Read this essay in Hindi to learn about the aquatic ecosystems of India.
जलीय पारितंत्रों में समुद्रों के पर्यावरण तथा झीलों, नदियों, तालाबों और नमभूमियों जैसे ताजे जल के पारितंत्र आते हैं । ये पारितंत्र मनुष्य को बहुत-से प्राकृतिक संसाधन देते हैं । ये मछली और झींग जैसे खाद्य पदार्थ प्रदान करते हैं ।
नदी और समुद्र जैसे प्राकृतिक जलीय पारितंत्र मनुष्य द्वारा उत्पन्न रासायनिक और जैविक कचरों का विघटन करते हैं । लेकिन इस कार्य की अपनी सीमाएँ हैं । जलीय पारितंत्र कचरे की वर्तमान भारी मात्रा का निबटारा नहीं कर सकता । एक सीमा के बाद प्रदूषण इस प्राकृतिक कार्य को रोक देता है ।
अगर जलीय पारितंत्रों का दुरुपयोग या अति-उपयोग किया जाएगा तो दीर्घकाल में उनकी संसाधन देने की क्षमता कम हो जाएगी । अधिक मछलियाँ मारने से मछलियों की पैदावार कम होती है । बिजली बनाने के लिए बाँध नदियों के मार्ग को बदल देते हैं जिससे निचले क्षेत्रों में रहने वाले हजारों लोग प्रभावित होते है जिनको दैनिक उपयोग के लिए जल बराबर नहीं मिलता ।
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जब दलदलों को सुखाया जाता है तो यह उनसे जुड़ी नदियों में बाढ़ का कारण बन जाता है । ये सभी उदाहरण उन सभी प्राकृतिक संसाधनों तथा प्राकृतिक पारितंत्रों के उपयोग में अनिर्वहनीय परिवर्तनों के हैं जो जल-चक्र की व्यवस्थाओं पर निर्भर हैं । जल हमारे सभी पारितंत्रों का एक महत्त्वपूर्ण घटक है । ताजे जल और समुद्री जल में अनेक पारितंत्र होते हैं । पृथ्वी पर ताजा जल जो संसार भर की जनता के लिए एक बुनियादी संसाधन है, बहुत कम है ।
जलीय पारितंत्र क्या है?
जलीय पारितंत्रों में पौधे और प्राणी जल में रहते हैं । ये प्रजातियाँ विभिन्न प्रकार के जलीय आवासों में रहने में समर्थ हैं । जलीय पारितंत्र की विशिष्ट अजैविक विशेषताएँ इसके भौतिक पक्षों में होती हैं, जैसे पानी की किस्म जिसमें उसकी स्वच्छता, खारापन, ऑक्सीजन की मात्रा और प्रवाह की दर शामिल हैं । जलीय पारितंत्रों को स्थिर (stagnant) पारितंत्रों और प्रवाहमान जल वाले (running water) पारितंत्रों में बाँटा जा सकता है ।
जलीय पारितंत्रों की तलहटी के कीचड़, कंकड़ और चट्टानी टुकड़े उसकी विशेषताओं को परिवर्तित करते हैं और उसके पौधे और प्राणियों की संरचना को प्रभावित करते हैं । जलीय पारितंत्रों को ताजे जल (fresh water), मटमैले जल (brackish water) और सागर जल (marine water) के पारितंत्रों में भी वर्गीकृत किया जा सकता है जो खारेपन के स्तर पर आधारित होता है ।
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ताजे जल के जिन पारितंत्रों में जल प्रवाहमान होता है वे हैं नदियाँ और नाले । ताल-तलैये और झीलें ऐसे पारितंत्र हैं जिनमें जल प्रवाहमान नहीं होता । नमभूमियाँ (wetlands) ऐसे विशेष पारितंत्र हैं जिनमें विभिन्न मौसमों में जल के स्तर में नाटकीय बदलाव आते रहते हैं । ये जलीय वनस्पतियों से भरे, छिछले जल वाले क्षेत्र हैं जो मछलियों, झींगों और जलचर परिंदों के लिए आदर्श आवास हैं ।
समुद्री पारितंत्र खारे होते हैं जबकि नदी के डेल्टा जैसे मटमैले जलवाले क्षेत्रों में खारापन कम होता है । प्रवाल भित्तियाँ (coral reefs) प्रजातियों से भरी होती हैं और ये छिछले उष्णकटिबंधीय समुद्रों में ही पाई जाती हैं । भारत में सबसे समृद्ध प्रवाल भित्तियाँ अंडमान-निकोबार द्वीपों के इर्दगिर्द और कच्छ की खाड़ी में हैं ।
नदियों के डेल्टों में मटमैले जल वाले पारितंत्रों में मैनग्रोव वन पाए जाते हैं और ये जैवभार के उत्पादन की दृष्टि से संसार के सबसे उत्पादक पारितंत्र हैं । मैनग्रोव की सबसे बड़ी दलदल गंगा नदी के डेल्टा में स्थित सुंदरवन है ।
जलीय पारितंत्रों के प्रकार (Types of Aquatic Ecosystems):
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तालाब का पारितंत्र:
तालाब ऐसा जलीय पारितंत्र है जिसका अवलोकन करना सबसे आसान है । एक अस्थायी तालाब तथा एक बड़े तालाब या झील में अंतर होता है । पहले में जल केवल वर्षा ऋतु में होता है जबकि दूसरे में साल भर जल रहता है । वर्षाकाल के समाप्त होने के बाद अधिकांश तालाब सूख जाते हैं और बाकी साल स्थलीय पौधों से ढँके रहते हैं ।
वर्षाकाल के आरंभ के बाद जब तालाब भरने लगता है तो उसके जीवनरूप, जैसे शैवाल (algae) और सूक्ष्मप्राणी, पानी के कीड़े, घोंघे और केंचुए तालाब की तली से, जहाँ वे सूखे के दिनों में सोए पड़े रहते हैं, बाहर आ जाते हैं । धीरे-धीरे केकडों, मेंढकों और मछलियों जैसे अधिक जटिल प्राणी भी वापस आ जाते हैं । जलीय वनस्पति में तैरती काई और किनारे के जड़दार पौधे शामिल होते हैं जिनकी जड़ें पानी के नीचे कीचड़दार तली में होती हैं और पत्ते पानी की सतह से ऊपर आ जाते हैं ।
वर्षाकाल में जब तालाब भरता है तो बहुत-सी खाद्य-शृंखलाएँ पैदा होती हैं । कवक को सूक्ष्म प्राणी खाते हैं, सूक्ष्म प्राणियों को छोटी मछलियाँ खाती हैं और छोटी मछलियों पर बड़ी मांसभक्षी मछलियाँ जीती हैं । बड़ी मछलियों को फिर किंगफिशर, बगुले और दूसरे पक्षी खाते हैं । जल के कीड़े, केंचुए और घोंघे पशुओं के मल पर तथा मृत या सड़ते पौधों और पशुओं पर निर्भर होते हैं । उनकी क्रिया से मृत पदार्थ पोषक तत्त्वों में विघटित हो जाते हैं जिनको जलीय पौधे ले लेते हैं ।
इस तरह तालाब का पोषण-चक्र (nutrient cycle) पूरा हो जाता है । अस्थायी तालाब वर्षाकाल के बाद सूखने लगते हैं और आसपास की घास और स्थलीय पौधों के फैलने से अब दिखाई देनेवाला नम कीचड़ ढँक जाता है । मेंढकों, पौधों और केंचुओं जैसे प्राणी अगली वर्षा की प्रतीक्षा करते हुए कीचड़ में सोए पड़े रहते हैं ।
झील का पारितंत्र:
झील का पारितंत्र एक विशाल स्थायी तालाब की तरह काम करता है । उसके पौधों में एक बड़ा भाग शैवालों का होता है जिसे सूर्य से ऊर्जा मिलती है । यह ऊर्जा शैवालों को खाने वाले सूक्ष्म प्राणियों को चली जाती है । कुछ मछलियाँ शाकभक्षी होती हैं तथा शैवालों और जलीय पतवारों पर आश्रित होती हैं । घोंघे जैसे छोटे प्राणियों को छोटी मांसभक्षी मछलियाँ खाती हैं और फिर उन्हें बड़ी मांसभक्षी मछलियाँ खा जाती हैं । कैटफिश जैसी कुछ विशेष मछलियाँ झील की कीचड़दार तली के मृत पदार्थों पर जीवित रहती हैं, इनको ‘तलभक्षी’ (bottom feeder) कहा जाता है ।
झील के पारितंत्र को ऊर्जा सूर्य के प्रकाश से मिलती है जो जल की सतह को भेदकर पौधों तक पहुँचती है । पौधों से यह ऊर्जा शाकभक्षियों और मांसभक्षियों को स्थानांतरित होती है । इन प्राणियों का मल जो झील की तलहटी में जमा हो जाता है, उसे तली के कीचड़ में रहने वाले छोटे प्राणी विघटित करते हैं । यह वह पोषक तत्त्व होता है जिसे जलीय पौधे ग्रहण करते हैं । इस प्रक्रिया में पौधे अपनी वृद्धि के लिए CO2 से कार्बन लेकर आक्सीजन छोड़ते हैं । फिर इस आक्सीजन का प्रयोग जलचर प्राणी करते हैं जो अपने श्वसन तंत्र के द्वारा जल को छानते हैं ।
नदी-नालों के पारितंत्र:
नदी-नाले बहते जल के पारितंत्र हैं जिनमें सभी जीवनरूप बहते जल के अलग-अलग प्रवाह के अनुरूप ढले होते हैं । कुछ पौधे और प्राणी, जैसे घोंघे और बिल बनाने वाले प्राणी पहाड़ी नालों के तेज प्रवाह को भी झेल सकते हैं । पौधों और प्राणियों की दूसरी प्रजातियाँ, जैसे पानी के गुबरैले (water beetles) और स्केटर धीमे बहते जल में ही रह सकती हैं । मछलियों की महशीर जैसी कुछ प्रजातियाँ प्रजनन के लिए नदियों से ऊपर चढ़कर पहाड़ी नालों में चली जाती हैं ।
प्रजनन को समर्थ बनने के लिए उन्हें दर्पण जैसे साफ पानी की जरूरत होती है । पर्वतों पर वनों के विनाश से वे नाले भी मौसमी बन जाते हैं जो पहले सालभर बहते थे । इससे वर्षा के काल में आकस्मिक बाईं आती हैं और मानसून के बाद नालों के सूखने पर पानी की कमी हो जाती है ।
नदी-नालों के पौधों और प्राणियों के समुदाय उनमें बहने वाले पानी भी स्वच्छता, प्रवाह, आक्सीजन की मात्रा तथा तलहटी की प्रकृति पर निर्भर होते हैं । नाले या नदी की तलहटी रेतीली, चट्टानी या कीचड़दार हो सकती है, और हर प्रकार की तलहटी में पौधों और प्राणियों की अपनी प्रजातियाँ होती हैं ।
समुद्री पारितंत्र:
हिंद महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी प्रायद्वीपीय भारत (Peninsular India) के समुद्री पारितंत्र हैं । तटीय क्षेत्रों में समुद्र छिछला होता है जबकि और आगे यह गहरा होता है । इन दोनों के अलग-अलग पारितंत्र होते हैं । इस पारितंत्र के उत्पादक सूक्ष्म शैवालों से लेकर बड़े समुद्री पतवार (seaweeds) तक होते हैं । इनमें लाखों प्राणी प्लवक (zooplanktons) तथा तरह-तरह के अकशेरुकी प्राणी (invertebrates) होते हैं जिनका मछलियाँ, कछुए और समुद्री स्तनपायी जीव भोग लगाते हैं ।
कच्छ तथा अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह के पास के छिछले समुद्रों में दुनिया की कुछ सबसे अविश्वसनीय प्रवाल भित्तियाँ (coral reefs) पाई जाती हैं । प्रजातियों की विविधता प्रवाल भित्तियों से ज्यादा केवल ऊष्णकटिबंधीय सदाबहार वनों में ही पाई जाती है । मछलियाँ, झींगे, तारामछली, जेलीफिश और पालिप (polyps) जो प्रवाल (coral) जमा करते हैं, छिछले सागर के इस अविश्वसनीय संसार में रहने वाले कुछ हजार प्रजातियों में से कुछ एक नाम हैं ।
साथ लगे मैनग्रोव वनों के विनाश से गाद (silt) समुद्र में पहुँचती है जो प्रवालों पर जमा हो जाती है । इससे ये प्रवाल विरंजित होकर मर जाते हैं । ऐसे अनेक, भिन्न-भिन्न तटीय पारितंत्र हैं जो ज्वार (tide) पर बहुत अधिक आश्रित होते हैं ।
समुद्रतट के मछुआरे समुद्री पारितंत्र से मछलियाँ पकड़ते हैं जो उनकी आजीविका का साधन हैं । अतीत में मछलियाँ निर्वहनीय ढंग से मारी जाती थीं और समुद्री पारितंत्र अनेक पीढ़ियों तक मछलियों की भरपूर आपूर्ति करता रहता था । अब विशालकाय जालों और मशीनी नौकाओं के उपयोग से मछलियों के शिकार में तीव्रता आई है और इसलिए हिंद महासागर में मछलियों की संख्या पहले से कम हो गई है ।
समुद्रतटीय पारितंत्र:
समुद्रतट रेतीले, चट्टानी, सीपियों से भरे या कीचड़दार हो सकते हैं । इनमें से हर प्रकार में अनेक विशेष प्रजातियाँ रहती हैं जो अपने अलग-अलग ठिकाने बना चुकी हैं । यहाँ केकड़ों जैसे तरह-तरह के पपड़ीदार प्राणी होते हैं जो रेत में बिल बनाते हैं । अनेक तटवासी पक्षी तट की रेत या कीचड़ में चोंच मारकर अपना शिकार पाते हैं । मछुआरे मछलियों की अनेक प्रजातियाँ पकड़ते हैं । अनेक क्षेत्रों में पिछले दो दशकों में मछलियों की खेप कम हुई है ।
जलीय पारितंत्रों का उपयोग कैसे होता है?
मनुष्य जलीय पारितंत्रों का उपयोग स्वच्छ जल के लिए करता है जिस पर उसका जीवन पूरी तरह निर्भर है । हमें पीने और दूसरे घरेलू कामों के लिए स्वच्छ जल चाहिए । पानी खेती के लिए भी अनिवार्य है । मछुआरे जलीय पारितंत्र से जीविका निर्वाह करते हैं । लोग मछलियाँ और केकड़े पकड़ते हैं, खाने योग्य पौधे भी जमा करते हैं । ये स्थानीय स्तर पर खाए जाते हैं या बाजार में बेचे जाते हैं । अधिक मछलियाँ मारने से खेप काफी कम हो जाती है और आगे चलकर मछुआरों की आय मारी जाती है ।
मछली, झींगे, नरकुल (reeds), घास और अन्य वस्तुओं पर निर्भर व्यक्तियों के लिए नमभूमियों और दलदलों का भारी आर्थिक महत्त्व होता है । आधुनिक मानव बाँधों से जल को रोककर साल भर उन्हें जमा रखता है । कृषि और उद्योग जल की भारी मात्रा पर बहुत अधिक निर्भर हैं । पर इससे जनजातीय जनता के लिए समस्याएँ पैदा होती हैं जो बाँध बनने के पहले वहाँ रह रही थी और बाँध बनने के बाद विस्थापित हो गई है ।
बाँध विद्युत उत्पादन के लिए नदियों पर बनाए जाते हैं । इस ऊर्जा का एक बड़ा भाग नगरवासियों के, किसानों के और भारी मात्रा में उद्योगों के काम आता है । नदियों के प्राकृतिक पारितंत्रों पर बड़े बाँध गंभीर दुष्प्रभाव डालते हैं । सिंचाई के लिए बाँधों के जल के प्रयोग से कुछ क्षेत्रों में आर्थिक समृद्धि आई है, पर जिन अर्धशुष्क क्षेत्रों की कृत्रिम सिंचाई होती है उनमें वाष्पीकरण की भारी दर के कारण भारी खारापन पैदा होता है, क्योंकि लवण मिट्टी की सतह पर आ जाते हैं । इससे ये क्षेत्र धीरे-धीरे अधिकाधिक खारे और अनुपजाऊ बनते हैं ।
जलीय पारितंत्रों के सामने क्या खतरे हैं?
नगरों का गंदा पानी और ठोस अपशिष्ट जब झीलों और नदियों के जलीय पारितंत्रों में पहुँचते हैं तो जल का प्रदूषण होता है । गंदे पानी से ”अतिपोषण” (eutrophication) नाम की एक प्रक्रिया आरंभ होती है जिसमें आक्सीजन की मात्रा के काफी कम होने से जलीय जीवन नष्ट होता है । मछलियाँ और झींगें साँस न ले पाने के कारण मर जाते हैं, बदबू पैदा होती है, और जलीय पारितंत्र के प्राकृतिक पौधे और प्राणी धीरे-धीरे नष्ट हो जाते हैं ।
ग्रामीण क्षेत्रों में रासायनिक खादों के अति-उपयोग से पोषक तत्त्वों में वृद्धि होती हैं जो अतिपोषण का कारण होता है । पास के खेतों में प्रयुक्त कीटनाशक जल को प्रदूषित करते हैं और जलीय प्राणियों को मारते हैं । उद्योगों का रासायनिक प्रदूषण पास के जलीय पारितंत्रों में बड़ी संख्या में जीवनरूपों की हत्या करता है । भारी धातुओं और अन्य विषैले रसायनों का प्रदूषण इन क्षेत्रों के पास रहने वाली जनता के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, क्योंकि वे इसी जल पर निर्भर होते हैं ।
जलीय पारितंत्रों का सरंक्षण कैसे संभव है?
जलीय पारितंत्रों के निर्वहनीय उपयोग के लिए जल प्रदूषण को रोकना आवश्यक है । जल को पहले प्रदूषित होने दिया जाए और फिर उसे साफ करने की कोशिश की जाए, इसका कोई तुक नहीं है । एक बहते जल के पारितंत्र की प्रकृति को बदलकर उसे स्थिर जल का पारितंत्र बनाने से उसकी प्राकृतिक जैव-विविधता नष्ट हो जाती है ।
इसी कारण नदियों पर बने बाँध उन प्रजातियों की संख्या घटाते हैं जिनके लिए बहते जल की आवश्यकता होती है । दूसरी ओर, ये स्थिर जल चाहनेवाली प्रजातियों के अनुकूल होते हैं । जलीय पारितंत्रों का और खासकर नमभूमियों को अभयारण्यों और राष्ट्रीय पार्कों में शामिल करके उनका संरक्षण उसी प्रकार करना आवश्यक है जैसे हम अपने प्राकृतिक वनों का संरक्षण करते हैं । जलीय पारितंत्रों के ये अभयारण्य अनेक जीवनरूपों को संरक्षण देते हैं, तथा महशीर जैसी दुर्लभ मछलियों को भी जो आज बुरी तरह संकटग्रस्त हैं ।
नमभूमियों वाले अभयारण्यों और राष्ट्रीय पार्कों का सबसे अधिक महत्त्व इसलिए है कि ये हमारे सबसे अधिक संकटग्रस्त पारितंत्रों में एक हैं । चूँकि पृथ्वी की सतह पर नमभूमियों का भाग वनों या घास के मैदानों की तुलना में बहुत ही कम है, इसलिए नमभूमि वाले पारितंत्रों के लिए संकट बहुत गंभीर है ।