विदेश नीति के निर्माण में चिंतन समूहों की भूमिका । “Formation of Foreign Policy” in Hindi Language!
विदेश नीति के निर्माण में चिंतन समूहों की भूमिका:
विदेश नीति के निर्माण की प्रक्रिया केवल उससे जुड़ी संस्थाओं तक सीमित नहीं है । लोकतंत्र में कोई भी नीति लोगों की आकांक्षाओं को अभिव्यक्त करती है । विदेश नीति के निर्धारण में चिंतन समूह बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण योगदान देता है ।
चिंतन समूह की अवधारणा भारत के लिए नई है । अमेरिका में रैंड कार्पोरेशन जैसे अनेक विशेषज्ञ संगठन हैं जिन्हें अमेरिकी रक्षा विभाग से वित्तीय सहायता मिलती है । वाशिंगटन में और भी कई चिंतन समूह हैं जिनमें से अमेरिकन इंटरप्राइस इंस्टीट्यूट दक्षिणपंथी समूह है तो बुकिंग्स इंस्टीट्यूट एक उदारपंथी चिंतन समूह है । न्यूयॉर्क में एशिया सोसायटी और कारनेगी फाउंडेशन जैसे समूह हैं ।
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ये संगठन विभिन्न विषयों पर अध्ययन करते हैं और अपनी रिपोर्ट सरकार तथा प्रभावशाली सांसदों को पेश करते हैं । उदाहरण के लिए, 1994 में एशिया सोसायटी ने एक अध्ययन किया जिसमें सरंकार को भारत के साथ संबंध सुधारने का सुझाव दिया गया ।
भारत में इस तरह के समूह बहुत कम हैं । इनमें सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण संस्था है: रक्षा अध्ययन तथा विश्लेषण संस्थान जिसका पूरा खर्च विदेश विभाग उठाता है । यह ऐसे अध्ययन तथा विश्लेषण करता है जिनका प्रभाव नीति संबंधी मामलों पर पड़ता है । एक और संस्था है: सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च ।
अब दिल्ली में ऐसे बहुत-से संगठन बन गए हैं जिनका गठन पूर्व सचिवों जनरलों और विद्वानों द्वारा किया गया है । परंतु वैदेशिक नीति के चिंतन समूह के रूप में उनकी भूमिका का पूरा आकलन अभी नहीं हो पाया है । कई बार विश्वविद्यालयों द्वारा आयोजित गोष्ठियों में पूर्व विदेश सचिवों सहित विदेश नीति विशेषज्ञ भाग लेते हैं । ऐसी गोष्ठियों में उभरे विचारों का भी विदेश नीति के निर्माण पर असर पड़ता है ।
ये सभी संस्थाएँ और दबाव समूह एक से अधिक भूमिकाएं निभाते हैं । वे विदेश नीति के निर्माण की प्रक्रिया को तो प्रभावित करते ही हैं किसी नीति के पक्ष या विरोध में जनमत भी पैदा करते हैं । इसके अलावा वे उन नीतियों के समर्थन में जनमत जुटाते हैं जिन्हें वे पसंद करते हैं । देश में विदेश नीति के विकास की प्रक्रिया इसी प्रकार चलती रहती है ।