अमेरिकी विदेश-नीति । “American Foreign Policy” in Hindi Language!
अमेरिकी विदेश-नीति : उद्देश्य:
संयुक्त राज्य अमेरिका की विदेश नीति वही के निवासियों के चरित्र व उनकी महत्त्वाकांक्षाओं, अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं के प्रति उनकी प्रतिक्रियाओं एवं वहाँ के राष्ट्रपति और कांग्रेस के संयुक्त प्रभाव पर आधारित
है ।
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यह सर्वमान्य तथ्य है कि प्रत्येक राष्ट्र के अपने स्वार्थ होते हैं जिन पर वह अपनी विदेश नीति आधारित करता है । संयुक्त राज्य अमेरिका इसका अपवाद नहीं है । अमेरिका की विदेश नीति, के निम्नांकित लक्ष्य बताए जा सकते हैं:
(1) साम्यवाद का अवरोध:
द्वितीय महायुद्ध के बाद अमेरिका ने साम्यवाद के बढ़ते हुए प्रसार को रोकने का दृढ़ संकल्प ले रखा है । चेस्टर बोल्स के शब्दों में, “युद्ध के बाद-मुख्यत: अमेरिकी कूटनीति साम्यवाद को, उसके विस्तारशील सोवियत और चीनी रूपों में विशाल रूस और चीनी सीमा के चारों ओर शक्ति की स्थितियाँ उत्पन्न करके रोक रखने की रही है ।” इसके लिए अमेरिका ने प्रत्येक सोवियत विस्तारवादी कार्य के मार्ग में विघ्न डालने का निश्चय किया ।
(2) तनाव कम करना:
सोवियत संघ और अमेरिका दोनों ही पारस्परिक तनाव को कम करने की चर्चा करते रहे हैं और दोनों ही एक-दूसरे पर तनाव बढ़ाने का आरोप लगाते रहे हैं । अणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (1963), परमाणु अप्रसार संधि (1968), साल्ट-प्रथम एवं द्वितीय समझौतों तथा आई.एन.एफ. संधि (1987), स्टार्ट संधि (1991 एवं 1993) पर दोनों महाशक्तियों द्वारा हस्ताक्षर किए जाने से इस विचार को समर्थन मिलता है कि अमेरिका सोवियत संघ एवं रूस के साथ अपने तनावपूर्ण संबंधों को सुधारना चाहता था ।
(3) विश्व-शांति:
डलेस ने 1955 में कहा था कि “हमारी विदेश नीति का व्यापक लक्ष्य संयुक्त राज्य के लोगों को शांति और स्वतंत्रता का सुख भोगने का अवसर प्रदान करना हैं ।”
(4) नई विश्व व्यवस्था का निर्माण:
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सोवियत संघ के अवसान तथा सोवियत संघ एवं पूर्वी यूरोप में साम्यवाद के पतन के बाद राष्ट्रपति बुश ने नई विश्व व्यवस्था के निर्माण का उद्देश्य घोषित किया । यह ऐसी विश्व व्यवस्था होगी जिसमें अमेरिका अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का केंद्रीय ध्रुव होगा दुनिया में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का सुदृढ़ीकरण होगा तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णय अमेरिकी विदेश नीति के उद्देश्यों के अनुरूप होंगे ।
आज संयुक्त राज्य अमेरिका अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का केंद्रीय ध्रुव है, वह विश्व की एकमात्र महाशक्ति है । उसकी कोई बराबरी नहीं कर सकता, उसे कोई ललकार या चुनौती नहीं दे सकता । उसके पास परमाणु अस्त्रों की ही प्रचण्ड शक्ति नहीं उसके पास आर्थिक क्षमता भी अत्यधिक है ।
इस समय विश्व की आय का एक-तिहाई हिस्सा अमेरिका से उत्पन्न हो रहा है । अमेरिका विश्व का सबसे बड़ा आयातक है । विश्व व्यापार का पाँचवाँ हिस्सा अमेरिका पर निर्भर हो चुका है । इंटरनेट, आदि के तकनीकी आविष्कारों से वही के पूँजी बाजार में तेजी आई है ।
विश्व की पूँजी अमेरिका की ओर दौड़ रही है डॉलर की माँग बढ़ रही है डॉलर महँगा हो रहा है । डॉलर के दृढ़ होने से दूसरे देश अपने विदेशी मुद्रा मंडार को डॉलर में रखना पसंद करते हैं । इससे डॉलर को विश्व मुद्रा की संज्ञा मिल गई है ।
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डॉलर की ताकत से अमेरिका का अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक एवं संयुक्त राष्ट्र पर दबाव बढ़ता जा रहा है । ये संस्थाएँ अमेरिका के इशारे पर कार्य करने लगी हैं । संयुक्त राष्ट्र संघ ही नहीं, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसी अंतर्राष्ट्रीय वित्त संस्थाएँ भी उसकी मुट्ठी में हैं ।
(5) आतंकवाद का उन्मूलन:
11 सितम्बर, 2001 से पूर्व अमेरिका विश्व में उग्रवाद को रोकने के लिए नाटकीय वक्तव्य ही देता रहा है । भारत जैसे देशों में आतंकवाद निर्दोष लोगों की देह तक को झुलसाता रहा और अमेरिका शाब्दिक संवेदना प्रकट करके अलग खड़ा होता रहा । भारत द्वारा ठोस सबूत पेश करने के बावजूद पाकिस्तान को आतंककारी देश घोषित करने को अमेरिका तैयार नहीं हुआ ।
विश्व व्यापार केंद्र और पेंटागन पर हमला पहली बार अमेरिका पर सीधा आतंककारी हमला है । अब अमेरिकी राष्ट्रपति कहते हैं: “यह हमारे देश के खिलाफ युद्ध की कार्यवाहियाँ हैं यह छदम युद्ध है, इस युद्ध को जीतने के लिए अमेरिका कृतसंकल्प है ।”
अमेरिका ने बदले की कार्यवाही के लिए विश्वव्यापी समर्थन जुटाने का राजनयिक प्रयास शुरू किया । अमेरिका के अनुसार आतंकवादी हमले अमेरिका के खिलाफ युद्ध नहीं बल्कि यह युद्ध समूची सभ्यता के खिलाफ है ।
(6) जनतंत्र की रक्षा:
अमेरिका जनतंत्र का प्रबल समर्थक है । प्रथम महायुद्ध उसने जनतंत्र की रक्षा के लिए लड़ा था । द्वितीय महायुद्ध के समय रुजवेल्ट ने अमेरिका का उद्देश्य हिटलर की तानाशाही को नष्ट करना तथा संसार में प्रत्येक स्थान पर चार स्वतंत्रताओं-भाषण की स्वतंत्रता, धर्म की स्वतंत्रता अभाव से स्वतंत्रता और भय से स्वतंत्रता की स्थापना करना बताया था ।
(7) राष्ट्रीय सुरक्षा:
अमेरिका की विदेश नीति का मुख्य लक्ष्य इस प्रकार की व्यवस्था करना ताकि उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा पर किसी प्रकार की आँच न आने पाए । इसलिए अमेरिका, यूरोप, एशिया तथा अफ्रीका में शक्ति-संतुलन बनाए रखना चाहता है ।
यूरोप में पश्चिमी जर्मनी और एशिया में जापान व पाकिस्तान का समर्थन उसकी इसी आवश्यकता पर आधारित रहे हैं ताकि सोवियत संघ और साम्यवादी शक्तियों के विरुद्ध शक्ति-संतुलन स्थापित किया जा
सके ।