फादर कामिल बुल्के । Biography of Father Camille Bulcke in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. जीवन परिचय एवं रचनाकर्म ।
3. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
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एक विदेशी होते हुए भी हिन्दी के प्रति अगाध प्रेम, अनन्य निष्ठा एवं उसके प्रति समर्पण एवं सेवा-भाव रखने वाले एक महान् व्यक्तित्व थे-फादर कामिल बुल्के । फादर कामिल बुल्के आज भी उन लोगों के लिए प्रेरक, मार्गदर्शक हैं, जो अपनी भाषा की मातृसेवा करना छोड़कर उसके प्रति निष्ठा त्यागकर, विदेशी भाषा अंग्रेजी के मोहजाल में फंसे हुए हैं, और उसे ही अपनी वास्तविक भाषा मान रहे हैं । यहां तक कि अपने देश की प्रादेशिक भाषाओं को ठुकराकर, विदेशी भाषा को स्वीकार कर भारत के स्वाभिमान को भी आघात पहुंचा रहे हैं ।
फादर कामिल बुल्के ने हिन्दी सेवा के साथ-साथ तुलसी एवं उनके ‘रामकाव्य’ को अपने शोध का विषय बनाकर राम तुलसी तथा भाषा के प्रति अपना आदर भाव प्रदर्शित किया है । हिन्दी के लिए किये गये उनके कार्यो के कारण वे हमारे बीच हमेशा सम्मान के पात्र रहेंगे ।
2. जीवन परिचय एवं रचनाकर्म:
फादर कामिल बुल्के का जन्म 1 सितम्बर, 1909 को बेल्जियम के बेस्ट पलैडर्स प्रान्त के रम्स केपैले ग्राम में हुआ था । उनकी मातृभाषा फ्लेमिश थी । उनकी प्रारम्भिक शिक्षा स्थानीय स्तर पर हुई थी । उन्होंने इंजीनियरिंग पढ़ाई केन विश्वविद्यालय से पूर्ण की ।
इसके पश्चात वे नीदरलैण्ड के रोमन कैथोलिक संघ के धर्म प्रचारक बन गये । इसी सिलसिले में वे 1935 में भारत आये थे । यहां रहकर उन्होंने भारतीय जनजीवन से जुड़ने के लिए हिन्दी सीखी । एक विज्ञान के अध्यापक के रूप में वे दार्जिलिंग के मिशन स्थित संगठन में सेवाएं देने पहुंचे ।
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सन 1941 को उन्होंने भारतीय साहित्य जानने की इच्छा से इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी॰ए॰ किया । फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय से उन्होंने हिन्दी में एम॰ए॰ किया । एम॰ए॰ करने के पश्चात उनकी रुचि ‘रामकाव्य’ की ओर बड़ी । वे ईसा मसीह को उनके आदर्शो के समीप पाते थे ।
उन्होंने डी॰फिल॰ की उपाधि के लिए “रामकथा: उत्पत्ति एवं विकास” विषय स्वीकारा । डॉ॰ धीरेन्द्र वर्माजी के अनुसार “उनका यह शोध रामकथा सम्बन्धी समस्त सामग्री का कोश है ।” वे न केवल तुलसी और रामकाव्य के शोधार्थी थे, वरन वे प्रतिवर्ष तुलसी जयन्ती के अवसर पर तत्सम्बन्धी व्याख्यान देने हेतु स्थान-स्थान पर पहुंच जाते थे ।
सन् 1950-1971 तक वे सेंट जेवियर कॉलेज रांची में हिन्दी व संस्कृत के विभागाध्यक्ष के पद पर आसीन रहे । उन्होंने ‘रामकाव्य’ के साथ-साथ अपने धर्म के प्रचार-प्रसार का कार्य भी किया । ‘बाइबिल’ का हिन्दी अनुवाद भी किया ।
हिन्दी भाषियों के लिए ‘मुक्तिदाता’ तथा ‘सुसमाचार’ नाम से धार्मिक प्रवचनों का आकाशवाणी से प्रसारण हेतु सन्देश दिया । उन्होंने ईसाई व हिन्दी भाषा सम्बन्धी कुछ स्फुट लेख भी लिखे । उनका निधन दिल्ली में 17 अगस्त, 1982 को हुआ ।
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3. उपसंहार:
हिन्दी के समर्थन में फादिर कामिल बुल्के ने कहा था कि ”अंग्रेजों ने जान-बूझकर हिन्दी का प्रचार-प्रसार नहीं होने दिया; क्योंकि वे इस बात को जानते थे कि हिन्दी भाषा के प्रसार से लोगों के बीच एकता बनी रहेगी । मैं स्वयं को हिन्दी भाषी समझता हूं ।
सचमुच हिन्दी भाषियों की हिन्दी के प्रति उदासीनता को देखकर मुझे लज्जा आती है । मुझे समझ में नहीं आता है कि हिन्दी प्रान्तों की जनता अंग्रेजी माध्यम से शासन को कैसे बरदाश्त करती है ?” यह उदगार ही फादिर कामिल बुल्के के हिन्दी प्रेम को दर्शाते हैं ।