मलूकदास । “Biography of Maluk Das” in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. जीवन परिचय ।
3. रचनाएं एवं कार्य ।
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4. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
सन्त-कवि मलूकदास अपनी धार्मिक तथा काव्य साधना के साथ-साथ आचरण, व्यवहार और वाणी से एक संस्कारी व्यक्ति थे । उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन हिन्दू-मुस्लिम एकता व जातिगत एकता हेतु समर्पित किया था ।
2. जीवन परिचय:
सन्त मलूकदास का जन्म 1631 में इलाहाबाद से 38 कि॰मी॰ दूर कड़ा नामक स्थान में हुआ था । वे जाति से कक्कड़ खत्री थे । उनके पिता सुन्दरदास धार्मिक विचार वाले व्यक्ति थे । बचपन से ही अच्छे संस्कारों में पले-बड़े मलूकदास के बारे में कहा जाता है कि वे आजानूबाहु थे । ऐसे व्यक्ति महात्मा ही होते हैं ।
उसी के अनुरूप मलूकदास बचपन गे ही स्वच्छता, पवित्रता एवं मानवता के पुजारी थे । जब भी घर के सामने या यहां-वहां कोई कहा: करकट देखते, तो उसे एक तरफ रख देते थे । साधु और सन्तों की सेवा करने में उन्हें एक प्रकार का आनन्द मिलता था ।
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जो पैसे उन्हें सामान खरीदने के लिए दिये जाते थे, वह उन्हें राह चलते गरीबों व दीन-दुखियों को दे देते थे । एक बार तो उन्होंने ठिठुरते ठण्ड में अपना कम्बल भी किसी गरीब को दान कर दिया था । जीवन-भर मानव समाज की सेवा करते हुए उन्होंने 108 वर्ष की आयु में 1738 में अपनी जीवन यात्रा तय की ।
3. रचनाएं एवं कार्य:
मलूकदासजी ने अवधि तथा ब्रजभाषा में रचनाएं लिखीं । कहीं-कहीं पर तो अरबी और संस्कृत का प्रयोग भी इन रचनाओं में किया है । उनकी प्रामाणिक रचनाओं में ज्ञानबोध, रतनखान, भक्तवच्छावली, भक्तिविवेक, बाराखड़ी रामावतारलीला, ब्रजलीला, ध्रुवचरित्र, सुखसागर प्रमुख हैं । उनकी रचनाओं में अवतार और चरित्रों के साथ-साथ भक्ति, नीति, ज्ञान, वैराग्य आदि का वर्णन है ।
भक्ति विवेक में काशी नृप की कथा तथा नागकन्या की कथा, सिंह तथा काल की कथा के माध्यम से माया के त्याग का विरोध व ब्रह्म की उपासना का उल्लेख मिलता है । उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से हिन्दू-मुस्लिम एकता का सन्देश दिया । साथ ही ईमान को सबसे बड़ा धर्म माना ।
{1} सब कोउ साहब बन्दते, हिन्दू मुसलमान ।
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साहब तिनको बन्दता, जिनका ठोर इमान ।।
कबीर की तरह उन्होंने भी धार्मिक आडम्बरों, जैसे-केश मुंडना, पत्थरों की पूजा आदि का विरोध करते हुए शुद्ध हृदय से ईश्वर का ध्यान करने पर बल दिया ।
{2} आतम राम न चिन्हहीं, पूजत फिरे पषान ।
केसहु मुक्ति न होयगी केतिक सुनो पुरान ।।
प्रत्येक मनुष्य में ईश्वर का निवास है, ऐसा उनका मानना था । जो धर्म मनुष्य को मनुष्य नहीं बनाता, अर्थात् जिसमें दया, ममता, परदुःख कातरता, सहिष्णुता नहीं है, वह मनुष्य धर्म का पालन नहीं कर सकता । उनका एक प्रसिद्ध दोहा इस प्रकार है:
अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम ।
दास मलूका कह गये, सबके दाता राम ।।
इस दोहे का कुछ लोग बहुत सतही अर्थ निकालकर यह सोचते हैं कि: अजगर और पंछी कुछ काम नहीं करते, किन्तु उन्हें इस अकमर्ण्यता व निठल्लेपन के बाद भी ईश्वर भाग्यवश दे देता है, अर्थात् आलसी लोग इसे अपना जीवन-दर्शन मानकर भीख मांगने लग जायें और कुछ काम न करें ।
ऐसा इस दोहे का अर्थ सर्वथा गलत है । इस दोहे के अनुसार मलूकदासजी ने यह समझाते हुए व्यंग्य किया है कि ऐसा कहने से ईश्वर किसी को कुछ नहीं देता, यानी भाग्य नहीं, कर्म प्रमुख है ।
4. उपसंहार:
दास मलूका की वाणी मानवतावादी धर्म का प्रचार-प्रसार करती रही । उन्होंने मानव-मानव में कभी किसी प्रकार का भेदभाव न करने का सन्देश दिया । धर्म के सच्चे स्वरूप का दर्शन कराते हुए उन्होंने मनुष्य को धार्मिक विद्वेष से बचने की सलाह दी । वे सन्त, कवि, समाजसुधारक भी थे ।