हाथी की आत्मकथा । “Autobiography of a Elephant” in Hindi Language!
मैं हाथी हूं । संसार के विशालकाय प्राणियों में से एक हूं । ईश्वर ने मुझे जैसा विशाल शरीर प्रदान किया है, वैसा ही विशाल मन और सहनशक्ति भी दी है । मैं अपनी राह चलता हूं । मेरा स्वभाव ही है, अपने में ही मस्त रहना । मुझ पर कहावत भी बनी है: “हाथी चला बाजार, कुत्ते भौंके हजार” ।
बेवजह किसी को परेशान करना मेरे स्वभाव में ही नहीं है । मेरी प्रकृति ही कुछ ऐसी है कि मैं किसी के प्रति कटुता या द्वेषभाव नहीं रखता । मैंने अपने विशाल, बलशाली शरीर पर कभी घमण्ड नहीं किया । हिंसा, प्रतिहिंसा, प्रतिशोध आक्रामकता मेरा स्वभाव नहीं है ।
पूरे संसार में मेरी कई प्रजातियां पाई जाती हैं । मेरी सारी प्रजातियां शारीरिक संरचना की दृष्टि से काफी विविधता लिये हुए हैं । पृथ्वी का इतना विशालकाय जीव होते हुए भी मैं शाकाहारी हूं । पेड़ों की पत्तियां, फल इत्यादि मेरा प्रिय भोजन है । मेरी सूंड मेरे बड़े काम आती है । अपनी इस सूंड से ही मैं पानी पीता हूं । मेरे मुख के भीतर के दांत भोजन चबाते हैं । बाहर के दांत मात्र दिखावे के लिए हैं ।
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इन दांतों का उपयोग मानव अपने लिए अनेक कार्यो में करता है । यह उनके लिए बहुमूल्य हैं । मेरे इन कीमती दांतों को पाने के लिए कुछ दुष्ट प्रवृत्ति के व्यक्ति मेरा वध तक कर डालते हैं । हालांकि मानव समुदाय को मैं अपना मित्र ही मानता चला आया हूं ।
मेरे दांतों को पाने के लिए वह मुझ पर अत्याचार करने से भी नहीं चुकता । मेरा उपयोग मनुष्य कई रूपों में करता है । भार ढोने, सामान लाने-ले जाने से लेकर अन्य बहुत-से कामों में । मुझे मनुष्यों के काम आना बहुत अच्छा लगता है । हिन्दू घरों में मेरा बड़ा ही धार्मिक महत्त्व है । कहा जाता है कि पार्वती और शंकर के पुत्र गणेशजी को मेरे ही किसी पूर्वज का शीश लगाया गया था ।
उस रूप में भी हिन्दू धर्म के अनुयायी बड़ी ही निष्ठा से गणेशजी का पूजन करते हैं । मैं हमेशा से झुण्ड में रहना पसन्द करता हूं । सामूहिकता मेरा स्वभाव है । हम झुण्ड में रहते हुए एक-दूसरे का बहुत ख्याल रखते हैं ।
हाथी समुदाय में बुजुर्गो को विशेष सम्मान दिया जाता रहा है । हमारी स्मरणशक्ति गजब की होती है । मानव की तरह ही हम सुख-दु:ख की अनुभूति करते हैं । वर्षो पुरानी बातों को हम भूलते नहीं हैं । प्रकृति ने हमें लम्बा जीवन दिया है ।
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हम स्वस्थ रहकर शान्ति से जीना पसन्द करते हैं । इस संसार में रहने वाले अन्य जीव-जन्तुओं की तरह हम भी शान्तिप्रिय प्राणी हैं । हमारे झुण्ड के सभी साथी बड़े ही दयालु स्वभाव के होते हैं । बचपन में एक बार मैं अपने झुण्ड से बिछड़ गया था ।
मेरे साथियों ने मुझे ढूंढ लिया और अपने साथ ले गये । तब से लेकर आज तक मैं उनके साथ हूं । घूम रहा हूं । मजे का जीवन जी रहा हूं ! घूमना और शान्ति के साथ रहना मेरा ही नहीं, हम सभी का स्वभाव
है । मैं एक हाथी हूं इस बात का मुझे गर्व है ।