भक्तिकाल । “Pre-Medieval Era” in Hindi Language!
भक्तिकाल (पूर्व मध्यकाल) की प्रवृत्तियां:
भक्तिकाल का विभाजन: (1375 से 1700 तक)
1. निर्गुण काव्यधारा: (क) ज्ञानमार्गी (ख) प्रेममार्गी
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2. सगुण काव्यधारा: (क) रामभक्ति शाखा (कृष्णभक्ति शाखा)
भक्तिकाल की विशेषताएं:
1. साहित्य का स्वर्णयुग: हिन्दी साहित्य के इतिहास में भक्तिकाल अपनी असाधारण एवं अभूतपूर्व विशेषताओं के परिणामस्वरूप हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग कहा जाता है । बाबू श्यामसुन्दर दास के शब्दों में: ”जिस युग में कबीर, जायसी, सूर, तुलसी जैसे कवियों की वाणी देश के कोने-कोने में फैली थी, उसके साहित्य को सामान्यत: भक्तियुग कहते हैं । निश्चय ही वह हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग था ।”
2. भक्ति भावना की प्रधानता: इस काल के कवियों ने अपने-अपने आराध्य के प्रति अटूट, एकनिष्ठ भक्ति भावना का प्रतिपादन किया है । मीरा और सूरदास ने कृष्ण के प्रति, तो तुलसी ने राम के प्रति भक्ति भावना प्रदर्शित की है ।
3. गुरु महिमा: भक्तिकालीन कवियों ने गुरु की महिमा का बखान करते हुए उसे सच्चा मार्गदर्शक बताया है । कबीर ने तो गुरा गोविन्द दोऊ खड़े काके लागू पाय । बलिहारी गुरा आपनी गोविन्द दियो बताय ।। कहकर गुरा को ईश्वर से भी ऊंचा स्थान दिया है ।
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4. नाम महिमा: भक्तिकाल के कवियों ने ईश्वर के नाम स्मरण पर विशेष बल दिया है ।
5. मानवतावादी भावना: भक्तिकालीन कवियों ने जीव (मनुष्य) को ब्रह्म का स्वरूप मानते हुए राम और रहीम की भी एकता स्थापित करने पर बल दिया है ।
6. भारतीय संस्कृति का चित्रण: भक्तिकाल की रचनाओं में भारतीय संस्कृति, धर्म, दर्शन व आध्याता को विशेष महत्त्व दिया गया है ।
7. जाति-पांति, छुआछूत का विरोध: भक्तिकालीन काव्यधारा में जाति-पांति, छुआछूत (अस्पृश्यता) की भावना का विरोध किया गया है । कबीर ने लिखा है: ”जाति न पूछौ साधु की पूछ लीजिये ज्ञान ।”
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8. अहिंसा पर बल: भक्तिकालीन कवियों ने मानव ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण प्राणिमात्र की हिंसा का विरोध किया है ।
9. बाह्य आडम्बरों का विरोध: भक्तिकाल के कवियों ने धर्म के नाम पर किये जाने वाले पूजापाठ, व्रत, उपवास, कर्मकाण्ड इत्यादि का विरोध किया है, जिसमें माला फेरना, सिर मुण्डाना, तीर्थाटन करना, रोजा रखना, अजान देना आदि बाह्य आडम्बरो का विरोध किया है ।
10. विभिन्न मत: मतान्तरों का प्रभाव-भक्तिकाल में सगुण, निर्गुण, ज्ञानमार्गी, प्रेममार्गी, द्वैतवाद, अद्वैतवाद आदि का प्रभाव दिखाई देता है ।
11. शान्त रस का विशेष प्रयोग: भक्तिकालीन कवियों की रचनाओं में शान्त रस का विशेष प्रयोग हुआ है ।
12. विविध छन्दों का प्रयोग: दोहा, चौपाई, सोरठा, रोला, कवित्त आदि विशेष छन्दों का प्रयोग किया है ।
13. ब्रजभाषा एवं अवधी भाषा का प्रयोग: भक्तिकालीन कवियों ने ब्रज एवं अवधी भाषा को ही अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया है ।
14. लोककल्याण की भावना: भक्तिकाल की रचनाओं में लोककल्याण, समाजसुधार की भावना के प्रति विशेष आग्रह दिखाई पड़ता है ।
भक्तिकाल की रचनाएं:
1. रामचरित मानस, कवितावली, गीतावली, दोहावली, विनयपत्रिका रामलला नहछू । – तुलसीदासजी
2. सूरसागर, सूरसारावली, साहित्यलहरी – सूरसागर
3. गीत गोविन्द की टीका, राग गोविन्द नरसीजी का म्हारा (टीका) – मीराबाई
4. प्रेम वाटिका – रसखान
5. मदनाष्टक, बरबै नायिकाभेद – रहीम
6. पदमावत – जायसी
7. मधु मालती – मंझन
8. बीजक (साखी, सबद, रमैनी) – कबीर
9. रासपंचाध्यायी, भंवर गीत सिद्धान्त पंचाध्यायी । – नन्ददास
10. नाभादास, भकाकाल – अष्टयाम
सगण भक्तिकाल धारा की विशेषताएं
मीराबाई रसखान रहीम जायसी मंझन कबीर
नन्ददास अष्टयाम ।
सगुण भक्तिकाल धारा की विशेषताएं:
1. सगुण भक्तिकाव्य धारा के कवियों ने सगुण राम एवं कृष्ण के प्रति अपने भक्तिभाव को प्रकट किया है ।
2. अवतारवाद पर बल देते हुए इस काल के कवियों ने राम एवं कृष्ण को भगवान् विष्णु का ही अवतार माना है ।
3. गुरा महिमा का गान-अरु महिमा का गान करते हुए सगुणमार्गीय कवियों ने गुरा को सच्चा मार्गदर्शक बताया है ।
4. राम एवं कृष्ण की लीलाओं का गुणगान करते हुए सगुणमार्गीय कवियों ने अपने भक्ति भाव को प्रकट किया है ।
5. सगुणमार्गीय कवियों ने राम एवं कृष्ण के शक्ति एवं सौन्दर्य का स्थान-स्थान पर वर्णन किया है ।
6. सगुणमार्गीय कवियों ने अपने-अपने आराध्य के प्रति सख्य, दास्य एवं माधुर्य भाव की भक्ति का प्रतिपादन भी किया है ।
7. ब्रज, अवधी तथा राजस्थानी भाषा का प्रयोग, सगुणमार्गीय कवियों ने विशेषत: किया है ।
8. दोहा, सोरठा, चौपाई पदावलियों का प्रयोग इस मार्ग के कवियों ने विशेषत: किया है ।
रचनाएं:
1.रामचरितमानस, विनय-पत्रिका, गीतावली दोहावली, कविता रामाज्ञाप्रश्न, हनुमान बाहुक – तुलसीदास
2. सूरसागर, साहित्य लहरी, सूर सारावली – सूरदास
3. गीत गोविन्द की टीका, नरसीजी का म्हारा राग गोविन्द । – मीराबाई
4. प्रेमवाटिका – रसखान
5. भवरगीत, रास पंचाध्यायी, सिद्धान्तपंचाध्यायी – नन्ददास
राम भक्ति शाखा की विशेषताएं:
1. सगुण राम की उपासना ।
2. भगवान राम के शक्तिशील, सौन्दर्य का चित्रण ।
3. राम की मर्यादापूर्ण छवि का प्रतिपादन ।
4. राम की लीलाओं का ज्ञान ।
5. भगवान राम की लोककल्याणकारी भावना का चित्रण ।
6. राम-राज्य के आदर्शो का प्रतिपादन ।
7. गुरा महिमा का ज्ञान ।
8. भारतीय संस्कृति की विशेषताओं का वर्णन ।
9. अवधी भाषा का प्रयोग ।
10. छन्द, दोहा, चौपाई, सोरठा ।
11. दास्य भाव की भक्ति का प्रतिपादन ।
रचनाएं:
1. रामचरितमानस, विनय पत्रिका, गीतावली दोहावली । – तुलसीदास
2. हितोपदेश, ध्यानमंजरी – अग्रदास
3. भक्त-माल, अष्टयाम – नाभादास
कृष्ण भक्ति शाखा की विशेषताएं:
1. सगुण कृष्ण की उपासना ।
2. अवतारवाद पर बल । (कृष्ण विष्णु के अवतार हैं)
3. कृष्ण की लीलाओं का ज्ञान
4. लीला पुरुष के रूप में उनकी छवि का चित्रांकन ।
5. गुरा महिमा का ज्ञान ।
6. सख्य एवं माधुर्य भाव की भक्ति ।
7. ब्रजभाषा का प्रयोग ।
8. गेय मुक्तक पद शैली ।
9. वात्सल्य व शृंगार की प्रधानता ।
रचनाएं:
1. सूरसागर, साहित्य लहरी सूर सारावली – सूरदास
2. गीत गोविन्द की टीका, राम गोविन्द – मीराबाई
3. रास पंचाध्यायी, भंवर गीत – नन्ददास
4. प्रेम वाटिका, सुजान, रसखान – रसखान
निर्गुणमार्गी शाखा की विशेषताएं:
1. ईश्वर की निराकार, निर्गुण रूप में उपासना ।
2. अवतारवाद का विरोध ।
3. मूर्ति पूजा का खण्डन ।
4. आत्मा एवं परमात्मा के प्रति एकात्मक भाव ।
5. गुरु महिमा का गान ।
6. बाह्य आडम्बरों का विरोध ।
7. आत्मा और परमात्मा के विरह-मिलन का चित्रण ।
8. रहस्यवादी भावना ।
9. प्रतीकों का प्रयोग ।
10. सधुक्कड़ी एवं ब्रजभाषा का प्रयोग ।
निर्गुणमार्गी कवि:
1. कबीर – बीजक (साखी सबद रमैनी)
2. मलिक मुहम्मद जायसी – पद्मावत, अखरावट
3. उसमान – चित्रावली
4. मंझन – मधु-मालती
5. नूर मुहम्मद – इन्द्रावती
6. सुन्दर दास – सुन्दर विलास
7. मलूक दास – ज्ञान बोध
ज्ञानमार्गी शाखा की विशेषताएं:
1. ज्ञान को ही भक्ति का आधार मानना ।
2. हठयोग की साधना पर बल ।
3. आत्मा एवं परमात्मा को एक मानना ।
4. सांसारिक नश्वरता का प्रतिपादन ।
5. समन्वयवाद पर बल ।
6. माया-मोह का विरोध ।
7. प्रतीकों का प्रयोग ।
8. अलंकारों में-अनुप्रास, रूपक, अन्योक्ति विशेषत: प्रयुक्त हैं ।
9. गेय मुक्तक पदों का प्रयोग ।
ज्ञानमार्गी कवि:
1. कबीर – बीजक
2. रैदास – स्फुट पद ।
प्रेममार्गी काव्यधारा की विशेषताएं:
1. ईश्वर को प्राप्त करने का आधार सच्चा प्रेम ।
2. प्रेम भावना की प्रधानता ।
3. अलौकिक एवं दिव्य सौन्दर्य से युक्त नायिका सौन्दर्य का वर्णन ।
4. विरह वर्णन में मार्मिकता की भावना ।
5. भारतीय प्रेमानाख्याक काव्यों का विशेष प्रभाव ।
6. मसनबी शैली का प्रयोग ।
7. प्रतीकों का प्रयोग ।
कवि:
1. जायसी – पदमावत, अखरावट, कहरनामा
2. उसमान – चित्रावली
3. मंझन – मधुमालती
4. नूर मुहम्मद – इन्द्रावती