भक्त प्रहलाद । “Biography of Prahlada” in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. बालक प्रहलाद की हरिभक्ति ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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हमारे धार्मिक, पौराणिक ग्रन्थों में बालक ध्रुव, उपमन्यु, आरूणि, श्रवण कुमार जैसे महान् बालकों के उदाहरण मिलते हैं, जिन्होंने अपने पुण्य-प्रताप से संसार में अपना नाम अमर कर दिया । हमारे पौराणिक आख्यानों में दानव कुल में जन्मे एक ऐसे ईश्वर भक्त बालक की कथा मिलती है, जिसका सम्बन्ध होली से भी है ।
वह बालक था-भक्त प्रहलाद । भक्त प्रहलाद हिरण्यकश्यप दैत्यराज का बेटा था । उसने सहस्त्रों वर्षो तक तप करके ब्रह्माजी को प्रसन्न किया था । उसकी तपस्या से प्रभावित होकर ब्रह्माजी ने उसे यह वरदान दिया था कि: ”तुम ब्रह्माजी द्वारा बनाये गये किसी भी अस्त्र-शास्त्र से नहीं मारे जाओगे, न रात में, न दिन में, न धरती में, न आकाश में ।” वरदान पाकर हिरण्यकश्यप देवताओं से अपने भाई हिरण्याक्ष के वध का वैर निकालने लगा ।
वह देवताओं का घोर शत्रु बनकर ऋषियों को कष्ट देने लगा । यज्ञ कर्मकाण्ड का पूर्णत: विरोधी हो गया । जब हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को विद्याध्ययन हेतु गुरुओं के पास भेजा, तो पांच वर्षीय बालक प्रहलाद भगवान् श्रीहरि का नाम स्मरण करने लगा । हिरण्यकश्यप को जब बालक प्रहलाद के इस व्यवहार का पता चला, तो वह बहुत अधिक क्षुब्ध हो गया ।
2. बालक प्रहलाद की हरिभक्ति:
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बालक प्रहलाद की हरिभक्ति की परीक्षा लेने के लिए सर्वप्रथम हिरण्यकश्यप ने उससे कुछ प्रश्न पूछे, जिनके उत्तर प्रहलाद ने श्रेष्ठ ईश्वर-भक्ति का उदाहरण देते हुए दिये । हिरण्यकश्यप ने क्रोध में आकर प्रहलाद को बहुत डाटा-धमकाया । उसने प्रहलाद के गुरु और साथियों से यह कहा कि वे प्रहलाद के मन से हरिभक्ति निकाल दें और उसे केवल राज्यनीति की शिक्षा दें ।
बालक प्रहलाद का मन तो हरिभक्ति के रंग में पूरी तरह से डूबा हुआ था । उसने भगवान् के शील, चरित्र एव लीलाओं का जो वर्णन किया, उससे हिरण्यकश्यप आगबबूला हो उठा । उसने प्रहलाद को लाख समझाया, किन्तु प्रहलाद की अविचल भक्ति देखकर हिरण्यकश्यप के मन में दुष्ट विचार आया ।
उसने प्रहलाद को ईश्वर-भक्ति की राह से दूर करने के लिए तरह-तरह की यातनाएं देनी प्रारम्भ कर दीं । हिरण्यकश्यप ने अपने दैत्य सेवकों को आज्ञा दी कि वे इस दुष्ट प्रहलाद को मार डालें । असुरों ने प्रहलाद पर तीर, भाले, अस्त्र-शस्त्र के अनेक वार किये, किन्तु प्रहलाद के शरीर के स्पर्श से वे सब प्रभावहीन हो गये ।
हिरण्यकश्यप ने त्रस्त्र होकर प्रहलाद को हाथी के पांव के नीचे कुचलने का आदेश दिया । हाथी ने उन्हें उठाकर अपने मस्तक पर बैठा लिया । हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को डसने हेतु सांप छोड़े । वह इसमें भी असफल रहा । खूंखार सिंह छोड़े गये । प्रहलाद के सामने आते ही वे विनम्र बन गये ।
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फिर हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को पहाड़ की ऊंची चोटी से फिकवाया, किन्तु उसका बाल भी बांका नहीं हुआ । अबकी बार उसे विष दिया गया । प्रहलाद के सामने विष भी अमृत हो गया । ऐसे में हिरण्यकश्यप ने अपनी बहिन होलिका को बुलवा भेजा, जिसे आग में न जलने का वरदान प्राप्त था ।
हिरण्यकश्यप के कहने पर होलिका प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर आग की लपटों में बैठ गयी । प्रहलाद जीवित बच निकला । होलिका जल मरी । अब हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद से कहा: ”मैं तुम्हारा वध करूंगा । देखता हूं कहा है, तुम्हारा भगवान् ।”
प्रहलाद ने कहा: ”वह तो सर्वत्र व्याप्त है ।” हिरण्यकश्यप ने कहा: ”इस खम्भे में है तुम्हारा भगवान्” प्रहलाद ने कहा: ”हां है ।” हिरण्यकश्यप ने क्रोध में आकर खम्भे में लात मारी थी कि खम्भे में से नृसिंह भगवान् आकर हिरण्यकश्यप के सामने खड़े हो गये । उन्होंने हिरण्यकश्यप को अपनी गोद में रखा और नखों से उसका शरीर चीर दिया ।
हिरण्यकश्यप इस तरह अपने वरदान के अनुरूप ही: ”न धरती न आकाश में, न किसी अस्त्र-शस्त्र से, न देव, न मानव प्राणी के हाथों मारा गया ।” बालक प्रहलाद नृसिंह भगवान् के श्री चरणों पर गिर पड़ा और बोला: ”भगवन । आपसे विनती है कि मेरे पिता को आपकी निन्दा से मुक्त कर दें । वे इस पाप से छूट जायें ।” श्री हरि ने कहा: ”ऐसा ही होगा ।”
3. उपसंहार:
इस तरह बालक प्रहलाद अपनी दृढ़ हरिभक्ति में सफल रहा । ईश्वर अपने सच्चे भक्तों की रक्षा के लिए दौड़े चले आते हैं, यह बात प्रहलाद जीवन चरित्र में देखने को मिलती है । सच ही है: ”सच्ची भक्ति से सब कुछ पाया जा सकता है । ईश्वर को भी प्राप्त किया जा सकता है ।”