नचिकेता । “Biography of Nachiketa” in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. नचिकेता का संकल्प ।
3. नचिकेता और यमराज ।
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4. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
हमारी भारतभूमि ऐसे आदर्शो और संकल्पों की गौरवभूमि रही है, जहां सत्यनिष्ठा, गुरु भक्ति, ईश्वर भक्ति तथा अपने आदर्शो के लिए मर मिटने वाले लोग हुए हैं, जिन्होंने अपने व्यक्तित्व के गुणों से युगों-युगों तक अपना प्रभाव छोड़ा है ।
इनमें से कुछ ऐसे आदर्शवान बालक हुए हैं, जिन्होंने अपने जीवन मूल्यों तथा संकल्प के लिए कभी किसी से समझौता नहीं किया । ऐसे संस्कारवान बालकों में भक्त ध्रुव, भक्त प्रहलाद, श्रवण कुमार, आरूणि, उपमत्यु तथा नचिकेता का नाम बड़े ही आदर्श प्रेरक के रूप में लिया जाता है ।
2. नचिकेता का संकल्प:
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बालक नचिकेता ”वाजश्रवा” का एकमात्र पुत्र था । उसके पिता वाजश्रवा ने स्वर्ग की अभिलाषा से यज्ञ का आयोजन करवाया था । वैदिक मन्त्रों के उच्चारण से तथा विधि-विधानों से अनुष्ठान सम्पन्न होने के बाद उसके पिता वाजश्रवा ने यज्ञ की पूर्णाहूति दी । अनेक ऋषि-मुनि वहां पधारे थे ।
यज्ञोपरान्त सभी को यह आशा थी कि वाजश्रवा सभी को दान-दक्षिणा देंगे । यज्ञ की समाप्ति के पश्चात् ब्राह्मणों का आशीर्वाद प्राप्त कर वाजश्रवा ने दक्षिणा देनी प्रारम्भ की, किन्तु वाजश्रवा ने धन-सम्पत्ति के मोह में आकर निर्बल और बूढ़ी गायों को दान में देना प्रारम्भ किया, जिन्होंने दूध तक देना बन्द कर दिया था ।
वाजश्रवा की लोकनिन्दा हो रही थी, जिसे सुनकर पुत्र नचिकेता बहुत दुखी हुआ । अपने पिता की ऐसी कृपणता देखकर नचिकेता से न रहा गया । खिन्न मन से वह अपने पिता के पास पहुंचकर बोला: ”पिताश्री ! दान-दक्षिणा में तो यजमान अपनी प्रिय-से-प्रिय वस्तु देते हैं ।
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आपने तो ऐसी गाएं दी हैं, जिनका आपके लिए कोई उपयोग हीं नहीं रह गया है । इससे आपको कोई पुण्य नहीं मिलेगा । पिताश्री ! आपको सबसे प्रिय तो मैं हूं । आप मुझे दक्षिणा में क्यों नहीं दे देते ?” वाजश्रवा ने नचिकेता की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया, पर नचिकेता अपना प्रश्न दोहराता रहा ।
वाजश्रवा ने झुंझलाहट और क्रोध के मारे कह दिया: ”जाओ ! मैंने तुझे मृत्यु को दे दिया ।” नचिकेता विनम्र भाव से बोला: ”पिताजी ! आप क्रुद्ध न हों । मैं आपके आदेश का पालन करूंगा । मुझे मृत्यु के देवता यमराज के पास जाने की अनुमति दीजिये ।”
3. नचिकेता और यमराज:
नचिकेता ने यमराज के पास जाने का दृढ़ संकल्प कर लिया था । वह जब यमपुरी पहुंचा, तो यमराज यमपुरी में नहीं थे । तीन दिनों तक यमराज के दरवाजे पर पड़ा रहा । यमराज लौटे, तो बालक नचिकेता की दशा देखकर दुखी हुए । उन्होंने देखा कि बालक के चेहरे पर दृढ़ता की चमक थी । वह असाधारण बालक ही था ।
यमराज के सम्मुख भी बड़ी निडरता और स्वाभिमान के साथ खड़ा हुआ था । यमराज ने नचिकेता का यथोचित सत्कार किया और उसके आने का प्रयोजन पूछा । नचिकेता ने पिता तथा यहा से सम्बन्धित सारी जानकारी यमराज को बता दी ।
यमराज नचिकेता की पितृभक्ति और दृढ़ निश्चय से बहुत प्रसन्न हुए तथा उनके दरवाजे पर तीन दिन तक भूखे-प्यासे रहने पर दु:ख प्रकट किया । उसके प्रायश्चित स्वरूप नचिकेता से तीन वरदान मांगने को कहा । नचिकेता ने धर्मराज से पहला वर यह मांगा कि उनके पिता का क्रोध उस पर से शान्त हो जाये और वापस जाने पर वे उससे प्यार से बात करें ।
अपने दूसरे वर में नचिकेता ने यमराज से यह कहा कि मेरे पिता की तरह सभी स्वर्ग की अभिलाषा रखते हैं; क्योंकि स्वर्गलोक में बहुत सुख मिलता है । वहां न तो बुढ़ापा आता है, न कोई रोग । वहां के निवासी हर समय अलौकिक सुख का ही अनुभव करते रहते है ।
अत: आप उस आनन्दपूर्ण स्वर्ग को प्राप्त कैसे करें, इसका उपदेश दीजिये । स्वर्ग के बारे में नचिकेता की ऐसी जिज्ञासा जानकर यमराज ने स्वर्ग प्राप्त करने की सारी विधियां नचिकेता को बतायीं । यमराज के पूछने पर बालक नचिकेता ने सारी विधियां ज्यों की त्यों उन्हें सुना दीं, तो यमराज से अब नचिकेता ने तीसरा वर यह मांगा कि वह उसे स्वर्ग का रहस्य बता दें ।
वैसे उसे पृथ्वी की किसी भी वस्तु की अभिलाषा नहीं है । नचिकेता ने यमराज से यह सवाल किया कि: ”भगवान ! कुछ लोग आत्मा को मृत्यु के बाद अमर मानते हैं, कुछ लोग नहीं । मुझे कृपाकर आत्मा का रहस्य समझाइये ।”
यमराज ने आखिरकार नचिकेता को आत्मा का रहस्य बताने के पहले बहुत से प्रलोभन दिये, किन्तु शान्त भाव से नचिकेता ने यही कहा: “इस संसार में किसी भी मनुष्य को सच्चा सुख नहीं मिलता । सारी इन्द्रियां मनुष्य को असन्तुष्टि देती हैं ।”
यमराज की परीक्षा में नचिकेता खरा उतरा । यमराज ने उसे बताया: ”आत्मा अजर अमर है । न तो यह पैदा होती है और न ही मरती है । यह बहुत गूढ है । इसे वही समझ सकते हैं, जो सांसारिक आकर्षणों को ठुकराकर साधना के मार्ग पर चलते हैं । ज्ञानी, संयमी, धैर्यवान ही आत्मज्ञान प्राप्त कर सकते हैं ।”
4. उपसंहार:
बालक नचिकेता ने यमराज के उपदेशों का जीवन में पालन किया । वह एक धर्मात्मा व महान् ऋषि बना । नचिकेता के जीवन से हर व्यक्ति को इस बात की सीख अवश्य लेनी चाहिए कि यदि दान दिया जाये, तो ऐसा दान दे, जो किसी के काम आ सके ।
यदि दान निरपेक्ष और निःस्वार्थ भाव से नहीं किया जाता, तो उस दान का कोई मूल्य नहीं । हमारी संस्कृति में नचिकेता जैसे बालक हुए हैं, जिन्होंने अपने पिता की भूल का प्रायश्चित स्वयं किया तथा अपने पिता के लिए वरदान मांग लिया । संसार नचिकेता को उसके ऐसे ही गुणों के कारण हमेशा सारण रखेगा ।