माखनलाल चतुर्वेदी । Biography of Makhanlal Chaturvedi in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. जीवन वृत एवं रचनाकर्म ।
3 उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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कवि माखनलाल चतुर्वेदी को एक ”भारतीय आत्मा” के नाम से जाना जाता है । वह राष्ट्र के उन क्रान्तिकारी कवियों में से एक हैं, जिन्होंने न केवल स्वतन्त्रता आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया, वरन् राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत रचनाएं भी लिखीं । उनकी रचनाओं में राष्ट्रप्रेम और गांधीवादी दर्शन की छाप है, जिन पर छायावाद, रहस्यवाद व प्रगतिवाद का प्रभाव भी है ।
2. जीवन वृत्त एवं रचनाकर्म:
माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल, 1888 में मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के बावरी नामक ग्राम में हुआ था । उनके पिता श्री नन्दलाल चतुर्वेदी ग्रामीण पाठशाला में अध्यापक थे । उनकी शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई थी । घर पर ही अंग्रेजी, सस्कृत, बंगला, मराठी, गुजराती, उर्दू आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया । उनको स्वतन्त्रता आन्दोलन के कारण जेल भी जाना पड़ा था ।
उन्होंने ”कर्मवीर” तथा ”प्रताप” नामक पत्रिका का सम्पादन भी किया था । चतुर्वेदीजी को साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा सागर विश्वविद्यालय से डी.लिट. की उपाधि भी प्रदान की गयी । भारत सरकार ने उनको साहित्यिक सेवाओं के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया । उनकी मृत्यु सन् 1968 में हुई ।
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उन्होंने कर्मवीर के माध्यम से भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम को नव जागृति प्रदान की । कर्मवीर के प्रथम अंक में उन्होंने लिखा था-हम अपनी जनता के सम्पूर्ण स्वरूप के उपासक होंगे । हम स्वतन्त्रता तथा मुक्ति के उपासक हैं । जो हमारी स्वतन्त्रता को रोकेगा, उस पर पहला एवं घातक प्रहार होगा ।
कर्मवीर में ही माखनलाल चतुर्वेदीजी ने 6 पंक्तियों की जो कविता लिखी थी, वह राष्ट्रीयता की पहचान बन गयी:
चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं ।
चाह नहीं मैं प्रेमी माला में बिन्ध प्यारी को ललचाऊं ।
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चाह नहीं सम्राटों के शव पर, हे हरि डाला जाऊं ।
चाह नहीं देवों के सिर पर, चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊं ।
मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक ।
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जायें वीर अनेक ।।
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इस प्रकार उन्होंने “कर्मवीर” के माध्यम से तत्कालीन अंग्रेज सरकार के गोवध की सरकारी तैयारी पर ओजस्वी, प्रभावशाली लेख लिखकर जनता के प्रतिनिधिस्वरूप अपने आक्रोश को व्यक्त किया । “हिमकिरीटिनी’, “हिमतरंगिनी” के माध्यम से उन्होंने राष्ट्रवादी स्वर को मुखरित किया । ”जवानी” शीर्षक कविता में देश की सोयी हुई तरुणाई को आत्मबलिदान हेतु जागृत किया है ।
प्राण अन्तर में लिए पागल जवानी ।
कौन कहता है कि विधवा हुई हो आज पानी ।।
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द्वार बलि का खोल चल भूडोल कर दे ।
दो हथेली है कि पृथ्वी गोल कर दे ।।
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विश्व असि का नहीं, संकल्प का है ।
हर प्रलय का कोण, कायाकल्प का है ।।
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साहित्य देवता नामक गद्य पुस्तक में उन्होंने ओजस्विनी भाषा में लिखा है:
क्या वीणा की स्वर लहरी का, सुनूमधुरतम नाद
छि: मेरी प्रत्यंचा भूले, अपना वह उन्माद ।।
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कवि माखनलाल चतुर्वेदी की भाषा संस्कृतनिष्ठ उर्दू, फारसी के प्रभाव से मुक्त है । उनकी भाषा में लाक्षणिकता, प्रतीकात्मकता है । ओज गुण प्रधान भाषा-शैली के साथ-साथ अनुप्रास, रूपक, उत्प्रेक्षा का यथास्थान प्रयोग हुआ है । उनकी कुछ कविताएं प्रकृति प्रेम से भी सम्बन्धित हैं ।
3. उपसंहार:
माखनलाल चतुर्वेदीजी राष्ट्रीय भावधारा के ओजस्वी कवि रहे हैं । राष्ट्रकवि के रूप में उन्होंने तत्कालीन पराधीन भारत में राष्ट्रीय जागृति का मन्त्र फूंका । उनकी ओजस्वी वाणी के कारण अंग्रेज सरकार उनकी रचनाओं पर प्रतिबन्ध लगवा देती थी । अत: उन्होंने ”एक भारतीय आत्मा” के नाम से लेखन किया । साहित्य के माध्यम से राष्ट्रसेवा के लिए भारतवर्ष उनका चिरऋणी रहेगा ।