Read this article in Hindi to learn about education as an art of living.
‘शिक्षा’ शब्द ‘शिक्ष’ से बना है जिसका अर्थ है- सीखना । इसके अनुसार जिसके द्वारा सीखा जाए, वही शिक्षा है । ‘शिक्षा’ के ही समान अर्थ में ‘विद्या’ शब्द का प्रयोग भी होता है । ‘विद्या’ शब्द के मूल में संस्कृत की ‘विद्’ धातु है, जो जानने का अर्थ देती है । इस प्रकार जिसको जाना जाए या जिससे ज्ञान मिले, वही विद्या है ।
‘शिक्षा’ और ‘विद्या’ से ही ‘शिक्षार्थी’ और ‘विद्यार्थी’ शब्द बने हैं जिनका अर्थ होता है- सीखने की, जानने की इच्छा रखनेवाला । प्राय: जीवन के प्रारंभिक वर्षों में शिक्षण- संस्थानों द्वारा विधिवत दी जानेवाली शिक्षा या कहें तो विद्यालय-महाविद्यालयों में चलनेवाली ज्ञानात्मक क्रिया को ही शिक्षा कहा जाता है । आमतौर पर इसी तरह से (विद्यालयों-महाविद्यालयों-विश्वविद्यालयों में) शिक्षा प्राप्त करनेवालों के लिए ‘विद्यार्थी’ या ‘शिक्षार्थी’ शब्द रूढ़ है ।
शिक्षा पर विचार करते समय दो प्रश्न मुख्यत: सामने उपस्थित होते है कि आखिर शिक्षा है क्या और कोई इसे पाकर क्या हासिल करता है ? कोई व्यक्ति क्यों अपने जीवन के बचपन से लेकर युवावस्था तक के अत्यंत महत्वपूर्ण वर्ष खर्च करके शिक्षा प्राप्त करता है और बाद में उसे उससे क्या मिलता है ?
क्या केवल पाठ्यक्रम में निर्धारित कुछ किताबों को घोटकर डिग्री हासिल कर लेना ही शिक्षा और प्राप्त की गई उपाधि (डिग्री) के बल पर रोजी-रोटी का प्रबंध कर लेना भर ही शिक्षा का एकमेव उद्देश्य है ? निश्चय ही शिक्षा का संबंध आजीविका से भी जुड़ा है और शिक्षा के उद्देश्य संबंधी प्रश्न पर विचार करते समय इस पक्ष से कतराकर नहीं निकला जा सकता । शिक्षा का यही एकमात्र उद्देश्य अर्थात रोजी-रोटी के जुगाड़ का साधन भर बनना नहीं हो सकता । हाँ, हमारे अंदर की मानवता के निर्माण का साधन वह अवश्य है ।
संस्कृत-व्याकरण के महान आचार्य पाणिनि ने लिखा है:
शब्द शिक्षा की मंजिल नहीं हैं, वे तो मंजिल तक पहुँचाने के साधन भर है ।
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शब्द के माध्यम से ही हम अर्थ की गहराइयों तक पहुंचते हैं और ज्ञान प्राप्त करते हैं । इस तरह केवल शब्दों को जान लेना या रट लेना शिक्षा नहीं है अपितु उनके भीतर छिपे अर्थों को पहचान कर ज्ञान प्राप्त करना और प्राप्त किए गए ज्ञान का अपने जीवन में सदुपयोग करना, अपने आचार-व्यवहार में उतारना शिक्षा है ।
विद्या जो सबसे पहली चीज हमें प्रदान करती है, सो विनय है । बचपन की उद्दंडताओं से पीछा छुड़ाकर जब व्यक्ति विनम्र और समझदार हो जाता है तब वह किसी कार्य के करने योग्य, जिम्मेदारी को निभाने योग्य बनता है ।
पात्रता या योग्यता के आने पर धनार्जन स्वाभाविक प्रक्रिया है, किंतु यहाँ महत्वपूर्ण बात यह कही गई कि धन आने के बाद व्यक्ति यदि धर्मपथ से विचलित नहीं होता है, तभी वह सुख का अधिकारी होता है । यहाँ ‘धर्म’ का तात्पर्य कर्तव्य-पालन से है । विद्या के द्वारा कमाए गए धन से धर्म और फिर सुख मिलने की जो बात कही गई है ।
उसका अभिप्राय यही है कि धन कमाने के योग्य होने के बाद ही व्यक्ति इस स्थिति में आता है । उसके जीवन-निर्माण एवं उन्नयन में घर-पीरवार, समाज-राष्ट्र आदि का जो योगदान है, उसके बदले में इनके प्रति अपने कर्तव्य-कर्म को करते हुए सुख प्राप्त करता है । गलत ढंग से अर्जित धन सुख नहीं देता, बेचैनी बढ़ाता है । उसके दुष्परिणाम भी भुगतने पड़ते हैं ।
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शिक्षा या विद्या मुक्त करती है हमें हमारे अज्ञान के बंधनों से और ले जाती है ज्ञान के उन्मुक्त प्रकाश की ओर; असत्य से सत्य की ओर; मृत्यु से जीवन की ओर; बंधन से मुक्ति की ओर । शिक्षा मुक्त करती है हमें हमारे अवगुणों से, हमारे अंदर भरी हुई बुराइयों से और सीख देती है हमें एक अच्छा मनुष्य बनने की ।
वह मुक्त करती है मनुष्य को जड़ता से और गतिमय बनाती है उसके जीवन को । वह मुक्त करती है मानव मन को स्वार्थ और संकीर्णता से और उसमें मानवीय समता और एकता का उजाला भर देती है । वह मुक्त करती है व्यक्ति को उसकी क्षुद्रता और तुच्छता से तथा उसके अंदर के टुच्चेपन को निकालकर उसके दृष्टिकोण को बृहद, व्यापक और मानवीय बनाती है । शिक्षा मुक्त करती है मनुष्य को उसके भीतर के आलस्य, उदासी, प्रमाद और अकर्मण्यता से तथा उनकी जगह उसे स्फूर्ति, उल्लास, चैतन्यता तथा कर्मठता सें जोड़ती है ।
शिक्षा हममें विवेक पैदा करती है तथा हमारे उचित मनोरथ पूरे करती है । उचित- अनुचित को जानने तथा उचित को अपनाने एवं अनुचित को त्यागने की ओर प्रेरित करने का नाम शिक्षा है । इस प्रकार समग्र रूप में यदि हम देखें तो शिक्षा जीवन जीने की कला है ।
मनुष्य को मनुष्य बनाने का तरीका या कहें तो अपने को पहचानने का माध्यम शिक्षा है । जीवन मूल्यों की खोज और फिर उसकी रक्षा का नाम है शिक्षा । शिक्षा मनुष्य को बहुत कुछ देती है लेकिन सबसे बड़ा काम इसका मनुष्य के चरित्र का निर्माण करना है । उसके अंदर की क्षमताओं एवं संभावनाओं को जगाकर व्यक्तित्व को पूर्णता प्रदान करना है । शिक्षा हमें अपने अभीष्ट तक पहुंचाती है ।