Read this article to learn about the view of Kohan and Rozenthal on the study of political system in Hindi language.
कोहेन और रोज़ेन्थाल के विचार:
व्युत्पत्ति प्रकार्य पद्धति के प्रकाशन के एक वर्ष बाद कोहेन तथा रोज़ेन्थाल (1971) ने “ए जिओग्राफिकल माडल फार पोलिटिकल सिस्टम्स एनैलिसिस” शीर्षक से एक अन्य पद्धति का प्रकाशन किया । शीर्षक में प्रयुक्त व्यवस्था (सिस्टम) शब्द इसे समकालीन समाज वैज्ञानिक अवधारणा से सीधे तौर पर जोड़ता हुआ लगा अत: राजनीतिक भूगोल में इसका समुचित स्वागत हुआ ।
अपने शोध पत्र की प्रस्तावना में दोनों लेखकों ने रेखांकित किया कि उनके द्वारा प्रस्तुत पद्धति राजनीतिक प्रक्रियाओं (अर्थात् प्रशासनिक नीतियों के कार्यान्वयन) और उनके क्षेत्रीय परिणामों के अध्ययन पर केन्द्रित है । शीर्षक में प्रस्तुत व्यवस्था शब्द का तात्पर्य था कि अध्ययन की जाने वाली ये प्रक्रियाएं राज्यों के व्यवस्थात्मक स्वरूप का परिणाम थी ।
अत: ध्यातव्य है कि हार्टशोर्न, जोन्स, तथा दीक्षित द्वारा प्रस्तुत अध्ययन विधियों के विपरीत कोहेन तथा राजेन्थल द्वारा प्रस्तावित पद्धति राज्य अथवा राजनीतिक संगठनों के अध्ययन पर केन्द्रित न होकर राजनीतिक प्रक्रियाओं के क्रियान्वयन से उत्पन भूदृश्यों के विश्लेषण पर केन्द्रित थी ।
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डर्वेण्ट हविट्लसी (1935) द्वारा प्रतिपादित ”विधि-और-भूदृश्य” (ला-लैण्डस्केप) के अन्तर सम्बन्ध पर केन्द्रित अध्ययन इसकी प्रेरणा का मूल स्रोत था । सक्षेप में कोहेन और रोजेन्थाल के लेख की आधारभूत मान्यताएं इस प्रकार थीं ।
राजनीतिक प्रक्रिया | Political Process
राजनीतिक प्रक्रिया राजनीतिक व्यवस्था का अभिन्न अंग है । व्यवस्था दो प्रकार की होती हैं । एक खुली तथा दूसरी बन्द व्यवस्था (ओपेन एण्ड क्लोज्ड सिस्टम) । दोनो व्यवस्थाएं संरचनात्मक रूप में एक दूसरे से भिन्न हैं ।
अत: उनके संचालन की राजनीतिक प्रक्रियाएं और उनके क्षेत्रीय प्रभाव एक दूसरे से भिन्न प्रकार के होते हैं । दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि राजनीतिक प्रक्रियाओं का स्वरूप इस बात पर निर्भर है कि विद्यार्थी उनको किस स्तर की व्यवस्था के परिप्रेक्ष्य में देख रहा है, स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय, अथवा भूमण्डलीय ।
तीसरी मुख्य बात है कि राजनीतिक प्रक्रिया ममय सापेक्ष प्रक्रिया है । इसको पूरा होने और अपने अन्तिम उददेश्य को प्राप्त करने में समय लगता है । इनको स्थानीय स्तर पर प्रभावी होने में बहुत कम समय लगता है; क्षेत्रीय रूप से प्रभावी होने में उससे अधिक तथा राष्ट्रीय स्तर की व्यापकता प्राप्त करने में सबसे अधिक ।
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चौथी बात यह है कि सम्पूर्ण राजनीतिक प्रक्रिया सामाजिक शक्तियों और सामाजिक आवश्यकताओं की उपज है । अत: राजनीतिक प्रक्रिया तथा सामाजिक संरचना में अन्योन्याश्रयी सम्बन्ध है । सामाजिक संरचना के परिप्रेक्ष्य में देखने से भिन्न-भिन्न राजनीतिक प्रक्रियाएं परस्पर सम्बद्ध घटनाएं (एपीसोड) प्रतीत होती हें तथा सम्बद्ध राजनीतिक प्रक्रिया ओर भूदृश्य निर्माण में सम्बन्ध स्थापित करना सरल और अपेक्षाकृत अधिक बोधगम्य हो जाता है ।
क्षेत्रीय प्रभाव अथवा भूदृश्य परिवर्तन:
यहां क्षेत्रीय शब्द से तात्पर्य राजनीतिक प्रक्रियाजनित प्रभाव के क्षेत्रीय वितरण प्रारूप से है । प्रक्रियाओं के कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप एक साथ ही ”प्रभाव क्षेत्रों” (एक्शन एरिया) और ”प्रभाव विरोधी क्षेत्रों” (काउण्टर एक्शन एरिया) का जन्म होता है ।
प्रथम प्रकार के क्षेत्र वे हैं जहां सम्बद्ध राजनीतिक प्रक्रिया का स्वागत होता है तथा दूसरे प्रकार के क्षेत्र वे हैं जिन पर प्रक्रिया विशेष का विपरीत प्रभाव पड़ता है अत: स्थानीय जनता उसका विरोध करती है ।
परन्तु कालान्तर में प्रशासन और स्थानीय जनता के परस्पर ताल मेल के परिणामस्वरूप सम्बद्ध प्रक्रिया को पूर्ण व्यापकता प्राप्त हो जाती हे । यहां खुली और बन्द व्यवस्था में भूदृश्य निर्माण प्रक्रिया में निहित मूलभूत अन्तर को रेखांकित करना आवश्यक है ।
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खुली व्यवस्था मुक्त अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धों को वढ़ावा देती है, इसके अन्तर्गत देश की अर्थव्यवस्था में अन्तरराष्ट्रीय व्यापार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । अत: बड़े-बड़े बन्दरगाहों का निर्माण होता है । तटीय नगरों का आकार बृहत हो जाता है । आर्थिक उत्पादन विशेषीकरण की ओर उन्मुख होता है, तथा अन्तरराष्ट्रीय जीवन पद्धति और वास्तुकला आदि भूदुश्य निर्माण में स्पष्टतया परिलक्षित होते हैं ।
इसके विपरीत बन्द व्यवस्था आत्मनिर्भर व्यवस्था है । इसमें बाहरी व्यापार न्यूनतम होता है । आर्थिक उत्पादन में विशेषीकरण की प्रवृत्ति सीमित होती है अत: देश की राजधानी आन्तरिक स्थिति वाली और वहुधा देश का सबसे बड़ा नगर होता है । इस व्यवस्था में भूदृश्य निर्माण में क्षेत्रीय समरूपता दिखाई देती हैं तथा उसमें अन्तरराष्ट्रीय प्रभाव सीमित होते हैं ।
इस पद्धति में निहित अध्ययन के विभिन्न चरण चित्र 2.3 में प्रस्तुत हें:
उपसंहार:
सत्तर के दशक में कुछ समय के लिए राजनीतिक भूगोल मात्र निर्वाचन परिणामों पर केन्द्रित अध्ययन बन गया था । फलस्वरूप अध्ययन के विषय के रूप में ”राज्य” दृष्टि से ओझल हो गया । अस्सी के दशक में विश्व व्यवस्थापरक राजनीतिक भूगोल के प्रभाव में राजनीतिक भूगोल के नए अध्येताओं को राज्य मुख्यतया विश्व आर्थिक व्यवस्था में निहित राजनीति के अन्तिम सत्य की अभिव्यक्ति मात्र दिखने लगा ।
परिणामस्वरूप राज्य के अध्ययन के लिए अध्ययन विधि की खोज का सिलसिला समाप्त हो गया । विश्वव्यवस्था परिदृष्टि के प्रभाव में राजनीतिक भूगोल के अध्ययन का केन्द्रीय घर विश्व आर्थिक व्यवस्था की संचालन प्रक्रिया के रहस्योद्घाटन में ही निहित माना जाने लगा ।
परन्तु वीसवीं सदी के अन्तिम वर्षों में राजनीतिक भूगोल की अवधारणा में दूरगामी परिवर्तन हुए हैं । राजनीतिक भूगोल के विद्यार्थी राज्य को पुन: एक स्थानिक और सोद्देश्य राजनीतिक संगठन के रूप में देखने लगे हें साथ ही इसका अध्ययन राजनीति की स्थानिकता (स्पेसियलटी) पर केन्द्रित हो गया है । परिणामस्वरूप इसका विषय क्षेत्र और व्यापक हो गया है ।