मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम । “Biography of Lord Shree Ram” in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. उनका अलौकिक जीवन परिचय ।
3. उनके कार्य ।
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4. प्रजापालक राम ।
5. भक्तवत्सल राम ।
6. धर्मरक्षक राम ।
7. सीता के प्रिय राम ।
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8. आज्ञाकारी राम ।
9. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
हिन्दू धर्म और संस्कृति में राम हमारे महान् चारित्रिक आदर्श रहे हैं । मानव अवतार में वे एक सामान्य मानव की भांति लीलाएं करते हैं, तो अलौकिक अवतारी पुरुष के रूप में वे दिव्य शक्तियों के पुंज हैं । भारतीय जनमानस में उनकी मर्यादा पुरुषोतम, लोकनायक की छवि अपार श्रद्धा का कारण है ।
वे संसार में अन्याय और अत्याचार का विनाश करने के लिए तथा अपने भक्तों के कल्याण के निमित्त जन्म लेते हैं । वे सर्वशक्तिमान, सर्वान्तरयामी, परब्रह्मा हैं । सर्वगुणाधार हैं, क्षमा, दया, शूरता, नीति, सत्य, प्रजापालक, मातृ-पितृभक्त, मित्र तथा भक्तवत्सल हैं । उनका प्रत्येक कार्य पवित्र एवं अनुकरणीय हैं । उनका लीला चरित्र पढ़कर कोई भी उनकी भक्ति के सागर में निमग्न हुए बिना नहीं रह सकता ।
2. उनका अलौकिक जीवन परिचय:
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रामचन्द्रजी ईक्ष्वाकुवंशी क्षत्रिय परिवार में जन्मे थे । त्रेतायुग में जन्म लेने वाले राम सूर्यवंशी भी कहलाते हैं । अवतारी रूप में तो वे भगवान विष्णु के अवतार हैं । वे अयोध्या के राजा दशरथ के सबसे बड़े पुत्र हैं । राजा दशरथ की तीन रानियों-कौशल्या, कैकेयी, सुमित्रा में से कौशल्या के पुत्र भगवान श्रीरामजी थे ।
ऋषि वशिष्ठ ने उन्हें शिक्षा दी । उनके आश्रम में लक्ष्मण के साथ रहकर उन्होंने ताड़का और सुबाहु का वध किया । ऋषि विश्वामित्र के आश्रम में रहकर शस्त्र विद्या सीखी । राजा जनक के यहां आयोजित सीता स्वयंवर में शिव-धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाकर सीता को जीता ।
सीता से पाणिग्रहण किया । राज्याभिषेक के समय विमाता कैकेयी ने दासी मंथरा के कहने पर राजा के पद से उन्हें वंचित करवा दिया । विमाता कैकेयी ने राजा दशरथ से दो वर मांगे, जिसमें पहला, राम को चौदह वर्ष का वनवास और दूसरा भरत को राजगद्दी था ।
विमाता कैकेयी की आज्ञा का पालन करने हेतु श्रीराम सीताजी और लक्षणा सहित वन को चले गये, जहां वे वनों, पर्वतों तथा ऋषियों के आश्रम में भटकते रहे । पंचवटी में शूपर्णखा की विवाह याचना को अस्वीकार किया, किन्तु लक्ष्मण द्वारा शूपर्णखा के नाक-कान काटे जाने पर व्यथित बहिन की पुकार को सुनकर लंकापति रावण दौड़ा चला आया ।
प्रतिशोधस्वरूप रावण ने साधु वेश में आकर सीता का हरण किया । जटायु के साथ संघर्ष के बाद भी रावण आकाश मार्ग से सीताजी को हर ले गया । वहां अशोक वाटिका में सीता से विवाह का निवेदन किया । राम-लक्ष्मण सीताजी को खोजते हुए भटकते-भटकते जंगल पहुंचे । वहा सुग्रीव, अंगद, जाम्बवंत आदि से उनकी मित्रता हुई ।
पवनपुत्र हनुमान भी अशोक वाटिका में सीताजी को देख आये और उनसे मुद्रिका मांग लाये । हनुमानजी ने अशोक वाटिका को तहस-नहस कर लंका में आग लगा दी । रावण के छोटे भाई विभीषण तथा वानरों के सहयोग से रामचन्द्रजी ने रावण का वध किया ।
फिर लक्ष्मण, सीतासहित अयोध्यापुरी लौट आये । लोकनिन्दा की वजह से गर्भवती सीताजी को जंगल में छोड़ दिया । वाल्मीकि आश्रम में लव तथा कुश दो तेजस्वी पुत्रों को जन्म देकर सीताजी धरती की गोद में समा गयीं । कालान्तर में लव और कुश को राज्य सौंपकर रामजी ने स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया ।
3. उनके कार्य:
रामजी का चरित्र व उनके कार्य भारतीय हिन्दू समाज के लिए महान् आदर्श हैं । जन्म से लेकर स्वर्गारोहण तक उनके सारे कार्य सामान्य मनुष्य के रूप में होते हुए भी अलौकिक हैं, ईश्वरीय शक्ति से परिपूर्ण हैं । उनका जन्म ही संसार में अधर्म और अत्याचार के नाश के लिए हुआ है ।
पूर्वजन्म में अपने भक्तों को जो वचन उन्होंने दिये थे, उन्हीं वचनों का पालन वे त्रेतायुग में करते हैं । प्रजापालक, धर्मरक्षक, आज्ञाकारी, सीता के पति राम, भातृत्व प्रेमी राम, दीन-दुखियों के राम, अपने इन सभी रूपों में श्रेष्ठ कार्य करते हैं ।
4. प्रजापालक राम:
भगवान् श्रीराम प्रजा के सच्चे हितैषी हैं । तुलसीदासजी ने अपने रामचरितमानस में राम को प्रजा के सच्चे पालक के रूप में बताते हुए यह आदर्श स्थापित किया है कि राम के राज्य में प्रजा अत्यन्त सुखी थी । उन्हें चोर-डाकुओं आदि किसी का भय नहीं सताता था । प्रजा अत्यन्त निश्चिन्त थी, सम्पन्न थी । ऐसा रामराज्य स्थापित था कि चाहे व्यक्ति किसी भी कुल, जाति या वंश का हो, सबके साथ समानता का व्यवहार होता था ।
5. भक्तवत्सल राम:
राम अपने भक्त्तों पर कृपा करने वाले हैं । वे अपने भक्तों का उद्धार करने वाले, दयालु व करुणानिधान हैं । उनका नाम स्मरण करने मात्र से ही भक्तों को उनकी कृपा का प्रसाद मिल जाता है । वाल्मीकि के ‘मरा-मरा’ कहने पर शी उन्होंने उसे पापमय जीवन से मुक्ति दिलाकर उसका उद्धार कर दिया ।
शबरी नामक भीलनी के जूठे बेर खाकर वे उसे जन्म-जमान्तरों का सुख प्रदान कर जाते हैं, वहीं केवट, गुह, निषाद जैसे निम्न कुल में जन्मे अपने भक्तों को गले लगाकर उनके प्रति समानता और अपार वात्सल्य भाव प्रकट करते हैं । जटायु जैसे पक्षी को अपनी गोद में लिटाकर उसके स्वर्ग तक जाने का मार्ग प्रशस्त करते हैं ।
श्रापग्रस्त अहिल्या को पाषाण रूप से स्त्री रूप प्रदान करने वाले राम उसके जीवन को धन्य कर देते हैं, वहीं विभीषण तथा रावण दोनों को ही स्वर्ग का सुख देते हैं ।
6. धर्मरक्षक राम:
भगवान् श्रीराम का अवतरण इस पृथ्वी पर धर्म के रक्षार्थ हुआ है । राम आश्रमों में राक्षसों के उत्पात से पीड़ित ऋषि-मुनियों की रक्षा करते हैं । माता तथा पिता की आज्ञा का पालन करना राम के जीवन का परम धर्म है ।
अत: नि:संकोच वनवास चले जाते हैं । पत्नी धर्म की रक्षा, प्रजा के प्रति धर्म की रक्षा, मित्रधर्म का पालन, एक भक्त के प्रति ईश्वरीय धर्म का पालन राम के श्रेष्ठ चारित्रिक आदर्श हैं ।
7. सीता के प्रिय राम:
राम सीताजी को जितने अधिक प्रिय हैं, उतने ही उनकी प्राणप्रिया सीताजी हैं । स्वयंवर में सीताजी को वे अपने शौर्य के बल पर विजित कर लाते हैं । एक पति के रूप में अयोध्या में सर्वस्व सुख प्रदान करते हैं । वनवास के समय सीताजी की प्रत्येक इच्छा की पूर्ति राम का परम ध्येय हे । सीता का हरण होने पर वे इतने आकुल-व्याकुल हो उठते हैं, मानो सीता के बिना यह संसार उनके लिए कोई मायने नहीं रखता ।
सीताजी की खोज में पशु-पक्षियों से पता पूछते, कराण विलाप करते राम उनकी मुक्ति के लिए यथासम्भव प्रयास करते हैं । उनके द्वारा की गयी शक्तिपूजा सीताजी के लिए ही तो है । लोकनिन्दा के भय से सीताजी की अग्नि परीक्षा लेकर भी उनका त्याग उनकी विवशता है । सीताजी के पृथ्वी में समा जाने पर वे संसार से विरत होकर स्वर्ग चले जाते हैं ।
8. आज्ञाकारी राम:
राम क्षत्रिय कुल में जन्मे हैं । अत: उनमें क्षत्रियोचित वीरता, साहस तथा शौर्य है । चाहे राक्षसों का विनाश हो, बालि का वध हो, लंकापति रावण से किया हुआ युद्ध हो, राम का शौर्य सर्वत्र व्याप्त है ।
9. उपसंहार:
त्रेतायुग में जन्म लेने वाले राम हिन्दुओं के धार्मिक आदर्श हैं, उनके आराध्य हैं । लोकोपकारी, प्रजारक्षक, धर्मरक्षक राम, एक आदर्श पुत्र हैं, भ्राता हैं, मित्र हैं । उनका प्रादुर्भाव सामान्य मानव की तरह होकर भी अलौकिक व दिव्य शक्ति सम्पन्न है ।
वे सर्वशक्तिमान, आदि, अनन्त, सर्वव्यापी हैं, उनकी सत्ता निरन्तर है । वे कालजयी, विश्वविजयी, नीतिवान, युगपुरुष हैं । अहंकार से विहीन ऐसे विनयी पुरुष हैं, जो अकारण अपने क्रोध को प्रकट नहीं करते । समस्त सृष्टि में उनका ही स्वरूप व्याप्त है । वे मात्र उपदेशक नहीं हैं, उनका कार्य और व्यवहार उनके श्रेष्ठ चारित्रिक गुणों का आदर्श है ।