यूरोपीय संघ के साथ भारत के संबंध । “India’s Relations with the European Union” in Hindi Language!
यूरोपीय संघ के साथ भारत के संबंध:
यूरोपीय संघ विश्व के सबसे सफल क्षेत्रीय संगठनों में से एक है । यह विश्व का सबसे बड़ा व्यापारिक गुट है जो विश्व व्यापार के पाँचवें हिस्से के लिए जिम्मेदार है । पूर्व में यूरोपीय समुदाय तथा 1993 के बाद से यूरोपीय संघ और भारत के मध्य राजनीतिक मतभेद उत्पन्न होते रहते थे । ये मतभेद मुख्यत: निम्नलिखित प्रकार से तीन क्षेत्रों-कश्मीर समस्या परमाणु समस्या और मानवाधिकार हनन पर केंद्रित थे जो कि इस प्रकार हैं:
(1) कश्मीर समस्या:
यूरोपीय संघ के सदस्य देश मानते हैं कि दक्षिण एशिया के मामलों का समाधान अमेरिका का उत्तरदायित्व है । यूरोपीय समुदाय पूर्व में कश्मीर समस्या के समापन को अमेरिका की जिम्मेदारी मानता था और इस समस्या का समाधान शांतिपूर्ण तरीके से करना चाहता था । यूरोपीय संघ कश्मीर को न तो भारत का अंग और न ही पाकिस्तान का अंग मानता है, वह इसे विवादित क्षेत्र मानता है ।
(2) आतंकवाद की समस्या:
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यूरोपीय संघ का मानना है कि आतंकवाद की समस्या एक विकट समस्या है । इसका समाधान होना चाहिए परंतु वह पूर्णरूपेण इसके लिए पाकिस्तान को ही जवाबदेह नहीं मानता है । उसका विचार है कि इस समस्या का समाधान देशों के संयुक्त प्रयास से होना चाहिए ।
(3) मानवाधिकार की समस्या:
पाकिस्तान के दुष्प्रचार के कारण इस संघ के देशों में यह भावना फैली हुई है कि कश्मीर में भारत मानवाधिकार का हनन कर रहा है । आतंकवाद की समस्या का समाधान मानवाधिकार के हनन द्वारा नहीं, वरन् सोच-समझकर उचित ढंग से किया जाना चाहिए ।
(4) परमाणु समस्या:
यूरोपीय संघ चाहता है कि परमाणु अस्त्रों का निषेध किया जाए और भारत को परमायु अप्रसार निषेध संधि पर हस्ताक्षर कर देना चाहिए । जब 1998 में भारत ने परमाणु परीक्षण किया तो इन देशों ने भारत की कड़ी आलोचना की परंतु जापान और अमेरिका की भाँति इसने भारत पर कोई प्रतिबंध लागू नहीं किया ।
यूरोपीय संघ के देश समूह-8 के सदस्य भी हैं । इसलिए परमाणु मसले पर उन्होंने सुरक्षा परिषद् का साथ दिया । इन देशों को विचार है कि आज का युग वैश्वीकरण का युग है । किसी भी एक देश की घटना पूरे विश्व को प्रभावित करती है ।
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इसलिए परमाणु अस्त्र को समाप्त करके मानव-जतते के उत्थान और आर्थिक प्रगति के लिए शांतिपूर्ण वातावरण का विशेष महत्व हो गया है । इसलिए परमाणु अस्त्र को निषेध किया जाना चाहिए ।
यूरोपीय संघ की शंकाओं पर भारत का खुलासा:
(1) कश्मीर मसला:
भारत ने यूरोपीय संघ को कश्मीर मामले पर यह समझाने का प्रयत्न किया है कि कश्मीर भारत का हजारों वर्षों से अविभाज्य अंग रहा है और पाकिस्तान ने उसके कुछ भागों पर अनाधिकृत रूप से कब्जा कर रखा है ।
(2) भारत में आतंकवाद:
भारत ने यह खुलासा किया कि भारत में आतंकवादी गतिविधियों को पाकिस्तान अप्रत्यक्ष रूप से प्रोत्साहित कर रहा है । इसका प्रमाण अनेक बार भारत ने अमेरिका को दिया है और अमेरिकी गुप्तचर एजेंसी ने भी इस बात की पुष्टि की है ।
(3) मानवाधिकार:
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मानवाधिकार के संबंध में भारत का कहना है कि भारत नहीं, बल्कि पाकिस्तान आतंकवाद को प्रश्रय देकर कश्मीर में मानव अधिकारों का हनन कर रहा है । भारत किसी भी कीमत पर मानवाधिकार हनन का समर्थक नहीं रहा है ।
(4) परमाणु समस्या:
परमाणु समस्या के विषय में भारत का यह मानना है कि जो देश परमाणु संपन्न हो गए हैं, उन देशों पर दबाव नहीं डाला जा रहा कि वे परमाणु अस्त्र समाप्त करें । वे परमाणु अस्त्र रखते हैं तो परमाणु संपन्न देशों को तकलीफ नहीं होती है, परंतु जब भारत परमाणु कार्यक्रम शुरू करता है, तब परमाणु शक्ति संपन्न देशों को क्यों तकलीफ होती है ? परमाणु शक्ति संपन्न देशों को तो खुश होना चाहिए कि भारत भी परमाणु शक्ति संपन्न देश बन गया है ।
भारत का मानना है कि अमेरिका पर जब आतंकवाद का कहर बरसा तो अमेरिका ने अफगानिस्तान और इराक पर संयुक्त सैन्य कार्यवाही शुरू की, परंतु भारत जब आतंकवाद के विरोध में कोई कार्यवाही करता है, तो इसे मानवाधिकार का हनन बताकर भारत को क्यों बदनाम किया जाता है ?
भारत ने यूरोपीय देशों के साथ 1973 और 1983 में समझौता किया । तीसरा समझौता 1994 में हुआ । 1991 से भारत अपने देश में आर्थिक उदारीकरण की नीति अपना रहा है । इसके परिणामस्वरूप 1994 का समझौता हुआ ।
इससे स्पष्ट होता है कि 90 के दशक में भारत और यूरोपीय संघ के बीच व्यापक रूप से व्यापार और वाणिज्य का संबंध स्थापित हुआ है और व्यापार में वृद्धि भी हुई है । यह वृद्धि अनवरत रूप से बढ़ रही है, क्योंकि दोनों पक्षों के बीच 2001 में व्यापार 25.2 अरब: यूरो का हो गया । यह हमारे कुल निर्यात का 26 प्रतिशत तथा आयात का 25 प्रतिशत है ।
यूरोपीय संघ के लिए भारत का निर्यात की दृष्टि से 17 वाँ और आयात की दृष्टि से 20वाँ स्थान है । भारत यूरोपीय संघ को सामग्रियों का निर्यात करता है । इन सामग्रियों के अंतर्गत अन्न, वस्त्र, कृषि सामान, समुद्र से उत्पादित वस्तुएँ, चमड़ा इंजीनियरिंग एवं इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद हैं ।
भारत ने जब यूरोपीय संघ के साथ व्यापार शुरू किया, तो रसायन, गलीचे, ग्रेनाइट के सामान, इलेक्ट्रॉनिक्स के सामान का निर्यात व्यापक रूप से बढ़ा । आयात के रूप में भारत विभिन्न प्रकार के रत्न, रसायन. खनिज और इंजीनियरिंग के सामानों को महत्त्व दे रहा है ।
भारत का बेल्जियम, इटली, फ्रांस, जर्मनी, इंग्लैंड और हॉलेंड के साथ व्यापार प्रारंभ हुआ है । 1999 में भारत में यूरोपीय संघ का पूँजी निवेश 1.1 अरब यूरो था, परंतु अब भारत का निवेश यूरोपीय संघ में 6 करोड़ 90 लाख यूरो तक पहुँच गया है । इस तरह स्पष्ट होता है कि भारत में यूरोपीय संघ ने बड़े पैमाने पर आर्थिक निवेश करना प्रारंभ कर दिया है । ये निवेश बुनियादी ढाँचे विशेषकर बिजली तथा दूरसंचार सेवाओं के क्षेत्र में किए जा रहे हैं ।
भारत और यूरोपीय संघ के बीच आर्थिक एवं व्यापारिक असंतुलन:
यूरोपीय आर्थिक समुदाय 1957 से ही काम कर रहा है और यह पूर्ण विकसित हो गया है । भारत के लिए यूरोपीय आर्थिक समुदाय का महत्त्व भले ही न हो, परंतु भारत का यूरोपीय आर्थिक समुदाय के लिए अधिक महत्त्व है । यूरोपीय आर्थिक समुदाय के साथ भारत के पक्ष में कुछ निम्नलिखित सीमाएँ हैं:
(1) भारत यूरोपीय व्यापारिक संघ को कुछ सीमित वस्तुएँ ही निर्यात करता है । इसके कारण भारत बड़ा निर्यातक देश नहीं बन पा रहा है ।
(2) भारत यूरोपीय बाजार का पूरा फायदा नहीं उठा पा रहा है, क्योंकि भारत का तीन-चौथाई व्यापार केवल जर्मनी, इटली इंग्लैंड और बेल्जियम के साथ ही होता है ।
(3) यूरोपीय आर्थिक समुदाय में अन्य देशों की अपेक्षा भारत का निवेश कम है, जिसके कारण भारत यूरोपीय समुदाय को आकर्षित नहीं कर पा रही है और यूरोपीय समुदाय भी भारत के प्रति आकर्षित नहीं हो पा रहा है । यूरोपीय आर्थिक संघ और भारत के बीच व्यापारिक संबंध समानता के स्तर पर नहीं है, परंतु यूरोपीय संघ का भारत के प्रति व्यापक व्यापार है ।
यूरोपीय संघ और भारतीय व्यापारिक विवाद:
भारत को यूरोपीय संघ के साथ व्यापार करने में विभिन्न प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि यूरोपीय संघ भारत के निर्यात करने पर ऊँची मात्रा में सीमा शुल्क लगा देता है और प्रतिबंध के कारण कुछ निश्चित वस्तुओं के निर्यात की ही अनुमति देता है ।
इसलिए भारत सीमित मात्रा में ही कुछ वस्तुओं का निर्यात कर पाता है, जिससे भारत को निर्यात करने में बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है । यूरोपीय संघ संरक्षणवाद को महत्त्व दे रहा है और भारत को बराबरी पर लाने को तैयार नहीं है ।
फलत: भारत की खुले रूप में विभिन्न प्रतिबंधों के कारण बहुत प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है । सामानों की गुणवत्ता के आधार पर संघ भारत पर दबाव डालता है, जिसके कारण भारत यूरोपीय व्यापारिक संघ के साथ सफलतापूर्वक व्यापारिक संबंध स्थापित नहीं कर पा रहा है ।
यूरोपीय संघ मानवाधिकार, वन्य पशुओं की निर्मम हत्या, बालश्रम, शोषण आदि मानकों के आधार पर भारतीय व्यापार को दबाने का प्रयत्न करता है । इसके परिणामस्वरूप भारत यूरोपीय संघ में प्रतिकूल प्रभाव का सामना कर रहा है ।