बालक ध्रुव । “Biography of Dhruv” in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. भक्त बालक ध्रुव ।
3. ईश्वर का वरदान ।
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4. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
हमारे देश में धार्मिक, सामाजिक एवं ऐतिहासिक कथाओं में ऐसे महान् बालकों के उदाहरण मिलते हैं, जिन्होंने अपनी मातृभक्ति, गुरुभक्ति तथा ईश्वर भक्ति से समस्त देश को चमत्कृत कर रखा था । आरूणि, उपमन्यु, एकलव्य, श्रवण कुमार के साथ नाम आता है: भक्त बालक ध्रुव का ।
2. भक्त बालक ध्रुव:
बालक ध्रुव उत्तानपाद राजा का पुत्र था । महाराजा उत्तानपाद की दो रानियां थीं । एक का नाम था सुनीति और दूसरी का नाम था सुरुचि । राजा छोटी रानी सुरुचि को बहुत अधिक प्यार करते थे । सुरुचि का एक पुत्र था, जिसका नाम उत्तम था । बड़ी रानी सुनीति का भी एक पुत्र था, जिसका नाम ध्रुव था ।
एक समय की बात है । महाराजा उत्तानपाद अपनी छोटी रानी के बेटे उत्तम को गोद में लेकर प्यार कर रहे थे । ऐसे में बालक ध्रुव भी अपने पिता की गोद में बैठने के लिए मचलने लगा । बालक ध्रुव जैसे ही पिता की गोद में बैठने को उद्यत हुआ, छोटी रानी सुरुचि ने उसे धक्का दे दिया । बालक ध्रुव इस अपमान से बहुत दुखी हो गया था । वह माता सुनीति के पास जाकर रोने लगा ।
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सुनीति ने उसे समझाया: ”बेटे ! इस तरह दुखी नहीं होते । यदि तुम्हें इससे भी बड़ा आसन चाहिए, तो तुम एकनिष्ठ भाव से उस सर्वशक्तिमान ईश्वर की भक्ति करो । यदि तुम एकाग्रमन से ईश्वर की आराधना करोगे, तो ईश्वर तुम्हारे सारे दु:ख दूर कर देंगे ।
अत: तुम नारायण भगवान् की स्तुति करो ।” अपनी माता के इन वचनों को सुनकर बालक ध्रुव ”नारायण” भगवान् की कृपा प्राप्त करने, वन की ओर निकल पडा । मार्ग में उसे देवर्षि नारद मिले । नारदजी ने बालक ध्रुव को समझाया: ”तुम्हारे लिए यह तप बड़ा ही कठिन होगा ।”
बालक ध्रुव को लाख भय और प्रलोभन दिखाने पर भी उसकी अविचल भक्ति के दृढ़ संकल्प को देखकर नारद ने उसे ”ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:” मन्त्र की दीक्षा दी । वह नारदजी के मन्त्र का अखण्ड जाप करने लगा । पहले महीने में फलाहार, फिर फलाहार छोड़कर कुछ बेर इत्यादि खाये ।
कुछ महीनों बाद वृक्ष के टूटे पत्ते खाये । फिर सूखी घास खायी । तीन माह नौ दिन की इस साधना के बाद केवल जल पर निर्वाह किया । फिर जल का त्याग कर वायु का सेवन किया । पांचवे माह में एक पैर पर खड़े रहकर तपस्या में रमा रहा । अब उसने तीन लोकों के, तीन तत्त्वों के आधार पर भगवान् को अपने हृदय में ध्यानस्थ कर लिया ।
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उसके श्वास लेना बन्द कर देने के कारण तीनों लोकों के प्राणियों ने श्वास लेना जैसे त्याग दिया । उसके श्वास-त्याग पर तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मच गयी । प्रतीत हुआ जैसे संसार की सब श्वासें रुक गयीं ।
3. ईश्वर का वरदान:
बालक ध्रुव की ऐसी अविचल, अनन्य भाव से भरी हुई भक्ति को देखकर नारायण भगवान गरूड़ पर सवार होकर बालक ध्रुव के सामने आये । बालक ध्रुव नारायण भगवान को अपने सामने साक्षात् देखकर आनन्द विभोर हो गया । भगवान् नारायण का स्पर्श पाते ही उसके हृदय में तत्त्वज्ञान का प्रकाश हो गया ।
वह सम्पूर्ण विद्याओं में जैसे प्रवीण हो गया । भगवान् नारायण ने कहा: “मैं तुम्हारे हृदय की बात जान गया हूं । मैं तुम्हें वह पद व स्थान देना चाहता हूं जो कि दूसरों के लिए दुर्लभ है । सभी ग्रह-नक्षत्र तारे उसकी प्रदक्षिणा करेंगे । तुम पृथ्वी पर दीर्घकाल तक शासन करने के बाद ब्रह्माण्ड के केन्द्र में रहोगे ।”
इधर ध्रुव के वन जाने पर राजा उत्तानपाद काफी दुखी थे । वे ध्रुव की माता सुनीति के साथ सम्मानजनक व्यवहार करने लगे । ध्रुव के साथ हुए दुर्व्यवहार पर वे लज्जित थे । जैसे ही उन्हें ध्रुव के लौटने का समाचार मिला, तो वे अपने प्रतिनिधियों, हाथी, घोड़ों एवं रानियों सहित उन्हें ससम्मान लेने के लिए निकल पड़े ।
उन्हें जैसे ही बालक ध्रुव आता हुआ दिखाई पड़ा, वे प्रणाम कर भूमि पर लेट गये और बालक ध्रुव को गले से लगा लिया । ध्रुव कि विमाता सुरुचि ने ध्रुव को प्रणाम किया । उसने उसे गोद में उठा लिया । वह सुनीति तथा ध्रुव के इस पुण्य कार्य कि प्रशंसा करने लगी । इधर कुछ दिनों बाद महाराज ने वैराग्य धारण किया और ध्रुव का राज्याभिषेक कर दिया । उसके पश्चात वे तपोवन चले गये ।
4. उपसंहार:
ध्रुव से सांसारिक भोगों से निवृत होकर केवल ईश्वर के ध्यान में अपना समय व्यतीत किया । प्रजा को सुखी और सम्पन्न रखने का अपना कर्तव्य पूर्ण किया । जब उन्होंने संसार त्यागने की इच्छा की, तो दिव्य विमान में भगवान के प्रतिनिधि उन्हें लेने आये ।
ध्रुव ने अपनी माता का स्मरण किया । उनकी कृपा से सभी को स्वर्गलोक का सुख प्राप्त हुआ । इस तरह ध्रुव विराजे ध्रुव तारे में । ब्रह्माण्ड में चमकता हुआ ध्रुव तारा, वही उनका ज्योतिर्मय ध्यान है । ध्रुव समस्त संसार में अविचल, अटल, दृढ़ भक्ति के पर्याय माने जाते हैं ।