रामविलास शर्मा । Biography of Ramvilas Verma in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. जीवन परिचय एवं रचनाकर्म ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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आधुनिक हिन्दी समीक्षा के प्रखरह रचनाधर्मी, कवि, जीवनीकार, आत्मकथाकार, आलोचक, समीक्षक, चिन्तक, भाषाविद्, इतिहासज्ञ, समाजशास्त्री, दार्शनिक, संरवृातइा जैसी बहुआयामी प्रतिभासम्पन्न डॉ॰ रामविलास शर्मा ने हिन्दी समीक्षा को नये मानदण्ड दिये । डॉ॰ शर्मा मार्क्सवादी आलोचक रहे हैं ।
डॉ॰ बच्चन सिंह ने लिखा है कि ”मार्क्सवादी आलोचकों में रामविलास शर्मा की दृष्टि सबसे अधिक पैनी, स्वच्छ और तत्वस्पर्शी है । विचारों के स्तर पर वे कहीं भी समझौतावादी नहीं होते । वे बहुत ही खरे, दो टूक बात करने वाले, निर्भीक आलोचक हैं ।” वे सर्वहारा वर्ग के प्रतिनिधि समीक्षक हैं ।
2. जीवन परिचय एवं रचनाकर्म:
डॉ॰ रामविलास शर्मा का जन्म 10 अक्टूबर, 1912 को उन्नाव के ऊंचे गांव सानी में हुआ था । उनका निधन 31 मई सन् 2000 को दिल्ली में हुआ । लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम०ए० और पी॰एच॰डी॰ की उपाधि प्राप्त कर वे प्रवक्ता बने । सन् 1937 में लखनऊ छोड्कर आगरा के कॉलेज में अंग्रेजी के विभागाध्यक्ष बनें ।
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सन् 1976 के बाद से वे दिल्ली में रहकर अध्यापन एवं साहित्य साधना करते रहे । उन्होंने आरम्भिक रूप में ”अगिया बैताल” के नाम से कविताएं लिखीं । वे आलोचना के क्षेत्र में तब आये, जब निरालाजी के विरुद्ध एक साहित्यिक आन्दोलन चल पड़ा था ।
निरालाजी के काव्य की समीक्षा करते हुए उन्होंने लिखा कि: ”निराला की कविता नये युग की आखों से यौवन को देखती है ।” इसके पश्चात् उन्होंने आलोचना साहित्य पर लगातार लिखना शुरू किया ।
उनकी रचनाएं हैं:
”बुद्ध वैराग्य”, ”प्रारम्भिक कविताएं”, “सदियों के सोये जाग उठे”, ”रूप-तरंग”, “पाप के पुजारी”, “प्रेमचन्द और उनका युग”, “भारतेन्दु युग और हिन्दी भाषा की विकास परम्परा”, ”विराम चिन्ह”, ”महावीर प्रसाद द्विवेदी और नवजागरण”, ”आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और हिन्दी आलोचना”, ”मार्क्सवाद और प्रगतिशील साहित्य”, ”निराला की साहित्य-साधना”, ”भारत में अंग्रेजी राज्य और मार्क्सवाद”, ”भारतीय इतिहास की समस्याएं”, ”मार्क्सवाद और पिछड़ा हुआ समाज”, ”पश्चिम एशिया और वेद”, ”लेनिन और भारत”, ”भारतीय संस्कृति और हिन्दी प्रदेश”, ”भाषा का विकास”, ”भारतीय साहित्य और हिन्दी जाति की साहित्य अवधारणा”, ”भारतीय भाषा का परिवार और हिन्दी”, ”नयी कविता और अस्तित्ववाद”, ”अपनी धरती अपने लोग”, ”हिन्दी जाति का इतिहास”, “हिन्दी नवजागरण और यूरोप”, ”परम्परा का मूल्यांकन”, ”गांधी अंबेडकर लोहिया और इतिहास की समस्याएं ।
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उन्होंने अपनी आलोचना में मार्क्सवाद की वैचारिक भूमि पर जन-साधारण, जन-संस्कृति, जन-रचतन्त्रता को स्थान दिया । राष्ट्रीय चरित्र, हिन्दी के प्रति गौरव भाव, स्वदेशी, उत्पादन, देश की समप्रभुता उनके साहित्यिक चिन्तन का आधार रही । वे लोकतान्त्रिक मूल्यों के पक्षधर रहे हैं ।
उन्होंने प्रेमचन्द की जनवादी चेतना की प्रशंसा की, वहीं छायावाद तथा निराला के मुक्त छन्द की भी प्रशंसा की । उन्होंने निराला के साहित्य की होने वाली हत्या पर अपनी दृष्टि रखते हुए उनके साहित्य को बेजोड़ बताया ।
3. उपसंहार:
रामविलास शर्मा एक मार्क्सवादी आलोचक थे । अत: उन्होंने यही लिखा कि ”साहित्यकार को साहित्य की रचना करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि वह सर्वहारा वर्ग का सहयोगी साहित्य निर्मित करे । वर्ग वैषम्य की पीड़ा आम जनता की पीड़ा है ।
साहित्यकार को यह नहीं सोचना चाहिए कि सर्वहारा वर्ग की बात करना, साहित्य को संकीर्ण परिधि से आबद्ध कर देना है । उनकी समीक्षा व्यंग्य से भी पूर्ण होती है । वे एक सफल निष्पक्ष एवं वैज्ञानिक आलोचक रहे है । उन्होंने नये रचनाकारों का हमेशा उत्साहवर्द्धन किया । उन्होंने पूंजीवादी साहित्य की जमकर आलोचना की है । निष्कर्षत: वे आधुनिक हिन्दी आलोचकों की अग्रिम पंक्ति में अपना स्थान रखते हैं ।