर श्रेष्ठ बनना ही आचरण की सभ्यता है । प्राय: श्रमिक-से दिखने वाले लोगों में आचरण की सभ्यता होती है । उनके निबन्धों की भाषा उर्दू और संस्कृत मिश्रित भाषा है ।
उन्होंने कुछ सूक्तियों का प्रयोग भी निबन्धों में किया है । जैसे: ”वीरों के बनाने के कारखाने नहीं होते ।” ”आचरण का रेडियम तो अपनी श्रेष्ठता से चमकता है ।” उनकी शैली काव्यात्मक, भावात्मक, आलंकारिक है । कहीं-कहीं वाक्य बहुत लम्बे-लम्बे व जटिल हो गये हैं । तर्क एवं बुद्धिप्रधान निबन्ध उनकी शैलीगत विशेषता है ।
3. उपसंहार:
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सरदार पूर्णसिंह द्विवेदीयुगीन निबन्धकारों में अपनी विषयवस्तु और शैली के लिए जाने जाते हैं । उनके निबन्धों से उनके ज्ञान की व्यापकता का परिचय मिलता है । भावप्रधान निबन्ध पाठकों पर विशिष्ट प्रभाव छोड़ जाते है ।