वृक्ष की आत्मकथा । Autobiography of a Tree in Hindi Language!
मैं एक वृक्ष हूं । रूप, रंग, रस से भरा हुआ प्रकृति का अनुपम वरदान । समस्त प्राणी समुदाय का जीवनाधार । इस सृष्टि में जहां तक नजर दौड़ाओ मेरा अस्तित्व हर जगह मिलेगा । मेरी सत्ता का विस्तार अनगिनत रूप और सौन्दर्य के साथ सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त है ।
प्रकृति का हरा-भरा सौन्दर्य मुझसे ही तो है । मेरी पतली-मोटी टहनियों परपक्षियों का बसेरा है । सूरज की पहली किरण के साथ पक्षियों का झुण्ड अपनी चहचहाहट के साथ समस्त प्रकृति में मधुरता का संचार करता हुआ, जागरण का सन्देश सुनाता है ।
सूरज की सुनहरी किरणों से चमकती मेरी हरी-भरी पत्तियां इठलाकर हवा के साथ झूमती हैं, नाचती है, लहराती हैं और ताजगी से भरी हुई शुद्ध हवा को सभी के फेफड़ों में भर देती हैं । पक्षियों का रैन-बसेरा मेरी टहनियों पर विभिन्न प्रकार के घोंसलों में तथा कोटरों में होता है, तो ऐसा प्रतीत होता है कि वे अपनी मधुर वाणी से मुझे जीवन प्रदान कर रहे हों ।
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मेरी टहनियों पर चौड़ी-पतली, छोटी-बड़ी विभिन्न रूपाकृति की पत्तियां अपने सघन घेरों में मनुष्यों और पशुओं को शीतल छाया प्रदान करती हैं । मिट्टी में एक बीज से पौधे के रूप में अंकुरित मेरा अस्तित्व जब रूपाकार होने लगता है, तो मैं आकाश की ऊंचाई को छूना चाहता हूं । आकाश की ओर बढ़ता हुआ मेरा कद अपने हर रूपों में सबके लिए हितकारी होता है ।
सघन वनों की अरण्यस्थली में जंगली जानवर मेरी आश्रयस्थली में संरक्षण पाते हैं । कई जानवरों को तो पत्तियों, फूलों के रूप में मुझसे ही भोजन प्राप्त होता है । मेरी देह लाल, पीले, नीले, बैंगनी, सफेद, रंग-बिरंगे फूलों से सुशोभित होती है, तो सारा संसार भी सौन्दर्य के सागर में डूब जाता है ।
संसार का रंग-बिरंगा सौन्दर्य मेरे ही अस्तित्व से शोभायमान होता है । रूप, रस, रंग से भरे हुए मेरे फूलों पर रंग-बिरंगी तितलियां, भौंरे मीठे-मीठे पराग का रसपान करते हुए मेरी वंशवृद्धि करते हैं, तो मधुमक्खियां मीठे-मीठे शहद को अपने छत्तों में भरकर उसकी मिठास का रसपान समस्त मानवमात्र को कराती हैं ।
जब वसंत आती है, तो वसंत दूतिका कोयल अपनी कुहू-कुहू से डालियों को मधुरता से भर देती है, तो वहीं लदी डालियां प्रकृति के समस्त वातावरण में मादकता का संचार करती हैं । मेरे ताजे-ताजे रंग-बिरंगे फूल देवताओं के शीश पर चढ़ाये जाते हैं, तो कहीं सुन्दरियां अपने केशों को इन फूलों से सजा-संवारकर अपने सौन्दर्य के आकर्षण से सभी को आकर्षित करती हैं ।
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फूलों के रूप में मेरा उपयोग बहुआयामी है । मेरे ताजे-ताजे फल समस्त प्राणी समुदाय को जीवन प्रदान करते हैं । खट्टे-मीठे अनूठे स्वाद से भरे मेरे फलों को खाकर सभी सन्तुष्टि पाते हैं और मेरे गुणों का बखान करते हुए नहीं अघाते हैं । यह अलग बात है कि फलों को पाने के लिए वे मुझ पर, मेरी ही टहनियों पर पत्थरों का प्रहार करते हैं । मेरा शरीर कई बार इस क्रिया की वजह से लहूलुहान हो उठता है ।
लोग अपने घरों को सजाने के लिए बेशकीमती फर्नीचर के रूप में मेरे शरीर को काटते हैं, छिलते हैं । कई बार पूरी तरह से मेरे अस्तित्व को ही नष्ट कर डालते हैं । कुछ स्वार्थी मानव बड़ी निर्दयता से मुझे चोट पहुंचाते हैं । यह सोचकर मैं बहुत ही दुखी हो जाता हूं कि अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए मानव-जाति मेरा ही सर्वनाश करने पर तुली है ।
मेरा मूल्य एवं महत्त्व जानते हुए भी स्वार्थी मानव क्यों मेरे अस्तित्व को नष्ट करने पर उतारू है । मेरे अस्तित्व को नष्ट करने से ही तो समस्त पर्यावरण असन्तुलित हो रहा है । जो बादल मेरे कारण रूप धरकर समस्त प्रकृति की प्यास बुझाते आये हैं, अब उनका अस्तित्व भी संकट में पड़ गया है ।
मेरा जन्म तो समस्त प्राणिमात्र की सेवा के लिए ही हुआ है । पत्तों, फूलों, फलों, टहनियों, छालों के रूपों में मेरी उपयोगिता विभिन्न प्रकार की ओषधियों के रूप में मानव समाज को जीवनदान ही देती आयी है । सृष्टि के प्रारम्भ से लेकर आज तक मानव सभ्यता के विकास के इस दौर में मेरी अभिन्न भूमिका रही है । समस्त प्राणिमात्र से मेरा नाता अदूट रहा है ।
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आदिम सभ्यता में भी मैं मनुष्य का जीवनसाथी रहा हूं और आज भी हूं । शिक्षा और संस्कृति का केन्द्र बना मैं, साधु-संन्यासियों की साधनास्थली भी रहा हूं । पेड़ जब ठूठ बन जाता है, तब भी मेरी सार्थकता बनी रहती है ।
रूप-रंग, रस-गन्ध से विहीन वह जीवन तो मरणतुल्य ही होता है । मुझे दुःख होता है कि समस्त प्राणियों को प्राणवायु प्रदान करने वाला, जीवनदान देने वाला मैं कब तक इतनी निर्ममता से काटा जाता रहूंगा, उखाड़ा जाता रहूंगा ?
सीमेंट, ईट, कंकरीटों का संसार बढ़ी हुई जनसंख्या के साथ हमारे अस्तित्व को ऐसे ही नष्ट करता रहा, तो वह दिन दूर नहीं, जब सम्पूर्ण सृष्टि के जीवित रहने का, उसकी सुरक्षा का खतरा बढ़ जायेगा । मुझे काटो नहीं, लगाओ । उखाड़ो नहीं, पनपाओ; क्योंकि मैं हूं प्राणिमात्र का जीवनाधार । मुझसे ही जीवित रहेगा यह संसार । मैं नहीं, तो जीवन नहीं ।