राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त । Biography of Maithilisharan Gupta in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. जीवन परिचय व रचनाकर्म ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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मैथिलीशरण गुप्त राष्ट्रीय चेतना के ऐसे कवि थे, जिनकी कविताओं में भारतीय संस्कृति के आदर्शो का सुन्दर चित्रण भी मिलता है । मानवतावादी तथा लोककल्याण का भाव उनकी कविताओं का मल स्वर हैं । वे राम के एकनिष्ठ उपासक कवि थे । राम का त्यागमय आदर्श चरित्र उनके लिए प्रेरक था ।
उनकी कविताओं में भारतीय नारी के प्रति अत्यन्त उदारता एवं आदर का भाव समाया हुआ है, जिनमें भारतीय सांस्कृतिक त्याग और गौरव की गाथा समाई हुई है । भारतीय नारी की दुःखद मनःस्थिति का मनोवैज्ञानिक चित्रण करने के साथ-साथ उन्होंने उपेक्षित नारियों की उदात्त गाथा को कविता का विषय बनाकर अद्वितीय कार्य किया । उनकी कविताओं में देशभक्ति और राष्ट्रीयता का रबर भी विद्यमान है ।
2. जीवन परिचय व रचनाकर्म:
मैथिलीशरण गुप्तजी का जन्म झांसी के चिरगांव में सन् 1886 में हुआ था । उनके पिता रामचरण सेठ वैष्णव भक्त थे । वे कनकलता नाम से कविता किया करते थे । गुप्तजी पर परिवार के धार्मिक संस्कारों के साथ-साथ काव्यमय वातावरण का भी अच्छा प्रभाव पड़ा था ।
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अत: वे भी बाल्यावस्था से ही आध्यात्म तथा काव्य रचना की ओर प्रवृत्त हो गये । उनकी शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई । उन्होंने घर पर ही संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, बंगला का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया । गुप्त की प्रारम्भिक रचनाएं कलकत्ता के जातीय पत्र में प्रकाशित हुआ करती थीं ।
बाद में द्विवेदीजी के सम्पर्क में आने के बाद उनकी रचनाएं ”सरस्वती” में प्रकाशित होने लगीं । द्विवेदीजी से प्रेरणा व प्रोत्साहन पाकर उनकी काव्य प्रतिभा और निखरती चली गयी । उनकी प्रारम्भिक रचनाओं में राष्ट्रप्रेम, समाजप्रेम, राम, कृष्ण तथा बुद्ध सम्बन्धी पौराणिक आख्यानों एवं मानवीय एकता, ऐतिहासिक आदर्शो का चित्रण है ।
मौलिक तथा अनुदित अन्यों सहित 40 काव्य अन्यों की रचना की, जिसमें “रंग में भंग”, ”जयद्रथ वध”, ”भारत-भारती”, ”शकुन्तला”, “वैतालिकी”, ”पद्मावती”, ”किसान”, ”पंचवटी”, ”स्वदेश संगीत”, “हिन्दू शक्ति”, ”सैरंन्ध्री”, “वन बैभव”, ”वक्र संहार”, ”चन्द्रहास”, “तिलोत्तमा”, “विकटघट”, ”मंगलघट” तथा ”साकेत” प्रमुख हैं ।
“साकेत” पर उन्हें “मांगलाप्रसाद” पारितोषिक प्राप्त हुआ है । उनकी प्रारम्भिक रचनाओं में युग की समस्त मान्यताओं और समस्याओं का चित्रण मिलता है । गुप्तजी की रचनाएँ गांधी दर्शन से प्रभावित है ।
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उनकी रचनाओं में भारतवर्ष की तत्कालीन दुर्दशा का चित्रण होने के साथ-साथ देश के प्रति अनुराग भाव भी मिलता है:
हम कौन थे क्या हो गये और क्या होंगे अभी ?
आओ ! विचारे आज मिलकर ये समस्याएं सभी ।।
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”भारत भारती” इनका आर्यकालीन भारत के अतीत, वर्तमान और भविष्य का जीवन दस्तावेज है । कवि ने राष्ट्र के जन-जीवन को बड़े ही सजीवता के साथ चित्रित किया है ।
गुलाम भारत के दीन-दलित, असहाय लोगों की पीड़ा को स्वर देते हुए कवि ने लिखा है:
है एक ही चिथडा कमर में, और खप्पर हाथ में ।
नंगे तथा रोते हुए बालक विकल है साथ में ।
वह पेट उनका मिलकर हुआ क्या एक है ?
मानो निकलने को परस्पर हड्डियों में टेक है ।।
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नारीजनों की दुर्दशा हमसे सही नहीं जाती ।
लज्जा बचाने को अहो, जो वस्त्र भी नहीं पाती ।।
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इसी तरह यशोधरा में भारतीय नारी के त्याग व स्वाभिमानपूर्ण दशा का चित्रण किया है, तो ”विष्णुप्रिया” में चैतन्य गृहिणी की ऐसी गाथा है, जिसे जीवन में कुछ भी प्राप्त नहीं हो सका ।
अब तक लौटे नहीं प्रवासी, देखा करती है ।
ऊपर चढ़-चढ़ कर दूर-दूर तक दासी ।।
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नारियों की महान छवि पर ये दो पंक्तियां कितनी भावपूर्ण हैं:
अबला जीवन हाय । तेरी यही कहानी ।।
आंचल में है दूध, आंखो में है पानी ।।
प्रजा के प्रति राजा का व्यवहार कैसा होना चाहिए ? उसके क्या आदर्श और कर्तव्य होने चाहिए ?
साकेत में स्वयं राजा के मुंह से वे यही कहलवाते है:
निज हेतु बरसता नहीं, व्योम से पानी ।
हम हो समस्ती के लिए, व्यष्टि बलिदानी ।
निज रक्षा का अधिकार रहे, जन-जन को ।
सबकी सुविधा का भार, किन्तु शासन को ।।
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मैं आर्यो को आदर्श बताने आया हूं ।
जनसमुख धन को तुच्छ बताने आया हूइं ।।
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गुप्तजी ने ”पंचवटी” में प्राकृतिक सौन्दर्य का अत्यन्त सुन्दर चित्रण किया है:
चारु चन्द की चंचल किरणें, खेल रही हैं जल-थल में ।
स्वच्छ चांदनी बिछी हुई है, अवनि और अम्बर तल में ।।
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गुप्तजी ने “राम” के आदर्श चरित्र का सांस्कृतिक आदर्श रखा, वहीं उर्मिला और यशोधरा जैसी आर्य नारियों को प्रिय के पथ में विधन न बनकर उनकी मंगलकामना करते हुए आदर्श रूप में चित्रित किया । गुप्तजी की काव्यभाषा साहित्यिक भाषा खड़ी बोली हिन्दी है, जिसमें अलंकार व छन्दों का आवश्यकतानुसार प्रयोग हुआ है । शब्दशक्तियों एवं शब्दगुण का भी सुन्दर प्रयोग यथास्थान है । सभी रसों का प्रयोग भी सार्थक बन पड़ा है ।
3. उपसंहार:
इस प्रकार हिन्दी की सम्पूर्ण काव्यधारा का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि हिन्दी के अन्य कवियों की तुलना में उनकी कविताओं में राष्ट्रीयता का भाव कहीं अधिक मुखर है । गुलाबराय के शब्दों में: ”गुप्तजी की रचनाओं में राष्ट्रीयता और गांधीवाद की प्रधानता है ।”
शुक्लजी ने कहा है: ”गुप्तजी की रचनाओं में सत्याग्रह, अहिंसा, मनुष्यत्व और विश्वप्रेम की भावना विद्यमान है ।” डॉ॰ नन्ददुलारे बाजपेयी के शब्दों में: “राष्ट्र और युग की नवीन स्फूर्ति, नवीन जागृति और स्मृति चिन्ह हमें हिन्दी में सर्वप्रथम गुप्त काव्य में मिलते हैं ।” इस प्रकार गुप्तजी हिन्दी के राष्ट्रीय कवि एवं संस्कृतिक गौरव के आख्याकार हैं ।