Here is a compilation of experiments on matter in Hindi language.
ठोस, द्रव तथा गैस ये पदार्थ की तीन अवस्थाएँ हैं । सामान्य तापमान पर ताँबा ठोस अवस्था में होता है तथा आक्सीजन गैसीय अवस्था में होती है । किसी पदार्थ की अवस्था, उस पदार्थ की ऊर्जा पर निर्भर होती है । इस ऊर्जा में परिवर्तन करने पर, अर्थात उसे गर्म करने अथवा ठंडा करने पर उसकी अवस्था बदल जाती है । ऊष्मा देने पर ठोस पदार्थों का रूपांतरण (प्राय:) द्रव अवस्था में होता है ।
करो और देखो:
एक मोमबत्ती लो । इसे जलाओ और उसकी अवस्थाओं में होनेवाले परिवर्तनों (रूपांतरण) का प्रेक्षण करो । अवस्था में होनेवाले परिवर्तन का परिचित उदाहरण मोम है । वाष्पीभवन की प्रक्रिया में द्रव का रूपांतरण गैस में और हिमीभवन की प्रक्रिया में द्रव का रूपांतरण ठोस में होता है । संघनन की प्रक्रिया में गैसों का रूपांतरण द्रव में होता है । इसी प्रकार पदार्थों का रूपांतरण होता है ।
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तुम बर्फ का पिघलना तथा पानी का उबलना देखते रहते हो । परंतु संगलन और क्वथन की ये प्रक्रियाएँ कौन-से तापमान पर शुरू होती हैं, इसे समझने के लिए द्रवणांक तथा क्वथनांक को समझना आवश्यक है । प्रत्येक पदार्थ का एक विशिष्ट द्रवणांक तथा क्वथनांक होता है ।
जिस तापमान पर ठोस अवस्थावाले किसी पदार्थ का द्रव अवस्था में परिवर्तन होता है, उसे उस पदार्थ का ‘द्रवणांक’ कहते है । जैसे, बर्फ का द्रवणांक 0० से. तथा लोहे का द्रवणांक १५३५० से. है । जिस तापमान पर द्रव अवस्थावाला कोई पदार्थ, गैसीय अवस्था में रूपांतरित होता है, उसे उस पदार्थ का ‘क्वथनांक’ कहते हैं । जैसे, पानी का क्वथनांक १००० से. तथा लोहे का क्वथनांक २७५०० से. है ।
वाष्पीभवन की प्रक्रिया में द्रव का रूपांतरण गैस में होता है परंतु वाष्पीभवन की प्रक्रिया किसी भी तापमान पर होती है । यह केवल द्रव के खुले पृष्ठभाग पर होती है । तुमने अनुभव किया होगा कि वर्षा होकर बंद होने के कुछ समय बाद सड़क पर पानी की भाप निर्मित होती है । पवन के वेग और उच्च तापमान द्वारा वाष्पीभवन की प्रक्रिया का वेग बढ़ता है ।
आसवन:
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किसी द्रवपदार्थ को उसके क्वथनांक तक गर्म करके, बाद में उसकी भाप को ठंडा करके फिर से वह द्रव पदार्थ प्राप्त करने की प्रक्रिया को आसवन कहते हैं ।
करो और देखो:
गोलाकार पेंदीवाली एक फ्लास्क में ऐसा पानी लो जिसमें साधारण नमक थोड़ी मात्रा में घुला हो । इस फ्लास्क में दो छिद्रवाला एक कार्क लगाओ । एक छिद्र में तापमापी और दूसरे छिद्र में एक निकास नली लगा दो जिसके बाहरी सिरे पर रबड़ की नली का दूसरा सिरा संघनित्र की नली के साथ जोड़ दो । संघनित्र के दूसरे सिरे से भी रबड़ की एक नली जोड़ी और उसे बीकर में छोड़ दो । आकृति के अनुसार उपकरणों का विन्यास करो ।
इसमें काँच की एक नली के चारों ओर बड़े व्यासवाली एक खरी नली होती है । उसके अंदर ठंडा पानी जाने तथा उसके गरम पानी बाहर निकलने के लिए दो द्वार होते है । इस व्यवस्था के कारण ठंडे पानी का प्रवाह सतत होता रहता है ।
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गोलाकार पेंदीवाली फ्लास्क को तार की जाली पर रखकर इसे गर्म करना शुरू करो । बीकर का निरीक्षण करो । तुम देखोगे कि बीवर में धीरे-धीरे द्रव की बूंदें गिर रही हैं । फ्लास्क में भरे हुए नमकीन पानी से १००॰ से॰ पर उसकी भाप बनती है ।
संघनित्र में से होकर गुजरते समय यह भाप ठंडे पानी के संपर्क में आकर ठंडी होकर द्रव में बदल जाती है । बीकर में गिरनेवाली बूंदें, फ्लास्क में रखे गए पानी के नमकीन विलयन के पानी की ही है । फ्लास्क के संपूर्ण पानी की भाप बनने के बाद बीकर में संघनित शुद्ध पानी और फ्लास्क में विलयन का नमक बचा रह जाता है ।
प्रभाजी आसवन:
प्रभाजी आसवन की विधि वास्तव में आसवन विधि जैसी ही है । अंतर केवल यह है कि प्रभाजी आसवन की विधि में आसवन पात्र और संघनित्र के मध्य एक प्रभाजी स्तंभ जुड़ा होता है । यदि किसी द्रव में कई पदार्थ घुले हों, तो उन पदार्थों को अलग करने के लिए प्रभाजी आसवन उपयोगी होता है ।
खनिज तेल के कुओं में से प्राप्त पेट्रोलियम में पेट्रोल, नैपथा, मिट्टी का तेल तथा डीजल आदि घटक होते हैं । प्रभाजी आसवन द्वारा ही इस कच्चे तेल में से इसके सभी घटक पदार्थों को अलग करते हैं । इनमें से पेट्रोल एक शीघ्र ज्वलनशील पदार्थ होने के कारण उसका क्वथनांक सभी पदार्थों के क्वथनांकों से कम होता है । इसके बाद नैपथा, मिट्टी के तेल तथा डीजल का क्रम आता है ।
खनिज तेल को गर्म करने पर सबसे पहले उसमें समाविष्ट पेट्रोल की भाप बनती है । इसका संघनन करके इसे अलग किया जाता है । इसके बाद विभिन्न तापमानों पर अन्य घटक पदार्थ अलग किए जाते हैं । प्रभाजी आसवन के लिए घटक पदार्थों के क्वथनांकों में भिन्नता का होना आवश्यक है । खनिज तेल के धटकों में यह गुणधर्म पाए जाने के कारण उसका प्रभाजी आसवन संभव है ।