Here is a compilation of experiments on carbon and its compounds in Hindi language.
कार्बन एक अधातु तत्व है । प्रकृति में यह स्वतंत्र अवस्था में हीरे तथा ग्रेफाइट के रूप में और अपने यौगिकों के रूपों में पाया जाता है ।
करो और देखो:
रेशम, लकड़ी, फलों के बीजों, बाल तथा पंख आदि परखनली में लेकर गर्म करो । धीरे-धीरे उनका रंग बदलता है और अंत में वे काले हो जाते हैं । अत: उनका कार्बन में रूपांतरण होता है । सभी वनस्पतिजन्य तथा प्राणिजन्य पदार्थों का प्रमुख घटक कार्बन होता है । हवा की कार्बन डाइआक्साइड और ईंधन के रूप में उपयोगी जैविकगैस, पेट्रोल तथा मार्शगैस (मीथेन) में भी कार्बन पाया जाता है । कार्बन का परमाणु क्रमांक ६, परमाणु द्रव्यमानांक १२ है । उसकी संयोजकता ४ है ।
कार्बन के गुणधर्म:
अपररूपता:
कुछ ऐसे तत्व हैं, जो प्रकृति में एक से अधिक रूपों में पाए जाते हैं । इन तत्वों के रासायनिक गुणधर्म तो समान होते हैं परंतु इनके भौतिक गुणधर्म भिन्न होते हैं । तत्वों के इस गुणधर्म को ही ‘अपररूपता’ कहते हैं । कार्बन, गंधक तथा फास्फोरस, प्रकृति के कुछ अपररूपी तत्व हैं ।
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कार्बन की अपररूपता:
प्रकृति में कार्बन के अपररूप दो रूपों में पाए जाते हैं:
(i) केलासीय अपररूप,
(ii) अकेलासीय अपररूप ।
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हीरा, ग्रेफास्ट तथा फुलरिन्स कार्बन के केलासीय अपररूप हैं । केलासीय रूपवाले कार्बन परमाणुओं की रचना नियमित तथा निश्चित होती है, जबकि अकेलासीय रूपवाले परमाणुओं की रचना अनियमित होती है । कोक, कोयला अर्थात खनिज कोयला कार्बन के अकेलासीय अपररूप है ।
हीरा (डायमंड):
लाखों वर्ष पहले अति प्रचंड दाब के कारण कार्बन का केलासन होने पर हीरे का निर्माण हुआ है । शुद्ध तथा चमकीला हीरा अत्यधिक कठोर पदार्थ है, जो विद्युतधारा का कुचालक होता है । हीरे के कैलास में प्रत्येक कार्बन परमाणु के चारों ओर एक निश्चित दूरी पर कार्बन के चार परमाणु होते हैं ।
हीरे को उच्च तापमान तक गर्म करने पर उसमें से कार्बन डाइआक्साइड गैस मुक्त होती है । अम्लों तथा क्षारों का हीरे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता । काँच काटने, आभूषणों के निर्माण और वेधन यंत्रों (ड्रिलिंग मशीन) में हीरे का उपयोग होता है । शुद्ध कार्बन पर दाब डालकर उसे उच्च तापमान तक तपाने पर कृत्रिम हीरा तैयार करते है ।
ग्रेफ़ाइट:
यह कार्बन का ऐसा अपररूप है, जो षट्कोणीय (चतुरक्ष) होता है । इसमें कार्बन के परमाणुओं का विन्यास (रचना) अलग-अलग परतों के रूप में होता है । इसका अर्थ यह है कि कार्बन के परमाणु परस्पर षट्रभुजीय रचना में और ये एक-दूसरे से एक निश्चित दूरी पर होते हैं ।
प्रत्येक कार्बन परमाणु के चारों ओर एक निश्चित दूरी पर कार्बन के तीन-तीन परमाणु होते है । प्रकृति में मिलनेवाला ग्रेफाइट काला, मृदु और चिकना होता है । यह ऊष्मा तथा विद्युत दोनों का सुचालक होता
हैं । बहुत वर्षों के पहले से ही लिखने में ग्रेफाइट का उपयोग होता आ रहा है ।
आजकल पेंसिलों में ग्रेफाइट का उपयोग करते हैं । स्नेहक के रूप में भी ग्रेफाइट का उपयोग करते है । शुष्क सेल में धनाग्र के रूप में ग्रेफाइट का उपयोग किया जाता है । अत्यधिक प्रकाश देनेवाले आर्क लैंप में ग्रेफाइट का उपयोग करते है ।
फुलेरिन्स:
कार्बन के एक नए अपररूप की भी जानकारी हुई है जिसका नाम फुलेरिन्स है । बकीबाल के रूप में पहचाने जानेवाले कार्बन के इस परमाणु C60 में कार्बन के परमाणु पंचभुजी और षटभुजी विन्यास में परस्पर जुड़े होते हैं । इसके कारण फुलेरिन्स के अणु की रचना किसी फुटबाल जैसी होती है ।
रिचर्ड बकमिन्स्टर फुलर नामक वास्तुशास्त्रज्ञ द्वारा बताई गई गोलाकार रचना के आधार पर कार्बन के इस अपररूप का नाम फुलेरिन्स रखा गया है । C60 फुलेरिन्स के इस कार्बन अपररूप की खोज करने के कारण वर्ष १९९६ का रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार हेराल्ड क्रोटो, राबर्ट कर्ल तथा रिचर्ड स्माली को सम्मिलित रूप में प्रदान किया गया ।
वर्तमान समय में फुलेरिन्स के गुणधर्मों का अध्ययन शुरू किया गया है । संभव है कि अतिचालकता की क्रांतिकारी खोज में फुलेरिन्स का उपयोग किया जा सकेगा । लकड़ी के कोयले अर्थात चारकोल से हम सुपरिचित हैं । यह कार्बन का अकेलासीय अपररूप है । आक्सीजन की नियंत्रित संपूर्ति करके लकड़ी जैसे किसी वनस्पतिजन्य पदार्थ को जलाकर चारकोल तैयार करते है । रंध्रमय होने के कारण चारकोल का घनत्व कम होता है ।
कार्बन की विलेयता:
कार्बन किसी भी द्रव में विलेय नहीं है ।
आक्सीजन के साथ कार्बन की अभिक्रिया:
हवा में जलाने पर कार्बन आक्सीजन के साथ रासायनिक संयोग करके कार्बन डाइआक्साइड गैस तैयार करता है ।
(i) कार्बन डाइआक्साइड:
हवा में कार्बन डाइआक्साइड मुक्त (स्वतंत्र) रूप पाई जाती है । प्राणियों तथा वनस्पतियों के श्वसन द्वारा यह हवा में छोड़ी जाती है । खड़िया, शहाबादी पत्थर तथा चूना पत्थर में यह यौगिक के रूप में पाई जाती है ।
प्रयोगशाला में कार्बन डाइआक्साइड़ तैयार करना:
किसी समतल पेंदीवाले फ्लास्क में कैल्शियम कार्बोनेट (चूना पत्थर) के कुछ टुकड़े रखी । आकृति में दिखाए अनुसार उपकरणों का विन्यास करो । अब थिसिल कीप द्वारा फ्लास्क में तनु हाइड्रोक्लोरिक इतनी मात्रा में डालो कि इसका आंतरिक सिरा अम्ल में डूब जाए । कैल्शियम कार्बानट और हाइड्रोक्लोरिक अम्ल की रासायनिक अभिक्रिया दवारा निर्मित कार्बन डाइआक्साइड गैसजार में एकत्र होती है ।
भौतिक गुणधर्म:
कार्बन डाइआक्साइड गैस में कोई स्वाद, गंध तथा रंग नहीं होता । यह हवा से भारी होती है । यह पानी में अम्ल मात्रा मे विलेय गैस है ।
करो और देखो:
कार्बन डाइआक्साइड गैस से भरे हुए किसी गैसजार में जलती हुई मोमबत्ती ले जाओ । वह बुझ जाती है । इससे यह ज्ञात होता है कि यह गैस न तो ज्वलनशील है और न ज्वलन में सहायक ।
कुछ रासायनिक गुणधर्म:
(i) चूने के ताजे पानी में कार्बन डाइआक्साइड गैस प्रवाहित करने पर वह श्वेत हो जाता है । कैल्शियम कार्बोनेट श्वेत रंगवाला यौगिक बनता है ।
(ii) धातुओं के आक्साइडों और कार्बन डाइआक्साइड के रासायनिक संयोग दवारा धातुओं के कार्बोनेट प्राप्त होते है ।
(iii) पानी में कार्बन डाइआक्साइड प्रवाहित करने पर वह अल्प मात्रा में घुलकर कार्बोनिक अम्ल निर्मित करती है ।
(iv) सोडियम हाइड्रोक्साइड के विलयन में कार्बन डाइआक्साइड गैस प्रवाहित करने पर सोडियम कार्बोनेट प्राप्त होता है ।
(v) सोडियम कार्बोनेट के जलीय विलयन में कार्बन डाइआक्साइड गैस प्रवाहित करने पर सोडियम बाइकार्बोनेट प्राप्त होता है ।
अग्निशामक यंत्र:
इस यंत्र में एक बेलनाकर पात्र होता है । पात्र के अंदर सोडियम बाईकार्बोनेट तथा तनु सल्फ्यूरिक अम्ल व्यवस्थितरूप में सुरक्षित ढंग से रखे होते हैं । पात्र के बाहर एक घुंडी होती है । आवश्यकता होने पर यही घुंडी दबाने पर अम्ल और सोडियम बाइकार्बोनेट का संपर्क हो जाता है । इससे कार्बन डाइआक्साइड गैस बनती है और बाहर निक्लती है । यह आग बुझाती है ।
कार्बन डाइआक्साइड के उपयोग:
(i) शीतपेयों के उत्पादन में कार्बन डाइआक्साइड का उपयोग करते हैं ।
(ii) शुष्क बर्फ (ठोस कार्बन डाइआक्साइड़) तैयार करने में कार्बन डाइआक्साइड का उपयोग होता है ।
(iii) अग्निशामक गैस के रूप में कार्बन डाइआक्साइड उपयोगी है ।
(iv) धोने के सोडे के उत्पादन में कार्बन डाइआक्साइड उपयोगी होती है ।
(v) सोडियम बाइकार्बोनेट (खाने का सोडा – पाक सोडा) के उत्पादन में इस गैस का उपयोग किया जाता है ।
(vi) कार्बन डाइआक्साइड का उपयोग करके वनस्पतियों अपना खाद्य निर्मित करती हैं ।
मीथेन:
कार्बन तथा हाइड्रोजन के रासायनिक संयोग से ऊर्जा प्रदान करनेवाले यौगिक हाइड्रोकार्बन प्राप्त होते हैं । उन यौगिकों में से पहला यौगिक मीथेन है । मीथेन का अणुसूत्र CH4 है । इसमें कार्बन का एक परमाणु और हाइड्रोजन के चार परमाणु होते है । प्रकृति में मीथेन गैस दलदली क्षेत्रों में पाई जाती है । इसलिए मीथेन को मार्श गैस कहते हैं ।
दाब डालकर मीथेन का द्रवीकरण नहीं हो सकता । इसलिए सिलिंडरों में न भरकर पाइपों द्वारा इसे अपेक्षित स्थान तक ले जाते हैं । हवा के संपर्क में आने पर मीथेन गैस नीली ज्वाला के साथ तेजी से चलने लगती है । एक प्राकृतिक ईंधन के रूप में मीथेन गैस का विशेष महत्व है ।
मीथेन गैस तैयार करना:
तुमने गोबर गैस का संयंत्र देखा होगा । इस संयंत्र से मीथेन गैस ही प्राप्त होती है ।
(i) गोबर गैस संयंत्र में वनस्पतियों तथा प्राणियों के अपद्रव्य पदार्थों से हवा की अनुपस्थिति में मीथेन गैस प्राप्त होती है ।
(ii) प्रयोगशाला में हाइड्रोजन तथा कार्बन मोनोआक्साइड के मिश्रण को निकेल नामक धातु की उपस्थिति में ३००॰ से॰ तापमान तक गरम करने पर मीथेन गैस प्राप्त होती है ।
मीथेन के गुणधर्म:
मीथेन गैस गंधहीन, स्वादहीन तथा रंगहीन होती है । यह हवा से हल्की गैस है । पानी में यह गैस विलेय नहीं है । मीथेन एक तीव्र ज्वलनशील गैस है, जो नीली ज्वाला के साथ जलती है ।
मीथेन के उपयोग:
(i) मुख्य रूप से ईंधन के रूप में मीथेन का उपयोग किया जाता है ।
(ii) एसीटलीन (C2H2) नामक कार्बनिक यौगिक के निर्माण में मीथेन का उपयोग करते हैं ।