चन्द्रमा की आत्मकथा । “Autobiography of a Moon” in Hindi Language!
इस पृथ्वी पर रहने वाला ऐसा कौन-सा मनुष्य है, जो मेरी निर्मलता, सुन्दरता, शीतलता को देखकर मुग्ध नहीं हुआ हो । मैं नंगी आखों से दिखायी देने वाला पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह हूं । हिमांशु, सुधांशु, राकेश, विधु रजनीपति, मयंक न जाने मेरे कितने नाम हैं ।
प्रात: काल सूर्य अपनी सुनहरी किरणों के माध्यम से उजाला भरकर समस्त संसार को अपनी ऊर्जा और प्रकाश से जगमगा देता है, फिर अपनी प्रखर किरणों से ताप की ऐसी वर्षा करता है कि प्राणिमात्र उस ताप से राहत पाने हेतु मेरी शरण चाहता है ।
रात्रि को मेरे शीतलता भरे प्रकाश को पाकर धरती के सभी प्राणी अपना जीवन धन्य समझने लगते हैं और मेरे प्रति अपनी कृतज्ञता भी व्यक्त करते हैं । कई धर्मानुयायी तो मुझे देवता की संज्ञा देकर मेरी पूजा व आराधना भी करते हैं ।
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मेरा मुख देखकर अन्न-जल ग्रहण करते हैं । मैं एक ग्रह के रूप में सभी की आस्था एवं आकर्षण का केन्द्र रहा हूं । कल्पनालोक में खोये रहने वाले कवियों ने तो सुन्दरियों के मुखमण्डल की तुलना मुझसे करते हुए, उन्हें चन्द्रवदनी, चन्द्रमुखी की उपमा तक दे डाली ।
मुझे दूर से देखकर रोमांचित होने वाला मानव मेरे प्रति इतना अधिक आकर्षित हुआ कि उसने मुझ तक पहुंचने में सफलता भी प्राप्त की । मुझे अच्छा लगा, जब सृष्टि के सर्वाधिक शक्तिसम्पन्न मानव ने मुझ पर कदम रखा ।
पृथ्वी की तुलना में यद्यपि जीव-जन्तुओं को जीवन देने योग्य मेरी दक्षता नहीं है, तथापि पृथ्वीवासियों के लिए मैं विशिष्ट अर्थ रखता हूं । मेरे पास पृथ्वी जैसा वायुमण्डल नहीं है; क्योंकि मेरे गुरुत्वाकर्षण में ऐसा बल नहीं है, मुझमें कोई ध्वनि नहीं है, वहां न तो सक्वा होती है न ही कोई गोधूलि बेला ।
मेरा तापमान दिन में अधिक और रात्रि में कम होता है । मेरी गुरुत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी के गुरात्व बल के छठे भाग के बराबर है । अपने प्रकाश से पृथ्वी को प्रकाशित करने वाला मैं चन्द्रमा बड़े गर्व की अनुभूति करता हूं । मेरे प्रकाश को पृथ्वी तक पहुंचने में 1.3 सैकण्ड का समय लगता है ।
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सूर्य की तुलना में पृथ्वी के निकट होने के कारण ज्वार का प्रभाव पृथ्वी पर अधिक होता है । मेरी उल्लेखनीय विशेषताओं में मुझ पर पाये जाने वाले बड़े-बड़े गड्ढे हैं । पृथ्वी पर पायी जाने वाली ज्वालामुखी चट्टानों की तरह मेरी सतह पर बेसाल्टी लगता है ।
इनमें टिटेनियम की मात्रा अधिक है । मैं दूर से बड़ा ही सफेद और सुन्दर दिखता हूं । यह मेरी भौतिक संरचना का प्रभाव है । मैं अपनी गतियों के कारण अपना रूप बदलता हूं । पूर्णमासी को अपने पूर्ण रूपाकार के साथ समस्त संसार को मोहित करता हूं ।
वहीं अमावस्या की काली रात्रि में अपने अस्तित्व की महत्ता को लोगों तक पहुंचाता हूं । मेरे रूप आकर्षण से आकर्षित मानव अब मुझ पर भी अपनी बस्ती बसाना चाहता है । यदि ऐसा सम्भव है, तो मैं अपने आपको धन्य ही समझूंगा ।
7 जुलाई, 1969 में अपोलो ने मेरी धरती पर दो मनुष्यों को उतारकर एक नया अध्याय खोला । पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मुझ तक मानव का पहुंचना असम्भव-सा लगता था । इसके बाद मुझ पर मानवरहित अन्तरिक्ष वाहन ‘लूना’ को भेजा गया । आठ पहियों वाली इस गाड़ी ने मुझ पर चलकर मुझे जानने की कोशिश की थी ।