भारत की विदेश नीति के निर्धारण में विदेश मंत्रालय की भूमिका । “The Role of Foreign Ministry in Determining the India’s Foreign Policy” in Hindi Language!
भारत की विदेश नीति के निर्धारण में विदेश मंत्रालय की भूमिका:
किसी भी देश की विदेश नीति का निर्धारण बहुत कठिन काम होता है । विदेश नीति आंतरिक नीति के जैसी नहीं होती है । तरिक नीति में यदि कहीं कोई समस्या उत्पन्न होती है, जैसे-कानून व्यवस्था की समस्या अथवा किसी भी वस्तु के मूल्य में बढ़ोतरी की समस्या, तो उसका निराकरण बहुत ही आसानी से कर लिया जाता है ।
कानून-व्यवस्था की समस्या को डी. एम. और एस. पी. मिलकर सुलझा लेते हैं । किसी वस्तु के मूल्य को नियंत्रित करने के लिए सरकार उस वस्तु को व्यापक मात्रा में खरीद कर कम मूल्य पर बेचना प्रारभ कर देती है, जिसके कारण मूल्य वृद्धि रुक जाती है, परंतु विदेश नीति का निर्धारण इस तरह नहीं होता है ।
इसके लिए विदेश नीति के संबंध में विस्तृत ज्ञान व्यवहार और अनुभव की आवश्यकता हाता है, क्योंकि विदेश नीति का संबंध अपने देश से न होकर किसी दूसरे देश से होता है, जिसके व्यवहार का नियंत्रण अपने देश के वश में नहीं होता । इसलिए विदेश नीति के निर्धारक इन सारे तत्त्वों को भली-भाँति जानते हैं ।
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इसके संबंध में सबसे पहले यह सोचना होता है कि किसी भी देश के साथ बात करने के पहले विचार-विमर्श का उचित माहौल है या नहीं और विचार-विमर्श करने का अवसर आया है या नहीं और इसके अपेक्षित परिणाम निकलेंगे या नहीं । उदाहरण के लिए, हम पाकिस्तान को ही लें ।
आतंकवाद को रोकने के लिए पाकिस्तान के साथ अवसर माहौल और पाकिस्तान के व्यवहार को देखते हुए वार्ता करनी होगी ताकि वार्ता के उचित परिणाम निकलें । प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार कहा था कि पाकिस्तान के साथ आतंकवाद को नियंत्रित करने के संबंध में हमारा यह प्रयास अंतिम प्रयास होगा और इसमें यदि उन्हें सफलता नहीं मिलती है, तो वे राजनीति से संन्यास ले लेंगे ।
उनका यह वक्तव्य उपयोगी नहीं दिखाई पड़ता है, क्योंकि किसी भी देश के साथ वार्ता करने के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है । इससे स्पष्ट होता है कि किसी भी देश के साथ विदेश संबंध की सार्थकता के लिए इंतजार करना और धैर्य के साथ बार-बार प्रयास करना आवश्यक हो जाता है ।
विदेश मंत्रालय में अति वरिष्ठ और वैदेशिक ज्ञान से संपन्न व्यक्तिगण होते हैं । इसके अंतर्गत मंत्रालय के शीर्ष पर अनुभवी और वरिष्ठ व्यक्ति सचिव के पद पर नियुक्त रहता है, जो मंत्रालय का अध्यक्ष एवं विदेश मंत्री का मुख्य परामर्शदाता होता है । वह समय-समय पर विदेश मंत्री को परामर्श देता है ।
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विदेश सचिव की सहायता के लिए विदेश मंत्रालय के अंतर्गत दो अन्य वरिष्ठ अधिकारी विदेश सचिव पूर्व और पश्चिम के नाम से नियुक्त रहते हैं । ये दोनों अधिकारी विदेश सचिव को विदेश क्षेत्र में मत्रणा देते हैं और आव्रश्यकता पड़ने पर विदेश मंत्री को परामर्श भी देते हैं ।
विदेश सचिव बहुत ही वरिष्ठ और योग्य व्यक्ति होता है, जो अपने विशिष्ट अनुभव के आधार पर कार्यरत रहता है । विदेश सचिव की सहायता के लिए तीन अतिरिक्त सचिव, जिन्हें एडिशनल सेक्रेटरी कहा जाता है, अपने कार्यों का सम्पादन करता है ।
विदेश मंत्रालय सामान्यतया चौबीस प्रभागों में बँटा है और प्रत्येक प्रभाग अपने-अपने कार्यों का सम्पादन करता है । प्रत्येक प्रभाग का एक संयुक्त सचिव होता है, जो अपने प्रभाग के प्रमुख के रूप में कार्य करता है । भारतीय विदेश मंत्रालय में 12 प्रादेशिक प्रभाग भी हैं, जो प्रादेशिक स्तर पर संबंधित कार्यों का निरीक्षण करते है ।
उदाहरण के लिए ये प्रभाग अमेरिका, लैटिन अमेरिका, कनाडा, कैरेबियन देश, खाड़ी देश, पूर्वी एशिया के देश के संबंध में विस्तृत जानकारी प्राप्त करते हैं और इस समूह के देशों के संबंध में सरकार को समय-समय पर परामर्श देते हैं । देशों के इस समूह का कार्य एक प्रभाग सँभालता है ।
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विदेश मंत्रालय के अंतर्गत उदाहरण के लिए ऐतिहासिक नीति निर्माण, विदेश प्रचार, नवाचार और संयुक्त राष्ट्र से संबंधित कार्यों के सम्पादन के लिए अलग प्रभाग हैं । इन प्रभागों की संख्या लगभग 11 है, जो विभिन्न क्षेत्रों में अपने कार्यों का सम्पादन करता है ।
भारतीय विदेश मंत्रालय में आंतरिक कार्यों के सम्पादन के लिए एक प्रशासनिक प्रभाग भी है, जिसका काम प्रशासन संबंधी कार्यों का सम्पादन करना है । नीति-निर्माण के संबंध में विस्तृत ज्ञान के लिए विभिन्न महत्वपूर्ण प्रभागों के संबंध में जानकारी आवश्यक हो जाती है ।
भारतीय विदेश विभाग के अंतर्गत प्रारंभिक वर्षों में नीति के नियोजन अनुसंधान आकस्मिक घटनाओं का निराकरण और विशेष ज्ञान की प्राप्ति के लिए किसीं विशेष प्रभाग का निर्माण नहीं किया गया था केवल ऐतिहासिक प्रभाग था जो किसी भी देश की ऐतिहासिक समस्याओं ऐतिहासिक विवरणों अथवा किसी भी प्रकार की सूचना आदि उपलब्ध कराता था ।
धीरे-धीरे इन प्रभागों की संख्या में वृद्धि होती गई । 1962 में अक्तूबर में भारत सरकार ने चीनी आक्रमण से अनुभव प्राप्त करके योजना और अनुसंधान प्रभाग की स्थापना की । जब चीनी आक्रमण हुआ, तब विदेश विभाग के पास विवादित सीमावर्ती इलाकों के विषय में कोई विशेष जानकारी नहीं थी ।
इसी कमी को पूरा करने के लिए 1963 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने पूर्वी एशिया अनुसंधान और समन्वय प्रभाग की स्थापना की । प्रारंभ में इसका कार्यक्षेत्र चीनी समस्याओं से संबंधित मामलों का अनुसंधान करना था, परंतु नेहरू जी की मृत्यु के बाद 1965 में भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने योजना एवं अनुसंधान प्रभाग की स्थापना की, जिसे करेंट रिसर्च डिविजन के नाम से पुकारा जाता है ।
यह प्रभाग विस्तृत आधार वाला होने के कारण समसामयिक विषयों का विस्तृत रूप में अनुसंधान करता है । 1966 में इसका नाम बदलकर नीति-नियोजन और समीक्षा समिति रखा गया और बाद में इसे अलग-अलग करके नीति-नियोजन और समीक्षा प्रभाग के रूप में स्थापित किया गया ।
इस प्रभाग का उपयोग वास्तविक रूप में श्रीमती गाँधी और राजीव गाँधी के द्वारा किया गया । वर्तमान समय में विदेश मंत्रालय के अंतर्गत पॉलिसी प्लानिंग और रिसर्च डिविजन है । इस प्रभाग का मुख्य उद्देश्य है अनुभवी और विवेकशील अधिकारियों के द्वारा नीतियों का निर्माण और नीतियों के संबंध में पूर्वानुमान करना ।
नियमित रूप से कार्य करने वाले अथवा पदस्थापित पदाधिकारियों को ही इन प्रभागों में स्थान दिया जाता है । विदेश विभाग की यह खासियत है कि यह अपने अनुभव प्राप्त एवं योग्य आई.एफ.एस. पदाधिकारियों को ही विभिन्न देशों की राजधानियों के दूतावासों में भेजता है और ये पदाधिकारीगण दूतावासों के अंतर्गत विभिन्न कार्यों का सम्पादन करते हैं ।
कार्यों के सम्पादन में इनका मुख्य उद्देश्य होता है जिस देश में रह रहे हैं उस देश की राजनीतिक गतिविधियों से संबंधित सूचनाएँ एकत्रित करना विकास संबंधी कड़े इकट्ठा करना और इसकी सूचना अपनी सरकार को भेजना ।
आधुनिक युग में विभिन्न देशों में स्थित दूतावासों का सूचना संबंधी तथ्यों का एकत्रीकरण बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य हो गया है । कभी-कभी ऐसा भी अवसर आता है कि दूतावास के पदाधिकारीगणों को वास्तविक सूचना उपलब्ध नहीं हो पाती है ।
इसलिए आधुनिक प्रजातांत्रिक युग में सूचना एकत्रित करने का कार्य विशेष कार्य के रूप में माना जाने लगा है और इसके लिए विशेषज्ञों की ही महरू होती है । इसलिए दूतावासों में कृषि अताशे तथा सैन्य अताशे जैसे अधिकारी नियुक्त किए जाते हैं, जो उस देशकी कृषि तथा सैन्य विकास संबंधी जानकारी एकत्र करने का कार्य करते हैं, जहाँ ये दूतावास स्थित होते हैं ।
अमेरिका तथा इंग्लैंड जैसे देशों में उद्योग, शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों के भी अताशे होते हैं । ये अताशे लोग सभी दूतावासों में कार्य करते हैं और विस्तृत जानकारी दूतावास को सौंपते हैं इसलिए इनका व्यापक महत्त्व होता है । विदेशों में भारतीय दूतावासों के अंतर्गत बहुत से अताशे कार्यरत हैं ।
विभिन्न देशों में अवस्थित दूतावासों के अंतर्गत कार्य करने वाले राजनयिक लोग सामान्य व्यक्तियों से खुले तौर पर विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ एकत्रित तो करते ही हैं और अन्य सूचनाएँ दूतावास के कर्मचारियों के द्वारा एकत्र की जाती हैं और संगृहीत भी की जाती हैं ।
इस प्रकार की सूचना को इंटेलिजेंस भी कहा जाता है और ये सूचनाएँ किसी भी देश की विदेश नीति के निर्धारण में व्यापक महत्त्व रखती हैं । उचित इंटेलिजेंस के अभाव के कारण नीति-निर्धारण में जो असफलता पैदा होती है उस असफलता का श्रेय इंटेलिजेंस पर ही जाता है ।
उदाहरण के लिए 1999 में पाकिस्तानी सैनिकों ने कारगिल की चोटी पर जब अपना सैनिक अड्डा स्थापित कर लिया था तो भारतीय विदेश नीति की असफलता की बात इसलिए कही गई थी कि पाकिस्तानियों के द्वारा भारतीय भू-भाग पर कब्जा करने की जानकारी अपने ही देश की सरकार को नहीं है, तो उस समय यह बात उजागर की गई थी कि इंटेलिजेंस ने विस्तृत जानकारी विदेश विभाग को नहीं सौंपी थी ।
कैबिनेट सचिवालय के अंतर्गत एक विशेष प्रकार का अभिकरण है, जो विभिन्न प्रकार की आसूचना का संग्रह करता है और सरकार को इसकी जानकारी देता है । इस अभिकरण का नाम है: रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) । यह अभिकरण बहुत ही व्यापक और विस्तृत अनुसंधान करता है और अमेरिकी सी.आई.ए. अभिकरण के समान क्षमता और योग्यता रखता है ।
इंटेलिजेंस ब्यूरो का काम है आंतरिक सूचना को एकत्रित करना और संबंधित विभाग को सौंपना । प्राय: यह देखा जाता है कि किसी भी नीति के असफल होने पर जब नीति-निर्माता इंटेलिजेंस पर किसी प्रकार का दोषारोपण करते हैं, तो इंटेलिजेंस विभाग यह सोचता है कि नीति निर्माता अपनी विफलताओं का आरोप इंटेलिजेंस विभाग पर लगा रहे हैं, परंतु वास्तविकता यह है कि गलती किसी एक की नहीं, दोनों की रहती है ।