भारत-दक्षिण अफ्रीका संबंधों में सहयोग और मतभेद के क्षेत्रों का संक्षेप | “Cooperation and Differences in India-South Africa Relations” in Hindi Language!
भारत और दक्षिण अफ्रीका संबंधों में सहयोग और मतभेद:
अफ्रीकी देशों के साथ भारत के संबंध वैदिक काल से हैं । अफ्रीका हिन्द महासागर के पार भारत का निकटतम पड़ोसी है । पिछले कुछ दशकों से भारत और अफ्रीका उपनिवेशवाद रंगभेद और जातिवाद के विरुद्ध संघर्ष में निकट सहयोगी रहे है ।
सन् 1999 में दक्षिण अफ्रीका की सत्ताधारी अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस (ए.एन.सी.) की चुनाव में जबरदस्त सफलता और घरेलू राजनीति से नेल्सन मंडेला के राजनीति से संन्यास लेने के बाद राष्ट्राध्यक्ष थाबो म्बेकी ने सत्ता सँभाली ।
पृथकतावादी युग के बाद राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला और उसके बाद राष्ट्राध्यक्ष थाबो म्बेकी ने भारत के साथ ऐतिहासिक मित्रतापूर्ण संबंधों और परस्पर लाभप्रद सहयोग को बढ़ाने पर बल दिया । उन्होंने समय-समय पर पृथकतावादी जातिभेद और रंगभेद के विरुद्ध संघर्ष में भारत की भूमिका के लिए कृतज्ञता प्रकट की कि किस प्रकार भारत उनकी सहायता को आया ।
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राष्ट्रपति मंडेला ने कहा ‘जब शेष विश्व हमारे उत्पीड़कों का साथ दे रहा था, तब भारत ने हमारा साथ दिया ।’ अपने इन संबंधों को मजबूत बनाने के लिए दोनों देशों ने एक-दूसरे के अनुकूल सहभागिता के समझौते पर 1997 में हस्ताक्षर किए ।
दक्षिण अफ्रीका और भारत दोनों देशों ने गत छह वर्षों के आपसी विचार-विमर्श में विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर भूमंडलीकरण के कारण पड़ने वाले असमान प्रभाव के बारे में चिंता व्यक्त की और वे दक्षिण-दक्षिण सहयोग के विकास के लिए अपने प्रयासों को समन्वित करने पर सहमत हो गए ।
भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच सहयोग क्षेत्र:
इन दोनों देशों के बीच वर्तमान संबंधों के निर्वाह की शुरुआत 1997 में सामरिक महत्त्व के परस्पर सहभागिता समझौते से हुई । ‘Strategic Partnership’ (सामरिक महत्त्व की सहभागिता) शब्दों का सर्वप्रथम प्रयोग भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच संबंधों को परिभाषित करने के लिए 1996 की भारत यात्रा के दौरान उपराष्ट्राध्यक्ष म्बेकी ने किया था ।
वास्तव में, मार्च 1997 में राष्ट्राध्यक्ष नेल्सन मंडेला की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच ‘सामरिक महत्त्व की सहभागिता’ के समझौते की घोषणा नई दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले से की गई थी । इस समझौते का मूल उद्देश्य द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाना तथा अंतर्राष्ट्रीय मैचों पर एक-दूसरे का सहयोग करना था ।
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नवम्बर 1993 में परस्पर राजनयिक संबंध स्थापित करने के बाद से भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच आर्थिक रक्षा और सांस्कृतिक सहयोग के विभिन्न क्षेत्रों में 15 समझौतों (एम.ओ.यू.) पर हस्ताक्षर किए जा चुके हैं ।
लगभग दस समझौते 2003 में विचाराधीन थे । दोनों देशों के बीच जनवरी, 1995 में एक संयुक्त आयोग की स्थापना हुई थी । इसकी पहली बैठक जुलाई 1995 में विदेश राज्यमंत्री सलमान खुर्शीद और दक्षिण अफ्रीका के उपविदेशमंत्री अजीज पहद की संयुक्त अध्यक्षता में प्रिटोरिया में हुई थी ।
दूसरी बैठक दिसम्बर 1996 में विदेश मंत्री इंद्रकुमार गुजराल और अजीज पहद की संयुक्त अध्यक्षता में नई दिल्ली में हुई । तीसरी बैठक प्रिटोरिया में 4-5 दिसम्बर, 1998 को हुई । यह बैठक विदेशराज्य मंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे और अजीज पहद की संयुक्त अध्यक्षता में हुई । संयुक्त सत्र में पाँच समितियाँ हैं: राजनीतिक, आर्थिक, व्यापार, तकनीकी सहयोग, शिक्षा और संस्कृति स्वास्थ्य तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी ।
आर्थिक सहयोग:
दक्षिण अफ्रीका के साथ आर्थिक संबंधों को विकसित करने के कई कारण हैं । उपहारा क्षेत्र में दक्षिण अफ्रीका प्रौद्योगिकी और आर्थिक दृष्टि से सर्वाधिक समुन्नत देशों में से एक है । दक्षिण अफ्रीका की अर्थव्यवस्था ग्यारह सदस्यीय दक्षिण अफ्रीकी विकास समुदाय की सम्मिलित संयुक्त अर्थव्यवस्था से लगभग चार गुना अधिक है ।
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इसलिए वह भारतीय कंपनियों को संयुक्त उद्यम लगाने और प्रौद्योगिकी तथा तकनीकी जानकारी देने में सक्षम है । यह जानकारी कोयला खनन प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बिजली के उपकरणों को पुन: कार्यक्षम बनाने के क्षेत्र में विशेषज्ञता प्रदान कर सकती है ।
आर्थिक क्षेत्र में गत कुछ वर्षों में भारत और अफ्रीका के बीच कुल व्यापार में अभूतपूर्व वृद्धि हुई । भारत, दक्षिण अफ्रीका में सातवीं सबसे बड़ा निवेशकर्त्ता है । यह वृद्धि 1995-96 में 57.56 करोड़ अमेरिकी डॉलर से 2000 में लगभग 2.5 अरब हो गई ।
दक्षिण अफ्रीका ने लघु उद्योगों और कुटीर उद्योगों के विकास के लिए विशेषज्ञता के आदान-प्रदान में रुचि दिखाई है । भारत से मुख्य रूप से कपड़े चमड़े-खाल रसायनों मशीनों और उपस्करों तथा वनस्पति उत्पादों का निर्यात होता है और दक्षिण अफ्रीका से जिन प्रमुख वस्तुओं का आयात होता है, वे हैं-धातुएँ और उनके उत्पाद, रसायन, लकड़ी की लुगदी और कागज तथा खनिज उत्पाद ।
वर्ष 1994 में भारतीय उद्योग परिसंघ (सी.आई.आई.) ने दक्षिण अफ्रीका के दक्षिण अफ्रीकी व्यापार मंडल (एस.ए.सी.ओ.बी.) के साथ राष्ट्रीय अफ्रीकी वाणिज्य और उद्योग मंडल के परिसंघ जिसे ब्लैक चैंबर भी कहते हैं, के साथ और साथ ही 1996 में ‘एफ्रीकन्स हैंडल्स इंस्टीट्यूट’, जो मुख्य रूप से एफ्रिकैनर चैंबर है के साथ भविष्य में सहयोग के लिए विभिन्न समझौते पर हस्ताक्षर किए ।
कई भारतीय कंपनियों जिनमें प्रमुख हैं: एन.एस.आई.सी. ई.ई.पी.सी. टेक्सप्रोसिल, सी.आई.आई., टाटा, यू.बी.ग्रुप, डी.सी.एम.एस.आर.एफ. लिबर्टी शूज रैनबैक्सी टोरेंट फार्मास्युटिकल्स थापर युप श्रीराम इंडस्ट्रियल एंटरप्राइजेज और कई अन्य छोटी कंपनियों ने पहले ही दक्षिण अफ्रीका में अपने कार्यालय स्थापित किए हुए हैं । जबकि एक्सिम बैंक और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने जोहन्स्बर्ग में तथा बैंक ऑफ बडौदा ने डरबन में अपनी शाखाएँ खोली हैं ।
रक्षा के क्षेत्र में सहयोग:
भारत और अफ्रीका के बीच रक्षा के क्षेत्र में व्यापार और संयुक्त उद्यम लगाने के लिए पर्याप्त संभावनाएँ हैं । दक्षिण अफ्रीका ने वर्षों से रक्षा सामग्री का मजबूत आधार खड़ा किया है । इसमें भी विशेष बल जमीनी प्रणालियों और हवाई प्रणालियों पर दिया गया है, नौसेना के क्षेत्र में विशेष प्रगति नहीं हुई है ।
1987 के बाद से दक्षिण अफ्रीका में कोई नौसैनिक जलपोत नहीं बनाया गया है । इस महाद्वीप में दक्षिण अफ्रीका ही ऐसा देश है जहाँ शस्त्रास्त्रों का निर्माण और इनका निर्यात होता है । रक्षा सहयोग के क्षेत्र में दक्षिण अफ्रीका के उपराष्ट्राध्यक्ष थाबो म्बेकी की दिसम्बर, 1987 की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच रक्षा उपस्करों के क्षेत्र में सहयोग से संबंधित समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे ।
अस्कर 1997 में क् प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल की दक्षिण अफ्रीका की यात्रा के दौरान दक्षिण-अफ्रीकी रक्षामंत्री जो मोडिस ने घोषणा की थी कि ‘दोनों देश मिलकर रक्षा के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देंगे और उसमें तेजी लाएँगे ।
इस प्रयोजन के लिए दक्षिण अफ्रीका ने भारत को सभी प्रकार की धातु-सामग्री (हार्डवेयर) मुहैया कराने का प्रस्ताव किया । विशेष रूप से इस समझौते के अंतर्गत दक्षिण अफ्रीका भारत को 155 मि.मी. वाले बोफोर्स तोपों का असला वैमानिकी और रात को देखने वाले उपस्कर उपलब्ध कराएगा ।
1998 में, भारत के थल सेनाध्यक्ष जनरल वेद प्रकाश मलिक ने घोषणा की कि भारत् ने दक्षिण अफ्रीका की टयूमेट ओएमसी से 90 कैसपिर बारूदी सुरंगों से सुरक्षित आर्मर्ड पर्सन कैरियर खरीदे थे । दक्षिण अफ्रीका ने 1999 के कारगिल संघर्ष के दौरान बहुत कम सूचना अवधि में भारत को 4.7 करोड़ डॉलर के 155 मि.मी. के तोप के गोलों की आपूर्ति की थी ।
दोनों ही पक्षों ने नौसेना के क्षेत्र में सहयोग में गहरी रुचि दिखाई है । दोनों देशों के नौसेना के जलपोतों ने एक-दूसरे देशों की यात्रा की । आई.एन.एस. गोमती और आई.एन.एस खुकरी दिसम्बर 1994 में दक्षिण अफ्रीका गए । एस.ए.एस. ड़ैकेन्सबर्ग ने मार्च 1995 में मुंबई का सौहार्दपूर्ण दौरा किया ।
भारत, दक्षिण अफ्रीका और दक्षिण अफ्रीकी विकास समुदाय के अन्य देशों की ‘एक्सरसाइज ब्लू क्रेन’ में प्रमुख प्रतिभागी था । ये अभ्यास दक्षिण अफ्रीका के एस.ए.आर्मी बैटल स्कूल प्रशिक्षण क्षेत्र में 7 से 30 सितम्बर, 1990 के बीच हुए थे । ये अभ्यास छह चरणों में हुए ।
इसमें दक्षिण अफ्रीकी विकास समुदाय (एस.ए.डी.सी.) के लगभग 4000 सदस्य थे । दक्षिण अफ्रीकी विकास समुदाय देशों में शामिल हैं: अंगोला, बोत्सवाना, लेसोथो मलावी, मॉरिशस, मोजाम्बीक, नामीबिया, दक्षिण अफ्रीका, तंजानिया, जाम्बिया और जिम्बाब्बे ।
इसके अलावा लगभग 500 अन्य प्रतिभागी थे जिनमें से अधिकतर सैनिक प्रेक्षक थे । ‘एक्सरसाइज क्यू क्रेन’ अब तक किया गया सबसे बड़ा शांति-समर्थक ऑपरेशन था । इस ऑपरेशन का दक्षिण अफ्रीकी देशों के लिए विशेष महत्त्व था जो अपनी संयुक्त शांति समर्थक क्षमता का मूल्यांकन करना चाहते थे ।
दोनों देशों के बीच यात्राओं का आदान-प्रदान-सभी स्तरों के प्रतिष्ठित व्यक्तियों की यात्राओं के आदान-प्रदान से दोनों देशों के संबंध और प्रगाढ़ हुए । सबसे उच्च स्तर पर भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल ने अक्तूबर 1997 में दक्षिण अफ्रीका की यात्रा की ।
यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली दक्षिण अफ्रीका यात्रा थी । प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी दो बार दक्षिण अफ्रीका की यात्रा कर चुके हैं । पहली यात्रा 1998 में गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन के दौरान हुई थी और दूसरी बार वे नवम्बर 1999 में राष्ट्रमंडल देशों के राष्ट्राध्यक्षों की बैठक में भाग लेने गए थे ।
जून 1999 में भारत के विदेशमंत्री जसवंत सिंह ने अफ्रीका की यात्रा की । इसी प्रकार, राष्ट्राध्यक्ष मंडेला 1995 और 1997 में दो बार भारत की यात्रा पर आए । दक्षिण अफ्रीका के उपराष्ट्राध्यक्ष ने दिसम्बर 1996 में भारत की यात्रा की ।
इन दोनों देशों के बीच कई मंत्रालय-स्तरीय यात्राओं का भी आदान-प्रदान हुआ । शांति स्थापना ऑपरेशनों का प्रशिक्षण-गत छह वर्षों में दक्षिण अफ्रीका, पश्चिमी देशों और दूसरे अफ्रीकी देशों के दबाव में रहा है कि वह महाद्वीप में शांति स्थापना के लिए अपने दायित्व का निर्वाह करे ।
इसके पीछे मुख्य रूप से अफ्रीकी समस्याओं के लिए अफ्रीकी समाधान की भावना रही है । संयुक्त राष्ट्र के शांति स्थापना संबंधी ऑपरेशनों में भाग लेने के विचार पर दक्षिण अफ्रीका में पर्याप्त बहस हो चुकी
है ।
अक्तूबर 1998 में दक्षिण अफ्रीकी मंत्रिमंडल ने शांति स्थापना के सबध में एक श्वेत-पत्र को मंजूरी दी । इस श्वेत-पत्र में अंतर्राष्ट्रीय शांति स्थापना के मिशन के कार्य में दक्षिण अफ्रीका के भाग लेने से संबंधित नियम बनाए गए थे ।
दक्षिण अफ्रीका का राष्ट्रीय रक्षा बल परिवर्तन और एकीकरण की प्रक्रिया में से गुजर रहा था । यह कार्य 1998 के अंत तक पूर्ण हुआ । इनमें रक्षा बलों की एकीकरण की प्रक्रिया में भारत दक्षिण अफ्रीका की मदद कर सकता था । भारत आजादी के बाद के पचास वर्षों में अनेक शांति स्थापना ऑपरेशनों में विशेष तौर पर अफ्रीका में सम्मिलित रहा है ।
इनमें शामिल हैं, ओ.एन.यू.सी, एम.ओ.एन.यू.सी (कांगो), यू.एन.टी.ए.जी.(नामीबिया), ओ.एन.यू.एम.ओ.जेड. (मोजाम्बीक), यू.एन.आई.टी.ए.एफ, यू.एन.ओ.एस.ओ.एम (सोमालिया), यू.एन.ए.एम.आई.आर, (रवांडा), यू.एन.ओ.एम.आई.एल. (लाइबीरिया), यू.एन.ए.वी.ई.एम, एम.ओ.एन.यू.ए (अंगोला), और इनमें शामिल हैं ओ.एन.यू.सी, एम.ओ.एन.यू.सी. (कांगो), यू.एन.टी.ए.जी. (नामीबिया) ओ.एन.यू.एम.ओ.जेड, मोजाम्बीक, यू.एन.आई.टी.ए.एफ, यू.एन.ओ.एस ओ.एम (सोमालिया), यू.एन.ए.एम.आई.आर, यू.एन.ए.एम.आई.आर. (रवांडा) यू.एन.ओ एम.आई.एल. (लाइबीरिया) यू.एन.ए.वी.ई.एम.एम.ओ.एन.यू.ए(अंगोला) और हाल ही में सियेरा लियोन का संयुक्त राष्ट्र मिशन ।
शीत युद्ध के बाद के युग में संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना का भार विकासशील देशों पर आ पड़ा है । इसमें संख्या की दृष्टि से भारत का योगदान विश्व देशों में सबसे अधिक है और यह तीन महाद्वीपों में फैला हुआ है ।
हिन्द महासागर क्षेत्र में सहयोग:
म्बेकी सरकार ने हिन्द महासागर के तटवर्ती देशों के साथ क्षेत्रीय सहयोग के लिए गठित सघ में फिर अपनी रुचि प्रदर्शित की है । हिन्द महासागर तटवर्ती क्षेत्र की पहल के संस्थापक सदस्यों में हैं: भारत, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, मॉरिशस, ओमान, सिंगापुर और केन्या ।
इस संगठन की औपचारिक रूप में स्थापना मार्च 1997 में मॉरिशस में हुई थी । इस संगठन के निर्माण में भारत और दक्षिण अफ्रीका ने प्रमुख भूमिका अदा की । वास्तव में इस संगठन की संकल्पना को मार्च 1993 में गंभीरता से आरंभ करने का श्रेय दक्षिण अफ्रीका के तत्कालीन विदेश मंत्री पिक बोथा को दिया जा सकता है जिसे उन्होंने अपनी नई दिल्ली की यात्रा के दौरान प्रस्तुत किया था ।
उन्होंने हिन्द महासागर तटवर्ती क्षेत्र (Indian Ocean Rim; IOR) की पहचान भारत तथा दक्षिणी अफ्रीका के अत्यधिक आपसी महत्त्व के क्षेत्र के रूप में की थी । जनवरी 1995 में अपनी नई दिल्ली यात्रा के दौरान दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला ने हिन्द महासागर व्यापार संधि का प्रस्ताव सामने रखा, जिसका उत्साहपूर्ण स्वागत हुआ ।
राष्ट्रपति मंडेला की सरकार के समय दोनों देशों ने प्रस्तावित चार्टर और संगठन के उद्देश्यों पर व्यापक द्वि-पक्षीय चर्चा की । भारत और दक्षिण अफ्रीका दोनों ही इस बात पर सामान्य रूप से सहमत थे कि सुरक्षा संबंधी मामलों को इस चार्टर से बाहर रखा जाए ।
भारत-अफ्रीका संबंधों में मतभेद के क्षेत्र-पृथकतावादी युग के बाद की अवधि में संबद्ध सरकारों द्वारा की गई संयुक्त पहल ने द्वि-पक्षीय संबंधों को दृढ़ आधार प्रदान किया । इन दोनों देशों के संबंधों में एक स्थाई समस्या परमाणु अस्त्रों से संबधित है ।
दक्षिणी अफ्रीका विश्व का पहला ऐसा देश है जिसने स्वेच्छया परमाणु हथियारों का परित्याग कर दिया । यह देश न्यूक्लीय हथियारों की नियंत्रक कई शासन व्यवस्थाओं के पक्षधरों में से एक है और यह स्वयं परमाणु अस्त्र अप्रसार संधि (एन.पी.टी.) और व्यापक परमाणु अस्त्र परीक्षण प्रतिबंध संधि (सी.ईटी.थी.टी.) में शामिल है ।
उनके विचार में भारत को भी इन संधियों में शामिल होना चाहिए । लेकिन भारत इन संधियों पर इनके वर्तमान स्वरूप में हस्ताक्षर करने को तैयार नहीं है क्योंकि ये संधियाँ भेदभावपूर्ण हैं । पृथकतावादी नस्ल-भेद के युग के बाद दक्षिण अफ्रीका की परमाणु अस्त्रों के संबंध में नीति दोनों देशों के संबंधों में उत्तेजना का विषय रही है ।
भारत को आशा थी कि दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रपति मंडल की सरकार सार्वभौम परमाणु निरस्त्रीकरण के उद्देश्य को प्राप्त करने के प्रयास में सहायक होगी । अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस (ए.एन.सी.) अतीत में परमाणु निरस्त्रीकरण के समर्थन में काफी मुखर रही थी ।
दक्षिण अफ्रीका ने सामान्य रूप से संयुक्त राष्ट्र के ऐसे साधारण और पूर्ण निरस्त्रीकरण के प्रति अपनी वचनबद्धता प्रकट की थी जिस पर प्रभावी अंतर्राष्ट्रीय नियंत्रण हो । इस बात का सयुक्त राष्ट्र की आम सभा के 1978 के निरस्त्रीकरण पर विशेष अधिवेशन में संकल्प किया गया था ।
हाल ही के वर्षों में दक्षिण अफ्रीका के रुख में कुछ बदलाव आया है और परमाणु अस्त्रों के नियंत्रण के संबंध में इसके विचार पश्चिमी देशों से अधिक निकट दिखाई देते हैं । यह बात 1995 की एन.पी.टी. के पुनरीक्षण सम्मेलन और सी.टी.बी.टी. के संबंध में संधि वार्ता के दौरान स्पष्ट दिखाई दी ।
लंबे अरसे तक अस्थिरता का सामना करने के बाद अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस सरकार के स्थापित होने पर दक्षिणी अफ्रीका में शांति और स्थिरता के युग का उदय हुआ । इस प्रकार, परमाणु अस्त्रों के कार्यक्रम को जारी रखते हुए एन.पी.टी और सी.टी.बी.टी पर हस्ताक्षर न करने से कुछ गलत संकेत मिलने की संभावना हो सकती थी ।
संयुक्त दल ने मई 1998 में भारत और पाकिस्तान के परमाणु अस्त्रों के परीक्षण पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था कि अब हमें परमाणु अस्त्रों के अप्रसार और निरस्त्रीकरण पर नए सिरे से विचार करना चाहिए ।
इस दल ने जून 1998 की अपनी संयुक्त घोषणा में निरस्त्रीकरण के सम्मेलन में जिस वार्ता में अवरोध हो गया था उसे फिर से सक्रिय करने के लिए एक नई कार्यसूची प्रस्तुत की । भारत और जी-21 के अन्य सदस्यों ने इससे पूर्व निरस्त्रीकरण पर सम्मेलन में एक तदर्थ समिति बनाने की सिफारिश की थी ।
यह समिति समयबद्ध कार्यक्रम के अंतर्गत परमाणु अस्त्रों को समाप्त करने के उद्देश्य से चरणबद्ध रूप में समझौते के लिए बातचीत आरंभ करेगी । यद्यपि दक्षिण अफ्रीका ने भारत की स्थिति की सराहना कौ लेकिन वह भारत के परमाणु निरस्त्रीकरण के समयबद्ध कार्यक्रम से सहमत नहीं हुआ ।
ऐसा लगता है कि ये देश चरणबद्ध रूप में इस पर आगे बढ़ने के तो पक्ष में हैं लेकिन वे इसके लिए कोई समय की व्यवस्था के पक्ष में नहीं हैं । परंतु मई 1998 में पोखरण परमाणु परीक्षणों के बाद भारत 1986 में संयुक्त राष्ट्र में पूंर्व-प्रधानमंत्री राजीव गाँधी द्वारा परमाणु निरस्त्रीकरण पर प्रतिपादित योजना से पीछे हट गया जिसमें समयबद्ध रीति से निरस्त्रीकरण की बात कही गई थी ।
यद्यपि भारत अब भी चरणबद्ध रूप से निरस्त्रीकरण के पक्ष में है लेकिन इसने निरस्त्रीकरण के लिए समयबद्धता के बारे में जोर देना बंद कर दिया । इससे यह पता चलता है कि इस विषय में भारत और दक्षिण अफ्रीका की लगभग एकसमान स्थिति है और स्पष्ट रूप से वे निरस्त्रीकरण सम्मेलन में एक ही ओर हैं ।