कुत्ते की आत्मकथा । “Autobiography of a Dog” in Hindi Language!
मैं इस धरती का ऐसा जीव हूं जो समस्त दुनिया में विभिन्न प्रजातियों में पाया जाता है । इस धरती के सर्वाधिक वफादार प्राणियों में से मैं एक हूं । जब भी कर्तव्यनिष्ठा, सजगता, ईमानदारी व स्वामीभक्ति की मिसाल दी जाती है, तब मुझे ने ही याद किया जाता है ।
इस बात का मुझे बड़ा गर्व है । मैं एक ऐसा पालतू जानवर हूं, जिसे लोग अपने घरों में रखना पसंद करते हैं । अपने घर की सुरक्षा का समस्त भार मुझ पर डालकर वे बड़ी निश्चिन्तता के साथ अपने काम पर निकल जाते हैं; क्योंकि मैं हमेशा चौकन्ना रहता हूं ।
जरा-सी आहट पाकर मेरे कान खड़े हो जाते हैं । मेरे इस रूप को देखकर बुरी व नीच प्रवृत्ति रखने वाले भाग खड़े होते हैं । वैसे मैं लोगों की शक्ल तथा व्यवहार देखकर उनकी सज्जनता का गुणा-भाग कर लेता हूं । मेरी घ्राणशक्ति इतनी तेज होती है कि मैं एक बार में उनकी गन्ध को स्मरण रखकर किसी को भी पहचान जाता हूं ।
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मेरी महत्ता व विशेषताएं जानकर ही पुलिस विभाग हमें अपने साथ रखता है । चोरों से लेकर नशीली वस्तुओं का कारोबार करने वालों की धर-पकड़ में मेरा ही सहयोग लेता है । जो काम मनुष्य के बस के बाहर रकख्सा होता। है, वह मैं कर लेता हूं ।
मैं अपने मालिक के प्रति हमेशा वफादार एक बार जिसने मुझे खिला दिया, उसके प्रति वृातइाता ज्ञापित करना मैं नहीं भूलता हूं । पूंछ हिलाना इसी का रूप है । मैं हमेशा अपने मालिक का आज्ञाकारी सेवक बना रहना चाहता हूं ।
अत: जो मिले, जैसा मिले, उसी को खाकर सन्तुष्ट रहता हूं । कुछ मालिक मुझे सम्मानपूर्वक अच्छा भोजन देते हैं, तो कुछ असम्मानजनक व्यवहार के साथ । मैं इसे भी अपने मालिक की आइघ मानकर स्वीकार कर लेता हूं ।
विदेशों में मुझे बेहद प्यार और सम्मान के साथ देखा जाता है । वहां के मालिक मेरी प्रत्येक सुख-सुविधा का ख्याल रखते हैं । मैं भी विदेशों में खेतों, पशुपालन, घर के अन्य कामों तथा अपने मालिक के स्वास्थ्य का ध्यान रखता हूं ।
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मैं बड़े सरल हृदय वाला प्राणी हूं । किसी के प्रति तनिक भी राग-द्वेष नहीं रखता । मुझे विवश किया जाता है, तो मैं अपना उग्र रूप दिखाता हूं । मैं तो हमेशा से मानव-जाति का मित्र तथा हितैषी बना रहना चाहता हूं ।
अपने पिल्लों को भी हमेशा से मैं यही सीख देता आया हूं कि वे किसी भी परिस्थिति में अपने मालिक के साथीदार बने रहें । यद्यपि मेरा जीवनकाल लम्बा नहीं होता, तथापि मैं अपने इस जीवनकाल में अपने मालिक का हित ही चाहूंगा ।
भारत जैसे देश में मेरा महत्त्व पौराणिक आख्यानों में मिलता है । मैं वहां सम्मान और उपेक्षा दोनों ही पाता हूं । मुझे अपने अपमान व उपेक्षा पर दु:ख अवश्य होता है, किन्तु मैं उसे भूल जाता हूं । हमें संस्कार ही कुछ ऐसे मिले हैं । अपने गुणों-त्याग, सहनशीलता, स्वामीभक्ति, नम्रता को मैं कभी नहीं छोड़ सकता । मेरी पहचान मेरे इन्हीं गुणों से है ।