वर्षा ऋतु । “The Rainy Season” in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. वर्षा का आगमन ।
3. प्रकृति पर वर्षा का प्रभाव ।
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4. महत्त्व ।
5. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
जब सूर्य की प्रचण्ड किरणें धरती को जलाने लगती हैं, ऐसे में धरती के सभी प्राणी आकुल-व्याकुल हो उठते हैं, नदियां, ताल-तलैया सब सुख जाते हैं, तब प्यासी धरती पानी के लिए तड़प उठती है । ऐसे समय में ऋतुओं की रानी बरखा अपनी रिमझिम फुहारों के साथ धरती को शीतलता देने और उसकी प्यास बुझाने आ पहुंचती है ।
सारी प्रकृति प्रसन्नता से झूम उठती है । सारा जन-जीवन प्यास से तृप्त होकर खुशी से गाने लगता है और शुरू हो जाता है कृषिप्रधान देश भारत का जन-जीवन ।
2. वर्षा का आगमन:
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उमड़-घुमड़कर छाये हुए आकाश में काले-काले बादल जब टप-टप कर बरस पड़ते हैं, तो समझ लो कि वर्षा रानी आ गयी । ऋतुओं की रानी वर्षा का आगमन वस्तुत: मानसून के साथ जुड़ा हुआ है । सामान्यतया इसका समय 15 जून से 17 सितम्बर तक होता है, किन्तु मानसून के आगमन में देर-सवेर की वजह से समय थोड़ा परिवर्तित हो जाता है ।
वर्षाकाल में धरती मानो हरियाली की चादर ओढ़े इतराने लगती है । जल में नहाये हुए पेड़-पौधे ठण्डी वायु के झोकों के साथ लहराने लगते हैं । पक्षी वनों, कुंजों में मधुर ध्वनि गाने लगते हैं । नदियों और तालाबों का कल-कल करता हुआ बड़ी तेजी से बहता हुआ पानी, वर्षा की महिमा को बिखेरने लगता है ।
काले-काले मेघ गर्जन-तर्जन करते हुए बिजली की चमक के साथ धरती पर बरस पड़ते हैं । बगुलों की सफेद पंक्तियां आकाश में उड़ती हुई अत्यन्त सुन्दर लगती हैं । वर्षा के आगमन का चित्र खींचते हुए कवि सेनापतिजी लिखते हैं:
दामिनी दमक, सुरचाप की चमक, स्यामघटा की धमक अति घोर-घनघोर तें ।
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कोकिला-कलापी कल कूजत है, जित-तित शीतल है,
हीतल समीर झकझोर तें । सेनापति, आवन कइयो है
मन भावन तै सु लाग्यों तरसावन विरह जुर जीर तें ।।
आयो सखि, मदन सरसावन ।
लायों है, बरसावन सलिल चहुं ओर तें ।
अर्थात वर्षा ऋतु का आगमन होते ही कोयल, मोर सुन्दर आवाजें करते हुए यहां-वहां दिखाई पड़ते हैं । ठण्डी वायु के झोंकों से धरती का हृदय शीतल हो उठता है । सेनापति कवि कहते हैं कि विरही जनों को यह ऋतु प्रियतम की याद दिलाती है ।
3. प्रकृति पर प्रभाव:
वर्षा का आगमन होते ही समस्त प्रकृति पर उसका प्रभाव व्यापक रूप से दिखाई देने लगता है । जहां वर्षा के आते ही वातावरण एकदम सुहावना हो उठता है, वहीं नदी-नालों, तालाबों में लबालब जल भर जाता है ।
पेड़-पौधे नये-नये पत्तों से ढक जाते हैं । वनों-उपवनों में तो हरियाली के दर्शन होने लगते हैं । धरती पर नये-नये अंकुर फूट पड़ते हैं । किसान हल लेकर खेतों की ओर निकल पड़ते हैं ।
सावन-भादो की इस हरियाली में तीज, नागपंचमी, रक्षाबन्धन, कजली, हलषष्ठी, जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी जैसे त्योहारों का आनन्द दूना हो जाता है । बच्चे, बूढ़े, जवान छतरी, रेनकोट के साथ वर्षा की फुहारों का आनन्द लेते दिखाई पड़ते हैं ।
4. वर्षा का महत्त्व:
भारत एक कृषिप्रधान देश है । यहां की 80 प्रतिशत से भी ज्यादा की आबादी गांवों में ही निवास करती है । गांवों की अधिकांश जनता खेती पर ही निर्भर है । सिंचाई सुविधाओं का पूरी तरह से विस्तार न होने के कारण जनता वर्षा पर ही निर्भर है । कृषि का आधार भी वर्षा ही है ।
कृषि हमारे जीवनयापन का साधन है, अर्थव्यवस्था का आधार है । वर्षा के बिना किसी प्रकार का उत्पादन सम्भव ही नहीं है । यह सत्य है कि जिस वर्ष वर्षा अच्छी होती है, तो फसल उत्पादन भी अच्छा होता है । हरी-भरी घास उगने के कारण पशुओं को चारा भी अच्छा प्राप्त होता है । पशुओं को चारा अच्छा मिलने के कारण उनसे अच्छा दूध प्राप्त होता है ।
5. उपसंहार:
वर्षा ऋतु मानव जीवन का आधार है । वर्षा के बिना प्रकृति में जीवन सम्भव नहीं है; क्योंकि इसके बिना अन्न उत्पादन असम्भव है । इस प्रकार वर्षा हमारे जीवन की सुख-समृद्धि का आधार है । वहीं अधिक वर्षा से बाढ़ की विनाशकारी स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जो खेतों की फसलों को नष्ट कर देती है । जन-धन को अपार हानि पहुंचाती है ।
इस में कीड़े-मकोड़े, सर्प, बिच्छू आदि कई प्रकार के जहरीले कीड़े निकलते हैं, जिनसे मनुष्य के जीवन को जान का खतरा हो सकता है । वर्षा में मक्खियों के फैलने से हैजा का प्रकोप बढ़ जाता है । रास्ते में अधिक पानी की वजह से कीचड़ बढ़ जाता है । वर्षा ऋतु में होने वाली इन हानियों से बचा जा सकता है, किन्तु इतना सत्य है कि वर्षा के बिना जीवन सम्भव नहीं है ।
अत: इस का होना हमारे लिए बहुत जरूरी है । वर्षा की प्रत्येक बूंद हमारे लिए प्राणदायिनी है । इसकी महत्ता हमें कम वर्षा, अर्थात् अनावृष्टि से ज्ञात हो जाती है । जो भी हो, वर्षा हमारे जीवन का प्राणाधार है ।