देवर्षि नारद । “Biography of Devarshi Narada” in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. उनका अलौकिक जीवन ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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देवर्षि नारद वेदों उपनिषदों के मर्मज्ञ, देवगणों से पूजित, पुरान के विशेषज्ञ, धर्म के तत्त्वज्ञ, वाक्शक्ति में प्रवीण, नीतिज्ञ, मेधावी, न्यायशील, सारे ब्रह्माण्ड में अपने योगबल से सब कुछ जानने में चतुर, कर्तव्य और अकर्तव्य का ध्यान रखने वाले शास्त्र प्रवीण, संगीत विशारद, विद्या और गुणों के भण्डार हैं ।
2. उनका अलौकिक जीवन:
सम्पूर्ण सृष्टि में देवर्षि नारद अत्यन्त पूजित हैं । भगवान् के यथार्थ तत्त्व को जानने वाले, उनके महान् प्रेमी भक्त, परमज्ञानी महर्षि नारदजी हैं । भगवान की नित्य महिमा का गान करना उनका धर्म रहा है । नारद कई हुए हैं, परन्तु ये देवर्षि नारद एक ही हैं ।
उन्हें भगवान् का मन कहा गया है । वे परमतत्त्वज्ञ, ऊर्ध्वरेता ब्रह्मचारी हैं । भक्ति के प्रधान आचार्य हैं । संसार पर उनका उपकार इसीलिए है; क्योंकि उन्होंने प्रहलाद, ध्रुव, अम्बरीष, वाल्मीकि आदि को भक्ति मार्ग की ओर प्रेरित किया । शुकदेव जैसे महान् ज्ञानी को उपदेश दिया ।
वाल्मीकि नारायण तथा भीमद्भागवत उन्हीं की प्रेरणा के स्वरूप रचा गया । वे पूर्व जन्म में दासी पुत्र थे । उनकी माता महर्षियों के जूठे बर्तन मांजा करती थी । पांच वर्ष की अवस्था में माता की अकस्मात् मृत्यु होने के बाद वे सब प्रकार के सांसारिक बन्धनों से मुक्त होकर जंगल की ओर निकल पड़े और एक वृक्ष के नीचे भगवान् के स्वरूप का ध्यान करने लगे ।
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ध्यान करते-करते उनकी वृत्तियां एकाग्र हो गयीं और हृदय में भगवान प्रकट हो गये, परन्तु थोड़ी ही देर में अपने मनमोहक रूप की छवि दिखाकर वे अन्तर्धान हो गये । अन्तर्ध्यान होते हो वे बहुत छटपटाये और अपने मन को स्थिर कर भगवान् के स्वरूप का ध्यान करने लगे । इतने में आकाशवाणी हुई: ”हे दासी पुत्र ! इस जन्म में फिर तुम्हें मेरा दर्शन नहीं होगा ।
तुम इस शरीर को त्यागकर मेरे पार्षद रूप में मुझे पुन: प्राप्त करोगे ।” भगवान् की इस वाणी को सुनकर वे मृत्यु की बाट जोहते हुए निसंग होकर पृथ्वी पर विचरने लगे । समय पाकर उन्होंने अपने भौतिक शरीर का त्याग कर दिया । कल्प के अन्त में दिव्य रूप धारण कर ब्रह्माजी के मानस पुत्र के रूप में अवतरित हुए । तब से वे अखण्ड ब्रह्मचर्य व्रत को धारण कर वीणा बजाते हुए भगवान् के गुण गाते रहते हैं ।
3. उपसंहार:
देवर्षि नारद सबके हितकारी हैं । सर्वत्र विद्यमान रहते हैं । वेद, पुराण, उपनिषद आदि ग्रंथ उनकी पवित्र लीलाओं से भरे हुए हैं । यद्यपि जब वो इधर की बात उधर करते हैं और उधर की बात इधर करते हैं, तो संसार के अज्ञानी प्राणी उन्हें एक सामान्य चुगलखोर व्यक्ति की तरह समझने का भ्रम पालते हैं, लेकिन ज्ञानी पुरुष उनके इस कार्य में भी समस्त प्राणियों के कल्याण का रहस्य समझ जाते हैं । वे देवताओं के सच्चे कार्य साधक हैं ।