Read this article in Hindi to learn about the six main values of biodiversity. The values are: 1. Consumptive Use Value 2. Productive Use Value 3. Social Values 4. Ethical and Moral Values 5. Aesthetic Value 6. Option Value.
1. उपभोग मूल्य (Consumptive Use Value):
स्थानीय समुदायों द्वारा इमारती और जलावन लकड़ी, खाद्य पदार्थों और चारे का सीधे-सीधे उपयोग उपभोग मूल्य का एक स्पष्ट उदाहरण है ।
पारितंत्र में मौजूद जैव-विविधता वनवासियों की तमाम दैनिक आवश्यकताएँ पूरी करती है, जैसे भोजन, निर्माण सामग्री, चारा, दवाएँ तथा अनेक दूसरी वस्तुओं की आवश्यकताएँ । वे विभिन्न प्रजातियों के पेड़ों की लकड़ी के गुण-दोष और भिन्न-भिन्न उपयोग जानते हैं तथा भारी मात्रा में स्थानीय फल, कंदमूल और वानस्पतिक सामग्री जमा करते हैं जिनका उपयोग वे भोजन, निर्माण सामग्री या दवाओं के रूप में करते हैं । मछुआरे पूरी तरह मछलियों पर निर्भर होते हैं तथा यह जानते हैं कि मछलियों, दूसरे खाने योग्य जलीय प्राणियों और वनस्पतियों की प्राप्ति कहाँ और कैसे होगी ।
2. उत्पादक मूल्य (Productive Use Value):
इस श्रेणी में बिकने योग्य वस्तुएँ आती हैं ।
जैव-प्रौद्योगिकी का विशेषज्ञ पौधों या प्राणियों में उन संभावित जनन संबंधी गुणों का पता लगाने के लिए ‘जैव समृद्ध’ क्षेत्रों का उपयोग करता है जिनके इस्तेमाल से खेती और बागबानी के लिए पौधों की बेहतर किस्मों की और पशुधन का विकास किया जा सकता है ।
किसी फार्मासिस्ट (pharmacist) के लिए जैव-विविधता वह कच्चा माल है जिसके आधार पर पौधों या प्राणियों से प्राप्त वस्तुओं से नई दवाओं की पहचान की जा सकती है । उद्योगपतियों के लिए जैव-विविधता एक भारी भंडार है जिससे नए माल बनाए जा सकते हैं । कृषि-वैज्ञानिकों के लिए पौधों के जंगली संबंधियों की जैव-विविधता बेहतर फसलों के विकास का आधार है ।
जैव-विविधता वैज्ञानिकों और कृषकों को अवसर प्रदान करती है कि वे सावधानीपूर्वक प्रजनन के कार्यक्रम चलाकर चुनिंदा तौर पर बेहतर फसलों और मवेशियों का विकास कर सकें । पहले यह काम एक अधिक उत्पादक या रोगरोधक किस्म को पाने के लिए फसलों को चुनकर या कृत्रिम सेंचन कराकर किया जाता था ।
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आज अधिकांश रूप से यही काम जैव-प्रौधोगिकी (biotechnology) से किया जाने लगा है-एक पौधे के जीन चुनकर और उन्हें दूसरे पौधे में डालकर । जैव-प्रौद्योगिकी के द्वारा फसलों के वन्य संबंधियों में प्राप्त जैविक सामग्री से फसलों की नई किस्मों का विकास किया जा रहा है ।
आज भी निर्जन स्थानों में पौधों और पशुओं की नई प्रजातियों का लगातार पता लगाया जा रहा है । ये वन्य प्रजातियाँ मानव जीवन को बेहतर बनाने के आधार हैं और उनके नष्ट होने से मानवजाति को भारी आर्थिक हानि होगी । ज्ञात प्रजातियों की खाद्य, दवा या उद्योग संबंधी क्षमताओं की दृष्टि से उनके केवल एक छोटे-से भाग के ही मूल्य का पता लगाया गया है ।
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आज औद्योगिक संवृद्धि और आर्थिक विकास के लिए जैव-विविधता का संरक्षण आवश्यक हो गया है । दवा उद्योग जैसे अनेक उद्योग अप्रभावित वनों में स्थित पौधों की वन्य प्रजातियों के भारी आर्थिक मूल्य की पहचान पर बहुत अधिक निर्भर हैं । इसे ‘जैविक पूर्वेक्षण’ (biological prospecting) कहा जाता है ।
आम तौर पर प्रयुक्त आधुनिक दवाएँ जो पौधों से प्राप्त होती हैं:
3. सामाजिक मूल्य (Social Values):
परंपरागत समाजों में आबादी कम थी और उन्हें संसाधनों की आवश्यकता भी कम पड़ती थी । इसलिए उन्होंने जीवनवाही संसाधन के रूप में अपनी जैव-विविधता को बचाकर रखा । लेकिन आधुनिक मानव ने जैव-विविधता को नष्ट करते हुए उसे इतना कम कर दिया है कि अनेक प्रजातियों के विनाश के रूप में अपूरणीय क्षति हुई है ।
इसलिए जैव-विविधता के उत्पादों के स्थानीय उपयोग या विक्रय के अतिरिक्त एक सामाजिक पक्ष भी है जिसमें संपन्न समाज अधिकाधिक संसाधनों का उपयोग कर रहा है । हमारी जैव-विविधता को एक बड़ी हद तक उन परंपरागत समाजों ने बचा कर रखा है जो उसका संसाधन रूप में मूल्य समझते थे और महसूस करते थे कि उसकी कमी से उनको भारी हानि होगी । यह एक ऐसा सबक है जिसे हम सब सीखें तो बुद्धिमानी होगी ।
परंपरागत समुदायों में जैव-विविधता का उपयोग और उसके उत्पादक मूल्यों का गहरा संबंध उनके सामाजिक दृष्टिकोण से है । ‘पारितंत्रिक जनता’ (Ecosystem people) जैव-विविधता को अपनी जीविका के अंगरूप में तथा सांस्कृतिक और धार्मिक भावनाओं के कारण भी महत्त्व देती है । परंपरागत कृषि प्रणालियों में पौधों की भारी विविधता उगाई जाती है जिसके कारण अनेक प्रकार की फसलें पैदा होती रही हैं और साल भर बाजार में आती रही हैं ।
यह एक फसल (आज की ‘mono culture’) की नाकामी की दशा में खाद्य सुरक्षा प्रदान करती रही है । हाल के वर्षों में किसानों को स्थानीय आवश्यकताओं के बदले राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय बाजारों के लिए नकदी फसलें पैदा करने के लिए प्रोत्साहन दिए जाने लगे हैं । इससे स्थानीय स्तर पर खाद्यान्न की कमी हो रही है, बेरोजगारी पैदा हो रही है (नकदी फसलें आम तौर पर यंत्रों पर निर्भर करती हैं), भूमिहीनता बढ़ रही है और सूखे या बाढ़ के खतरे भी बढ़ रहे हैं ।
4. नैतिक मूल्य (Ethical and Moral Values):
जैव-विविधता के संरक्षण से संबंधित नैतिक मूल्यों का आधार है सभी जीवनरूपों के संरक्षण को महत्त्व देना । अधिकांश धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष विश्वासों के अनुसार पृथ्वी पर सभी जीवनरूपों को अस्तित्व का अधिकार है । मानव पृथ्वी के विशाल प्रजाति-वंश का मात्र एक छोटा-सा अंग है; पौधों और पशुओं को भी हमारी पृथ्वी पर रहने और जीने का अधिकार है । हमें नहीं पता कि क्या किसी और ग्रह पर वैसा जीवन है जैसा हमारी पृथ्वी पर है ? क्या हमें जीवनरूपों को नष्ट करने का अधिकार है ? या उनकी रक्षा करना हमारा कर्त्तव्य है ?
जैव-विविधता के संरक्षण के आर्थिक महत्त्व के अलावा सभी जीवनरूपों की पवित्रता से अनेक सांस्कृतिक और नैतिक मूल्य भी जुड़े हुए हैं । भारतीय सभ्यता स्थानीय परंपराओं के माध्यम से अनेक सदियों से प्रकृति का संरक्षण करती आई है । प्रकृति का संरक्षण प्राचीन दर्शन का एक महत्त्वपूर्ण अंग है । हमारे देश के अनेक राज्यों में अनेक पवित्र बाग या ‘देवराई’ हैं जिनको जनजातीय लोगों ने बचाकर रखा है । प्राचीन तीर्थों और मंदिरों के पास स्थित पवित्र बाग वन्य पौधों के लिए जीन बैंक का काम करते हैं ।
5. सौंदर्यात्मक मूल्य (Aesthetic Value):
जैव-विविधता का अंतर्निहित मूल्य, उसका सौंदर्य और हमारे ज्ञान-वृद्धि में उसका योगदान उसे सुरक्षित रखने के अन्य कारण हैं । भोजन के लिए वन्य प्राणियों के शिकार से एकदम अलग पर्यटन के आकर्षण के रूप में भी उसका महत्त्व है । जैव-विविधता प्रकृति का सुंदर और अद्भुत पक्ष है । जंगल में बैठकर पक्षियों को चहचहाते तो सुनिए । मकड़ी को एक पेचीदा जाल बुनते तो देखिए । मछली को कुछ निगलते देखिए । यह सब कितना सुंदर और मनमोहक है ! विशेषकर भारत में हमारी संस्कृति और इतिहास में पौधों और प्राणियों के बिंब भरे पड़े हैं ।
वन्य प्रजातियों के प्रतीकों की, जैसे हिंदू धर्म के सिंह, बौद्ध धर्म के हाथी, भगवान गणेश जैसे देवताओं तथा अनेक देवी-देवताओं के वाहक पशुओं की हजारों वर्षों से पूजा की जाती रही है । ऋषि बाल्मीकि ने एक शिकारी द्वारा एक क्रोंच पक्षी के शिकार के बाद एक श्लोक कहकर अपने महाकार्य का आरंभ किया था । पवित्र तुलसी (Basil) को सदियों से हर घर के आँगन में उगाया जाता रहा है ।
6. विकल्पी मूल्य (Option Value):
भविष्य में उपयोग के लिए संभावनाओं को खुला रखना विकल्पी मूल्य कहलाता है । यह कह सकना मुश्किल है कि भविष्य में कौन-कौन सी प्रजातियाँ या पौधों और मवेशियों की कौन-कौन सी परंपरागत किस्में हमारे लिए सबसे अधिक उपयोगी होंगी । फसलों और पशुधन में सुधार जारी रखने के लिए हमें पौधों और पशुओं के वन्य संबंधियों की ओर लौटना होगा । इस तरह जैव-विविधता के संरक्षण में पौधों और मवेशियों की पहले से मौजूद परंपरागत किस्में भी शामिल होनी चाहिए ।