रांगेय राघव । Biography of Rangeya Raghav in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. जीवन परिचय एवं रचनाकर्म ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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रांगेय राघव हिन्दी के उन बहुमुखी रचनाकारों में से एक हैं, जिन्होंने उपन्यास, कहानी, निबन्ध, नाटक, आलोचना, रिपोर्ताज, इतिहासवेत्ता के रूप में अपने रचनाकर्म से अल्प समय में ही ख्याति प्राप्त की थी । उन्होंने अपनी रचनाधर्मिता से जिन ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर जीवनोपयोगी नवीन कथा प्रयोगों का विकास किया, उसके कारण वे प्रेमचन्द, प्रेमचन्द्रोत्तर युग के श्रेष्ठ रचनाकारों की श्रेणी में आते हैं ।
प्रबन्ध और पुस्तक दोनों ही क्षेत्रों में उन्होंने कविताएं लिखी हैं । उनकी काव्य कृतियों में नवीन योजना के साथ-साथ नूतन प्रयोग विन्यास मिलता है । सामाजिक संवेदना और समाजवादी चिन्तन उनकी कविता की शक्ति है ।
2. जीवन परिचय एवं रचनाकर्म:
रांगेय राघव का जन्म जनवरी 1923 को आगरा में हुआ था । उनका मूल नाम: टी॰एन॰वी॰ आचार्य {तिरूमल्लै नंबकम् वीर राघव आचार्य} था । उन्होंने सेंट जीन्स कॉलेज से 1944 में स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की और 1949 में गुरु गोरखनाथ पर पी॰एच॰डी॰ आगरा विश्वविद्यालय से की ।
13 वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने लिखना शुरू किया था । 1942 में उन्होंने अकालग्रस्त बंगाल की यात्रा के बाद जो रिपोर्ताज लिखा था: “तूफानों की बीच” यह हिन्दी में चर्चा का विषय बना । हिन्दी, अंग्रेजी, ब्रज और संस्कृत भाषा पर असाधारण अधिकार था । इसके अलावा चित्रकला, संगीत और पुरातत्व में उनकी विशेष रुचि थी ।
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उन्होंने कुल 150 पुस्तकें लिखीं । उनकी प्रमुख रचनाएं-उपन्यास ”घरौंदा”, “सीधा सादा रास्ता”, “अंधेरे के जुगनू”, “काका”, “देवकी का बेटा”, ”पराय”, “यशोधराजीत गयी”, ”भारती का सपूत”, “लखीमा की आंखें”, ”कब तक पुकारूं”, ”पक्षी और आकाश”, “छोटी सी बात”, ”कल्पना”, ”प्रोफेसर”, ”आखिरी आवाज” ।
कहानी: ”देवदासी”, “एययाश मुर्दे”, ”पांच गधे” । गाथा: “महायात्रा 1, महायात्रा 2” रिपोर्ताज: “तूफानों के बीच” । काव्य: ”अजेय खण्डहर”, ”पिघलते पत्थर”, ”राह के दीपक”, ”पांचाली”, । नाटक: ”स्वर्णभूमि की यात्रा”, “रामानुज” ।
आलोचना: ”भारतीय सन्त परम्परा और समाज”, ”भारतीय पुनर्जागरण की भूमिका”, ”भारतीय परम्परा और इतिहास”, ”प्रगतिशील साहित्य के मानदण्ड”, ”तुलसीदास का कला-शिल्प” “आधुनिक हिन्दी कविता में प्रेम और शृंगार” ।
रांगेय राघव का लेखन इतना विपुल और समृद्ध है कि जितनी आयु तक उन्होंने यह लेखन कार्य किया, यदि उसे पड़ा जाये, तो उससे भी कहीं अधिक समय लग जायेगा । वह किसी वाद-विवाद की परिधि में न रहकर प्रगतिशील लेखन करते रहे । प्रगतिशील लेखक संघ की सदस्यता लेने से भी उन्होंने इनकार कर दिया था ।
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वे किसी वाद का तमगा या लेबल लगाकर घूमने की बजाय लेखन में ईमानदारी रखने में विश्वास रखते थे । उन्होंने मनुष्य की पीड़ा और संघर्षशील प्रवृत्ति को जीवन का सत्य माना, जो उसे लड़ने की शक्ति प्रदान करती है । रांगेय राघव ने जीवन की जटिलताओं में खोये हुए आदमी की पहचान की है । भारतीय गांवों की कच्ची और कीचड़ भरी पगडण्डियों की गश्त भी उन्होंने लगायी है ।
3. उपसंहार:
रांगेय राघव का लेखन आशा और हताशा से भरे हुए जीवन का हलचल-भरा लेखन है । प्रेमचन्द के बाद के कथाकारों में अपने रचनात्मक कौशल और विपुल रचनाकर्म के कारण वे अग्रिम पंक्ति के साहित्यकारों में अपना स्थान बनाने में सफल रहे हैं ।
वे अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज को बदलेने का झूठा दम्भ नहीं भरते, बल्कि बदलने की आकांक्षा जरूर रखते हैं । ऐसे प्रगतिशील, यथार्थवादी रचनाकार का लम्बी बीमारी के बाद 12 जनवरी, 1962 को निधन हो गया । उनकी मृत्यु से साहित्य जगत को एक अपूरणीय क्षति हुई है ।