गुरुभक्त आरूणि । “Biography of Aruni” in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. गुरु की परीक्षा ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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हमारी भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य की महान परम्परा रही है । गुरुओं का अपने शिष्य के प्रति प्रेमभाव और शिष्यों का अपने गुरुओं के प्रति अगाध श्रद्धाभाव महान् परम्परा है । शिष्य के अज्ञान व अन्धकार को दूर कर उसे परीक्षा रूपी कसौटी पर कसकर गुरु उन्हें कुन्दन बनाते हैं ।
2. गुरु की परीक्षा:
आयोद धौम्य का शिष्य था-आरूणि । ऋषि धौग्य अपने शिष्यों की धैर्य, संयम तथा परिश्रम की परीक्षा इसीलिए लिया करते थे, ताकि वे जीवन की परीक्षा में असफल न हों । एक दिन बहुत मूसलाधार वर्षा हो रही थी । इतनी अधिक वर्षा में खेत की मेड बांधने की जरूरत आन पड़ी थी, ताकि वर्षा का पानी खेत की मेड से बाहर न निकलने पाये ।
गुरु का आदेश पाते ही आरूणि भरी वर्षा में ही खेत की ओर निकल पड़ा । उसने देखा कि खेत में पानी बहुत भरा हुआ है । पानी का तेज बहाव अब खेत की मेड को तोड़ने लगा था । आरूणि ने फावड़े से मिट्टी एकत्र कर मेड को बांधना चाहा । पानी का बहाव इतना अधिक था कि मिट्टी रुक नहीं पा रही थी ।
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अब गुरु की आइघ का पालन तो करना ही था । उसे कोई उपाय नहीं छा रहा था । उसने कटी हुई ग्रेड को देखा । फिर कुछ सोचकर उस स्थान पर आड़ा लेट गया । उसके लेटते ही वहां से पानी बहना रुक
गया । वर्षा भी मन्द पड़ने लगी थी । आरूणि सोचने लगा-यदि वह वहा से उठ जाता है, तो सारा पानी निकल जायेगा ।
अत: तह वहीं पर चुपचाप लेटा रहा । पड़े-पड़े सूर्यास्त हो चला था । रात घिरने लगी थी । गुरु ने सच्चा वन्दन के समय सभी शिष्यो को आवाज दी । आरूणि कहा नहीं था । गुरुजी ने सबसे पूछा, तो उन्हें ज्ञात हुआ कि उन्होंने तो आरूणि को खेत की ग्रेड बांधने के लिए भेजा है ।
गरु ने सोचा कि प्रातःकाल से आरूणि तो वहीं खेत पर है । जाकर देखा जाये, बात क्या है । वह अब तक: क्यों नहीं लौटा ? अपने शिष्यों के साथ प्रकाश का प्रबन्ध कर वे खेत की ओर चल दिये । उन्होंने आरूणि को इधर-उधर ढूंढते हुए आवाज दी: “बेटा आरूणि, कहां हो तुम ? हम तुम्हें ढूंढ रहे हैं ।” आरूणि ने वहीं लेटे-लेटे गुरु को आवाज दी: ”गुरुजी । मैं यहां मेड़ पर पड़ा हूं ।”
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आवाज की दिशा में गुरु ने शिष्यों सहित जाकर देखा, तो पाया कि कटी हुई मेड पर पानी के प्रवाह को रोके हुए आरूणि वहां लेटा हुआ है । इतने समय तक वहां लेटे आरूणि को देखकर गुरा उसकी आज्ञाकारिता को देखकर गद्गद् हो गये । गुरु ने आरूणि से कहा: ”तुम इतनी देर तक, वह भी इतनी वर्षा में मेड पर पड़े हो ?”
आरूणि ने उत्तर में कहा: गुरु देव मैं तो बस आपकी आज्ञा का पालन कर रहा था । इस हेतु मुझे यही उपाय सूझा ।” आरूणि के ऐसा कहते ही गुरु ने उसे अपने गले से लगा लिया और उसे आशीर्वाद देते हुए कहा: ”तुम्हारे जैसे शिष्य को पाकर भला कौन-सा गुरु ऐसा होगा, जो प्रसन्न नहीं होगा । तुम यशस्वी बनो । संसार में आज से तुम आरूणि उद्दालक के नाम से जाने जाओगे ।”
3. उपसंहार:
जितने भी महान शिष्य हुए हैं, उतने ही महान् उनके गुरु भी हुए हैं । आयोद धौम्य ऋषि होने के साथ-साथ महान् गुरु भी थे । उनकी गुरु-शिष्य परम्परा में उपमत्यु के साथ-साथ आरूणि जैसे शिष्य का नाम अमर रहेगा ।