Read this article to learn about the dangers associated with radiation in Hindi language.
खतरे का अर्थ है शरीर के विभिन्न भागों पर हानिकारक प्रभाव । यद्यपि एक्स-रे, रेडियम व रेडियोधर्मिता के आविष्कार के तुरन्त बाद ही हानिकारक प्रभावों को देख लिया गया था पर वैज्ञानिक यह अनुमान नहीं लगा पाए थे कि यह हानि आयनीकारक विकिरण से हुई है क्योंकि विकिरण मात्रा प्राप्त करने के तुरन्त बाद ये प्रभाव दृष्टिगोचर नहीं हुए थे और आविष्कारकों का यह विचार था कि एक्स-रे मशीन के ट्यूब से निर्गत प्लेटीनम कण, पराबैंगनी किरणें अथवा विद्द्युतीय प्रभाव के कारण ये हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं ।
एक्सरे मशीन के कार्य को प्रदर्शित करने के लिए प्रारंभ में एक्सरे चिकित्सक अपना हाथ एक्स किरणों के आगे लगाकर उसका चित्र प्रतिदीप्ति पट पर दिखाते थे । इन कारणों के कारण विकिरणीय त्वचा शोध (डर्मेटाइटिस) हो गया और लगातार अल्सर होने से केन्सर हो गया ।
कई उदाहरण मिलते हैं कि प्रारंम्भिक विकिरण चिकित्सकों एवं एक्स-रे तकनीशियनों को अपने पूरे हाथ का अथवा उसके कुछ भाग का अंगच्छेदन (एम्यूटेशन) करना पड़ा था । पहला उदाहरण एक्सरे ट्यूब की फैक्टरी में काम करने वाले कार्मिक का है जो कैन्सर से पीड़ित हुआ ।
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पहले उसकी भुजा का अंगच्छेदन किया गया फिर उसके दो वर्ष के बाद उसे कैन्सर हो गया और सन् 1926 में उसका स्वर्गवास हो गया । बाद में पियरेक्यूरी और हेनरी बेमेरन कं पद्य पर विकिरण के छाले पड़ गए । रेडियम से निकलने वाली किस्थ्यें के क्य एक्स किरणों जैसे ही पाये गए इसलिए ऐसे पदार्थो को, जो रेडियम जैसा विकिरण उत्सर्जित करते हैं, रेडियोधर्मी पदार्थ कहा गया ।
जैसे जैसे समय निकलता गया विकिरण के और प्रभाव देखने में आए । यूरेनियम खानों के वातावरण में उपस्थित रेडोन जैसे रेडियोधर्मी पदार्थों को श्वास द्वारा शरीर के अन्दर लेने से खनकों का इन पदार्थो से उत्सर्जित विकिरण मिलने के कारण, रेडियम और इसकी (डौटर) संतति से उत्सर्जित विकिरण के कारण, और विकिरण एवं विकिरण उपचारकों को एक्स किरणों, गामा किरणों के कारण और हिरोशिमा एवं नागासाकी के उत्तर जीवियों में परमाणु बम्ब विस्फोट में उत्पादित रेडियो धर्मी पदार्थो से निकले विकिरण के कारण कैन्सर एवं अन्य प्रभाव देखे गए ।
उपर्युक्त घटनाओं और पशुओं पर विभिन्न प्रयोगें के परिणाम दर्शाते हैं कि विकिरण लाभकारी भी है और हानिकारक भी । विकिरण से निदान एवं उपचार उसके लाभकारी गुणों का उदाहरण है । कैन्सर होना, त्वच्चा का जलना, विकृत बच्चे का जन्म होना विकिरण क्षति या खतरे के उदाहरण हैं ।
इस प्रकार क्षति उद्भाषित व्यक्ति तक सीमित रह सकती है या भावी पीढ़ी में भी उसका प्रभाव देखा जा सकता है । पहले वाले प्रभाव को काय (सोमेटिक) प्रभाव कहते हैं एवं दूसरे वाले प्रभाव को अनुवांशिक (जेनेटिक) प्रभाव कहते हैं ।
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इस प्रकार प्रभावी क्षति विकिरण की प्रकृति उसके प्रकार एवं मात्रा पर निर्भर करती है कि विकिरण किस प्रकार से शरीर को प्राप्त होता है । यह क्षति प्राप्त होने वाले विकिरण की कुल मात्रा, उद्भासित व्यक्ति की आयु, लिंग, अंगों की विकिरण के प्रति संवेदनशीलता, और शरीर के उस भाग भर जो उद्भासित हो रहा है निर्भर करती है ।
बाहय क्षति शरीर के बाहर स्थित विकिरण स्रोत से प्राप्त विकिरण के कारण होती है । एक्स किरण, दूरोपचार स्रोत, निकटोपचार गामा स्रोत इत्यादि जैसे बाहय क्षति पहुंचाने वाले स्रोत हैं । इन स्रोतों को दूर रखकर उद्मास दिया जाता है । आन्तरिक विकिरण मात्रा उन स्त्रोतों के कारण मिलती है जो श्वास अथवा मुंह या घाव द्वारा शरीर के अन्दर स्थित हो जाते हैं (चित्र 6.2) ।
विकिरण कण के मार्ग में प्रतिइकाई पथ (अर्थात प्रति सेमी॰ या माइक्रो सेमी॰) में मिलने वाली ऊर्जा पर कुल क्षति निर्भर करती है । अर्थात जितनी अधिक प्रति पथ ऊर्जा क्षय होगी उतनी अधिक क्षति होगी क्योंकि बीटा और गामा किरणों की तुलना में अल्फा कणों द्वारा प्रतिपथ ऊर्जा क्षय कम है ।
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अर्थात अल्फा कणों की भेदन सीमा भी सबसे कम है । और गामा किरणों की सबसे अधिक होती है । बाहय स्थित स्त्रोतों या बाहर पड़ने वाली किरण पुंज की स्थिति में गामा किरणें सबसे अधिक हानिकारक होती हैं । क्योंकि सबसे अधिक भेदन क्षमता के कारण वे शरीर को सबसे अधिक ऊर्जा देती हैं । उनकी तुलना में बाहय स्थित अस्का स्त्रोत से सबसे कम क्षति होती है । इसलिए बाहर से पड़ने वाली अल्फा किरणें शरीर को तब ही नुकसान पहुंचा सकती हैं जब उनकी तीव्रता सबसे अधिक हो ।
इसलिए एक ही ऊर्जा के अल्फा कणों का वास्तविक जैविक प्रभाव सबसे अधिक होगा और गामा का सबसे कम । बीटा किरणों का प्रभाव इन दोनों के बीच होता है । इस प्रकार वास्तविक प्रभाव विकिरण की ऊर्जा, एवं कण के प्रकार पर निर्भर करता है ।
इस प्रभाव को कण की, शरीर में, अवशोषित ऊर्जा एवं गुणवत्ता (क्वालिटी), गुणक (फैक्टर) के गुणनफल से परिभाषित करते हैं । इस संयुक्त प्रभाव की इकाई सीर्बट (Sv) मात्रा है, जिसे पहले रैम (R) से संबोधित किया जाता था । विभिन्न प्रभावों का वर्णन “रैम” या “सीवर्ट” में व्यक्त विकिरण मात्राओं से किया जा सकता है ।
संपूर्ण शरीर के उद्भास से जो आम प्रभाव होते हैं वे चित्र 6.3 में दर्शाए गए हैं । संपूर्ण शरीर को बीटा गामा किरणों की तीक्षा मात्रा के उद्भास के कारण हुए जैविक प्रभाव का विवरण सारिणी 6.2 में और केवल किसी एक अंग या उसके भाग के प्रभाव सारिणी 6.3 में दिए हैं ।