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स्पाइकमैन की उपान्त क्षेत्र संकल्पना:
मैकिंडर की डेमोक्रेटिक आइडियल्स एण्ड रियल्टी का 1942 में प्रिंसटन विश्वविद्यालय के आचार्य एडवर्ड अर्ल की सम्पादकीय भूमिका के साथ पुनर्मुद्रित अमरीकी संस्करण प्रकाशित जुआ । पुस्तक की भूमिका में सम्पादक ने लिखा था कि उसके विचार में विश्व समाज के भाग्य के निर्णायक भौगोलिक तत्वों की इससे बेहतर व्याख्या अन्यत्र कहीं भी उपलब्ध नहीं है ।
अत: अन्तरराष्ट्रीय राजनीति के किसी भी अध्येता के लिए इस पुस्तक का पढ़ना अनिवार्य हैं । येल विश्वविद्यालय के आचार्य स्पाइकमैन (1893-1943) इस विचार से सहमत नहीं थे । उनका अपनी पुस्तक दी जिओग्राफी ऑफ पीस (1944) मेकिंडर के विचारों की विस्मृत ममीझा के उद्देश्य से लिखी गई थी । यही विचार बाद में उपान्त क्षेत्र की संकल्पना के नाम से प्रसिद्ध हुाए ।
स्पाइकमैन ने मैकिडर की मूल भूत भौगोलिक ओर ऐतिहासिक मान्यताओं को स्वीकार करते हुए मैकिंडर द्वारा प्रतिपादित सामरिक परिदृष्टि के निष्कर्षों पर प्रश्न चिन्ह लगाए । स्पाइकमैन को मेकिंडर द्वारा प्रतिपादित हृदय स्थल और उपान्तीय समुद्रतटीय पेटी के सापेक्षिक सामरिक महत्व और दोनों के शक्ति सामर्थ्य सम्बन्धी निष्कर्ष पर विशेष आपत्ति थी ।
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इस अर्धचन्द्राकार पेटी को स्पाइकमैन ने ”आंशिक रूप में स्थलीय ओर आंशिक रूप में सामुद्रिक” पेटी के रूप में वर्णित करते हुए उसे उपान्त क्षेत्र (रिमलैण्ड) की संज्ञा दी । स्पाइकमैन के उपान्त क्षेत्र में बाल्टिक और काला सागर इस्थुमस के पश्चिम स्थित प्राय पूरा महाद्वीपीय यूरोप, एशिया के पर्वतीय, दक्षिणी पश्चिमी, दक्षिणी और दक्षिणी पूर्वी क्षेत्र तथा चीन शामिल थे ।
आधुनिक विश्व के पिछले तीन सौ वर्षो के राजनीतिक इतिहास का साक्ष्य देते हुए स्पाइकमैन ने इस बात पर बल दिया कि कोलम्बस युग के पूर्व की स्थिति के बिल्कुल विपरीत उत्तर कोलम्बस काल में सामुद्रिक शक्ति का व्यापक सामरिक वर्चस्व निर्विवाद हैं क्योंकि समुद्री नौकागमन के आधार पर ही यूरेशियाई भूखण्ड को एक समग्र इकाई के रूप में देखना सम्भव हुआ था ।
साथ ही पुरानी और नई दुनियां के बीच व्यापारिक तथा राजनीतिक सम्बन्ध पूरी तरह सामुद्रिक यातायात पर निर्भर हैं । अत: स्पाइकमैन का दृढ़ मत था कि वर्तमान विश्व राजनीति में अन्तरराष्ट्रीय सामरिक सम्बन्धों का मूलाधार सामुद्रिक सामर्थ्य में निहित है न कि हृदय स्थल में विकास की भावी सम्भावनाओं में । स्पाइकमैन ने मैकिंडर के हृदय स्थल के संसाधन सामर्थ्य और उसकी केन्द्रीय स्थिति सम्बन्धी मान्यताओं पर अनेक आपत्तियां उठाई ।
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इनमें दो विशेष महत्व हैं:
(1) मैकिंडर की मान्यता थी कि अपने विशाल आकार तथा यूरेशिया में अपनी केन्द्रीय स्थिति के परिणामस्वरूप हृदय स्थल को एकीकृत और समन्वित संचार व्यवस्था का लाभ मिला है तथा आधुनिक प्रौद्योगिकी का प्रयोग करके इस क्षेत्र की संचार व्यवस्था को विकसित कर उसे समुद्री यातायात से कहीं अधिक प्रभावी बनाया जा सकता हे । स्पाइकमेन इस दावे से सहमत नहीं थे ।
(2) स्पाइकमैन मैकिंडर के इस विचार से भी असहमत थे कि हृदय स्थत्न के घास के विशाल मैदानी क्षेत्र को निकट भविष्य में विकसित करके इस पूरे क्षेत्र को विश्व का सबसे संसाधन सम्पन्न देश बनाया जा सकता है । स्पाइकमैन के अनुसार यह मान्यता सर्वथा निराधार थी क्योंकि जलवाययीय कठिनाइयों के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र के मध्य तथा पूर्वी भागों में कृषि उत्पादन की सम्भावनाएं प्राय नगण्य है ।
यद्यपि उसके मध्य और पूर्वी क्षेत्रों में औद्योगिक विकास की पर्याप्त सम्भावनाएं विद्यमान थीं परन्तु उस समय तक सारा का सारा विकास मुख्यतया पश्चिमी भाग में ही केन्द्रित था । लेकिन स्थिति में निश्चय ही सुधार हो रहा था ।
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इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए हृदय स्थल अपने कृषि उत्पादों के आधार पर एक बड़ी जनसंख्या का भरणपोषण करने में सक्षम नहीं था । इसके अतिरिक्त रेल और सड़क यातायात में आए सुधारों के उपरान्त भी इस तथ्य को अनदेखा नहीं किया जा सकता कि हृदय स्थल उत्तर, पूर्व, और दक्षिण में यातायात विकास को अवरुद्ध करने वाले विश्व के सबसे कठिन अवरोधों से घिरा है । साथ ही इसके समीपस्थ देशो की यातायात व्यवस्थाएं अपेक्षाकृत ओर भी कम विकसित हैं । अत: हृदय स्थल की संचार व्यवस्था की समुद्रतटीय देशो की संचार शक्ति से तुलना करना भ्रांतिमूलक है ।
मैकिंडर की यह धारणा कि हृदय क्षेत्र की अन्तरमुखी तथा समन्वित संचार व्यवस्था ब्रिटेन की समुद्री मार्गो पर आधारित अन्तरराष्ट्रीय संचार व्यवस्था की अपेक्षाकृत सामरिक दृष्टि से अधिक श्रेयस्कर है इस केन्द्रीय मान्यता पर आधारित थी कि युद्ध की स्थिति में रूस अपनी सेनाओं को सीमावर्ती क्षेत्रों में अर्द्धव्यासीय दूरियों के आधार हुत गति से भेज सकता था जबकि इसके विपरीत ब्रिटेन की सेनाओं को हदय स्थल की बाहरी परिधि की अपेक्षाकृत बहुत लम्बी दूरी तय करना अनिवार्य था ।
स्पाइकमैन ने स्पष्ट किया कि इस धारणा के पीछे यह मान्यता निहित थी कि युद्ध काल में ब्रिटेन के नौसैनिक बेडों को अपनी यात्रा अनिवार्यत ब्रिटिश बन्दरगाहों से ही प्रारम्भ करनी होगी । परन्तु ब्रिटेन की सेनाओं का जमाव रूस की ही परिधि पर स्थित होने की स्थिति में रूस को प्राप्त यह सामरिक लाभ समाप्त हो जाता है । रूस विरोधी सैन्य संचालन ईरान, भारत, अथवा चीन की सीमा पर स्थित ठिकानों से किया जाए तो स्थिति एक दम विपरीत हो जाएगी ।
स्पाइकमैन ने मैकिंडर की इस मान्यता को भी नकार दिया कि पुराने विश्व का इतिहास प्रारम्भ से ही स्थल शक्ति बनाम सामुद्रिक शक्ति का संघर्ष रहा हे । वास्तव में यह संघर्ष सदा ही कुछ सामुद्रिक और स्थल शक्तियों तथा कुछ स्थलीय और सामुद्रिक शक्तियों के मिश्रित गटों के बीच था ।
हृदय स्थल और उपान्त क्षेत्र की सापेक्षिक शक्ति सम्पन्नता की तुलना के सन्दर्भ में स्पाइकमैन ने स्पष्ट किया कि शक्ति संसाधनों, जनसंख्या, औद्योगिक उत्पाद तथा संचार सुविधाओं, इन सभी दृष्टियों से उपान्त क्षेत्रीय पेटी हृदय स्थल से कहीं अधिक सम्पन्न है ।
हृदय स्थल को इस बात का लाभ अवश्य था कि वह रस्सी साम्राज्य (और वाद में सोवियत संघ) के नेतृत्व में एकजुट था जबकि उपान्तीय पेटी राजनीतिक दृष्टि से अनेक परस्पर प्रतिस्पर्धापूर्ण इकाइयों में बंटी थी ।
अत: आवश्यक था कि सम्पूर्ण उपान्त क्षेत्र को सामुद्रिक शक्तियों के नेतृत्व में एक परस्पर सहयोगी तथा हृदयस्थल विरोधी संगठन में बांध दिया जाए । ऐसा संगठन हृदयस्थल को तीन तरफ से बांधकर उसके प्रभाव विस्तार के सारे प्रयासों को विफल कर देगा । अत: स्पाइकमैन ने मैकिंडर द्वारा प्रतिपादित हृदयस्थल के सामरिक वर्चस्व के सिद्धान्त को दोषपूर्ण सिद्ध करते हुए एक नए सामरिक सूत्र का प्रतिपादन किया ।
इसके अनुसार:
जो देश उपान्त क्षेत्र पर शासन करेगा वही यूरेशिया का शासक होगा;
जो देश यूरेशिया पर शासन करेगा वही विश्व के भाग्य का निर्णय करेगा ।
द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् विश्व राजनीति के सोवियत संघ तथा संयुक्त राज्य अमरीका के नेतृत्व में दो परस्पर प्रतिद्वन्दी महाशक्तियों में गोलबन्द हो जाने के बाद ट्रुमन के नेतृत्व में संयुक्त राज्य की विदेश नीति स्पाइकमैन की सामरिक संकल्पना के अनुरूप हो गई थी ।
परन्तु यह कहना कठिन हैं कि जार्ज एफ कमीन द्वारा प्रस्तावित सोवियत संघ की घेराबन्दी (कण्टेनमेण्ट) की नीति वास्तव में स्पाइकमैन के विचारों से प्रेरित थी । इस विदेश नीति के क्रियान्वयन के परिणामस्वरूप संयुक्त राज्य ने उपान्त क्षेत्र में अनेक द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सुरक्षा संधियों के माध्यम से रूस विरोधी एक सशक्त खेमे का निर्माण किया ।
इस सुरक्षा व्यवस्था में नाटो, सिआटो, मिआटो, तथा एंजस आदि प्रमुख थे । बाद में सोवियत संघ तथा संयुक्त राज्य के बीच सौहाद्रपूर्ण सम्बन्ध बढ़ने के बाद नाटो के अतिरिक्त शेष सभी सैन्य समझौते धीरे-धीरे ठण्डे पड़ गाए और 1990 के वाद वे पूर्णतया अनावश्यक हो गए ।
पिण्डाकार पृथ्वी तथा हृदय स्थल संकल्पना:
अलंकारिक भाषा में कहें तो 1940 के दशक में भूराजनीति जर्मनी से संयुक्त राज्य अमरीका प्रस्थान कर गई थी । विश्वयुद्ध के प्रारम्भ होने के साथ ही संयुक्त राज्य की पुरानी पृथकतावादी विदेश नीति का अन्त हो गया था । देश अब स्वयं ही अन्तरराष्ट्रीय राजनीति का प्रमुख नायक वन गया था । उसकी आंचलिक मानसकिता समाप्त हो गई थी ।
ऐसे में स्वाभाविक था कि अनेक भूगोलविद् देश के नागरिकों को इतिहास और भूगोल के रहस्यमय सम्बन्धों के प्रति जागरूक करने और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राज्य के भावी महत्व के खवारे में उनके ज्ञानवर्धन का प्रयास करें । ऐसे विद्वानों में हैंस वगिर्ट का स्थान सर्व प्रमुख था ।
वीगर्ट के शब्दों में संयुक्त राज्य की सबसे महत्वपूर्ण समकालीन समस्या अपने नागरिकों की बीते युग की भौगोत्निक मानसिकता को समाप्त करना तथा उन्हें यथार्थ के प्रति जाग्रत करना था । इसके लिए आवश्यक था कि भूराजनीतिक मनन चिन्तन को मर्केटर प्रक्षेप पर आधारित पृथ्वी की समतल तथा चौकोर परिकल्पना के स्थान पर उसके वास्तविक पिण्डाकार स्वरूप पर आधारित किया जाए ।
आवश्यक यह भी था कि देशवासी विश्व के मानचित्र तथा विश्व राजनीति को परिवर्तनशील अन्तरराष्ट्रीय ऐतिहासिक-राजनीतिक घटनाक्रम और विकासशील तकनीकी ज्ञान की पृष्ठभूमि तथा मध्य यूरेशियाई हृदय स्थल के बदरने उत्तरी अटलांटिक सागर के तटीय क्षेत्रों के परिप्रेक्ष्य में देखें ।
वीगर्ट ने स्पष्ट किया कि अपने अण्डाकार बाहरी रूपरेखा के होते हुए भी मैकिंडर का मानचित्र मरकेटर प्रक्षेप पर बनाया गया था जिस पर अक्षांश रेखा अपनी वास्तविक लम्बाई से दुगुने आकार की प्रदर्शित होती है तथा ध्रुवों की तरफ बढ़ने पर अक्षांशीय मापक अपने वास्तविक आकार से उतरोत्तर अधिकाधिक बड़ा प्रदर्शित होता है ।
यही कारण है कि मेकिंडर के मानचित्र पर हृदयस्थल अपने वास्तविक आकार से बहुत बड़ा दिखाई देता है । मेकिंडर द्वारा दिए गए मानचित्र पर अक्षांश और देशान्तर रेखाओं का जाल खींच कर वगिर्ट ने स्पष्ट किया कि पृथ्वी के वास्तविक गोलाकार स्वरूप के संदर्भ में हृदयस्थल के सही-सही निरूपण के लिए आवश्यक है कि उसको समान दूरी वाले तथा उत्तरी ध्रुव पर केन्द्रित एजिमूथल प्रक्षेप पर प्रदर्शित किया जाए ।
बिना इसके मैकिंडर की हृदयस्थल संकल्पना में निहित यूरोप केन्द्रित पूर्वाग्रह का रहस्योदघाटन नहीं हो सकता । एजिमुथल प्रक्षेप पर बने मानचित्र के आधार पर ही अमरीकी नागरिक इस तथ्य को भली प्रकार पहचान सकेंगे कि यूरोप तथा एशिया आर्कटिक सागर के आर-पार एक दूसरे के आमने-सामने स्थित हैं न कि सात समुद्र पार एक दूसरे से बहुत दूर, जैसा कि मेकिंडर के बेलनाकार प्रक्षेप पर खींचे गए मानचित्र से आभास होता रहा है ।
इस प्रकार के मानचित्र के अभाव से विश्व राजनीति में संयुक्त राज्य की सही भूमिका का अनुमान नहीं लग सकता था । वीगर्ट के सहयोगी स्टीफैन्सन ने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित किया कि वायु यातायात के युग में एशिया तथा उत्तरी अमरीका के बीच सम्पर्क का सबसे प्रभावी तरीका आर्कटिक सागर के ऊपर से जाने वाले वायुमार्ग हैं । स्टीफैन्सन (1943) के शब्दों में वायुयान चालकों ने पृथ्वी को बेलनाकार पाया था परन्तु उसे पिण्डाकार बना दिया है ।